अगर आप घेरण्ड द्वारा प्रणीत योग को देखेंगे जिसे लोगोँ ने नकार दिया ! आखिर क्योँ नकारा ? क्या आपको ये मालूम है ? हठयोग को आखिर बल क्योँ मिलता गया ? और दर्शन अर्थात् philosophy मेँ केवल पतञ्जल की philosophy को इतना अधिक महत्व क्योँ दिया गया ? योग तो आपने बहुत लोगोँ से सीखा होगा, बहुत लोगोँ को आप योग करते देखते होंगे तब भी बहुत से लोग कौलान्तक पीठ आकर योग सीखना चाहते है ! क्योँकि हम योग को आपके सम्मुख अपने अंदाज मेँ लेकर आते है...वो अंदाज मेरा नहीँ है ! वो अंदाज है "देवाधिदेव महादेव" का ! वो है महादेव की सनातन परंपरा से आया हुआ योग; जो उन्होनेँ आगम के द्वारा निगम को अर्थात् माँ पार्वती को दिया ! और तभी से अनेकोँ ऋषि-मुनियोँ के द्वारा ये योग की धारा युँ ही बहती हुई इस पीठ मेँ आगे बढती आ रही है ।
आप कहेंगे, 'योग तो मैने अपने गुरु से भी सीखा है ! योग करते हुए तो हमने अन्य योगियोँ को भी देखा है । योग की बातेँ तो हमने भी हजार सुनी है और योग की कई पुस्तकेँ चाहे घेरण्ड योग हो, चाहे हठयोग प्रदीपिका हो, चाहे पतञ्जल योग हो, चाहे शिवसूत्र हो कोई भी योग से सम्बन्धित पुस्तक हो हमने जरुर पढी है... तो फिर कौलान्तक पीठ मेँ आकर वही पुस्तक और वही योग फिर से सीखने की क्या जरुरत ? आप कोई भी बडे से बडे योगी हो लेकिन तब तक अधूरे है जब तक आपने कौलान्तक पीठ मेँ योग की उस महादेव के द्वारा प्रदत्त उस परंपरा को देखा न हो जो उनके द्वारा बडी कठोरता से स्थापित की गयी है ! जहाँ संपूर्ण योग और उसके अस्तित्त्व को निचोडकर अर्क बनाकर के रखा गया है ताकि आप उस योग के बने हुए अर्क का सेवन कर योग के परम ज्ञान को उपलब्ध होकर, "महायोगी" बनकर समाधि की ओर जा सके, पूर्ण ज्ञान को प्राप्त कर सके ! - ईशपुत्र
My name is Joanne Doe, a lifestyle photographer and blogger currently living in Osaka, Japan. I write my thoughts and travel stories inside this blog..