जो भी अद्भुत, सुन्दर, अविश्वसनीय हमारे चारों और है वो 'श्री विद्या' है। आकाश में जगमगाते नक्षत्रों को जब पृथ्वी पर स्थित मनुष्य देखता है तो सोचता है की ये कितने छोटे-छोटे सितारे हैं आसमान में। किन्तु जब वो विज्ञान की सहायता से इनके निकट पहुंचता है तो हैरान रह जाता है कि ये सितारे और ग्रह, पिंड कितने बड़े हैं? ठीक ऐसी ही श्री विद्या है। आप और हम इसे दूर से देखते हैं, बहुत काम इसके बारे में जानते हैं। तो लगता है कि 'श्री विद्या' एक देवी ही है। लेकिन जब साधक साधना के अभ्यास और गुरु की कृपा से इस मार्ग में आगे बढ़ता है तो उसके होश ठिकाने आ जाते हैं। क्योंकि जिस श्री विद्या को वो अपनी मति के अनुसार सीमित मानता था वो इतनी विराट निकलती है कि सारी कल्पना शक्तियां भी जबाब दे जाती हैं। ऋषि-मुनि तो बस इन साधनाओं में ऐसे डूबे की खबर ही नहीं रही की उनके साथ क्या हुआ? श्री विद्या तो है नित्य है। बस खोजने और मानने वाले पर सब निर्भर करता है। जैसे कोई कहे कि विज्ञान जब नहीं था तब भी तो गुरुत्वाकर्षण था ही। विज्ञान नें नया क्या कर दिया? ठीक है ये लोग नास्तिकों जैसे ही होते हैं। जो कहते हैं भगवान जब था नहीं तो भी क्या फर्क पड़ा? जैसे गुरुत्वाकर्षण तो था। किसी नें खोज निकला सिद्धांत और इस सिद्धांत का सिद्ध हो गया। जिनको नहीं मानना है ना मानें। उसी गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत से आज हवाई जहाज चलते हैं। हम दूसरे ग्रहों तक पहुँच गए और भी ना जाने क्या-क्या? जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को नहीं माना अभी भी बैठे हैं और बैठे ही रहेंगे ठीक नास्तिकों जैसे। श्री विद्या तो है नित्य है। उसे कुछ सिद्धों नें जान लिया है, तुममें सामर्थ्य है तो तुम भी जान लो और प्रयोग करो। जिसनें प्रयोग किया बहुत कुछ पा गया और जिसनें नास्तिक हो कर नकारा बैठा है वो और बैठा ही रहेगा। आज तो घोर धर्म विरोधी युग चल रहा है? हम एक तर्क देंगे तो एक करोड़ कुतर्क देने वाले बैठे हैं। हम धर्म को उठाना चाहेंगे तो एक करोड़ उसे गिराना चाहेंगे। ऐसे में भी जो हमको प्रेरणा देती है वो श्री विद्या है।
जीवन थोड़ा सा ही है और कष्ट एवं दुःख घनघोर हैं। इस विराट समय समुद्र में हमारा जीवन एक बूँद के समान भी नहीं है। जीवन के बहुत से पहलू तो अनजान ही रह जाते हैं। क्या हम इस पृथ्वी को जिस पर हमने जन्म लिया है पूरी देख और जान पाते हैं? उत्तर होगा नहीं। क्योंकि इतना भी कर पाना किसी के वष का नहीं है कि वो धरती पर उगे सभी पेड़-पौधों, वनस्पति और घास आदि को जान सके। श्री सुबुद्धि तत्व है। जो साकारात्मक निधि प्रदान करता है। इसी कारण ऋषियों नें कहा कि जो श्री विद्या तत्व को नहीं जानता वो अपूर्ण व सौंदर्य दृष्टि रहित है। लेकिन आप सोचेंगे तो नास्तिक या अन्य धर्मों के लोग सुबुद्धि प्राप्त नहीं है? देखिये जब गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत नहीं था तब भी सेब पेड़ से धरती पर ही गिरता था। चाहे वैज्ञानिक सेब फैके या फिर अवैज्ञानिक, हर हाल में सेब को नीचे ही गिरना है तो फिर ये सवाल की नास्तिक सौंदर्य व सुबुद्धिहीं है मूरखता होगी।
लेकिन फिर भी अंतर है, जैसे ब्रह्माण्ड का रास्ता खुल गया केवल गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को जानने से। वैसे ही श्री विद्या तो ब्रह्माण्ड नायिका ही है। श्री विद्या का यन्त्र है 'श्री यन्त्र'। आजतक बहुत से विद्वानों नें इसका रहस्य खोलने का भी प्रयास किया है। पर सफलता न्यून ही हाथ आई है। इसलिए साधक श्री चक्र के आस-पास ही जीवन बिता देना चाहते हैं। हाँ ये जरूर है की श्री चक्र और श्री विद्या के भेद और क्रम साधकों को उलझा कर रख देते हैं। कोई हादी क्रमानुसार, कोई सादी क्रमानुसार और कोई कादी क्रमानुसार इसकी साधना करना चाहता है। पूर्ण में हो चुके विद्वानों नें और विद्वानों नें भी अपनी-अपनी क्षमताओं के अनुसार इस विषय को लिखा है और इसका पूजन व साधना दीक्षा करवा रखे हैं। ठीक भी है जिसे भी जितना भी आता है काम से काम उतना तो दे ही दे। अन्यथा ये सुन्दर विधा लुप्त हो जाएगी। लेकिन इस सारे पूजन क्रम को उत्तर भारत के हिमालयों में हिमालय के सिद्धों द्वारा कैसे किया जाता है ये बहुत ही कम लोग जानते हैं और इस परम्परा का आलोक देख पाना भी साधारणतया संभव नहीं होता। इतनी बड़ी साधना की दीक्षा परम्परा भी आसान नहीं है । लेकिन श्री विद्या जैसे गूढ़ तत्व को समझना भी तो आसान नहीं है। - कौलान्तक पीठ हिमालय
जीवन थोड़ा सा ही है और कष्ट एवं दुःख घनघोर हैं। इस विराट समय समुद्र में हमारा जीवन एक बूँद के समान भी नहीं है। जीवन के बहुत से पहलू तो अनजान ही रह जाते हैं। क्या हम इस पृथ्वी को जिस पर हमने जन्म लिया है पूरी देख और जान पाते हैं? उत्तर होगा नहीं। क्योंकि इतना भी कर पाना किसी के वष का नहीं है कि वो धरती पर उगे सभी पेड़-पौधों, वनस्पति और घास आदि को जान सके। श्री सुबुद्धि तत्व है। जो साकारात्मक निधि प्रदान करता है। इसी कारण ऋषियों नें कहा कि जो श्री विद्या तत्व को नहीं जानता वो अपूर्ण व सौंदर्य दृष्टि रहित है। लेकिन आप सोचेंगे तो नास्तिक या अन्य धर्मों के लोग सुबुद्धि प्राप्त नहीं है? देखिये जब गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत नहीं था तब भी सेब पेड़ से धरती पर ही गिरता था। चाहे वैज्ञानिक सेब फैके या फिर अवैज्ञानिक, हर हाल में सेब को नीचे ही गिरना है तो फिर ये सवाल की नास्तिक सौंदर्य व सुबुद्धिहीं है मूरखता होगी।
लेकिन फिर भी अंतर है, जैसे ब्रह्माण्ड का रास्ता खुल गया केवल गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को जानने से। वैसे ही श्री विद्या तो ब्रह्माण्ड नायिका ही है। श्री विद्या का यन्त्र है 'श्री यन्त्र'। आजतक बहुत से विद्वानों नें इसका रहस्य खोलने का भी प्रयास किया है। पर सफलता न्यून ही हाथ आई है। इसलिए साधक श्री चक्र के आस-पास ही जीवन बिता देना चाहते हैं। हाँ ये जरूर है की श्री चक्र और श्री विद्या के भेद और क्रम साधकों को उलझा कर रख देते हैं। कोई हादी क्रमानुसार, कोई सादी क्रमानुसार और कोई कादी क्रमानुसार इसकी साधना करना चाहता है। पूर्ण में हो चुके विद्वानों नें और विद्वानों नें भी अपनी-अपनी क्षमताओं के अनुसार इस विषय को लिखा है और इसका पूजन व साधना दीक्षा करवा रखे हैं। ठीक भी है जिसे भी जितना भी आता है काम से काम उतना तो दे ही दे। अन्यथा ये सुन्दर विधा लुप्त हो जाएगी। लेकिन इस सारे पूजन क्रम को उत्तर भारत के हिमालयों में हिमालय के सिद्धों द्वारा कैसे किया जाता है ये बहुत ही कम लोग जानते हैं और इस परम्परा का आलोक देख पाना भी साधारणतया संभव नहीं होता। इतनी बड़ी साधना की दीक्षा परम्परा भी आसान नहीं है । लेकिन श्री विद्या जैसे गूढ़ तत्व को समझना भी तो आसान नहीं है। - कौलान्तक पीठ हिमालय