मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ तो केवल सम्राट ही होते हैं क्योंकि सम्राट का अर्थ ही हैं जीवन की हीनताओं से मुक्ति। निडरता, निर्भयता, सम्पन्नता, शक्ति, साहस और पूर्ण पौरुष। वो महासम्राट ही होते हैं जिनके ऐश्वर्य से ये पृथ्वी जगमगाती है। वो इतिहास बनाने की क्षमता रखते हैं जिनके भीतर एक सम्राट बसता है। लेकिन धन सम्पदा और राज्य सत्ताओं के दमन और शासन को सम्राट होना नहीं कहा जाता, बल्कि अस्तित्व की पूर्ण उच्चता में स्थिति और संसार व प्राणियों की रक्षा का संकल्प ही सम्राट होना है। वो योग्य अधिकारी साधक जिनको अस्तित्व महापरिवर्तन के लिए चुनता है महासम्राट बनते हैं। यही महासम्राट विश्व परिवर्तन का प्रथम आधार भी बनते हैं। इनका होना ही असत्य के दमन और तमस के नाश के साथ ही सृष्टि क्रम की पावनता और निरंतरता के लिए जरूरी है। हालांकि सम्राटों के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्ष रहे, किन्तु किसी नें भी आध्यात्मिक जगत से जुड़े महासम्राटों की ओर नहीं देखा। राज्य सत्ता से लेकर आध्यात्मिक तेज तक उनकी महासाधना चलती है। सम्राट और साम्राज्ञीयों के उच्च भाव को आज के परिवेश में केवल साधना और दीक्षा से ही प्राप्त किया जा सकता है। "कौलान्तक संप्रदाय" जो हिमालय के रहस्य पुरुषों का गोपनीय संसार है, इस साधना और विधि के लिए परम प्रसिद्द है। "कौलान्तक नाथ" की रहस्य साधनाओं के अमुल्य कोष से निकली प्रस्तुत क्रिया को वर्तमान साधक और मनुष्य अपनी बुद्धि से नहीं आंक सकता। क्योंकि ये राजशाही की शुरुआत नहीं, बल्कि सम्राट हो कर जीवन की सर्वोच्चता को पाना है।
आज भारत और भारतीय दोनों-अपने अपने संघर्ष में जुटे हैं। लेकिन युगों-युगों से सम्पूर्ण विश्व नें ये आशा की है की जब भी दुनिया भर में संकट, अनैतिकता, उपद्रव, अन्याय, अत्याचार, षड़यंत्र, शोषण और पाप का बोलबाला होगा। तो भारत की पवित्र भूमि उनकी सहायता करेगी। मनुष्यों के दुखों का, पीडाओं का हरण करेगी, अन्याय और अत्याचार से मुक्त करवा कर परम स्वतंत्रता और आनंद का मार्ग प्रदान करेगी। किन्तु आज भारत भूमि अपनी ही समस्याओं के घेरे में उलझी हुई है। अलग-अलग धर्मों, मतों, सम्प्रदायों के कारण स्थिति सुधरने के स्थान पर और बिगड़ गई है। सब अपने तक ही सीमित हो गया। भारत के भोजन, जल, वातावरण,भेषभूषा, शिक्षा, राजनीति और मीडिया को ऐसा बना दिया गया की जिससे इस देश से संस्कृति और धर्म को मिटाया जा सके। आज भारत चलते फिरते तर्क करने वाले, शिक्षित, बुद्धिमान, अच्छे कपड़ों वाले, कंप्यूटर चलाने वाले रोबोट्स का घर हो गया है। जहाँ अगर किसी से भी आप किसी भी साधू-संत के बारे में पूछो तो तुरंत कहेगा "ढोंगी है". जबकि वो न तो उनको अच्छी तरह जानता होगा और न ही धर्म, वेदों, पुरानों या उपनिषदों को जानता होगा। ऐसे में दुनिया के अन्य राष्ट्रों की उम्मीद धुंधला जाती है। भारतीय संस्कृति और धर्म का मानों आखिरी समय आ गया हो। नास्तिक और वर्णसंकर संतानें मिल कर धर्म, संस्कृति, संतों का अपमान कर रही हैं और सब मूक मौन हैं। कथित भ्रष्ट मीडिया धर्म को निशाना बना रहा है, धर्म प्रमुखों को निशाना बना रहा है और सब सुख की निद्रा ले रहे हैं। भारत वर्ष में संतों को मलेच्छों नें इतना डरा दिया है की वो तो धर्म प्रचार से भी डरने लगे हैं। पोलिस प्रशासन संतों-महात्माओंसे बेहद बुरा बर्ताव कर रहा है। साधू महात्माओं का आश्रमों से निकलना दूभर है। मलेच्छ शिक्षा प्राप्त हमारे ही भाई-पुत्र-बंधु हमारी ही संस्कृति और धर्म सहित संतों में खामियां ढूंढते, बखारते और प्राचीन काल के राक्षसों की भांति उपहास करते हर दिन, हर जगह, हर स्थान पर मिल जायेंगे। उन्हें ढूँढने कहीं भी नहीं जाना पड़ेगा। वो तो आपके आस-पास सैकड़ों-हजारों नहीं, बल्कि लाखो-करोड़ों की संख्या में उपलब्ध हैं। उनको बस साधू-महात्माओं-बाबाओं का तो नाम भी नहीं दिखना और सुनना चाहिए अन्यथा उनका असली चेहरा बाहर आने लगता है। संतों पर तो वे हंसते हैं और जो बाकी बचे धर्म या धार्मिक सम्प्रदायों या गुरुओं को मानाने वाले। जो किसी से जुड़े हैं वे दूसरे गुरु, संत या मत को नीचा दिखाने और खुद बड़ा बनने में जुटे हैं। तो क्या वास्तव में मलेच्छों की बुद्धि और सूक्ष्म षडयंत्रों के हाथों हमारी हार हो गई है। क्या धर्म कलियुग के आगे घुटने टेक चुका है ? क्या सबसे प्राचीन अध्यात्म मत का पूर्ण पतन हो गया है? नहीं! अभी प्रतीक्षा कीजिये, उत्तर अवश्य मिलेगा।
हमने "ईशपुत्र" का एक सांकेतिक चित्र साधकों के लिए तैयार किया है। जिसमें साधक की वीर भावना और शक्ति का प्रदर्शन "कौलान्तक नाथ" के रूप में हो रहा है। "कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज" साधनात्मक तेज और बल को प्रमुखता देते हुए असत्य पर सत्य की जीत को प्रकट करते हुए दिखाए गए हैं। "कौलान्तक नाथ" का ये सांकेतिक चित्र प्रेमी साधको को समर्पित है। जो महायोगी जी के हर चित्र को बड़े चाव से देखते हैं। किन्तु ये चित्र केवल कौलान्तक पीठ के साधकों के लिए है, कृपया अन्य इसे अनदेखा करें। -कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।