शनिवार, 26 मई 2018

महाकाल रुद्र साधना

जब जीवन को समझने का आप प्रयास करेंगे, तो पाएंगे कि जीवन समझ से पर है। यहाँ हर कोई रोता है.……हर कोई। कोई राजा हो कर रो रहा है, तो कोई भिखारी हो कर। कोई प्रेमी हो कर रो रहा है, तो कोई योगी हो कर। ये रुदन दुःख का रुदन है, जीवन में अभावों का रुदन है। ये अज्ञान का रुदन है, ये अभाव और अपूर्णता का रुदन है। कौन है इस रुदन के पीछे? कौन है जो रो रहा है? कंदन कर रहा है? हम यदि जीवात्माएं हैं, तो क्या इतनी भीड़ होने पर भी अकेली ही रह जाएँगी? क्या ये कष्ट ये पीड़ाएँ, मृत्यु के साथ ही खो जाएँगी। दर्द से तो ये ब्रह्माण्ड भी कराह रहा है। रुदन तो ग्रह, आकाश गंगायें भी कर रही हैं। पीड़ा तो हर तत्व की अपनी-अपनी है। इन सबके मूल में है शिव की एक ऐसी शक्ति, जो स्वयं रुदन का प्राकट्य है जिसे कहते है 'रूद्र'। शिव का वो स्वरुप जो काल को संचालित कर रहा है वही अभिन्न रूप से 'रूद्र' है। इसलिए महान ज्ञाताओं नें इसे 'महाकाल रूद्र' के नाम की संज्ञा दी है। ये रूद्र तो ब्रह्माण्ड के नित्य रुदन को हर कर उसे शांति और आनंद प्रदान करता है। जिस कारण ये सृष्टि आगे बढ़ रही है। ऐसे में जीवात्मा की स्थिति भी बेहद बुरी है। जो अज्ञानी है वो ज्ञानी होना चाहता है। जो ज्ञानी हो गया, वो ज्ञान से मुक्त हो अज्ञानी होने का अवसर देखता है। जो योगी नहीं वो, योगी को समझाते हैं कि तुमको कैसा होना चाहिए? जो योगी हैं वो योगी जैसे रहना नहीं चाहते। यहाँ नित्य युद्ध है.…नित्य युद्ध। कुछ उसे मीठी बातों, काल्पनिक धर्मों, कृत्रिम प्रेम और भ्रम युक्त आनंद से ढक लेना चाहते हैं। क्योंकि इस रुदन का सामना करने का उनमें साहस नहीं। वो वो तर्क से, आँखें और बुद्धि बंद कर इसका हल खोजते हैं। लेकिन क्या जीवन के संकट, जीवन की अपूर्णता इससे समाप्त हो जाएगी? नहीं ! अभी तो दुःख, शोक, पीड़ा के कुछ ही रूपों से तुम परिचित हो! ये तो अनंत है। ऐसे में ना तो भयभीत हो कर हल मिलेगा और न ही निर्भय हो कर इसका हल होगा। एक रास्ता है जिसकी आलोचना नास्तिक योगी और बुद्धिवादी अक्सर करते हैं, लेकिन समस्त तर्कों और आलोचनाओं के बाद भी वो मार्ग अब तक सबसे सही और सटीक निकला। वो मार्ग है साधना का मार्ग।
इस खोज के पथ पर बढ़ने का साहस हर किसी के बस का नहीं है। यहाँ तो बड़े-बड़े धुरंधर भी भाग खड़े होते हैं। लेकिन शिव भक्तों की बात ही निराली है। वो शिव के मार्ग पर चलते हैं और अपने शिव की ऐसी साधनाएं करते हैं कि सत्य प्रकट हुए बिना रह नहीं पाता। जीवन के अभाव, जीवन की कमजोरियां, दुःख और पीड़ाएँ उस साधक के सम्मुख ठहर कहाँ सकती हैं जिसनें 'महाकाल रूद्र' की शरण ले रखी हो। आस्तिक योगी 'काल ग्रंथी' के भीतर इसी 'महाकाल रूद्र' की शक्ति को भेदन कर प्राप्त करता है और साधक साधना के मंत्र मार्ग द्वारा। 'कौलान्तक परंपरा' में योगियों नें योग और मंत्र की विपरीत साधनाओं को आपस में ऐसे गूंथ लिया की देखने वाला भी हतप्रभ रह जाए। 'महाकाल रूद्र' की साधना कोई सरल कार्य नहीं है। किन्तु यदि आपको स्वयं 'महाकाल रूद्र' इसके निमित्त चुनते हैं तो आप इस मार्ग पर कदम बढ़ा पाते हैं। ये याद रखना चाहिए की ये कोई आम प्रवचन या योगशाला नहीं है साधना का रणक्षेत्र है। आप इन साधनाओं को तभी प्राप्त कर पाते हैं जब वो समय आ जाता है। अन्यथा लौटने वाले तो मीठी पानी की झील के किनारे पहुँच कर भी प्यासे लौट जाते हैं। इष्ट पर विश्वास नहीं, गुरु पर विश्वास नहीं तो इस पथ के बारे में सोचना भी नहीं। जब जीवन में कृत्रिम धर्म, अध्यात्म से मन भर जाए और भीतरी रुदन शुरू हो तभी 'महाकाल रूद्र' कृपा करते हैं। यदि आपकी स्थिति ऐसी है। आपको अब ना विज्ञान, ना ज्ञान, ना धर्म, ना संसार ठीक लगता हो, तो समय है इस साधना के पथ पर चल कर 'महाकाल रूद्र' की सत्ता से जुड़ने का। इस संसार से अलग 'कौलान्तक पीठ' का अपना एक संसार है। जिसमें रहने के लिए आपको हमारे सभी नियमों को मानना ही होगा। क्योंकि हमारा ज्ञान परम्पराओं पर आधारित है, हम उनका पालन हर हाल में करेंगे। बाहरी कलियुगी संसार से लोग अपनी विकृत मानसिकता ले कर यहाँ आते हैं तो भी हमारा प्रयास उनकी सहायता का रहता है। लेकिन सब 'महाकाल रूद्र' पर ही निर्भर करता है। 'महाकाल रूद्रसाधना' में व कौलान्तक पीठ की परंपरा में, बहुत सी बाते अवैज्ञानिक, अतार्किक व रूढ़िवादी है। जिनको हमारे आलोचक अन्धविश्वास व फर्जीवाड़ा भी कहते है। - कौलान्तक पीठ हिमालय