बुधवार, 16 मई 2018

कौल तन्त्र और वज्रयान तन्त्र

प्रश्न: तो हमारे तन्त्र और उनके (वज्रयान) तन्त्र मेँ क्या भिन्नता है ?
ईशपुत्र: अन्तर है । अन्तर कहाँ हो जाता है? हम मूलतया शिव और शक्ति को प्रमुख रखते है । क्यों ? क्योंकि हमारे पंथ की शुरुआत-प्रारम्भ स्वयं महादेव ने किया लेकिन वहां उनके सम्प्रदाय की शुरुआत महादेव ने स्वयं ने नहीं की है अपितु हमारे ही सम्प्रदाय से, मै उनका नाम नहीं लेना चाहता, फिर भी यदि आप जिज्ञासु लोग है और स्वयं खोजेंगे तो आपको ऐसे सिद्धों के नाम मिल जाएंगे जो हमारे ही हिमालय के योगी "सिद्ध-परम्परा" के बहुत पहले से सिद्ध थे लेकिन, निजी स्वार्थ होता है, राजनीति कहाँ नहीँ रहती ! धर्म और गद्दियों मेँ भी तो राजनीति है ! प्राचीन काल में हमारे सम्प्रदाय की प्रचलित बहुत महत्वपूर्ण कथा है कि, बहुत से सिद्धों ने हमारे ही पंथ से बगावत की । होता है...हर सम्प्रदाय में जो विशालकाय सम्प्रदाय हो वहां सब व्यक्तियों का तुष्टिकरण नहीं हो सकता और हमारे पंथ में पीठाधीश्वर बनने के नियम जितने कठिन है जितने जटिल है शायद ही किसी और पंथ और धर्म में ऐसे हो । ऐसा लगता है जब हम तैयारी करते है, कि मानो हम किसी युद्ध पर जानेवाले हो ! युद्धस्तर पर हम तैयारियां करते है तब जाकर के एक पीठाधीश्वर का युद्ध लड के उसकी गद्दी तक पहुंचना होता है । जबकि आज आप किसी भी सम्प्रदाय को देख लीजिए किसी भी गद्दी को, बस आपको सेवा ही करनी है और आपका नम्बर लग जायेगा और आप पीठाधीश्वर बन जाएंगे, लेकिन यहां ऐसा नहीं चलता... तो प्राचीन काल मेँ... जैसे मान लीजिए मेरा आश्रम है अब यहां पचास लोग होंगे, अब पचास के पचास तो पीठाधीश्वर नहीं बन सकते! तो एक व्यक्ति जब पीठाधीश्वर बनता है तो उसके साथ के दो-तीन उसके जो प्रतिस्पर्धी होते है उन्हें लगता है कि 'अरे ! हम मेँ इस से अधिक योग्यता थी !' और योग्यता तो सिद्ध कर के होती है ना ! जब वो अपनी योग्यता सिद्ध नहीं कर पाते तो वो पीठ का परित्याग कर देते है ! उसे हम असंतुष्ट लोग कहते है, मोहभंग जिन लोगों का हो जाता है... तो ऐसे ही सिद्ध प्राचीन काल मेँ भी रहे जिनका मोहभंग हो गया तब वो "कौलान्तक सम्प्रदाय" को और "महाहिन्दू पंथ" को निशाना बनाने के लिए तत्त्व ढूंढने लगे ! मै आज आपको दो "रहस्य" बता रहा हूं ! प्रथम रहस्य ये है कि यदि आप हमारे ही "हिन्दू धर्म" के वेद, पुराण, शास्त्रों और ग्रंथों को भी देखेंगे, उस मेँ से एक शब्द हटा ही दिया गया है वो है "हिन्दू" ! आप यदि हमारे पुराण, वेद, शास्त्र पढ़ेंगे वहां आपको "हिन्दू" नाम का शब्द बहुत ही कम इक्का-दुक्का स्थानों में ही देखने को मिलेगा ! वो शब्द कैसे हटाया गया ? इसमें कुछ ब्राह्मणों का षड्यंत्र था ! सभी ब्राह्मणों का नहीं क्योंकि ब्राह्मण तो इस पंथ को और इस विद्या को आगे पहुंचाने वाले है और वहां कुछ ब्राह्मणों के कारण और उन असंतुष्ट ब्राह्मणों और असंतुष्ट हमारी पीठ से गये सिद्धों ने मिलकर कई अन्य सम्प्रदाय खडे किए ! और उन्हीं अलग-अलग संप्रदायों का फिर अलग-अलग राग था ! क्योंकि देखिए जब आपको हम से अलग होना होगा...मान लीजिए आज आप हमारे भक्त है, कल को अगर आप को हमारा शत्रु बनना पड़े तो आप छोटी-छोटी बात कहेंगे जैसे कि इस व्यक्ति का चरित्र ठीक नहीं ! ये व्यक्ति शक्तिशाली नहीं ! ये व्यक्ति तपस्वी नहीं ! इस व्यक्ति मेँ कोई ज्ञान नहीं इत्यादि-इत्यादि...तो ठीक वैसे ही हुआ जब हमारे यहां से वो सिद्ध जो किसी स्थिति पर न पहुंच सके वो जाकर अन्य धर्मों मेँ मिल गये !

प्रश्न : तो क्या भविष्य में बौद्ध पंथ का अंत हो जाएगा ? जैसा कि वैष्णव ग्रंथों में कहा गया है ?
ईशपुत्र : मैने भी अपने गुरुओं से सुना है और जो वैष्णव ग्रंथ है हमारे भारतवर्ष के...उनमें विवरण दिया गया है कि "बौद्ध पंथ का अन्त हो जायेगा ।" लेकिन मैं इस वृत्ति का पीठाधीश्वर नहीं हूं । कारण ये है कि चाहे जो भी हो वो हमारे गर्भ से निकले हुए लोग है, हमारी संतानें है, हमारे पुत्र है । मैं बौद्ध धर्म की प्रत्येक शाखा को अपना पुत्र ही मानता हूं । बुद्ध से लेकर अभी तक जितने भी अलग अलग उनके प्रमुख लोग हुए है पैदा...उन सबको मैं अपना पुत्रवत् मानता हूं, छोटा मानता हूं और उनकी रक्षा करना अपना "धर्म" मानता हूं । लेकिन ये सब तभी तक सहा जा सकता है जब तक आप एक सीमा से बाहर ना जाओ । भगवान श्रीकृष्ण को जब तक एक साथ सौ गालियां नहीं दी गयी वो मुस्कुराते रहे...ठीक मेरा भी वही सिद्धांत है । सभी बौद्ध धर्म के मतावलंबी एक जैसे नहीं है... हमारी पीठ...क्योंकि ये भगवती माँ कुरुकुल्ला की पीठ है जिनको रक्त तारा अथवा रेड तारा कहा जाता है...तो दुनियाभर से लोग जो बौद्ध धर्म के माननेवाले है वो पीठ मेँ आते है और वो अपनी पद्धति से पूजा-पाठ करते है...अपने मंत्रों से,अपने तौर तरीकों से । हमने उन्हें कभी नहीं रोका...हम ये कहते ही नहीं की भगवती हमारी है । हम कौन होते है कहनेवाले ? ये तो जगत की है, ब्रह्मांड की है, जो आयेगा उसकी माँ है और जो चाहे आकर इनसे वरदान पाए क्योंकि ये तो चमत्कारों की देवी मानी जाती है । अनेकों चमत्कार इनके द्वार पर है और एक क्षण मेँ किसी का भी किस्मत बदलने का मादा रखती है अन्यथा इनकी अनुकंपा नहीं होती तो मेरे जैसा एक गांव का अतिशून्य परिवार मेँ पैदा हुआ व्यक्ति प्रखरतम मस्तिष्क प्राप्त करके सर्वोच्च पदवी तक जाने की सामर्थ्य नहीं रखता था । तो ये केवल भगवती की प्रेरणा से हुआ । तो बौद्ध मत के लोग भी यहां आते है । कुछ अच्छे लोग भी वहां है...तो हमने उन्हें कभी नहीं रोका...इसीलिए मै ये नहीं चाहता कि बौद्ध धर्म का कभी अन्त हो और बौद्ध धर्म को नष्ट किया जाए ! मै तो उनकी ओर "मैत्री" का हाथ बढाना चाहता हूं ! मै उनसे प्रेम करता हुँ ! मैँ तो ये कहता हुँ कि तुम लौट आओ अपने घर ! लेकिन इसका अर्थ ये नहीँ कि तुम बौद्ध पंथ को छोड दो, तुम बुद्ध को मानना छोड दो या तुम अपनी मिश्राचारी पद्धति को अपनाना छोड दो लेकिन अपनी मौलिक परम्परा से जुड जाओ । बडा लंबा समय हो गया है तुमने अपना घर छोड दिया है और तुम घर से बाहर भटक रहे हो । सुबह का भूला यदि सन्ध्या के समय घर लौट आये तो उसे भूला नहीँ कहा जाता ये हमारी भारतीय कहावत है...तो मेरा तो खुले ह्रदय से उनका स्वागत है, मेरा तो "मैत्रीपूर्ण हाथ" उनकी और मैने बढाया है...और ऐसा पहली बार होगा क्योँकि मुझसे पूर्व शंकराचार्य इस पृथ्वी पर आये, उनके जैसा धुरंधर व्यक्तित्व..जिससमय बौद्ध धर्म का तन्त्रयान पूरे देश मेँ फैल चूका था । हर ओर केवल एक ही नारा था "बुद्धं शरणं गच्छामि ।" जिस समय हर ओर, हर समय, हर दिशा मेँ ब्राह्मणोँ का अपयश फैल रहा था । लोग ब्राह्मणवाद को, वेदोँ को गलत कह रहे थे, पुराणोँ को गलत कह रहे थे और जहाँ भी ब्राह्मण दिखते उनको हटा देने, गिरा देने, नष्ट कर देने पर तुले हुए थे...तब भी एक सिँह की भाँति एक संन्यासी नेँ संपूर्ण पृथ्वी पर भारत पर से उस बौद्ध धर्म को इस प्रकार खदेडा कि भारत मेँ आपको देखने को ही बौद्ध धर्म नहीँ मिलता । बहुत चंद लोग मध्य मेँ रहते है और बाकी देश की सीमाओँ से बाहर रहते है जिन्हे खदेड दिया गया लेकिन मैँ खदेडने नहीँ आया हुँ ! और ना ही खदेडने की बात करता हुँ ! अभी तक जो भी आये उन्होँने बौद्ध धर्म को हटाने की ही बात की । मैँ प्रथम पुरुष हुँ जो उनकी ओर हाथ पुनः बढा रहा है । मैँ कहता हुँ मैने "मैत्री" का हाथ बढाया है तो तुम्हे मेरे हाथोँ मेँ हाथ देना चाहिए । तुम्हे अपनी मौलिक परम्परा मेँ लौटना चाहिए । तुम्हेँ शिव और शक्ति की निन्दा छोडकर मौलिकरुप से साधना समझनी चाहिए क्योँकि जीवन लडनेँ के लिए नहीँ है । जीवन बहुत छोटा है । उस जीवन को स्थायीत्व प्राप्ति के लिए, पूर्णता प्राप्ति के लिए हमेँ मौलिकरुप से साधना करनी चाहिए यही मेरा प्रस्ताव भी है और ऐसा उनको समझना भी चाहिए ।


विष्णु भैरव जी : याने कि आप "मैत्रीय प्रस्ताव" आगे बढाना चाहते हो ?
ईशपुत्र : बिलकुल, मेरा केवल उतना ही मन्तव्य है क्योँकि बौद्ध धर्म आज एक सुंदर रुप मेँ पनप रहा है...उसका कारण ये है कि अधिकांश परंपराएँ हम से ली गयी है...मैने तो ये भी नहीँ कहा कि, "चुराई गयी है !" मै तो कह रहा हुँ, "ली गयी है !"  क्योँकि उनके प्रमुख जो रहे आप उनको गौर से खोजिए तो आपको पता चलेगा की वो "सिद्ध" रहे है सारे के सारे । चौरासी सिद्ध होँ या अन्य सिद्ध होँ या उप सिद्ध होँ या महा सिद्ध होँ या हिमालय के योगी हो वो भारत के ही किसी प्रान्त से, कसबे से निकले है और जाकर उन्होँने बौद्ध पंथ मेँ जाकर के वो ज्ञान आगे बढाया है । तो वो सब मेरे लिए अनुज है, छोटे है तो मैँ उनको कभी हानि कैसे पहुँचा सकता हुँ और वैसे भी भारत की ऐसी मंशा कभी नहीँ रही । महामहिम दलाई लामा एक पंथ के प्रमुख है और हमारे ही हिमाचल प्रदेश मेँ उनको स्थान दिया गया है । आपने क्या कभी देखा कि हमने उन्हेँ किसी प्रकार से हानि पहुँचाई ? यहाँ तक कि जब तिब्बती समुदाय को कोई हानि पहुँचाई जाती है तब भी हमारा वरद हस्त उन पर रहेता है कि इनको कोई कष्ट ना पहुँचाओ क्योँकि हम उन्हेँ शिष्य की भाँति मानते है । ये बात अलग है कि उनमेँ से कुछ उद्दडं तत्व है जो हमेँ शत्रु की निगाह से देख रहे है...तो यदि तुम शत्रुता करोगे तो विपरित हो सकता है, मैँ अपना हाथ तुम्हारे उपर से खिंच लुंगा । मेरा कोई समर्थन तुम्हारी तरफ नहीँ रहेगा और मैँ तुम्हारे लिए कोई मंगल काम नहीँ करनेवाला हालाँकि मैँ कर रहा हुँ, विश्व के लिए कर रहा हुँ वो मैँ छोडुंगा नहीँ वो मेरी आदत है लेकिन यदि तुम "असत्य" कहोगे शिव के विरुद्ध कहोगे शक्ति के विरुद्ध कहोगे तो तुम्हारा विनाश होगा ! और शायद यही कारण है कि वैष्णव पंथ इस प्रकार की भविष्यवाणी करता है कि भविष्य मेँ बौद्ध संप्रदाय का अंत हो जायेगा लेकिन मैँ ये भविष्यवाणी करना चाहता हुँ कि इस तरह का अंत ना हो !! वहाँ से केवल उन लोगोँ का अंत हो जो नीच है, निकृष्ट है, शिवनिन्दक है, शक्ति के निन्दक है और जो वहाँ राजनीति कर रहे है..बौद्ध धर्म, तंत्र और कुलाचार, कौलाचार, समयाचार के नाम पे..उनको शान्त रहना चाहिए और मेरे "मैत्रीय प्रस्ताव" को स्वीकार करना चाहिए क्योँकि मेरा "मैत्रीय प्रस्ताव" पूर्वसुनियोजित है और मैँ चाहता हुँ कि वो "प्रकृति के इशारे" को समझे और अपने घर को वापिस लौट आये और अपनी साधनाओँ को आगे बढाते हुए जीवन को सुखमय करे ।