"कौलान्तक संप्रदाय" योगिनी शक्तियों की उपासना को प्रमुखता देता है। चौंसठ योगिनी ही कलियुग में सशरीर दर्शन देने में समर्थ मानी जाती हैं। चौंसठ योगिनी मंडल में सत्व, रज, तम तीनों गुण विद्यमान होते हैं, किन्तु इनकी साधना को राजसी रीति से संपन्न करना ही श्रेष्ठ कहा गया है। योगिनियों को साध लेने वाला कभी भी अकेला नहीं होता। योगिनियाँ साधक को स्वयं ज्ञान देती हैं। भोग में प्रवृत्ति भी इनका ही गुण है। अक्सर ये पूछा जाता है की साधू-सन्यासियों के पास इतना पैसा कहाँ से आता है? वो महँगी गाड़ियों आश्रमों में राजसी तरीकों से कैसे रहते हैं। इसके पीछे कारण हैं योगिनी शक्तियों की साधना और आराधना। इसी कारण योगिनियों को भारतीय कर्मकांड सहित तंत्र नें अपनी पूजा उपासना में बड़ा अहम् स्थान प्रदान किया है। "कौलान्तक संप्रदाय प्रमुख" ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ" संक्षेप में ये कहते हैं की इन चौंसठ योगिनियों का सिद्ध होना ही चौंसठ कलाओं को हस्तगत करने का उपाय है।
"चौंसठ योगिनियों" के सम्बन्ध में हमारी जानकारियाँ बहुत ही कम है। "कौलान्तक सम्प्रदाय" आपको कुछ नई जानकारी दे रहा है। योगिनिया तीन भागों में गुणों के अनुसार विभक्त हैं। सत्व, रज और तम। तीनों गुणों के अंतर्गत ६४-६४ योगिनियाँ आती है।तो कुल योगिनियों की संख्या १९२ हुई। इन तीनों विभागों में से सत्व, रज और तम की देवियों का चयन किया गया। जो की अति विशिष्ट योगिनियाँ हैं अब इनकी संख्या भी ६४ ही रखी गई। यहाँ कुछ साधकों में भ्रम है की तम कुल की योगिनियाँ ही "६४ कृत्या" हैं। ये गलत है ६४ कृत्याओं के सम्बन्ध में भविष्य में जानकारी देंगे। आज हम आपको बताने जा रहे हैं योगिनियों में से एक योगिनी "योगिनी चवाली देवी" के बारे में, जो की रसायन के साथ-साथ ही सुख समृद्धि व प्रसन्नता की देवी कही जाती है। इनको हिमालयी क्षेत्रों में पारिवारिक सुख व स्वर्ण आदि की प्राप्ति के लिए भी पूजा जाता है।
"योगिनी चवाली देवी" हिमालय के बनों में स्थित शक्ति है। "कौलान्तक सम्प्रदाय" की प्रख्यात कथा के अनुसार "योगिनी चवाली देवी" के पास कुछ दुर्लभ वृक्ष हैं जो की अति दुर्लभ और चमत्कारी माने जाते है। इनमें से एक है "शेता-चित्तरा पाजा". ये पाजा एक साधारण वृक्ष है, किन्तु यदि देवी की अनुकम्पा से आपको "शेता-चित्तरा" यानि सफेद और काला ये वृक्ष मिल जाए या इसकी लकड़ी प्राप्त हो जाए। तो ये बेहद चमत्कारी होती है, जिसके दिव्य चमत्कारों से ग्रन्थ भरे पड़े हैं। इसी वृक्ष से वो रसायन तैयार होता है। जिससे स्वर्ण निर्माण व पारद संस्कार संपन्न किये जाते हैं। "योगिनी चवाली देवी" को रसायन की योगिनी भी कहा जाता है। लेकिन इनका एक और वृक्ष भी है जिसे अमर जीवी कहते हैं। क्या है ये अमर जीवी वृक्ष?
एक रहस्य कथा के अनुसार "योगिनी चवाली देवी" हिमालय के बनों में फलदार नीम्बू प्रजाति के वृक्षों पर स्थित रहती है। इस फल को "गलगल" अथवा "गम्भरु" फल कहा जाता है। जो की खट्टा होता है व रंग में पीला होता है। इन वृक्षों में से कोई एक गोपनीय और दुर्लभ वो वृक्ष होता है जिस पर योगिनी का निवास होता है। यदि देवी की कृपा से इस दुर्लभ वृक्ष का हिमालय के बनों और झरनों के निकट पता चल जाए तो। शुभ "बाहण काल" यानी की वो समय जब देवी की शक्तियाँ आवागमन में हों, उस समय इस फल को तोड़ कर सेवन करने से साधक को महाआयु यानि की चिरंजीवी होने का लाभ प्राप्त होता है। ये ऐसा प्रयोग है जिसका वर्णन न केवल भारतीय तंत्र में है वरन विश्व के अन्य भागों में भी इसकी अद्भुत रहस्य कथाएँ प्रचलित हैं। आज भी सिद्ध साधक इस फल की प्राप्ति के लिए "योगिनी चवाली देवी" की हिमालय के बनों में साधनाएँ करते हैं। और विशेष बात ये भी की देवी का निवास कुछ काल के लिए इस फल में होता है। सिद्ध तांत्रिक इस फल को उस काल में तोड़ लाते हैं और देवी से वरदान प्राप्त करते हैं। ये "कौलान्तक सम्प्रदाय" की प्राचीन मान्यता है और इस पर अब तक अनुसरण किया जा रहा है। - कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।
"चौंसठ योगिनियों" के सम्बन्ध में हमारी जानकारियाँ बहुत ही कम है। "कौलान्तक सम्प्रदाय" आपको कुछ नई जानकारी दे रहा है। योगिनिया तीन भागों में गुणों के अनुसार विभक्त हैं। सत्व, रज और तम। तीनों गुणों के अंतर्गत ६४-६४ योगिनियाँ आती है।तो कुल योगिनियों की संख्या १९२ हुई। इन तीनों विभागों में से सत्व, रज और तम की देवियों का चयन किया गया। जो की अति विशिष्ट योगिनियाँ हैं अब इनकी संख्या भी ६४ ही रखी गई। यहाँ कुछ साधकों में भ्रम है की तम कुल की योगिनियाँ ही "६४ कृत्या" हैं। ये गलत है ६४ कृत्याओं के सम्बन्ध में भविष्य में जानकारी देंगे। आज हम आपको बताने जा रहे हैं योगिनियों में से एक योगिनी "योगिनी चवाली देवी" के बारे में, जो की रसायन के साथ-साथ ही सुख समृद्धि व प्रसन्नता की देवी कही जाती है। इनको हिमालयी क्षेत्रों में पारिवारिक सुख व स्वर्ण आदि की प्राप्ति के लिए भी पूजा जाता है।
"योगिनी चवाली देवी" हिमालय के बनों में स्थित शक्ति है। "कौलान्तक सम्प्रदाय" की प्रख्यात कथा के अनुसार "योगिनी चवाली देवी" के पास कुछ दुर्लभ वृक्ष हैं जो की अति दुर्लभ और चमत्कारी माने जाते है। इनमें से एक है "शेता-चित्तरा पाजा". ये पाजा एक साधारण वृक्ष है, किन्तु यदि देवी की अनुकम्पा से आपको "शेता-चित्तरा" यानि सफेद और काला ये वृक्ष मिल जाए या इसकी लकड़ी प्राप्त हो जाए। तो ये बेहद चमत्कारी होती है, जिसके दिव्य चमत्कारों से ग्रन्थ भरे पड़े हैं। इसी वृक्ष से वो रसायन तैयार होता है। जिससे स्वर्ण निर्माण व पारद संस्कार संपन्न किये जाते हैं। "योगिनी चवाली देवी" को रसायन की योगिनी भी कहा जाता है। लेकिन इनका एक और वृक्ष भी है जिसे अमर जीवी कहते हैं। क्या है ये अमर जीवी वृक्ष?
एक रहस्य कथा के अनुसार "योगिनी चवाली देवी" हिमालय के बनों में फलदार नीम्बू प्रजाति के वृक्षों पर स्थित रहती है। इस फल को "गलगल" अथवा "गम्भरु" फल कहा जाता है। जो की खट्टा होता है व रंग में पीला होता है। इन वृक्षों में से कोई एक गोपनीय और दुर्लभ वो वृक्ष होता है जिस पर योगिनी का निवास होता है। यदि देवी की कृपा से इस दुर्लभ वृक्ष का हिमालय के बनों और झरनों के निकट पता चल जाए तो। शुभ "बाहण काल" यानी की वो समय जब देवी की शक्तियाँ आवागमन में हों, उस समय इस फल को तोड़ कर सेवन करने से साधक को महाआयु यानि की चिरंजीवी होने का लाभ प्राप्त होता है। ये ऐसा प्रयोग है जिसका वर्णन न केवल भारतीय तंत्र में है वरन विश्व के अन्य भागों में भी इसकी अद्भुत रहस्य कथाएँ प्रचलित हैं। आज भी सिद्ध साधक इस फल की प्राप्ति के लिए "योगिनी चवाली देवी" की हिमालय के बनों में साधनाएँ करते हैं। और विशेष बात ये भी की देवी का निवास कुछ काल के लिए इस फल में होता है। सिद्ध तांत्रिक इस फल को उस काल में तोड़ लाते हैं और देवी से वरदान प्राप्त करते हैं। ये "कौलान्तक सम्प्रदाय" की प्राचीन मान्यता है और इस पर अब तक अनुसरण किया जा रहा है। - कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।