जीवन बहुत छोटा है उसमें भी बचपन वो समय होता है जिसके बीत जाने का एहसास ही नहीं हो पाता, किन्तु महापुरुष बाल्यकाल का शायद सबसे ज्यादा उपयोग ज्ञान अर्जन के लिए करते हैं, कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज नें बाल्यकाल से ही ललित कलाओं का ज्ञान बड़े धैर्य के साथ ग्रहण किया है, चित्रकला में उनको महारत हासिल है, महायोगी जी नें बहुत ही कम समय में अस्वस्थ होते हुए भी 108 तंत्र लिपि चित्रों का निर्माण कर सबको चमत्कृत कर दिया था, टांकरी कलेंडर हो या फिर कुछ और महायोगी जी का हाथ बहुत ही सधा हुआ है, ठीक वैसे ही मन्त्रों व स्तुति स्तवन स्तोत्र गायन में भी महायोगी जी का हाथ बहुत पक्का है, कई रहस्य विद्याओं को केवल गायन से ही पाया जा सकता हैं जिनमें गन्धरविणी विद्या, अप्सरा पाश, योगिनी मोहन, किन्नरी तंत्र जैसी अति गोपनीय विद्याओं की सिद्धि बिना गायन नहीं होती और महायोगी जी इन सब को बाल्यकाल में ही संपन्न कर चुके हैं, साथ ही महानटराज होने के कारण भैरव कुल के 52 नृत्य महायोगी जी बखूबी करते हैं, लास नृत्य हो या तांडव के बारह स्वरुप, योगिनी नृत्य हो या, उन्मत्त क्रोद्ध नृत्य, महायोगी जी को इनका ज्ञान ही नहीं है, बरन आप यदि उनके निकट रहते हैं, तो कई बार आप हिमालयों पर या जंगलों में उनको ऐसे दुर्लभ नृत्य करते हुए देख सकते हैं, मैं ज्यादा इस बिधा के बारे में नहीं जानता तो बहुत जयादा बता भी नहीं सकता किन्तु जितना समझा है वो आपको जरूर बताऊंगा,
यहाँ सबसे बड़ी और रोचक बात ये है कि नाट्य के साथ जबतक अभिनय न आता हो तब तक कौलान्तक नायक नहीं बना जा सकता इस लिए महायोगी जी नें अभिनय के शास्त्रीय भाग को सीखा और कुशल अभिनेता भी बने, मैं ये सोच कर हैरान रह जाता हूँ कि एक बालक इतना सब कैसे कर गया, स्वयं महायोगी जी कहते है कि "बचपन का तो पता ही नहीं चला कि कोई बचपन आया भी था, लेकिन इसका दुःख नहीं, क्योंकि जो बदले में पाया, उसका आज कोई मोल नहीं, मैं अकेले में भी खुश हूँ और भीड़ में भी," महायोगी मूर्ती निर्माण से ले कर वास्तु आदि के सिद्ध आचार्य हैं, ये सब केवल महायोगी जी की व्यर्थ महिमा गायन हेतु नहीं लिख रहा हूँ, महायोगी जी स्तुति प्रशंसा निंदा अपमान आदि से दूर हैं, किन्तु उनके इस स्वरुप को जानना बेहद ज़रूरी है, महायोगी जी के इन सभी पक्षों को जान कर ही हम उनके पूर्ण स्वरुप का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं,