गुरुवार, 24 मई 2018

महाशक्ति तन्त्र

आइये "कौलान्तक संप्रदाय" की गोपनीय "शाक्त" परम्पराओं के बारे में कुछ जानते हैं। हिमालय में सर्वोत्तम तंत्र पीठ के रूप में युगों से स्थापित "कौलान्तक पीठ" शक्ति की सभी पूजन विधियों को "शाक्त तंत्र" कहता है। ये शाक्त तंत्र कोई पुस्तक ना हो कर, अलिखित नियमों व परम्पराओं का समूह है। क्योंकि शैव और शाक्त मत दोनों ही गुरुगम्य हैं। इसलिए सर्वप्रथम हम "कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज" के शाक्त तंत्रमतीय चित्र प्रस्तुत कर उनसे समस्त रहस्यों को उजागर करने की प्रार्थना करते हैं। "ईशपुत्र" अपने आप में एक रहस्य हैं, उनका विस्तार केवल एक साधक जान सकता है। जिसका तंत्र में गहरा अध्ययन हो। "कौलान्तक पीठ की प्रमुख शक्ति है "देवी कुरुकुल्ला" जो की चमत्कारों की देवी के रूप में विख्यात व प्रसिद्द हैं। मौलिक रूप से देवी "दुर्गा जी या शक्ति" ही हैं लेकिन उनका स्वरुप राजसी होने से व अवतार भेद से उनको "रक्त तारा" या "लाल तारा" भी कहा जाता है। लेकिन देवी से जो भी प्रार्थना हो उसे गुप्त ही रखने का विधान है। "कौलान्तक पीठ" दस महाविद्याओं को आधार मानता है और ६४ योगिनियों सहित अनेक मातृ शक्तियों की उपासना करता है। माँ पार्वती को ही "कौलान्तक सम्प्रदाय" शाक्त मत का प्रवर्तक मानता है व उनकी उपासना का बड़ा महत्त्व है। किन्तु सारा ज्ञान शाक्त प्रमुख से आता है। हम "महाहिन्दू" पंथ के शाक्त प्रमुख "कौलान्तक नाथ" जी का चित्र प्रस्तुत कर रहे हैं। "कौलान्तक संप्रदाय" शाक्त तंत्र को आधार तंत्र मानता है। मनुष्य के पास स्त्रेण व पुरुष दोनों तत्व हैं। एक प्रकट होता है तो दूसरा भीतर छिपा रहता है। जैसे पुरुष के भीतर स्त्री और स्त्री के भीतर पुरुष। शिव शक्ति तत्व वास्तव में उभयलिंगी होता है। इसी रहस्य को तंत्र उजागर करता है। शाक्त तंत्र का सबसे अहम् बिंदु ये है की वो बताता है की एक पुरुष की पूर्णता स्त्री या स्त्रेण तत्व में है और स्त्री की पुरुष या पौरुष में। दोनों तत्वों के सम हो जाने पर शिवभाव अथवा पूर्णता का अनुभव होता है। जिसे अर्धनारीश्वर के रूप में स्वयं महादेव शिव नें प्रकट किया। इस लिए शाक्त तंत्र में अवधूत स्त्री पुरुषों के चित्र बनाये जाते हैं और तंत्र अश्लील जान पड़ता है। जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है वरन शाक्त तंत्र शरीर और उसके भीतर के रहस्यों के द्वार आपके लिए खोलता है और अशरीरी अनुभव तक ले जाता है। किन्तु इसे बेहद जटिल माना गया है साधकों का अधिकांशतय पतन हो जाता है। इसलिए इसे निषिद्ध कहा गया है। "भगवती कालिका" को इस विधा का प्राण माना गया है। लेकिन कालिका के वाम व दक्षिण भेद होने से वाम को गोपनीय व परम उच्च संसार से विरक्त, बीहड़ों में विचरण करने वालों के लिए व्यक्त किया गया जबकि दक्षिण को सभी साधकों सहित, गृहस्थ साधकों के लिए प्रकट किया गया। इस मार्ग की अधिष्ठात्री "दक्षिणा काली" अथवा "दक्षिण कालिका" कहलाई। यही दक्षिण काली पूर्ण काली का प्रतीक हैं। कौलान्तक संप्रदाय काली की उपासना "कामकलाकाली" के रूप में करता है।
"कौलान्तक संप्रदाय" "कामकलाकाली" की आराधना पर बल देता है किन्तु इसका अर्थ ये नहीं की अन्य स्वरूपों को महत्त्व नहीं देता। "कामकलाकाली" के कारण ही "कौलान्तक संप्रदाय" नें स्त्री-पुरुष प्रेम को धर्म में अपनाया और स्त्री को या पुरुष को कभी भी साधना मार्ग में अड़चन नहीं माना। किन्तु "देवी काली" एक महाशक्ति है। वो तमस समेटे हुए "महाविकराल" हो जाती है। इसलिए साधक को कहा जाता है की वो "दक्षिण कलिका" को प्रमुखता दे। बहुत से साधक निरंतर "दक्षिण काली" की साधना व मन्त्रों का जाप करते हैं। लेकिन "कौलान्तक संप्रदाय" में "देवी दक्षिण काली" के मन्त्रों का उच्चारण व शैली सबसे हट कर होती है व मंत्र भी थोड़ा भिन्न होता है। किन्तु सबसे अहम् जानकारी की काली को श्मशान से जोड़ा जाता है। ये श्मशान मुर्दे जलाने वाला श्मशान नहीं वरन प्रलय काल का ब्रह्माण्ड है। अग्नि तत्व उसकी प्रकृति है और विध्वंस उसका स्वभाव है। लेकिन शक्ति कभी भी मर्यादा के बंधन नहीं तोड़ती। वो स्वयं प्रकृति है और उसको रचती है। नित्य नूतन, नवीन यही रहस्य "शक्ति तंत्र" है। शक्ति ठहराव नहीं चाहती। वो सक्रियता देती है उन्माद देती है, लक्ष्य देती है, ताकि तुम शीर्ष पर पहुँच कर "माया" की बनावट को समझ सको और शिखर के आनंद को अनुभव कर सको। जो अकथनीय है, निराला है, चमत्कार जैसा है। "कौलान्तक संप्रदाय" "दक्षिण काली" की साधना को सबसे पहले संपन्न करने को कहता है ताकि आप "काली कुल" की सभी शक्तियों के रहस्य को जानने के लायक हो जाएँ। "काली कुल" में ही "चौंसठ कृत्याएं" आती हैं। "तमस रह्स्य योगिनियाँ व यक्षनियाँ" भी इससे सम्बंधित हैं। "शाक्त तंत्र" दक्षिण कालिका के गोपनीय स्वरूपों को गुप्त ही रखने की राय द्देता है। हम भी उसका पालन कर, ये आपको नहीं बताएँगे। ये गुरुगम्य है, - कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय