शुक्रवार, 18 मई 2018

पाण्डुलिपि ज्ञाता महायोगी

प्राचीन लेखों को पाण्डुलिपि कहा जाता है, ये लेख पत्थरों पर, धातुओं पर, चमड़े पर, भोजपत्र पर या फिर कागज़ पर हो सकते हैं, पांडुलिपियों में कोई भी जानकारी पूरवजों द्वारा लिखी गयी होती है, उदहारण के लिए हिमाचल में टाँकरी पाण्डुलिपि बहुत सरलता से मिल जाती है, जिनको साधारनतया पढ़ना बहुत ही कठिन कार्य होता है, क्योंकि ये पहले तो टाँकरी लिपि में लिखी गयी हैं, फिर स्थानीय बोलियों में लिखी गयी हैं, ये स्थानीय बोलियाँ कुछ-कुछ दूरी पर बदल जाती हैं, ऐसे में पाण्डुलिपि को पढ़ कर समझ पाना टेढ़ी खीर ही साबित होता है, लेकिन कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज ने बहुत सी पांडुलिपियों का अध्ययन कर उनमें निहित तत्वों को उजागर किया है, महायोगी जी नें कई शिलालेखों, ताम्र पत्रों का अध्ययन किया है, भोजपत्र व कागज़ की पांडुलिपियाँ तो कौलान्तक पीठ में पहले से ही विद्यमान हैं|