गुरुवार, 24 मई 2018

मन्त्र क्या है ?

मंत्र का एक साधारण अर्थ होता है जो मन के अंतर मेँ समाहित हो जाए या जो हमारे भीतर समाहित हो वो मंत्र है । ये अत्यंत साधारण परिभाषा है मंत्र की, लेकिन मंत्र का अर्थ बेहद व्यापक और बहुत बडा और गंभीर है लेकिन एक साधारण व्यक्ति को समझने के लिए कि उत्पत्ति पहले कैसे मंत्र की हुई है तो इसके संबंध मेँ आगम-निगम ग्रंथ बताते है...जब ये ब्रह्माण्ड उत्पन्न हुआ इस ब्रह्माण्ड के साथ ही नाद उत्पन्न हुआ, तो जो इस ब्रह्माण्ड का सर्वप्रथम और पहला नाद है वह है ॐकार; और वही ॐकार जब शब्द रुप मेँ इस ब्रह्माण्ड मेँ रहता है तो वही ॐकार हमारे भीतर भी अनहद नाद के रुप मेँ स्थापित होता है । इसी ॐकार से समस्त ब्रह्माण्ड जुडा हुआ है । इसीलिए कहा "शब्द ब्रह्म" अर्थात् शब्द ही ब्रह्म है । इसी शब्द की महिमा का विस्तार भगवान देवाधिदेव महादेव नेँ किया । जब उन्होनेँ आगम-निगम मेँ माँ पार्वती को ये समजाते हुए और ऋषि-मुनियोँ को ये ज्ञान दिया तो ये बताया की यही जो दिव्य ज्ञान है ॐकार नाद का इसके भीतर अन्य बहुत सारे नाद छीपे हुए है यदि आप अपने भीतर के समस्त चक्रोँ को देखेँ अपनी भीतर के अध्यात्म की यात्रा करेँ या फिर आप बहिर्जगत के समस्त इन शोर, गुल, ध्वनि सब तत्वोँ को सुनेँ और उनका वर्गीकरण करेँ तो वो 51 प्रमुख वर्गीकरणोँ मेँ विभक्त हो जाते है । इसलिए योगियोँ ने सहस्त्रार कमलदल अर्थात् मस्तिष्क मेँ 51 बिंदुओँ की स्थापना की और हरेक बिंदु का एक विशेष बीजमन्त्र अर्थात् एक विशेष प्रकार की ध्वनि है । इसी तरह संपूर्ण ब्रह्मांड को यदि आप 51 भागोँ मेँ बाँट दे तो सबका एक विशेष ध्वनि से लेनादेना है और वो ध्वनि एक विशेष प्रकार की उर्जा को प्रभावित करती है इसीलिए ये मंत्र बेहद रहस्यमय हो गये लेकिन मंत्र का जो ये क्षेत्र है इसकी परिभाषा बहुत छोटी सी है । लोग कहते है कि मंत्र का अर्थ है एक ऐसा शब्द जो प्रभाव उत्पन्न कर सके... हाँ लेकिन मंत्र जुडा कैसे है ? मन के भीतर से मन के अंतर से जो उर्जा को बहिर्जगत मेँ लेकर आये, प्रस्फुरित करे या जो मन के द्वारा जो ध्वनि जुडी हुई हो श्रद्धा और भावना सहित वही वास्तव मेँ मंत्र हो जाता है जैसे कि शाबर मंत्र, वैदिक मंत्र, तान्त्रोक्त मंत्र, बीज मंत्र इत्यादि । मंत्र भी स्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुँसकलिंग होते है । तो इस तरह से मंत्र का संसार बहुत बडा है । एक आम व्यक्ति ये नहीँ जान पाता कि कौनसा मंत्र शाबर है, कौनसा वेदोक्त, कौनसा तान्त्रोक्त, कौनसा बीजमंत्र तो ये सब गुरु के आश्रय मेँ रहकर सीखे जाने वाले मंत्र है लेकिन मंत्रोँ के इस विशद संसार से घबराने की जरुरत नहीँ है । आपको ये महसूस नहीँ होना चाहिए कि मंत्र केवल किसी पंडित के लिए, किसी महात्मा के लिए, किसी संसार से विरक्त हुए व्यक्ति के लिए बने हुए है । मंत्र आपके मन से जुडे रहते है, यदि आपके मन मेँ श्रद्धा है और यदि आप मंत्र के विज्ञान को समझते है, यदि आपको मंत्र का जो विन्यास है कि ये एक शब्द के बाद दुसरा बीज, दुसरे के बाद तीसरा बीज ये क्योँ जुडा है ? अगर इन रहस्योँ को आप अपने गुरु से सीख लेँ तो एक छोटा सा मंत्र भी आपके जीवन मेँ परिवर्तन लेकर आ सकता है लेकिन प्रश्न आपके मन मेँ पैदा होगा कि मंत्र मेरे जीवन मेँ क्या परिवर्तन ला सकता है ? क्योँकि मंत्र तो एक ध्वनि है, जैसे मैने कहा "राम"...राम तो किसी का नाम भी हो सकता है, मैने कह दिया लक्ष्मण, मैने कह दिया कृष्ण, मैने कह दिया राधा या मैँ कोई भी अन्य नाम लुँ तो सब ध्वनियाँ समान है, सब नाम समान है । तो मंत्र मेरे जीवन मेँ कैसे परिवर्तन लेकर आ सकता है ? तो इसके पीछे कुछ सूक्ष्म सिद्धान्त है जो मंत्र होता है...सुनने को वो केवल साधारण ध्वनि मात्र है लेकिन जब आप उस मंत्र के पीछे एक निहित उर्जा होती है जिसे कहा जाता है दीक्षा । जब आप गुरु से दीक्षा लेते है, मंत्र के भाव को जानते है, मंत्र के उद्देश्य को जानते है, उसके ऋषि और छंद को जानते है तब मंत्र से उत्पन्न होनेवाली तरंगेँ, मंत्र से उत्पन्न होनेवाला वो दिव्य तेज वो आपकी किसी भी इच्छा के साथ जुडकर उसे पूर्णता तक पहुँचा सकता है, क्योँकि सारा ब्रह्माण्ड...पृथ्वी घुम रही है तो पृथ्वी का अपना एक sound है, जितने भी आप चांद, तारेँ आसमान मेँ देखते है सबका अपना-अपना एक sound है । आज तो विज्ञान नेँ भी प्रमाणित कर दिया कि छोटी सी छोटी चीज का भी अपना एक sound होता है, ठीक वैसे ही हमारे ऋषिमुनियोँ ने इस ब्रह्माण्ड के समस्त जो ध्वनिकारक ये तत्त्व है, नाद है उनका अनुसंधान कर के विशिष्ट बीजोँ का चयन किया, वो बीज कुछ भी करने मेँ सामर्थ्यवान है, बस आपको मालूम होना चाहिए उसके पीछे का सही विज्ञान, सही तर्क और सही समर्पण और श्रद्धा का तालमेल...अगर वो हो गया तो मंत्र को आपने जान लिया । वैसे तो सृष्टि की उत्पत्ति से ही मंत्र हमारे बीच मेँ है लेकिन उन्हेँ वर्गीकृत किया महादेव भगवान सदाशिव नेँ । उसी माध्यम से समस्त मंत्र हम तक पहुँचे है और कुछ मंत्रोँ को तराशा है हमारे सिद्धोँ नेँ, ऋषिमुनियोँ नेँ और हिमालय पे निरंतर समाधिस्थ और ध्यानस्थ रहनेवाले "गुरुमण्डल" नेँ । यही मंत्र की साधारण सी परिभाषा है । - ईशपुत्र