बुधवार, 29 मई 2019

सर्वोच्च भाव विरह

इक इक कदम की आहट ये अहेसास दिलाती है मुझको ।

उस पार चला जाऊँ, जहाँ चाह बुलाती है मुझको ।             

मन है उदास और चित्त पे बदली आँखोँ मेँ गहरी प्यास।

पाप का बोज है दु:ख की पुँजी कुछ ना मेरे पास।

सीने मेँ उठती अगन लगाती यादेँ बुलाती है मुझको । इक इक.....           

जिसने जनम देके जीवन सँवारा बल और ज्ञान दिया।

दिव्य प्रकाश और पूर्ण चेतना का आभास दिया।

उसकी छबि अब आँखोँ मेँ बसती पास बुलाती है मुझको । इक इक..... 

मैँ विरहन अब मरती तडपती तुझको याद करुँ।

तेरी याद मेँ जीवन जीती यादोँ मेँ तेरी मरुँ।

ओ अदृश्य मेँ रहनेवाले दृश्य बुलाता है तुझको । इक इक..... - महासिद्ध ईशपुत्र

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