उस पार चला जाऊँ, जहाँ चाह बुलाती है मुझको ।
मन है उदास और चित्त पे बदली आँखोँ मेँ गहरी प्यास।
पाप का बोज है दु:ख की पुँजी कुछ ना मेरे पास।
सीने मेँ उठती अगन लगाती यादेँ बुलाती है मुझको । इक इक.....
जिसने जनम देके जीवन सँवारा बल और ज्ञान दिया।
दिव्य प्रकाश और पूर्ण चेतना का आभास दिया।
उसकी छबि अब आँखोँ मेँ बसती पास बुलाती है मुझको । इक इक.....
मैँ विरहन अब मरती तडपती तुझको याद करुँ।
तेरी याद मेँ जीवन जीती यादोँ मेँ तेरी मरुँ।
ओ अदृश्य मेँ रहनेवाले दृश्य बुलाता है तुझको । इक इक..... - महासिद्ध ईशपुत्र
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