शनिवार, 11 मई 2019

महायोगी का कुण्डलिनी जागरण

कहते हैं कि कलियुग में कोई भी अति पवित्र हो ये हो ही नहीं सकता......जब राजा परीक्षित जैसे महारथी भी कलियुग से बच न सके तो अन्यों कि विसात क्या....यही सोच कर महायोगी अपने महागुरु के पास गए....और उनसे कहने लगे कि मेरे जीवन में न जाने क्या क्या घटा हैं....मन:स्थिति जितना संभालना चाहूँ रह रह कर फूटती है.....मुझे लगता है कि पर्वतों को रौंद दूँ....आकाशों में उड़ जाऊं....संसार में जितने लोग पाप फैला रहे हैं उनको जा कर सबक सिखाऊं......पता नहीं क्यों दुनिया में कमिय ही बहुत नजर आती हैं......महागुरु ताड़ गए कि कुण्डलिनी शक्ति के उर्धवमुखी गति के कारण इस तरह के बाव पैदा हो रहे हैं.....महायोगी जी को महागुरु ने कुछ दिन अपने पास ही ठहरने को कहा....लेकिन महायोगी जी कि बैचैनी बढ़ती ही गयी....यहाँ ये बताना आवश्यक है कि महायोगी जी निद्राजई हैं......अपनी नींद पर उनका मनचाहा नियंत्रण है......लेकिन बैचैनी के कारण उन्हें....कुछ होने लगा...हाथ पाँव कांपने लागे....शरीर पर नियंत्रण नहीं रहा....कभी जोर-जोर से साँसे भीतर खींचते....तो कभी बाहर छोड़ देते....भस्त्रिका प्राणायाम कि भांति सांस लेते-लेते अचानक जमीन पर लोट-पोट होने लगते....कूदते...चिल्लाते....जोर-जोर से हँसते....फिर रोने लग जाते.....जब हालत बहुत ही ख़राब हो गए तो महागुरु ने एक बड़ा पत्थर नाले के पास देख कर महायोगी जी को कहा कि इसे गुफा तक ले जाना था पर कैसे हममे से तो कोई भी इसे हिला नहीं सकता....तुम्हारे बाकि गुरुभाइयों को भी कहना पड़ेगा....कह कर महागुरु गुफा कि और चले गए...महायोगी जी के अन्दर शक्ति का उबाल सा आ रहा था....महायोगी जी ने उस पत्थर को पलटना शुरू किया....अकेले ही वो भी चढ़ाई में...खुद पत्थर के नीचे...मानों आत्महत्या करने का पूरा बंदोबस्त कर रखा हो......पर माने नहीं चलते गए...तबतक बाकि गुरु भाई भी पहुँच गए और पत्थर को गुफा तक ले गए......पत्थर पर बल लगा कर महायोगी जी को बहुत ही शांति अनुभव हुई....जैसे ही बैचैनी बढ़ती महायोगी जी पत्थर पलटना शुरू कर देते....फिर महागुरु ने महायोगी जी के सर पर बर्फ के पानी से भीगा हुआ कपड़ा रखा....और पावों को आग से गरम करने लगे....दोनों गुरुभाइयों ने हाथ कस कर पकड़ लिए....और दो गुरुभाई चिकनी मिटटी जिसमें कुछ औषधि मिली हुई थी महायोगी जी के पीठ पर रगड़ने लगे......महायोगी कि हालत मरते हुए प्राणी जैसी हो गयी....लेकिन कुच्छ देर बाद महागुरु ने नेत्रों से महायोगी जी पर शक्तिपात किया...और महायोगी जी योग निंद्रा कि अवस्था में चले गए....इस तरह महायोगी जी को अद्भुत कुण्डलिनी जागरण का रहस्यमयी लाभ प्राप्त हुआ.....महायोगी जी उठे और त्रिबंध लगा कर घंटों समाधी में बैठने लगे.....अब महायोगी जी कि चलने कि गति अचानक बहुत तेज हो गयी....काम करने कि गति भी बहुत तेज हो गयी.....बात भी महायोगी जी जल्दी जल्दी करने लगे....स्वभाव में इन परिवर्तनों ने महायोगी जी को बदल कर रख दिया....धीर गंभीर महायोगी चपल हो गए....हसने खिल खिलाने लगे....बहुत बोलने भी लगे....अब महागुरु ने उन पर अंकुश लगाने के लिए सबसे विचित्र उपाय निकाला....ये उपाय था कि महायोगी जी को ऐसे बस्तर पहनाये जाएँ जिनमे स्त्रियों के गुण हों....ताकि महायोगी जी के भीतर उमड़ रहे पुरुष को अति पुरुष होने से रोका जा सके.....अन्यथा महायोगी पेड़ कि छोटी पर होते.....कभी पहाड़ी के बीच में....कभी ऊँची छलांग लगा रहे होते...नदियों में कूद पड़ते....यहाँ तक कि चारो ओर आग जला कर बीच में बैठ जाते....सापों को पकड़ लेते....जंगल से गीदड़ पकड़ कर लाते.....अब क्या क्या बताऊँ....ऐसी ऐसी माया है कि बताई भी नहीं जा सकती.....इस घटना के कारण जंगली जीवों से महायोगी जी कि मित्रता हो गयी...एक बार तो महागुरु को इतना क्रोध आया कि महायोगी जी कि डंडे से खूब पिटाई हुई....महायोगी जी सबसे ऊँचे देवदार के बृक्ष पर चढ़ गए ओर सबसे ऊँची टहनी पर पाँव मोड़ कर रस्सी से बांध दिए और उलटे लटक गए.....यदि थोड़ी सी चूक हो जाती तो गहरी खाई में जा गिरते....जहाँ से हड्डियाँ लाना भी संभव नहीं था....महागुरु ने खूब लताड़ा और कहा ये हाल हैं हिमालय के सबसे बड़े योगी के.....और मार मार कर हड्डियाँ ढीली कर दीं....कहा तुमारा काम जीवो की रक्षा करना है न की उनको प्रताड़ित करना......तबसे जंगली जानवरों को शायद रहत मिली....ये महागुरु का ही दिया संस्कार है की आज महायोगी जी वन्य प्राणियों के संरक्षक के रूप में मने जाते हैं......लेकिन कुछ चीजों पर शायद कोई खास असर नहीं हुआ.....महायोगी जी अब भी छुप-छुप कर बड़े-बड़े पत्थरों और चट्टानों पर चढ़ते रहते हैं.....आज का "राक क्लाइंबर" भी शरमा जाए....महायोगी जी को तुरंत औरतों की साड़ी जैसे वस्त्र पहना दिए गए.....जिससे बहुत कुछ अंकुश तो लगा.....पर राज कि बात ये है....कि ये घटना क्रम अब भी जारी हैं......कहते हैं कि महायोगी जी के अन्दर कोई पुरुष रसायन कुण्डलिनी जागरण के कारण अनियंत्रित हो गया है....जिस कारण वो इसी रासायनिक दवाब में आ कर ऐसी-ऐसी दुसाहसिक क्रियाएं करते हैं....पर सत्तर प्रतिशत तो उनको बस्त्रों ने ही रोक रखा है.....हालाँकि बात जंचती नहीं है....पर इससे सिद्ध हुआ की वस्त्र भी जीवन शैली पर गहरा प्रभाव डालते हैं........बाकि गहरी बात तो मनोवैज्ञानिक ही जान सकते है की महागुरु ने ऐसा क्यों किया......ये है महायोगी जी के विचित्र वस्त्रों का असली भेद....हालाँकि अब महायोगी जी ने इन सब पर काफी हद तक रोक लगा ली है....पर जंगल के शेर के बारे में कुछ कह पाना मुश्किल ही है....जब भी हिमालय जाते हैं तो फिर पकड़ना स्वप्न ही है....हमें प्रार्थना करते हुए ही कि धीरे चलिए कहते कहते साथ चलना पड़ता है..... - साभार लखन नाथ जी

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