बाह्य प्राणायाम योगी ब्रह्ममूहुर्त मेँ किया करते है । इससे बहुत सारे प्राणायाम एकसाथ हो जाया करते है और बन्ध भी सहज ही लग जाते है । इस प्राणायाम को करने के लिए सहज आसन, सुखासन या पद्मासन मेँ बैठकर श्वास तीव्रता से बाहर छोड देँ और पेट को पीछे पिचका लेँ, उड्डीयान बन्ध लगा देँ और गरदन को ठोडी से लगाकर जालन्धर बन्ध लगा लेँ और गुदा को भीतर अन्दर की तरफ जोर से संकुचित करके रखेँ । इसमेँ जालन्धर बन्ध, उड्डीयान बन्ध और साथ ही मूलबन्ध भी व्यक्ति का लग जाता है । इस प्रक्रिया को "बाह्य प्राणायाम" कहते है । बाह्य प्राणायाम व्यक्ति के "सूक्ष्म शरीर" को जागृत करने मेँ अभूतपूर्व योगदान देता है । व्यक्ति के भीतर पंचतत्त्व होते है और सात शरीर विद्यमान होते है और पाँच शरीर भी विद्यमान होते है उन्हीँ पाँच शरीरोँ मेँ जो "सूक्ष्म शरीर" है वह इस प्राणायाम को करने से चलायमान होता है ! योगी अक्सर घण्टोँ इस प्राणायाम को किया करते है लेकिन आप इसे प्रारम्भ मेँ दो-तीन बार से अधिक न करेँ । - महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज (ईशपुत्र)
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