शुक्रवार, 3 मई 2019

क्या होती है प्रतीकोपासना ?

 प्रतीकोपासना का मतलब है "प्रतीक के रुप मेँ उपासना करना"। क्योँकि हम उस ब्रह्म की, उस भगवान की कोई मूर्ति नहीँ बना सकते, हम उसका कोई मन्दिर नहीँ बना सकते, हम उसका कोई तीर्थ नहीँ बना सकते क्योँकि वो तो इतना विराट है कि वो तो जानने मेँ नहीँ आता, जब वो जानने मेँ नहीँ आता तो उसका मन्दिर, किताबेँ, पुस्तक, ग्रंथ ये सब कैसे लिखा जा सकता है ? ये पुरी तरह से ढोंग है...लेकिन ये ढोंग तब सत्य होने लग जाता है जब आपकी बुद्धि, आपका समर्पण, आपका प्रेम उस पर कार्य करता है । क्योँ ? क्योँकि ये प्रतीकोपासना है । क्या होती है प्रतीकोपासना ? एक उदाहरण : जैसे भारत का झंडा आपने देखा होगा, तीन रंगोँवाला, तिरंगा, उसके मध्य मेँ चक्र है । इस झंडे की आन के लिए आप और हम अपनी जान तक कुरबान कर देना चाहते है ! हम मरने को तैयार है ! मर-मिटने को तैयार है ! किसके लिए ? एक तिरंगे झंडे के लिए ! आप कहेंगे, "क्या बेवकूफी है ? ये तो एक कपडे का टूकडा है, इसके लिए हम जान क्योँ देँ ?" लेकिन क्या आप ऐसा कहते है ? नहीँ । क्योँ ? क्योँकि ये आपकी और मेरी मातृभूमि का "प्रतीक" है इसलिए वो कपडे का टूकडा होने के बावजूद मेरे और आपके लिए इतना सम्मान का तत्त्व हो जाता है कि हम अपने सर कटवाने के लिए तैयार हो जाते है लेकिन उस तिरंगे को हम झूकता हुआ देखना नहीँ चाहते ! समझ मेँ आया ? ये है प्रतीकोपासना । ठीक उसी तरह हमारी मूर्तियाँ, हमारे धर्मग्रंथ, हमारे तीर्थस्थान वो भगवान नहीँ है, भगवान के प्रतीक है इसलिए हम प्रतीकोपासना करते है । - ईशपुत्र

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