सबसे पहली महाविद्या काली है जिनके संबंध में विज्ञान कहता है, मतलब यह वाला विज्ञान साइंस नहीं, अध्यात्म विज्ञान कहता है कि जब सृष्टि थी नहीं अब केवल एक पदार्थ था जिसको श्यामवर्णा् बताया गया, काले रंग का बताया गया, उसी तत्व से जो अदृश्य तत्व है, लेकिन दृश्य भी है! क्योंकि अगर वर्ण है तभी तो दृश्य होगा ना वह! काला रंग है वो दृश्य है तभी तो हम उसे जान पा रहा है, हालांकि कहा जाता है कि वह रंगों का नहीं होना है... लेकिन एक तत्व जो काला था उसकी उपस्थिति को ही काली माना गया! उस अदृश्य चेतना ने ही संपूर्ण चेतनाओं को उत्पन्न किया! उससे प्रकाश निकला और उससे यह ब्रह्मांड पैदा हुआ! और यह ब्रह्मांड धीरे-धीरे विस्तृत होता गया और इसी ब्रह्मांड में आज हम लोग विद्यमान है। तो काली मां का एक स्वरूप है हमारे सामने कि वो मुंडो की अस्थि की माला पहनती है, एक हाथ में खप्पर पात्र है, एक हाथ में उन्होंने हथियार पकड़ के रखा है खड़ग और वो पूरा का पूरा उनका जो स्वरूप है वह देखने में बड़ा ही भयानक और बड़ा ही डरावना लगता है उन लोगों को जिन्होंने पहली बार मां कालिका को देखा है! वह तो घबरा जाएंगे देख के कि अरे यह क्या है! और उनके श्री चरणों में नीचे साक्षात शिव है जिन पर वह विद्यमान है, हालांकि बहुत लोग कहते हैं वो शिव नहीं वो शव है लेकिन मैं कहता हूं, वह शव हो ही नहीं सकता! क्योंकि जो भी साधक परमात्मा की साधना करता है, इस पथ पर आगे बढ़ता है वह मरने के बाद भी शव नहीं बनता! महापुरुष यदि समा जाए तो भी उनका शरीर सडता नहीं! आप उनका अंतिम संस्कार नहीं भी करेंगे तो भी कई कई युगों तक उनको कीड़े नहीं लगेंगे वह सड़ेंगे नहीं, वो यथावत रहते हैं। हमारी पृथ्वी पर ऐसे अनेकों उदाहरण है। तो वो शव नहीं बनते । इसलिए जो मां काली के नीचे है वो भी शिव ही है! और शिव का तात्पर्य केवल कैलाश पर बैठे हुए भोलेनाथ से नहीं है, शिव सर्व व्यापक सर्वत्र विद्यमान दिव्य चेतना है!
तो काली की दो क्रम में पूजा होंगी, एक साकर क्रम में पूजा होगी और एक निराकार क्रम में पूजा होगी, सभी महाविद्याओं की इसी क्रम में होगी, तो आपकी स्वेच्छा है कि आप उनको किस क्रम में मानते हैं। अगर आप उनको साकर क्रम में मानते हैं तो तीन बातों का ध्यान रखना होगा! पहले जब भी आप साधना करे आपके पास चित्र होना अनिवार्य है, यदि नही है तो वो आपको निर्मित करना होगा, और यदि आप साकार क्रम में साधना कर रहे है तो आपके पास यंत्र भी होना अनिवार्य है जो उस देवी से जुड़ा हुआ यंत्र होता है... और तीसरी बात... जब आपके पास चित्र हो गया, यंत्र भी हो गया, उस महाविद्या से संबंधित मंत्र भी होना चाहिए। यह तीन क्रम जो है यह स्थूल उपासना के लिए है। जो देवी मां के साकार विग्रह की उपासना करते हैं और वह तो समर्थ शक्ति है सामर्थ्यवान ममतामयी देवी है! यदि आप उनकी सरकार में उपासना करेंगे तो वो साक्षात उपस्थित होगी; साकार में ! लेकिन यदि सौभाग्यवश या दुर्भाग्यवश कुछ लोगों को साकार तत्व समझ ही नहीं आता, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह मूढ़ है, भाई भगवान ने उनको वह तत्व समझने के लिए नहीं दिया लेकिन वो दूसरा तत्व तो वह समझ रहे हैं ना उसके बदले में। वह साकार को नहीं समझ पा रहे है वो महाविद्या की निराकार पक्ष को समझेंगे योगियों की भांति! अब योगी भी तो हिमालय में महाविद्याओं की साधना करते हैं लेकिन वह तो कोई यंत्र नहीं लेते, वह तो कोई माला नहीं लेते, वह तो कोई पंचोपचार सहस्त्रोपचार या कर्मकांड नहीं करते, तो वह कैसे करते है? उनके पास दो ही विधि होती है... प्रथम दीक्षा जो वह गुरु से प्राप्त करते हैं और दूसरा उसका ध्यान! केवल मात्र ध्यान करने से ही उनको उस महाविद्या की सिद्धि होने लगती है! काली महाविद्या के बारे में बताने से पहले गृहस्थो के लिए कौन सा मार्ग उत्तम है... मेरा ख्याल है... यह केवल मेरा विचार है.. किसी बड़े गुरु का मार्गदर्शन नहीं... कि व्यक्ति को मिश्राचार साधना ही करनी चाहिए। जिस समय आपके पास सुविधाएं हो तब आप चित्र रखें, यंत्र रखें वह एक सौंदर्य है अपने जीवन का; साधना का आनंद आएगा, एक बड़ा सा चित्र बनाइए और सुंदर सी माला रखिए, उसे प्राण प्रतिष्ठित कीजिए, अच्छा सा आसन बिछाए, अपने सामने धूपबत्ती कीजिए, आरती रखिए और फिर साकार कर्मकांड करते हुए साधना कीजिए, यंत्र रखिए उसकी आवरण पूजा कीजिए। तो योगी लोग ध्यान के माध्यम से साधना को आगे बढ़ाते हैं।
अब प्रथम देवी काली है, जिनको सर्वशक्ति मई माना गया है और इनको शिव तत्व का विरोधी भी माना जाता है क्योंकि यह शिव की विपरीत चलती है। शिव कहते हैं कि तुम विश्राम करो मनुष्य को लेकिन शक्ति कहती है कि तुम कदापि विश्राम न करो तुम्हारे पास एक भी क्षण शेष नहीं है! शक्ति की एक ही कमी है; शक्ति का उपासक चुप नहीं बैठ सकता, शक्ति का उपासक मौन नहीं रह सकता, अगर कहीं कुछ हो रहा हो अत्याचार हो रहा हो अन्याय हो रहा हो तो हो सकता है अगर आप ध्यानी हो शिव के ध्यान में मग्न हो तो आप शांत भी रह लेंगे, लेकिन अगर आप शक्ति के उपासक हो तो यह हो ही नहीं सकता कि आप चुप रह जाए क्योंकि पेट में मरोड़ उठता है शायद समथिंग कुछ ऐसा तो होता ही है लेकिन आखिर होता क्या है यह मुझे भी नहीं मालूम लेकिन शक्ति के उपासक बड़े विद्रोही स्वभाव के होते हैं, वो अन्याय नहीं सह सकते, वो अत्याचार नहीं सह सकते, न अपने साथ, न दूसरों के साथ, न समाज के साथ और वह व्यक्ति लुंजपुंज नहीं होते। कालिका की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कालिका का साधक किसी भी परिस्थिति में हारता नहीं! काली महाविद्या... वह कभी आपको हारने नहीं देगी जीवन में, कभी भी नही और ये एक सुनिश्चित तथ्य है कि वही एक मात्र "आदि शक्ति" है, आध्या शक्ति है, वो आपको निहाल कर देती है! उसी में एक ऐसी क्षमता है जो आपको भय रहित कर सकती है, इसीलिए कालिका के पुत्र कौन माने गए? भैरव माने गए! भैरव जो है वह साक्षात भय विमोचक है भय नाशक और मां कालिका को ही जब वो सात्विक स्वरूप में आती है तो "रणचंडी" कहा जाता है! वो रणचंडी भी है। तो मां कालिका की साधना जब भी आप शुरू करें, जब भी आप उनकी साधना करे तो इस बात के लिए उनकी साधना प्रमुख तौर पर करे जब आपके जीवन में इस तरह के शत्रु हो जाए, अत्यंत शत्रु हो जाए, बहुत ज्यादा शत्रु हो जाए... हालांकि उनके लिए पितांबरा भी है; पितांबरा उनका स्तंभन करती है, उनके लिए धूमावती भी है जो उन को जड़ से उखाड़ सकती है लेकिन कालिका एकमात्र "अनियंत्रित शक्ति" है! आप जब कालिका की स्तुति करते है वो आपके जीवन को बिल्कुल नई धारा में ले जाती है... बिल्कुल नई धारा! जब साधक के पास पृथ्वी पर जीवन यापन करने के लिए कुछ ना बचे, कुछ भी ना बचे, कोई भी मार्ग ना बचे तो कालिका की साधना एकमात्र सबल होती है! काली बड़ी ही प्रत्यक्ष साधना है। और इनकी साधना से आपको अपने जीवन की जो छोटी-छोटी समस्याएं हैं उनको तो चुटकियों में दूर कर ही सकते हैं लेकिन सबसे प्रमुख तत्व मैंने आपको बता दिया कि संपूर्ण सृष्टि जब आप के विरुद्ध होने लग जाए तो उनकी साधना की जाए। तो दुख रहित होने की जो साधना है वह महाकाली की साधना है। और महाकाली का क्रीं बीज है, वो क्रीं बीज होने के कारण आकर्षिणी भी है देखना, जिन्हें परमाकर्षिणी कहा गया है इसलिए जो कालिका का साधक होता है वह सम्मोहन सहज ही प्राप्त करता है, वह आकर्षण सहज ही प्राप्त करता है और सबसे बड़ी बात कि वही काली छोटे क्रम में श्रीविद्या होती है! और जो श्रीविद्या है वह धन धान्य की देवी है। और जो धन धान्य की देवी है वही दोनों क्रमों में आपके पास उपलब्ध होगी! इसलिए कालिका की साधना मात्र करने से श्री क्रम भी और काली क्रम भी साधक को दोनों प्राप्त हो सकता है लेकिन इसमें एक नकारात्मक तत्व है! वो ये कि कालिका संसार से वैराग्य देने वाली देवी भी है! इसलिए ज्यादातर लोग श्री विद्या की साधना करते हैं। क्योंकि वह वैराग्य नहीं देती.. वह राग देती है! वो वात्सल्य देती है! वो करुणा देती है! वो श्रृंगार देती है! वो सौंदर्य देती है लेकिन आपको मुक्ति नहीं देती। कालिका संसार में आपको धन भी देगी, आपको ऐश्वर्य भी देगी, शत्रु रहित भी करेगी लेकिन साथ ही साथ आपका मन उन चीजों में नहीं लगेगा! इसलिए कालिका के जो साधक होते है वो साधना करते हुए भी वैरागी रहते है, इसलिए आपने अगर देखा हो ऋषि मुनियों को वो सर्वाधिक प्रचलन हमारे भारत में कालिका की साधना है !श्रीविद्या तो अब इतनी प्रख्यात हुई। अगर आप प्राचीन साहित्य और वाङ्गमय का अध्ययन करेंगे तो श्रीविद्या को पहले इतना ध्यान नहीं दिया गया था उन पर, उसका कारण ही यह था कि श्रीविद्या के साथ साथ आदमी लिप्त हो जाते है संसार में लेकिन यहां कालिका आपको मुक्त रखेगी, इसलिए उनकी साधना आपको तब करनी चाहिए जब आपको समस्त ऐश्वर्यों के साथ वैराग्य की आवश्यकता हो!
- महासिद्ध ईशपुत्र
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