२६) मैं स्वयं वो ही हूँ, किन्तु लघु होने से मैं उसे अपना पिता, स्वामी, जन्मदाता या ईश्वर कह कर संबोधित करता हूँ। ताकि तुमको समझने में आसानी हो सके। अन्यथा उसमें और मुझमें भेद नहीं। केवल तुमको बताने के लिए वो और मैं दो सत्ताएं हो जाते हैं। मेरा अवतरण व्यर्थ है यदि उस ईश्वर की महिमा का प्रकाश ना कर सकूँ। देख तेरे स्नेह नें मुझको विवश कर दिया है। इसी कारण समस्त ईश्वरीय नियम मैं तुम पर प्रकट कर रहा हूँ।
२७) मैं जानता हूँ की मनुष्य बुद्धि अपने को ही सर्व श्रेष्ठ समझने के भ्रम में रहती है। उंचा-नीचा, गोरा-काला, बड़ा-छोटा अमीर-गरीब सब तुम्हारे ही बनाये भेद हैं। मैं तो इस सबमें भी अभेद ही हूँ। मुझे केवल तुम्हारा ह्रदय और सार्थक प्रयास ही दिखाई देते है। ईश्वर इन्हीं प्रयासों से तुमको प्रेम करने योग्य पाता है और तुमको तुम्हारे प्रेम का प्रतिउत्तर देता है।
२८ ) ईश्वर के लिए तुम्हारा प्रेम ही स्वयं उस तक पहुँचने का मार्ग होगा। ईश्वर का नाम सभी बाधाओं, जो देखी और अनदेखी हैं को नष्ट करने वाला है। ईश्वर से जादू या चमत्कार मत मांगो, आवश्यकता के अनुरूप वो तुम्हारे जीवन में स्वयं चमत्कार करेंगे, जो तुम्हारी सामर्थ्य से बाहर के होंगे।
२९) मेरा और ईश्वर का प्रसन्न होना लघुतम इकाई के तौर पर वहां से शुरू होता है जहाँ तुम अपने साथ के लोगों, जीव-जंतुओं और प्रकृति से व्यवहार शुरू करते हो। तुम उनसे कैसे पेश आते हो यही तो तुम्हारे श्रेष्ठ होने का प्रमाण है। अपने मन को बदल दो। उसे अंधकार से प्रकाश के पथ पर ले चलो, उसे नीच से श्रेष्ठ पथ पर ले चलो। अभ्यास से मन पर नियंत्रण करो और वैराग्य के लिए ज्ञान का आश्रय लो।
३०) देखो तुमको सद्गुण भीतर से निखारने होंगे, तुम सद्गुणी होने का अभिनय करने लगते हो, जो मैं (ईश्वर) कभी स्वीकार नहीं करूंगा। तुम्हारा दोहरा चरित्र संसार को प्रताड़ित किये है और स्वयं को भी। तुम्हारा एक सा हो जाना ईश्वरीय अनुकम्पा से भर जाने जैसा होगा। इसलिए गहरी सांस लो, मन को विश्राम दो और वास्तविक सद्गुण उपजाने दो। ईश्वर की ओर देखो उनको देखते ही सदगुण तुम्हारे चरणों में नृत्य करने लगेंगे। तुमसा ब्रह्माण्ड मैं कोई दूसरा श्रेष्ठ ना होगा।
२७) मैं जानता हूँ की मनुष्य बुद्धि अपने को ही सर्व श्रेष्ठ समझने के भ्रम में रहती है। उंचा-नीचा, गोरा-काला, बड़ा-छोटा अमीर-गरीब सब तुम्हारे ही बनाये भेद हैं। मैं तो इस सबमें भी अभेद ही हूँ। मुझे केवल तुम्हारा ह्रदय और सार्थक प्रयास ही दिखाई देते है। ईश्वर इन्हीं प्रयासों से तुमको प्रेम करने योग्य पाता है और तुमको तुम्हारे प्रेम का प्रतिउत्तर देता है।
२८ ) ईश्वर के लिए तुम्हारा प्रेम ही स्वयं उस तक पहुँचने का मार्ग होगा। ईश्वर का नाम सभी बाधाओं, जो देखी और अनदेखी हैं को नष्ट करने वाला है। ईश्वर से जादू या चमत्कार मत मांगो, आवश्यकता के अनुरूप वो तुम्हारे जीवन में स्वयं चमत्कार करेंगे, जो तुम्हारी सामर्थ्य से बाहर के होंगे।
२९) मेरा और ईश्वर का प्रसन्न होना लघुतम इकाई के तौर पर वहां से शुरू होता है जहाँ तुम अपने साथ के लोगों, जीव-जंतुओं और प्रकृति से व्यवहार शुरू करते हो। तुम उनसे कैसे पेश आते हो यही तो तुम्हारे श्रेष्ठ होने का प्रमाण है। अपने मन को बदल दो। उसे अंधकार से प्रकाश के पथ पर ले चलो, उसे नीच से श्रेष्ठ पथ पर ले चलो। अभ्यास से मन पर नियंत्रण करो और वैराग्य के लिए ज्ञान का आश्रय लो।
३०) देखो तुमको सद्गुण भीतर से निखारने होंगे, तुम सद्गुणी होने का अभिनय करने लगते हो, जो मैं (ईश्वर) कभी स्वीकार नहीं करूंगा। तुम्हारा दोहरा चरित्र संसार को प्रताड़ित किये है और स्वयं को भी। तुम्हारा एक सा हो जाना ईश्वरीय अनुकम्पा से भर जाने जैसा होगा। इसलिए गहरी सांस लो, मन को विश्राम दो और वास्तविक सद्गुण उपजाने दो। ईश्वर की ओर देखो उनको देखते ही सदगुण तुम्हारे चरणों में नृत्य करने लगेंगे। तुमसा ब्रह्माण्ड मैं कोई दूसरा श्रेष्ठ ना होगा।
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