बहुत से लोग सोचते है जो धर्म पर विश्वास करते हैं की अब तो कर्म करने की कोई जरूरत ही नहीं क्योंकि अब तो भगवान् की पूजा कर ही ली है, सब अपने आप हो जायेगा, वैसे भी जो करता है वो तो भगवान् ही हैं। तो "ईशपुत्र" कहते हैं की ऐसा विचार ही पतन का कारण बनता है। अध्यात्म का सत्य निरूपण होना अनिवार्य है। कभी भी इहलौकिक कर्म का त्याग करके दिव्य कर्म तक नहीं पहुंचा जा सकता। क्योंकि वहां का मार्ग यहीं से हो कर गुजरता है। "कौलान्तक नाथ" साधक को समझाते हुए कहते हैं की भौतिक और आध्यात्मिक संसार दो नहीं हैं अपितु एक में ही दो स्थित हैं। इसलिए पूजा-पाठ, मंत्र-जाप, ध्यान-समाधी कर्म का विकल्प नहीं है। अत: चैतन्य सक्रीय साधना के रहस्य को समझना होगा। "कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज" नें विषय को स्पष्ट करते हुए क्या कहा है? प्रस्तुत है विडिओ-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।
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