शिव का ॐ कार स्वरुप में ध्यान करने से शिव सकल फल देते हैं
शिवलिंग के रूप में उपासना करने से भोग एवं मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं
शिवलिंग पर पंचामृत चढ़ाना सर्वोत्तम माना जाता है
शहद दूध और जल में चन्दन का लेप मिला कर अभिषेक से शिव प्रसन्न होते हैं
रुद्राक्ष धारण करने से व उनकी प्राण प्रतिष्ठा से शिव के तेज का स्थापन जागरण होता है
शिव संगीत व नृत्य प्रिय हैं गा कर व नृत्य से शिव प्रसन्न होते हैं
शिवलिंग पर भस्म को त्रन्त्रोक्त बीजों सहित लेपन से सारे पाप मिट जाते हैं
भस्मलेपन का तंत्रोक्त बीज मंत्र-ॐ ह्रौं ज़ूम सः
रक्त चन्दन अथवा विशेष निर्मित त्रिपुंड स्वयं और शिवलिंग पर लगाने से बाधाओं का नाश होता है
त्रिपुंड का मंत्र-ॐ त्रिलोकिनाथाय नम:
शिव को प्रसन्न करने के लिए डमरू जरूर बजाएं और बम बम भोले बम बम भोले कहने से कृपा मिलेगी
बिल्व पत्र व बिल्व फल चढाने से धन की प्राप्ति के साथ साथ शिव को सरलता से रिझाया जा सकता है
शिवरात्रि पर धतुरा,भांग,और आक चढ़ना शिव की पूरी साधना करने के बराबर फलदायी होता हैं
शिलिंग को प्रतिष्ठित कर करें शिवलिंग का पूजन तो जीवन सफल हो जाता है
ज्ञान एवं विद्वत्ता की इच्छा वाले साधकों को स्फटिक के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए
गृहस्थ सुख चाहने वालों को पत्थर के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए
मुकद्दमों एवं युद्ध में प्रतियोगिताओं में सफलता पाने वालों को अष्ट धातु शिवलिंग का पूजन करना चाहिए
सब सुख चाहने वाले को सोने चांदी अथवा रत्नों से बना शिवलिंग पूजना चाहिए
सबसे स्रेष्ठ तो केवल पारे का शिवलिंग होता है जिसकी पूजा से जन्म मरण से मुक्ति प्राप्त होती है शिव की अमोघ कृपा बरसती है
शिवरात्री के दिन शिव मंदिर के दर्शन,कैलाश मानसरोवर के दर्शन,शिवभक्तों के दर्शन अथवा सुमिरम से शिव भोले बरदान देते हैं
शिवरात्रि को शिवपुराण की पूजा और पाठ से शिव प्रसन्न हो कर अपने भक्त के साथ साथ रहने लगते हैं
इस पुराण में 24,000 श्लोक है तथा इसके क्रमश: 6 खण्ड है
पहला खंड -विद्येश्वर संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से समस्त भयों और अपशकुनो का नाश होता है
दूसरा खंड-रुद्र संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से अकाल मृत्यु टलती है और ज्ञान प्राप्त होता है
तीसरा खंड-कोटिरुद्र संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से भौतिक सुखों के साथ साथ अद्यात्म का ज्ञान भी मिलता है
चौथा खंड-उमा संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से शक्ति सिद्धियाँ तो मिलती ही हैं मायाजाल से बक्त मुक्त हो जाता है
पांचवा खंड-कैलास संहिता-जिसके पाठ से साधक मानव योनी से उपार हो कर शिव का गण हो जाता है तीनो लोकों में उसे निर्भयता प्राप्त होती है
छठा खंड-वायु संहिता-जिसके पाठ से धार अर्थ काम सहित मोक्षः मिलता है साधक शिव में समाहित हो पूरण हो जाता है
शिव को स्तुति प्रिय है अतः स्तुतियों से करें शिव आराधना
शिव सहस्त्रनामावली का पाठ करें
शिव की सबसे प्रचलित स्तुति है
ॐ कर्पूर गौरं करुणावतारं
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं
सदा वसन्तं हृदयारवृन्दे
भवं भवानी सहितं नमामि !!
देव, दनुज, ऋषि, महर्षि, योगीन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्ध, गन्धर्व सब शिव को गा कर प्रसन्न करते है
रुद्राष्टक,पंचाक्षर,मानस,द्वादश ज्योतिर्लिंग जैसे स्तोत्रों का पाठ करने से अद्भुत कृपा प्राप्त होगी
सस्कृत स्तोत्र शीग्र फलदायी होते हैं
रुद्राष्टक स्तोत्र कुछ ऐसे है-
नमामिशमीशान निर्वाण रूपं।
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।।
निजं निर्गुणं निर्किल्पं निरीहं।
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं।
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं।।
करालं महाकाल कालं कृपालं।
गुणागार संसारपारं नतोहं।।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गंभीरं।
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।।
कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
शिवलिंग के रूप में उपासना करने से भोग एवं मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं
शिवलिंग पर पंचामृत चढ़ाना सर्वोत्तम माना जाता है
शहद दूध और जल में चन्दन का लेप मिला कर अभिषेक से शिव प्रसन्न होते हैं
रुद्राक्ष धारण करने से व उनकी प्राण प्रतिष्ठा से शिव के तेज का स्थापन जागरण होता है
शिव संगीत व नृत्य प्रिय हैं गा कर व नृत्य से शिव प्रसन्न होते हैं
शिवलिंग पर भस्म को त्रन्त्रोक्त बीजों सहित लेपन से सारे पाप मिट जाते हैं
भस्मलेपन का तंत्रोक्त बीज मंत्र-ॐ ह्रौं ज़ूम सः
रक्त चन्दन अथवा विशेष निर्मित त्रिपुंड स्वयं और शिवलिंग पर लगाने से बाधाओं का नाश होता है
त्रिपुंड का मंत्र-ॐ त्रिलोकिनाथाय नम:
शिव को प्रसन्न करने के लिए डमरू जरूर बजाएं और बम बम भोले बम बम भोले कहने से कृपा मिलेगी
बिल्व पत्र व बिल्व फल चढाने से धन की प्राप्ति के साथ साथ शिव को सरलता से रिझाया जा सकता है
शिवरात्रि पर धतुरा,भांग,और आक चढ़ना शिव की पूरी साधना करने के बराबर फलदायी होता हैं
शिलिंग को प्रतिष्ठित कर करें शिवलिंग का पूजन तो जीवन सफल हो जाता है
ज्ञान एवं विद्वत्ता की इच्छा वाले साधकों को स्फटिक के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए
गृहस्थ सुख चाहने वालों को पत्थर के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए
मुकद्दमों एवं युद्ध में प्रतियोगिताओं में सफलता पाने वालों को अष्ट धातु शिवलिंग का पूजन करना चाहिए
सब सुख चाहने वाले को सोने चांदी अथवा रत्नों से बना शिवलिंग पूजना चाहिए
सबसे स्रेष्ठ तो केवल पारे का शिवलिंग होता है जिसकी पूजा से जन्म मरण से मुक्ति प्राप्त होती है शिव की अमोघ कृपा बरसती है
शिवरात्री के दिन शिव मंदिर के दर्शन,कैलाश मानसरोवर के दर्शन,शिवभक्तों के दर्शन अथवा सुमिरम से शिव भोले बरदान देते हैं
शिवरात्रि को शिवपुराण की पूजा और पाठ से शिव प्रसन्न हो कर अपने भक्त के साथ साथ रहने लगते हैं
इस पुराण में 24,000 श्लोक है तथा इसके क्रमश: 6 खण्ड है
पहला खंड -विद्येश्वर संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से समस्त भयों और अपशकुनो का नाश होता है
दूसरा खंड-रुद्र संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से अकाल मृत्यु टलती है और ज्ञान प्राप्त होता है
तीसरा खंड-कोटिरुद्र संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से भौतिक सुखों के साथ साथ अद्यात्म का ज्ञान भी मिलता है
चौथा खंड-उमा संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से शक्ति सिद्धियाँ तो मिलती ही हैं मायाजाल से बक्त मुक्त हो जाता है
पांचवा खंड-कैलास संहिता-जिसके पाठ से साधक मानव योनी से उपार हो कर शिव का गण हो जाता है तीनो लोकों में उसे निर्भयता प्राप्त होती है
छठा खंड-वायु संहिता-जिसके पाठ से धार अर्थ काम सहित मोक्षः मिलता है साधक शिव में समाहित हो पूरण हो जाता है
शिव को स्तुति प्रिय है अतः स्तुतियों से करें शिव आराधना
शिव सहस्त्रनामावली का पाठ करें
शिव की सबसे प्रचलित स्तुति है
ॐ कर्पूर गौरं करुणावतारं
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं
सदा वसन्तं हृदयारवृन्दे
भवं भवानी सहितं नमामि !!
देव, दनुज, ऋषि, महर्षि, योगीन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्ध, गन्धर्व सब शिव को गा कर प्रसन्न करते है
रुद्राष्टक,पंचाक्षर,मानस,द्वादश ज्योतिर्लिंग जैसे स्तोत्रों का पाठ करने से अद्भुत कृपा प्राप्त होगी
सस्कृत स्तोत्र शीग्र फलदायी होते हैं
रुद्राष्टक स्तोत्र कुछ ऐसे है-
नमामिशमीशान निर्वाण रूपं।
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।।
निजं निर्गुणं निर्किल्पं निरीहं।
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं।
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं।।
करालं महाकाल कालं कृपालं।
गुणागार संसारपारं नतोहं।।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गंभीरं।
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।।
कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ