मैं कुंडलिनी साधना क्यों नहीं करवा रहा एकदम से इसका कारण है कि कोई तैयार ही कहां है ? यदि मैं करवाऊंगा तो मेरी तो रीति बिलकुल वैसी ही होगी जो ऋषि परंपरा की है, उन्होंने कहा कि, "मस्तिष्क में इतने विचार, इतनी चीजें भरी पड़ी है, मस्तिष्क इतने सारे क्रियाओं को एक साथ संपादित करता है कि उसके पास जगह नहीं है कि उसके पास समय नहीं है इस उर्जा को संभालने के लिए और उसमें इतने विचार इस संसार के भरे है कि वासना का जो केंद्र है जो व्यक्ति को भड़काता है., जैसे मान लीजिए एक सुंदर सी लड़की ने किसी सुंदर से लड़के को देखा तो उसके मन में वासना पैदा हुई; अब वह लड़की उस लड़के को जब देखती है तो उसे लगता है कि 'दुनिया का सबसे खूबसूरत पुरुष, सबसे सुंदर! मुझे तो किसी भी तरह इसकी बाहों में समा जाना है, मुझे तो बस इस से लिपट जाना है, इसके अंदर समाहित होकर एक हो जाना है ।' उसे और कुछ नहीं दिखाई देगा, कुछ नहीं सुनाई देगा । यहां तक की उस लड़के में बहुत सी बुराइयां हैं, तब भी वह बुराइयां बिल्कुल नजर नहीं आएगी । बस उसे प्रेम नजर आएगा प्रेम, आकर्षण, प्यार । वह बस उसके प्यार के लिए मर जाना चाहेगी, लेकिन जैसे ही उनके बीच दैहिक संबंध बनेंगे और शीर्ष पर जाने के बाद जो कुछ देर के लिए ढलान आएगा तब उस लड़की को एहसास होगा कि, हां मेरा प्यार बहुत अच्छा तो है लेकिन तब ढलान की प्यार का वह आकर्षण नहीं होगा, तब एकदम से परिस्थिति बदलेगी, फिर उसे तैयार होना पड़ेगा धीरे-धीरे उस ऊर्जा को संचित करना पड़ेगा ताकि पुनः वह युवक उसे उतना ही खूबसूरत लगे लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता । शादियां लंबे समय क्यों नहीं चलती ? चार-पांच सालों में वह ऊर्जा का जो ढलान है, ऊर्जा का ऊपर चढ़ना, नीचे आना वह असंतुलित हो जाता है, फिर पति पत्नी का संबंध सामाजिक संबंध रह जाता है, कि 'चलो ठीक है मेरी पत्नी है, मुझे जेलना होगा, मेरे पति है, जैसा भी है अब रहना तो साथ है, समाज जानता है इस बात को, कहीं और जाऊंगा तो गाली पड़ेगी इत्यादि इत्यादि लेकिन मन में वह आकर्षण नहीं रहा, वह संबंध नहीं रहा, क्यों? क्योंकि मूलाधार की ऊर्जा को व्यवस्थित करके चलाना उसे नहीं आया । सोचिए कि वह मूलाधार की ऊर्जा हमें इतना भड़काती है, तो जब वह मूलाधार की ऊर्जा पूरी तरह आपके मस्तिष्क पर छा जाएगी तो आपको कैसा बना देगी ? आपको ऐसी-ऐसी कल्पनाओं के उड़ानों में ले जाएगी कि आपको अनेकों चांद, सितारे, ब्रह्म लोक, देवलोक, ईश्वर के लोक, अप्सराओं का नाचना, गंधर्वों का गायन सुनाई देने लगेगा । मुझे हर रोज पता नहीं कैसे-कैसे लोग पत्र लिखते हैं या ईमेल करते हैं या बहुत सारे लोग मेरे पास आते हैं कि, "जी मैं ध्यान कर रहा था, मेरी पीठ में से कुछ उठा ऊपर, रीड की हड्डी में फस गया, अब तब से वह फंसा हुआ ही है, मुझे ना नींद आती है, ना मैं जागता हूं, न सो पाता हूं, मेरे लिए प्लीज कुछ कर दीजिए ।" तो मैं कहता हूं ठीक है, अब उसी व्यक्ति के पास जाओ जिसने तुम्हें यह ध्यान करने की विधि सिखाई थी कि कुंडलिनी ऊपर चढेगी, उसे कहो ना कि अब नीचे उतार क्योंकि जब तक वह उतरेगा नहीं तुम्हारी तो यही दुर्दशा रहेगी । कुछ कहते हैं कि मुझे 24 घंटे सिर में दर्द है, कुछ कहते हैं मुझे ढोल-नगाड़े, चिमटे, शंख, नाद, भूतों की आवाज, चिल्लाने की आवाज सुनाई देती है दिन रात, मैं पागल हो रहा हूं । पागल तो होंगे ही तुम क्योंकि कुंडलिनी उर्जा का मतलब ही है कि जो तुम हो मनुष्यत्व उससे अलग हो जाना, मनुष्य तत्व से अलग हो जाना । मनुष्य समय पर सोता है, समय पर जागता है, समय पर खाता है, समय पर सब कार्य करता है । अब जब कुंडलिनी जागरण हो जाएगा तो तुम मनुष्य नहीं रहोगे ना फिर ! तब तुम सो नहीं सकते? तो फिर अब मेरे पास आ कर क्यों कहते हो कि हम सोना चाहते हैं लेकिन नींद नहीं आती । अब जब कुंडलिनी जागृत हो गई है प्रभु जी ! तो फिर निद्रा कहां से आएगी ? नींद आने के लिए मनुष्य होना जरूरी है और उर्जा का सही केंद्रों में शीत होना जरूरी है । अब तुम्हारी कुंडलिनी तो मस्तिष्क पर आ गई, मस्तिष्क के तंतु अब भिनभिना रहे हैं, झानझना आ रहे हैं तो निद्रा कहां से आएगी ? तो शरीर का संतुलन तो खराब होगा ही ना ? और तुम कहते हो कि कुंडलिनी जागरण से मुझे यह
गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019
कुण्डलिनी शक्ति का पूरा सच
मैं कुंडलिनी साधना क्यों नहीं करवा रहा एकदम से इसका कारण है कि कोई तैयार ही कहां है ? यदि मैं करवाऊंगा तो मेरी तो रीति बिलकुल वैसी ही होगी जो ऋषि परंपरा की है, उन्होंने कहा कि, "मस्तिष्क में इतने विचार, इतनी चीजें भरी पड़ी है, मस्तिष्क इतने सारे क्रियाओं को एक साथ संपादित करता है कि उसके पास जगह नहीं है कि उसके पास समय नहीं है इस उर्जा को संभालने के लिए और उसमें इतने विचार इस संसार के भरे है कि वासना का जो केंद्र है जो व्यक्ति को भड़काता है., जैसे मान लीजिए एक सुंदर सी लड़की ने किसी सुंदर से लड़के को देखा तो उसके मन में वासना पैदा हुई; अब वह लड़की उस लड़के को जब देखती है तो उसे लगता है कि 'दुनिया का सबसे खूबसूरत पुरुष, सबसे सुंदर! मुझे तो किसी भी तरह इसकी बाहों में समा जाना है, मुझे तो बस इस से लिपट जाना है, इसके अंदर समाहित होकर एक हो जाना है ।' उसे और कुछ नहीं दिखाई देगा, कुछ नहीं सुनाई देगा । यहां तक की उस लड़के में बहुत सी बुराइयां हैं, तब भी वह बुराइयां बिल्कुल नजर नहीं आएगी । बस उसे प्रेम नजर आएगा प्रेम, आकर्षण, प्यार । वह बस उसके प्यार के लिए मर जाना चाहेगी, लेकिन जैसे ही उनके बीच दैहिक संबंध बनेंगे और शीर्ष पर जाने के बाद जो कुछ देर के लिए ढलान आएगा तब उस लड़की को एहसास होगा कि, हां मेरा प्यार बहुत अच्छा तो है लेकिन तब ढलान की प्यार का वह आकर्षण नहीं होगा, तब एकदम से परिस्थिति बदलेगी, फिर उसे तैयार होना पड़ेगा धीरे-धीरे उस ऊर्जा को संचित करना पड़ेगा ताकि पुनः वह युवक उसे उतना ही खूबसूरत लगे लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता । शादियां लंबे समय क्यों नहीं चलती ? चार-पांच सालों में वह ऊर्जा का जो ढलान है, ऊर्जा का ऊपर चढ़ना, नीचे आना वह असंतुलित हो जाता है, फिर पति पत्नी का संबंध सामाजिक संबंध रह जाता है, कि 'चलो ठीक है मेरी पत्नी है, मुझे जेलना होगा, मेरे पति है, जैसा भी है अब रहना तो साथ है, समाज जानता है इस बात को, कहीं और जाऊंगा तो गाली पड़ेगी इत्यादि इत्यादि लेकिन मन में वह आकर्षण नहीं रहा, वह संबंध नहीं रहा, क्यों? क्योंकि मूलाधार की ऊर्जा को व्यवस्थित करके चलाना उसे नहीं आया । सोचिए कि वह मूलाधार की ऊर्जा हमें इतना भड़काती है, तो जब वह मूलाधार की ऊर्जा पूरी तरह आपके मस्तिष्क पर छा जाएगी तो आपको कैसा बना देगी ? आपको ऐसी-ऐसी कल्पनाओं के उड़ानों में ले जाएगी कि आपको अनेकों चांद, सितारे, ब्रह्म लोक, देवलोक, ईश्वर के लोक, अप्सराओं का नाचना, गंधर्वों का गायन सुनाई देने लगेगा । मुझे हर रोज पता नहीं कैसे-कैसे लोग पत्र लिखते हैं या ईमेल करते हैं या बहुत सारे लोग मेरे पास आते हैं कि, "जी मैं ध्यान कर रहा था, मेरी पीठ में से कुछ उठा ऊपर, रीड की हड्डी में फस गया, अब तब से वह फंसा हुआ ही है, मुझे ना नींद आती है, ना मैं जागता हूं, न सो पाता हूं, मेरे लिए प्लीज कुछ कर दीजिए ।" तो मैं कहता हूं ठीक है, अब उसी व्यक्ति के पास जाओ जिसने तुम्हें यह ध्यान करने की विधि सिखाई थी कि कुंडलिनी ऊपर चढेगी, उसे कहो ना कि अब नीचे उतार क्योंकि जब तक वह उतरेगा नहीं तुम्हारी तो यही दुर्दशा रहेगी । कुछ कहते हैं कि मुझे 24 घंटे सिर में दर्द है, कुछ कहते हैं मुझे ढोल-नगाड़े, चिमटे, शंख, नाद, भूतों की आवाज, चिल्लाने की आवाज सुनाई देती है दिन रात, मैं पागल हो रहा हूं । पागल तो होंगे ही तुम क्योंकि कुंडलिनी उर्जा का मतलब ही है कि जो तुम हो मनुष्यत्व उससे अलग हो जाना, मनुष्य तत्व से अलग हो जाना । मनुष्य समय पर सोता है, समय पर जागता है, समय पर खाता है, समय पर सब कार्य करता है । अब जब कुंडलिनी जागरण हो जाएगा तो तुम मनुष्य नहीं रहोगे ना फिर ! तब तुम सो नहीं सकते? तो फिर अब मेरे पास आ कर क्यों कहते हो कि हम सोना चाहते हैं लेकिन नींद नहीं आती । अब जब कुंडलिनी जागृत हो गई है प्रभु जी ! तो फिर निद्रा कहां से आएगी ? नींद आने के लिए मनुष्य होना जरूरी है और उर्जा का सही केंद्रों में शीत होना जरूरी है । अब तुम्हारी कुंडलिनी तो मस्तिष्क पर आ गई, मस्तिष्क के तंतु अब भिनभिना रहे हैं, झानझना आ रहे हैं तो निद्रा कहां से आएगी ? तो शरीर का संतुलन तो खराब होगा ही ना ? और तुम कहते हो कि कुंडलिनी जागरण से मुझे यह
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