कौलासुर

एक संप्रदाय है ! हिन्दू धर्म का एक ऐसा संप्रदाय जिसे "महाहिन्दू" कहा जाता है । "महाहिन्दू" इसलिए क्योँकि वो केवल एकाध देवी-देवता पर नहीँ वरन् "तैत्तीस करोड देवी-देवताओँ" पर विश्वास करता है, उसे कहते है "कौलान्तक संप्रदाय" या "कौल संप्रदाय" ! हिमालय के नाथ-सिद्धोँ का ये प्रमुख संप्रदाय है । इसी से इस संपूर्ण पृथ्वी की शोभा बढती है कि ये ऐसा संप्रदाय है जो एक ओर आस्तिकता की बात करता है तो दुसरी ओर नास्तिकता की बात करता है ! एक ओर इस पीठ मेँ दैत्य, भूत, प्रेत, गण, राक्षस, कूष्माण्ड, भैरव, बेताल रहते है और दुसरी ओर यहीँ देवता, मनुष्य, गंधर्व, किन्नर, किरात, नाग इत्यादि सुशोभित होते है । इस पीठ के दोहरे पहलू है : एक स्थूल पीठ; जो हिमालय पर्वत के रुप मेँ आपको दिखाई देता है, जितना भी हिमालय पर्वत है सारा का सारा #कौलान्तक_पीठ है ! और एक महाहिमालय है, एक "महाकौलान्तक पीठ" है, जो कि सूक्ष्म हिमालय है, जिसे अदृश्य हिमालय कहा जाता है जो इन चर्मचक्षुओँ से नहीँ देखा जा सकता ! लेकिन यहाँ एक विशेष बात ये है कि, संपूर्ण विश्व को आध्यात्मिक रुप से प्रेरणा देनेवाला, अपनी ओर आकर्षित करनेवाला, बुलानेवाला जो संप्रदाय है वो हिमालय ही है, वो कौलान्तक संप्रदाय ही है । इस कौलान्तक संप्रदाय के योगियोँ नेँ जिनको सिद्ध, नाथ-सिद्ध योगी कहा गया उन्होँने सदियोँ से अनेकोँ धर्मगुरुओँ को अपनी ओर बुलाया है प्रेरणा देकर हिमालय; उन्हे थोडा-बहुत ज्ञान दिया और वापस भेजा धारा मेँ ! कि पुनः समाज मेँ जाओ, संसार मेँ जाओ और इसका भला और कल्याण करो । और जब-जब इस संसार मेँ आततायी और आसुरी शक्तियोँ को बल मिला है, उनको बढावा मिला है और वो सत्ता मेँ आई है, उनको शक्तियाँ प्राप्त हुई है तब-तब इस पीठ नेँ अपने किसी महाबली योद्धा को उनसे निपटने के लिए भेजा है । ये योद्धा अपने-अपने तरीकोँ से युद्ध लडते है ! कोई अस्त्र-शस्त्रोँ से, कोई त्याग-वैराग से, कोई योग से तो कोई युद्ध से, कोई सुदर्शन चक्र से तो कोई त्रिशूल से, कोई अपने वचनोँ से तो कोई अपने दिव्य कर्म और अपनी भूमिका से, प्रस्तावना से । हर युग मेँ धर्म की स्थापना का उत्तरदायित्व लेनेवाले इस कौलान्तक संप्रदाय के मध्य मेँ (जिसे आज तक बहुत कम लोग जानते इसलिए क्योँकि उसे "रहस्य पीठ" कहा जाता है, वो रहस्योँ के आवरण मेँ रहता है ।) उन्होँनेँ ये कहा कि, "कलियुग के आने पर दो ही तत्त्व इस संसार मेँ होंगे; एक है "कौल" और दुसरा है "कौलासुर" । मनुष्य केवल दो ही भागोँ मेँ विभक्त होंगे, या तो वो "कौल" होंगे या वो "कौलासुर" होंगे ! अर्थात् या तो वो "कौलान्तक संप्रदाय" को माननेवाले होंगे "कौलान्तक संप्रदाय" के साथ आगे बढनेवाले होंगे या फिर वो "कौलान्तक संप्रदाय" के विरोधी होंगे ।" जितनी भी ये आध्यात्मिक विरासत है इसे कौलान्तक संप्रदाय ही संचालित करता है । ये हो सकता है कि बहुत से लोग जलन के मारे या डाह के मारे या ईर्ष्या-द्वेष के वश इस बात को मानने से इनकार कर देँ कि उनका कौलान्तक पीठ या कौलान्तक संप्रदाय से कोई लेना-देना है लेकिन वास्तविकता ये है कि इस विश्व का कोई भी धर्म, जाति, संप्रदाय ऐसा नहीँ है जिसका संबंध महाहिमालय या कौलान्तक संप्रदाय से न रहा हो लेकिन खैर हमेँ अपनी मान्यता रखने का अधिकार है, उन्हेँ अपनी मान्यता रखने का अधिकार । लेकिन मैँ यहाँ जो विशेष बात जहाँ आपका ध्यान लाना चाहता हुँ वो है "एक मान्यता" जो मैने आपको बताई कि संपूर्ण पृथ्वी पर केवल दो ही तत्त्व होंगे या तो "कौल" या फिर "कौलासुर" इन दो के अतिरिक्त तीसरा कोई तत्त्व इस सृष्टि मेँ, इस संसार मेँ नहीँ होनेवाला । जैसे जैसे कलियुग प्रगाढ होता जाएगा ये दो विचारधाराएँ बहुत तेजी से विभक्त होने लगेगी । अब प्रश्न ये है कि "कौल" कौन है ? "कौलासुर" कौन है ? क्योँकि "कौल" शब्द से ही आपको लगेगा कि "कौल" कहने का तात्पर्य है "अन्तिम", "सर्वश्रेष्ठ" और "आनंद की, उच्चता की पराकाष्ठा" उस सीमा का समापन जहाँ हो जाए जिसे हम "अच्छाई" कहते है वो #कौल होता है, "महसिद्ध", "परमसिद्ध", "अलौकिक", "अमोघ" और "दिव्य" ! और जो #कौलासुर है, "कौलासुर" का सीधा सा तात्पर्य है "बुराईयोँ से घिरे हुए", "स्वार्थपरायण", "कलहप्रिय", "हमेशा तनाव मेँ रहनेवाले", "नकारात्मक तत्त्वोँ को पैदा करनेवाले", "नकारात्मक तत्त्वोँ के समर्थक", "हमेशा उलटी बातेँ, उलटी खबरेँ फैलानेवाले", "दुषित विचारोँ को संपूर्ण ब्रह्माण्ड मेँ फैलानेवाले" ऐसे लोगोँ को #कौलासुर कहा गया है, क्योँकि वो "कौलासुर" है और "असुर" का तात्पर्य है "नकारात्मक शक्ति" इसिलिए "मार्कण्डेय पुराण" मेँ भी महर्षि मार्कण्डेय कहते है भगवती की स्तुति करते हुए #कौलासुरविध्वंसिनी अर्थात् जो कौल-असुरोँ का वध करनेवाली है और जो कौलोँ के द्वारा पूजित होनेवाली है, "महाकौलाचारिणी" है । जिस भगवती को "कौलाचारिणी" कहा गया, अर्थात् "कौल कुल" के अनुसार जिनकी पूजा-पाठ होती है, "कौल कुल" के अनुसार हम जिनकी स्तुति, स्तवन करते है, "कौल कुल" के अनुसार हम जिनका वंदन करते है वही तो ये "माँ शक्ति" है...और कौल-असुर ? जो "अधर्म" की ओर है ! या तो धर्म है या अधर्म है, दो ही तत्त्व इस संपूर्ण पृथ्वी पर है तीसरा कोई तत्त्व नहीँ इसलिए #कौल का तात्पर्य होता है "श्रेष्ठ", "दीक्षित", "गुरु-प्रदत्त मार्गीय", "गुरु के बताये पदचिन्होँ का अनुसरण करनेवाला", "वेद, पुराण, शास्त्र, आगम, निगम को माननेवाला"।
क्योँकि एक शब्द है #हिन्दू जिसके संबंध मेँ ये कहा जाता है और बहुत सारे लोगोँ को पता ही नहीँ है कि "हिन्दू" शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई है ! कोई कहता है जी सिन्धु घाटी की सभ्यता के कारण हिन्दू है, कोई कहता है इस वजह से हिन्दू है, जबकि "हिन्दू" शब्द की उत्पत्ति "कौल" से ही हुई है ! कौल पंथ पर चलनेवाले व्यक्ति को ही हिन्दू अथवा महाहिन्दू कहा जाता है ! हिन्दू वो है जो सभी तत्त्वोँ का समावेश करता है अर्थात् जो अग्नि की उपासना करता है, जो वायु की उपासना करता है, जो पञ्च प्रधान तत्त्वोँ की साधना-आराधना करता है और उसी के माध्यम से ईश्वर की ओर गति चाहता है । हिन्दू उसे कहते है जो इस संसार मेँ रहते हुए ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, उत्सव, शोक, विरह सबको अनुभव करते हुए भी अपने जीवन के केन्द्रबिन्दू को ईश्वर और ईश्वरत्व पर स्थापित रखे इसलिए हिन्दू होना बहुत अमोघ है । "सिद्ध" होने के बाद ही कोई व्यक्ति हिन्दू हो सकता है और हम लोग अगर हिन्दू है तो ये जीवन की श्रेष्ठता है और मैँ कहता हुँ कि "सिद्ध" होना केवल किसी देशविशेष के नागरिकोँ का ही अधिकार नहीँ है बल्कि "सिद्ध" होने के लिए तो आप विश्व के किसी भी कोने मेँ जाइए, आप किसी भी देश के रहनेवाले ही क्योँ न होँ आप #सिद्ध हो सकते है ! इसलिए इस बात को अपने झहन मेँ बिठा लीजिए कि यदि आपके अंदर वो गुण है, आप यदि ईश्वर को प्राप्त करना चाहते है, यदि आपका ईश्वर मेँ विश्वास है और आप ईश्वर की सत्ता को स्वीकारते है और आप सभी कलाओँ को स्वीकारते है गीत, संगीत, साहित्य, ललितकलाएँ, इतिहास कुछ भी जो भी आपने संसार मेँ देखा हो विज्ञान भी; यदि सभी तत्त्वोँ को स्वीकारते है तो आप निश्चित ही आप "सिद्ध" है और वही "कौल" है । "कौल" का तात्पर्य है "कुलीन" अर्थात् जो सभी का सम्मान करना जानता हो । "कुलीन" व्यक्ति कौन होता है ? जो अपने "कुल" को मर्यादा के अनुसार आगे बढाए; जो अपने राष्ट्र को, विश्व को एक अच्छे पथ पर ले जाना चाहेँ; और वो जो सुख-शान्ति बाँटते हुए, आत्मचिन्तन करते हुए ईश्वर के पथ पर जाये उसे ही हमारे कुल मे "कुलीन" कहा जाता है और "कौल" का तात्पर्य है "आखरी", "अन्तिम" ! इस पृथ्वी का अन्तिम मनुष्य ही "कौल" कहलाता है क्योँकि ये कहा गया कि हर व्यक्ति जो शक्ल से मनुष्य जैसा दिखता है वास्तव मेँ वो "मनुष्य" होता नहीँ है और विदेशोँ मेँ तो ऐसा मैने सुना, किताबोँ मेँ भी पढाया जाता है कि बन्दरोँ से वो इन्सान बने है ! मुझे तो नहीँ लगता इन्सान बने भी है अभी तक तो बहुत सारे बेचारे बीच मेँ ही लटके है लेकिन हमारे यहाँ ऐसा नहीँ होता है ना ! इस बात को दिमाग मेँ बिठा लेना ! हमारे यहाँ पहले से ही हम मनुष्य है और मनुष्य ही रहेंगे, ये बन्दर- बन्दर बीच मेँ आते-जाते रहते है हम इनकी चिन्ता नहीँ करते क्योँकि आज भी बन्दर मेरी दृष्टि मेँ बन्दर ही है । तो "अन्तिम मनुष्य" अर्थात् इस सृष्टि का अन्तिम मनुष्य "कौल" कहलाता है क्योँकि शक्ल से भले ही मनुष्य जैसे सब दिखे लेकिन उनके अंदर जो मानवीय तत्त्व है, जो जो मानवीय गुण है, जो कलाएँ है, जो सौष्ठव है, जो उसकी पराकाष्ठा है, जो उसका आनंद है, जो उसकी मस्ती है, जो उसका आह्लाद है वो सब तो नष्ट हो जाते है मनुष्य मेँ ! जीवन मेँ प्रेम, सहिष्णुता, सौहार्द, भ्रातृत्व, स्नेह ये गुण तो रहे ही नहीँ और ये गुण केवल कौलोँ मेँ होते है ! कौल अर्थात् श्रेष्ठ ! और कौलाचारी, कौलान्तक संप्रदाय के साधक, भैरव, भैरवियाँ और इस संसार मेँ जो भी व्यक्ति इस संप्रदाय को मानता है ये विश्वास ऋषि-मुनियोँ का रहा है कि वही लोग #कौल है ! हालाँकि मेरी परिभाषा बहुत छोटी और सिमटी हुई है देखना, इसे आप अनेको प्रकार से वर्गीकृत कर सकते है । प्रश्न नं 1. क्या अगर कोई हिन्दू धर्म को नहीँ मानता और वो अच्छा और कुलीन नहीँ हो सकता ? और वो यदि अच्छे नियमोँ का पालन करता है सत्य, अहिंसा, त्याग, अपरिग्रह, प्रेम, आस्तेय इत्यादि तो क्या वो हिन्दू नहीँ है ? हम तो कहते है वो हिन्दू है भले ही वो किसी जाति, संप्रदाय, लिंग, वर्ण और किसी भी प्रकार का गोत्र का हो । तो शास्त्र कहता है "सत्य" की ओर जो जाये वो कौल है, वो सिद्ध है और जो "षड्यन्त्र" की ओर जाये...जैसे मान लीजिए एक कोई बेचारा कौल सिद्ध साधक अपने पथ पर बढ रहा है लेकिन लोग ये बताने के लिए कि न ये आदमी तो बहुत गलत है, उसके खिलाफ षड्यन्त्र करेंगे, उसके खिलाफ न जाने कैसी-कैसी बातेँ करेंगे और ये कहेंगे कि, "देखिये ! ये व्यक्ति अपने आपको सच्चाई का पूजारी कहता है लेकिन सत्य से दूर-दूर तक इस व्यक्ति का कोई लेना-देना नहीँ ।" तो आप समझ गये ! उस व्यक्ति को जो षड्यंत्र के तहत वो नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे है वही लोग दुष्ट है, वही लोग #कौलासुर है और #कौलासुरविध्वंसिनी अर्थात् वो शक्ति जो इन सब का विध्वंस करेगी; वही "माँ शक्ति" है और वो इस अद्भूत रणनीति के तहत इनका विध्वंस करेगी कि इन्हेँ खुद ही पता नहीँ चल पायेगा ! ये अपने महानगर बसाते जा रहे है, तो बसाओ; लेकिन एक दिन यही महानगर तुम्हारे अन्त के कारण बन जायेंगे इसलिए तुम्हेँ चाहिए कि तुम इस बात का निर्णय आज ही कर लो कि क्या तुम "कौल" हो या तुम "कौलासुर" हो । कौलासुर का तात्पर्य मैंने आपको पहले ही बता दिया, "नकारात्मक तत्व" । अपने भीतर नकारात्मकता ना आने दो क्योंकि ठीक उसी समय, उसी दिन, उसी क्षण तुम्हारा पतन शुरू हो जाता है जब तुम हीन भावनाओं से भर उठते हो, अपना विश्वास खो देते हो, ईश्वर के पथ को तुम नकार देते हो और अपने अस्तित्व को परम अस्तित्व मानना शुरू कर देते हो और एक बात सुन लीजिए, ईश्वर हो या नहीं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन इस बात से फर्क पड़ता है कि क्या आप अहंकारी है या नहीं ।