इस प्राणायाम को करने की रीती को भली भांति देख ले ।
इस प्राणायाम को करने के लिए आपको दोनों नासिका उसे धीरे-धीरे श्वास भीतर भरना होता है और भीतर उस श्वास को ले जाकर पेट में एकत्रित करना पड़ता है एकत्रित करने के बाद गर्दन को पीछे कर दिया जाता है और मुख को खोल दिया जाता है और श्वास को पेट में ही रोक कर रखा जाता है और जब तक रक्त मस्तिष्क तक ना पहुंचे तब तक पीछे रहते हैं और धीरे-धीरे आगे होने के बाद स्वास्थ्य छोड़ दिया जाता है । यह है मूर्छा प्राणायाम ।
इस प्राणायाम को करते ही आप पाएंगे कि संपूर्ण रक्त आपके मस्तिष्क तक चढ गया है और पुनः जब आप आगे झुकते हैं तो सारे शरीर में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है । आपको मूर्छा सी आनी प्रतीत होती है । यह मूर्छा प्राणायाम है और मंत्र साधक इसे किया करते हैं ।
- महासिद्ध ईशपुत्र
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