हिमालय सुदूर पर्वत श्रृंखलाओं के रूप में आदि काल से स्थित है। भारतीय धर्म, अध्यात्म और प्रकृति की अनन्यतम विरासत है हिमालय। इनकी जीवन यात्रा अनूठी होती है। इनको क्रियाओं का ज्ञान अद्भुत होता है। प्रकृति के सुरम्य परिवेश में ये योगी भिन्न भिन्न साधनाएं करते हैं और भिन्न भिन्न चेष्टाएं करते हैं; जिन्हें तप कहा जाता है। ये तप कि जीवनशैली बहुत ही अनूठी है। योगी विशेष वृक्षों के पत्तों को एकत्रित कर धुना रमाते है और इस धुने से उठनेवाके धुएं से अपनी बाह्य देहशुद्धी करते हैं। ऐसी धारणा है कि देह भी बाहर से अशुद्ध होती है जिसे औषधियों से उठानेवाला धुआं शुद्ध करता है; जिसके परिणास्वरूप साधक देह की पवित्रता को अनुभूत करता है। घंटों धुएं के भीतर समाधि लगाई जाती है और लगातार प्राणायाम किया जाता है; साथ ही मंत्र और धारणा का भी सहारा लिया जाता है, ताकि साधक अपने आप को परम तप के लिए तैयार कर सके। योगियों का सर्वप्रथम नियम है कि वे एक स्थान पर स्थित रहकर साधना नहीं करते; वे ऋतु और समय के अनुकूल भ्रमण करते रहते हैं; इन्हें शिक्षा दी जाती है कि, जितना हो सके उतना प्रकृतिमय जीवन जिया जाए, यही कारण है कि योगी योगी हमेशा अपनी साधना किसी झील, तालाब, पोखर, नदी नाले, पर्वत, कंदरा, गुफा अथवा पठार पर ही करता है। शरीर को कष्ट सहने के लिए तैयार किया जाता है ताकि योगी कठोर अनुशासनात्मक साधना प्रणाली में खरा उतर सके। कहते हैं व्यक्ति का विकास उसके वातावरण, जल, भोजन और रहन सहन पर निर्भर करता है; ठीक उसी प्रकार साधक का जीवन भी इन्हीं सब पर टिका है, क्योंकि जब तक साधक प्रकृति में रहकर अथवा तप करके अपनी चेतना को विकसित नहीं करता तब तक आत्मानुभूति सहज नहीं होती।
- महासिद्ध ईशपुत्र
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