अक्षर भैरव जी : आयुष मंत्रालय नेँ एक पुस्तक जारी की है जो प्रेग्नेन्सी के लिए है और उसमेँ बडा गंभीर कुछ बिंदु है । आपको इसके विषय मेँ जानकारी होगी ।
ईशपुत्र : हाँ बिलकुल, अचानक ये मामला मेरी भी नजरोँ के सामने आया है और बडा ही एक ऐसा मुद्दा है जिसको अचानक से इस तरह से प्रस्तुत किया जा रहा है कि मान लीजिए इस देश मेँ कुछ सरकार नेँ या कुछ आयुष मंत्रालय नेँ कुछ ऐसा अनैतिक कार्य कर दिया है कि मान लीजिए इस विभाग को उसके लिए माफी मांगी जानी चाहिए । इस तरह का रुख ये कुछ एक मीडिया का एक बडा हिस्सा है जो इस तरह से इसको दिखा रहा है । अक्षर भैरव जी : तो ईशपुत्र ! इन बिंदुओँ मेँ कई ऐसे बिंदु है जिसमेँ समझ नहीँ आता कि अच्छाई क्या है, बुराई क्या है ? जैसे एक बिंदु मेँ कहा गया है कि, "नशा न करेँ" और "सेक्स न करेँ" और एक "बडा ही सरल जीवन बिताएँ" इस पे आपका क्या विचार है ?
ईशपुत्र : देखिए, हमेँ पहले तो ये ठीक-ठीक देखना होगा की मुद्दा क्या है । देखिए यहाँ पर भारत के बहुत बुरे हालात है आजकल, कारण ये है कि भारत मेँ दो पक्ष बन गये है, एक ऐसा पक्ष भारत मेँ बडी प्रबलता से उभर रहा है जो किसी भी धर्म को नहीँ मानता, उनको धार्मिक तथ्य या चीजेँ या बातेँ चाहिए ही नहीँ लेकिन इसे सौभाग्यवश या दुर्भाग्यवश ये मुझे भी नहीँ पता कि आयुर्वेद जो कि धर्म का ही एक हिस्सा है ! आप उसको अलग नहीँ कर सकते, वो सौभाग्यवश या दुर्भाग्यवश #हिन्दू धर्म का एक हिस्सा है और उसे भारत सरकार के "आयुष विभाग" नेँ ले लिया और आपको तो मालूम है उसमेँ योग भी है, आयुर्वेद भी है और सिद्धा ये जो पैथी है हम सिद्धोँ की, वो भी उसके अंदर सम्मिलित है; उसमेँ नेचरोपैथी इत्यादि ये सभी इन चिकित्साओँ को एक उपचिकित्सा के रुप मेँ उसको स्थान दिया गया है । लेकिन ऐलोपैथी वाले वो आयुर्वेद और इन चीजोँ कोँ मानने को तैयार ही नहीँ है क्योँकि वो बार-बार सायन्स का हवाला देते है, तर्क करते है और बेचारे जो आयुर्वेद से जुडे लोग है वो इस तत्त्व को समझ नहीँ पाते । तो जो लोग धर्म का विरोध करनेवाले है और यहाँ पर भी मैँ आपको बता दुँ मीडिया से ये खबरेँ आयी होंगी आप तक मुझे लगता है, आपने मीडिया से ही सुना होगा ना ?
अक्षर भैरव जी : जी
ईशपुत्र : जी, तो देखिये मीडिया के बारे मेँ मैँ बता दुँ यहाँ पर दो हिस्सोँ मेँ मीडिया बँटी हुई है । पहली वो मीडिया है जो धर्म को और इस राष्ट्र की संस्कृति को साथ लेकर चलना चाहती है और एक बडा ऐसा एक वर्ग है मीडिया का जो किसी भी कीमत पर हिन्दू धर्म को, धर्मप्रमुखोँ को, आयुर्वेद को, योग को, ज्योतीष को इन चीजोँ को पाखण्ड साबित करना चाहते है और तरह से इसकी वैज्ञानिक आधारभूमि है ही नहीँ ये साबित करना चाहते है । अक्षर भैरव जी आप स्वयं एक योगी है, "महायोगी" की पदवी तक आपको प्रदान की गयी है, क्या आपको ये नहीँ लगता, इसकी टाईमिंग को लेकर आपको संदेह नहीँ पैदा होता कि अभी "योग दिवस" आनेवाला है और अचानक ये कोन्ट्रोवर्सी निकली जबकि ये पुस्तक तो पुरानी है !
अक्षर भैरव जी : बिलकुल जी, ये लगभग तीन साल पहले पुस्तक आयी थी और अभी हप्ता ही रह गया है "आन्तरराष्ट्रीय योग दिवस" के लिए । तो इसमेँ ईशपुत्र जो विचार रखेँ गये है पुस्तक मेँ वो देखने मेँ और अभ्यास करने मेँ बडे ही पॉजिटिव है, तो फिर क्या कारण है कि इतनी नकारात्मकता मीडिया मेँ और फ्रंट पेज पे ये न्यूज चल रही है ?
ईशपुत्र : देखिये आप इसमेँ भी एक चीज ध्यान रखियेगा । हिन्दी मीडिया इसको बहुत ज्यादा कवर नहीँ करेगा । हिन्दी मीडिया का कुछ ऐसा हिस्सा है जो उसको कवर करेगा लेकिन ईंग्लिश मीडिया और खास कर कि जो नये किस्म के ब्लोग, ब्लोगर्स निकले है; नयी किस्म की वेबसाईट्स निकली है वो इन मुद्दोँ को ज्यादा उठायेंगी, उसका कारण क्या है ? क्योँकि वो सब के सब कहीँ न कहीँ उनकी उत्पत्ति हिन्दू धर्म विरोधी है और जैसे ही आप ये बात कहेंगे तो वो कहेंगे, "देखिये जी, ये तो मीडिया पर अटेक कर रहे है । मीडिया पर हमला कर रहे है ।" भई आप मीडिया हो भगवान तो नहीँ और मीडिया गलत आदमी भी तो संचालित कर सकता है और दुसरी बात कि क्या मीडिया केवल हिन्दू धर्म को हानि पहुँचाने के लिए या मान्यताओँ को हानि पहुँचाने के लिए ही है ? खैर मैँ इन तर्कोँ पर नहीँ जाता हुँ, सीधे-सीधे आपके प्रश्नोँ का जवाब दुंगा । देखिये उन्होँनेँ कहा, जो आयुष विभाग की गाईडलाईन्स है वो क्या है ?
अक्षर भैरव जी : गाईडलाईन्स है जी ।
ईशपुत्र : हम्म वो कोई लॉ नहीँ है और वो एक नियमावलि है और वो कहाँ से उत्पन्न हुई ?आयुर्वेद से उत्पन्न हुई है । पहले आपके प्रश्न का जवाब कि, क्या आयुर्वेद शाकाहारी या माँसाहारी भोजन की महिमा गाता है ? तो मैँ आपको खुद बता दुँ कि आयुर्वेद शाकाहार की महिमा अवश्य गाता है लेकिन सारी की सारी आयुर्वेदिक औषधियाँ शाकाहारी नहीँ होती । उसमेँ सारी ऐसी औषधियाँ है जिसको आप शुद्ध शाकाहार कह ही नहीँ सकते लेकिन बावजूद इसके माँसाहार को निषिद्ध कहा गया है, कारण ये है कि वो केवल जिन ऋषि-मुनियोँ ने उन ग्रंथोँ को लिखा है वो केवल इस बात तक सीमित नहीँ है कि आप क्या औषधि खा रहे हो ! आप क्या भोजन खा रहे हो ! वो इस बात पर भी अपने आप को ऋषि-मुनि बताते है कि, "आपके ह्रदय मेँ दया होनी चाहिए ।" किसके प्रति ? "जीव-जंतुओँ के प्रति दया होनी चाहिए ।" तो "दया" का भाव प्रमुख होने के कारण आयुर्वेद की संहिता दया पर आधारित है इसलिए अगर आप कहते है कि, "मुझे अंडा खाना चाहिए या माँसाहार करना चाहिए" तो आयुर्वेद उसे बुरा ही मानेगा और मोडर्न मेडिकल सायन्स कहेगी, "अरे ये लोग तो बेवकूफी भरी बातेँ करते है" क्योँकि आप डॉक्टर्स को देखियेगा, मोडर्न डॉक्टर्स को । मेरा एलोपैथी से कोई झगडा नहीँ है लेकिन मैँ उनके एट्टीट्युड की बात कर रहा हुँ कि कितने मनहूस किस्म के कुछ डॉक्टर्स है, सभी नहीँ । हमारे पास बहुत सारे ऐसे आयुर्वेदिक डॉक्टर है और बहुत सारे एलोपैथी के डॉक्टर है जो बेचारे सही परंपरा को जानते है, वो झगडा नहीँ करते । लेकिन ये इस तरह से दिखावा करेंगे, नोटंकी करेंगे कि जैसे मान लीजिए कि, अगर अंडा नहीँ खाया या माँस नहीँ खाया तो आपके अंदर प्रोटीन की इतनी भयंकर कमी हो जायेगी कि पूछिए मत ! वो मालन्यूट्रीशन की बात करेंगे, कहेंगे, "भारत मेँ पचास प्रतिशत बच्चे और लोग जो है वो एनेमिक है । एनिमिया से जूझ रहे है लेकिन किसने कहा कि माँसाहार ही केवल प्रोटीन का एकमात्र साधन है ? अगर आप मुझे ये सिद्ध कर के दिखा देँ कि केवल माँसाहार ही प्रोटीन का साधन है, अन्य चीजोँ मेँ प्रोटीन नहीँ है तब मैँ भी आपके पक्ष मेँ आ जाऊँगा; मैँ कल से कहुँगा माँसाहार कीजिए । क्या आपके पास कोई ऐसा तरीका है ? जब प्रश्न किया जायेगा तो इनके पास तरीका नहीँ है । तो आप देख लीजिए आयुर्वेद नेँ माँसाहार और शाकाहार मेँ से शाकाहार को सिर्फ माता के लिए या गर्भस्थ औरत के लिए ही नहीँ; पुरुष हो या स्त्री हो, बडे हो या बुढे हो, छोटे हो या जवान हो कोई भी हो शाकाहार को प्राथमिकता देने को कहा है और वो भी अयुर्वेद भी वहाँ आपको "गाईडलाईन्स" ही दे रहा है, यानि के ऋषि-मुनि आपको "सुझाव" ही दे रहे है । ऋषि-मुनि ऐसा नहीँ कर सकते कि आपकी गरदन पर बंदूक ला कर रख देँ और कहेँ कनपटी पे बंदूक रख के कि, "ये अखंड नियम है, इसे मानना ही पडेगा ।" तो ये तो मुरखता है और जो मीडिया का एक वर्ग इसको उठा रहा है इनको मरोड उठता है पेट मेँ । इनसे बर्दाश्त नहीँ होता कि भारत के और विशेष तौर पर हिन्दू धर्म की कोई ऐसी बात...योग हिन्दू धर्म से निकला है, कब से झगडा चल रहा है कि, "ॐ" को अलग कर दिया जाये; क्योँ ? ताकि ये दिखाया जाये कि हिन्दू धर्म से योग का कोई लेना-देना नहीँ झूठ है ये सब । किसी भी इतिहासकार को पूछ लीजिए कहीँ से भी आप इसकी तलाश कीजिए, #हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग है #योग और उससे सबको लाभ मिलता है इसमेँ कोई दोराय नहीँ और ये "धर्म" का ही अंग रहेगा और वैसे ही #आयुर्वेद और आपने देखा होगा कि इस मुद्दे को लेकर बडी थू-थू हो रही है अभी विभाग की । वो तो होगी ही क्योँकि इनके पास तर्क ही नहीँ है, ये जानते ही नहीँ है कि क्या कहा जाना चाहिए और ये वैज्ञानिकता के तर्कोँ के सामने चूपचाप ओँधे मुँह पडे रहते है इसलिए इनको लोग चारोँ तरफ से घेर रहे है लेकिन याद रखिये केवल ये एक प्रोपगेन्डा है और इसलिए है क्योँकि "योग दिवस" आनेवाला है । किसी भी तरह योग के नाम पर, भोजन के नाम पर, पुस्तकोँ के नाम पर ये एक ऐसी छवि बनाने की कोशिश कर रहे है ताकि धर्म-अध्यात्म और योग की बढती क्रान्ति को रोका जा सके ।
अक्षर भैरव जी : एक और बडा विचित्र बिन्दु है ईशपुत्र ! कि इतने सारे जो इन्होनेँ पॉईन्ट्स दिये है उसमेँ सिर्फ माँस और यौन सम्बन्धोँ को ले के बडी बात हुई है । बाकी जो इतनी सुंदर बातेँ की गयी है जैसे घरोँ मेँ सुंदर तसवीरेँ लगाई जायेँ, जो आदर्श है उनके बारे मेँ पढा जायेँ....
ईशपुत्र : (बात को बीच मेँ से अटकाते हुए) आप उसको भी जरा सुन लीजिए । इनसे तो वो भी बर्दाश्त नहीँ हो रहा । ये कह रहे है कि ये तो धार्मिक और नैतिकता थोपने की होड मेँ है क्योँकि उनको लगता है कि अभी बीजेपी की सरकार देश मेँ है तो इस वजह से ऐसा किया जा रहा है । देखिये यहाँ पर सरकारोँ से कोई लेनादेना नही है । हमारे पीछे चलनेवाले या धर्म को माननेवाले सिर्फ बीजेपी के ठेकेदार नहीँ है । यहाँ पर बीजेपी हो या कोंग्रेस हो या कोई भी पार्टी हो यहाँ धर्म सभी का है और सभी को धर्म को मानने की स्वतन्त्रता है और धर्मप्रमुखोँ का कार्य है कि राजनीति से दूर रहेँ । राजनीति से उनको अलग रहकर अध्यात्म को आगे लेकर जाना चाहिए, सीधी सी बात है लेकिन यहाँ पर ऐसी राजनीतिक पार्टीयाँ इस देश मेँ पनपी है जिनके अपने मीडिया हाउस है और वो इस तरह का प्रोपगेन्डा करते है और अगर आप उनको कहेँ कि आप अपना प्रोपगेन्डा क्योँ थोप रहे है ? तो वो बिगड जायेंगे ! आपने देखा होगा कि वो फिर आपको बोलने ही नहीँ देंगे, चिल्लाकर बात करते है और एँकर्स का उनका जो अनुशासन या उनका जो अपना धर्म था उनके अपने लॉस थे उनको तो वो पहले से ब्रेक कर चूके है । अपनी इज्जत तो उनकी है नहीँ वो दुसरे लोगोँ को भी नहीँ बोलने देते । अब मैँ आपके कुछ बिन्दुओँ पर बात करता हुँ । देखिये सबसे पहले उन्होँने कहा कि, "महिलाओँ को सेक्स नहीँ करना चाहिए ।" "आयुष मंत्रालय" को ऐसा नहीँ है कि वो अपनी मर्जी से कह रहे है ! जो प्राचीन ग्रंथोँ मेँ लिखा गया वो उन्होँने कहा लेकिन ग्रंथ से जो "सूक्ति" निकाली गयी वो कभी भी पूर्ण नहीँ होती है । आप देखिये भारत मेँ योग है; एक ही आसन को कईँ तरीके से करने की राय अलग-अलग ऋषि देते है । वैसे ही किसी ऋषि को अगर आप आयुर्वेद मेँ पढ लीजिए वो कहेगा कि भोजन से पहले जल पीना चाहिए, कोई कहेगा कि भोजन के साथ जल पीना चाहिए, कोई कहेगा कि भोजन के बाद ही जल पीना चाहिए अन्यथा ये रोग उत्पन्न होंगे । तो वो ऋषि अपनी-अपनी सम्मति देते है लेकिन आप जब भी योग को सीखेँ, आयुर्वेद को जानेँ तो आपको ये जो "सलाह" है (इसको "सलाह" कहा जाता है ।) लेकिन उस सलाह के बावजूद आपको चिकित्सक के पास ही जाना पडता है, योगाचार्य के पास ही जाना पडता है क्योँकि योगाचार्य आपको देखकर, आपके शरीर मेँ वात, पित्त, कफ इत्यादि आपके शरीर मेँ आपका सिस्टम कैसा है इसको जाँचकर ही वो राय देगा कि आप इस योग को करेँ अथवा ना करेँ । वैसे ही कामाचार के उपर भी वात्स्यायन जैसे ऋषि है, अनेकोँ ओर भी ऋषि है, काश्मीर मेँ कोक जैसे ऋषि हुए "कोकाशास्त्र" जिन्होनेँ लिखा है, ये ज्ञात ऋषि है लेकिन इनके अतिरिक्त हमारी कौलान्तक पीठ जैसी परंपराओँ मेँ अनेकोँ ऐसे ऋषि और अनेकोँ ऐसी योगिनियाँ है और अनेकोँ ऐसी कुछ योनियाँ है जिन्होँने कामाचार के विषय मेँ मनुष्योँ को ज्ञान दिया है, देवताओँ के ऐसे कुछ "कुल" है । उसमेँ भी कभी भी आपको एकसमानता नहीँ मिलेगी, एक व्यक्ति कोई दुसरी बात कहेगा, दुसरी व्यक्ति दुसरी बात लेकिन आपको ये जो चीजेँ बताई जाती है शास्त्र मेँ ये गाईडलाईन होती है, उसके बाद कहा जाता है कि, गुरु के पास, वैद्य के पास, योगाचार्य के पास आपको जाकर सही राय लेनी होती है । तो वो आपको इसके बारे मेँ सही राय देंगे । देखिये यदि आपको सही रीति से कामाचार कैसे किया जाना चाहिए इसकी जानकारी नहीँ है तो आपको हानि पहुँचेगी या नही ? अक्षर भैरव जी : बिलकुल
ईशपुत्र : तो आप कहते है कि इसके लिए वैज्ञानिकोँ के पास जाओ । तो वैज्ञानिक क्या करते है ? स्टडी करते है, हजार लोगोँ पर स्टडी करते है कि ऐसा करने के बाद क्या होगा ? फिर एक "औसत रुल" निकालकर देते है । याद रखिये सायन्टिस्ट कोई भी व्यक्ति "एक" ऐसा रुल नहीँ बता सकता कि ये जो मैने नियम बता दिया है कि, "सेक्स करना ठीक है ।" कोई भी वैज्ञानिक, कोई भी डॉक्टर मेरे सामने आकर ये कह दे कि, "हाँ, ये युनिवर्सल Truth है ।" सवाल ही पैदा नहीँ होता । बेवकूफीभरी बात ऐसी कोई करेगा नहीँ क्योँकि हजारोँ-लाखोँ मेँ से कोई एक व्यक्ति ऐसा निकल ही आयेगा जिसको इस प्रकार यौनाचार की क्रियाओँ मेँ, वासना के समय या कुछ करते हुए उसके साथ कुछ बुरा घटित हो जाये । तो ये पर्सन टु पर्सन वॅरि करता है; सबसे पहली बात तो ये है और फिर आयुर्वेद और इस प्रकार के सिद्धांतोँ को समझने के लिए भी आपके पास मस्तिष्क और खोपडी तो आपको दी है ना ? अक्षर भैरव जी : बिलकुल #ईशपुत्र : तो ये वास्तव मेँ सिर्फ योग को बदनाम करने के लिए ये बात कही गयी है । देखिये यौनाचार के विषय मेँ मैँ कह दुँ, यौनाचार करने की जो पद्धति है, ऋषि परंपरा है उसके पीछे । अक्षर भैरव जी : जी #ईशपुत्र : वहाँ ये बताया जाता है गुर-शिष्य परंपरा मेँ कि किस-किस.... आप बताईए की कि कामशास्त्र मेँ इतने आसन क्योँ बताये गये है ? वासना मेँ जाने के ? क्योँकि किस रोग के समय, किस परिस्थिति मेँ किसी गृहस्थ व्यक्ति को किस प्रकार से अपनी पत्नी के साथ सम्बन्ध बनाना चाहिए ? कौनसा पोश्चर किसके लिए ठीक रहेगा इसलिए आसन बनाये गये है; मोटे व्यक्ति के लिए अलग, पतले व्यक्ति के लिए अलग, अलग-अलग व्यक्ति के अनुसार आसन है । तो गर्भावस्था मेँ.. यहाँ तक कि सम्बन्ध स्थापित करने की भी पद्धतियाँ है ! आप यदि उस पर बहस करना चाहते है तो आइए ना, मुझे बहस पे बुलाइए मैँ बताता हुँ ठीक ! और ये भी छोड दीजिए आप, #कामशास्त्र की बात यहाँ हो गयी, समझ मेँ आ गया होगा आपको भी और हमारे श्रोताओँ को भी कि ये कोई Universal नियम नहीँ है । आप गर्भावस्था मेँ भी सम्बन्ध स्थापित कर सकते है लेकिन कैसे ? क्या उसकी परंपरा है ? ये भी शास्त्रोँ मेँ वर्णित है लेकिन आपको उसकी तलाश करनी पडेगी ठीक और यहाँ सबसे प्रमुख बात ये भी है कि ये लोग जो अपनी बातेँ थोपना चाहते है वो किसी भी तरह थोपेंगे । अब जिस व्यक्ति नेँ बहस ही करनी है, बकवास करनी है वो तो कुछ भी करके करेगा तो वही बहस, वही बकवास आजकल "न्यूज एँकर्स" करने लग गये है, अपनी परंपराओँ को थोपने के लिए; क्लिअर ।
अक्षर भैरव जी : बिलकुल ईशपुत्र : तो आपको वासना के बारे मेँ कंप्लिट हो गया ?
अक्षर भैरव जी : जी बिलकुल #ईशपुत्र : अब दुसरी बात, इन्होँनेँ तो कुछ चेनल्स नेँ आपनेँ कहा कि, उन्होँने कुछ अच्छी बातेँ कही है कि घर मेँ महापुरुषोँ की जीवनी पढे, तसवीरेँ लगाएँ और कुछ मीडिया हाउस तो इसके भी विरुद्ध रहेंगे ! आप चिन्ता ना करे, आप उनको देखते रहिए अभी :-) उसका कारण ये है कि, उनसे बर्दाश्त नहीँ होगा कि, "अरे ! महापुरुषोँ की जीवनी पढे ! और आध्यात्मिक विचार रखेँ !" उनको तो #धर्म और #अध्यात्म के नाम से ही तो प्रोब्लेम है । वहाँ लिखा है, "अच्छे लोगोँ की जीवनी पढे ।" अक्षर भैरव जी : जी । #ईशपुत्र : और वो खुद "अच्छे" है नहीँ । अक्षर भैरव जी : जी । #ईशपुत्र : और आपने कहा कि "अच्छे लोगोँ" की पढेँ; तो उनके अंदर की बुराई ये सुन कैसे लेगी ? उनसे बर्दाश्त नहीँ होगा क्योँकि वो पैदाईशी बुरे है । वो अच्छा पक्ष आपने रखा, उसके खिलाफ बोलने के लिए हमेशा खडे ही है, तैयार रहेंगे । वो आपकी बात नहीँ सुननेवाले इसलिए उन्होँने "मीडिया हाउस" खडे कर रखेँ है और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का रोना रोयेंगे । उन्हीँ की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता नहीँ है यहाँ । अक्षर भैरव जी : जी । #ईशपुत्र : तर्क करने के लिए हम तैयार है । कौन घबराता है यहाँ ? समझ मेँ आया ? अक्षर भैरव जी : जी । #ईशपुत्र : तो वो इसका भी खण्डन करेंगे जबकि मैँ आपको बता दुँ, मॉडर्न सायन्स को भी अगर आप पढेंगे, मॉडर्न सायन्स मेँ भी जो "ह्युमन सायकोलॉजी" है वो ये कहता है कि यदि किसी चित्र से, किसी घटना से, किसी वस्तु, किसी परिवेश से आपको अच्छा महेसूस नहीँ हो रहा उन तमाम चित्रोँ को हटा दीजिए । तो आपको ऐसे चित्र रखने चाहिए जो कि आपको विश्राम देते होँ । उसका मतलब ये नहीँ है कि वो केवल मेरी तसवीर होँ या किसी गुरु की तसवीर होँ; वो किसी पक्षी की तसवीर भी हो सकती है, वो किसी वृक्ष की तसवीर भी हो सकती है, वो किसी पर्वत की तसवीर भी हो सकती है, आपको अच्छे वातावरण मेँ रहना चाहिए । और आयुर्वेद के कुछ सिद्धान्त जिसका इनको पता नहीँ है, आपको बुरे लोगोँ से दुर रहना है, तो ये तो सही ही बात है । अगर नकारात्मक विचार दिमाग मेँ आयेंगे उससे आपके स्वास्थ्य को हानि पहुँचेगी और हम चाहते है कि जो स्त्री माँ बननेवाली है, कदापि वो किसी किस्म के तनाव मेँ ना रहे; तो उसमेँ बुरा कहाँ है ? ये ह्युमन सायकोलॉजी है । स्टडी कीजिए ह्युमन सायकोलॉजी । अगर किसी मॉडर्न डॉक्टर को जो चिल्लाकर बात करना चाहता है, मैँ चिल्लाने को तैयार हुँ; आये मेरे सामने ! बात कर लेते है । चलिए मॉडर्न सायकोलॉजी पे ही बात कर लेते है, #धर्म को छोड दीजिये । और रही फूड चयन की बात, कि अभी तक वो कहते है कि ऐसा कुछ भी नहीँ है कि सिर्फ आप शाकाहार की तरफ प्रेरित होँ । मैँ उसके लिए भी बहस करने के लिए तैयार हुँ । दया नाम की कोई चीज है या नहीँ ? अक्षर भैरव जी : बिलकुल #ईशपुत्र : तो ऐसी चीजेँ है, ये केवल एक प्रोपगेन्डा है, आयुर्वेद मेँ इस तरह से जो बातेँ बता रहे है, चित्र इत्यादि ये सब । आप इन सब चीजोँ से व्यथित न होँ । और #योग को #Yoga के नये रुप मेँ विश्वभर मेँ ख्याति मिली है; ये इनसे सहन होगी ही नहीँ । अभी आप देखते रहिए #YogaDay के नजदीक-नजदीक ये कितनी बहस इस मुद्दे पर करेंगे और पूरी दुनिया मेँ ऐसा माहौल बनाने की कोशिश करेंगे कि लोग #योग न करेँ लेकिन याद रखिये योग की क्रान्ति शुरु हो चूकी है, तुम्हारे जैसे लाखोँ लोग भी आ जायेंगे ये क्रान्ति रुकनेवाली नहीँ है । आयुर्वेद को भले ही आप ये कह देँ कि ये सायन्टिफिक नहीँ है, ये ऐसा नहीँ है, ये वैसा नहीँ है लेकिन पूरी की पूरी पश्चिमी की दुनिया भी इसे मान रही है और पुरा संसार इस समय #आयुर्वेद को अपना रहा है और ये मैँ एक बात बता दुँ; ये कहते है कि इसलिए शाकाहार मत कीजिए क्योँकि उसके अंदर आज तरह-तरह के पेस्टेसाईड्स है, केमिकल्स है ! तो भाई ! मुझे एक प्रश्न का जवाब दीजिए, क्या किसी ऋषि-मुनि नेँ कहा था DDT का छिडकाव करो ? किसी नेँ कहा था क्या ? आपकी मॉडर्न साइन्स नेँ ही कहा कि नहीँ कहा ? उन्होँनेँ ही ये छिडकाव करने की आपको ये सारी जो स्प्रे है, जो केमिकल्स है, कौन ले के आया ? मुझसे बहस कीजिए ना इस मामले मेँ । तो वही इनकी बताई हुई इसी विज्ञान नेँ, कभी आपकी सरकारोँ नेँ, आपके ही लोगोँ नेँ, आपके ही वैज्ञानिकोँ नेँ इन चीजोँ को खोजा और हमेँ दिया । आज जब वो जहर बन गया, अब कहते है जैविक कृषि कीजिए, वैदिक कृषि कीजिए ! शर्म आनी चाहिए ! और आज जब हम ये कह रहे है कि आपको सेक्स के लिए भी एक संहिता होती है, उसके बारे मेँ जानकारी होनी चाहिए, आज हमसे भीडने को तैयार है ! कहते है, "धर्म के नाम पर ये कर रहे है ।" मैँ आपको लिखकर देता हुँ, आनेवाले समय मेँ सायन्स इस पर रीसर्च कर रही है और आनेवाले समय मेँ वही सायन्स गाईडलाईन जारी करेगी जैसी की अभी #आयुर्वेद और ऋषियोँ नेँ गाईडलाईन जारी की । जल्दी क्योँ है इनको ? इतना उबल क्योँ रहे है ये लोग ? ज्युँ ही गाईडलाईन जारी की, क्योँ मन मेँ उबाल आ रहा है ? क्योँ आयुष विभाग के उपर टूट पडे है ये ? और शर्म आनी चाहिए आयुष विभाग को भी कि अगर वो इस तरह की पुस्तक निकालते है तो क्या उनके पास अपने आप को डिफेन्ड करने के लिए लॉजिक भी नहीँ है ? क्या उनके पास लोग भी नहीँ है ? तो सरकार को मैँ कहना चाहता हुँ, या तो आयुर्वेद को संभाल लीजिए, आपसे नहीँ संभलता है तो वापस वैद्योँ के हवाले कर दीजिए, हम लोग उसको खुद संभाल लेंगे, समझ मेँ आ गया ? और यदि आयुष विभाग योग को नहीँ संभाल सकता तो बन्द करेँ ना ये अपनी दुकान, अपना ये मन्त्रालय । सरकार को कोई अधिकार नहीँ है कि यदि वो अपने तर्कोँ को, अपने विचारोँ को प्रखरता से सामने नहीँ ले जा सकता । और वैसे ही सरकार के प्रवक्ता, और ये मीडिया वाले देखना, आप याद रखियेगा, ये बहुत दुर्जन लोग होते है, दुष्ट है, बिल्कुल कलुषित मन के; ये उन्हीँ लोगोँ को उठाकर लेकर आयेंगे आयुर्वेद के बारे मेँ बोलने के लिए उन डॉक्टर्स को जो बेचारे तर्क भी न दे सकेँ, बोल भी न सके । और इनका स्टुडियो होता है, अगर हम वहाँ बोलने की कोशिश करेंगे तो चिल्ला के कहेंगे, "आप चूप रहिए, आप बोल नहीँ सकते ।" इस तरह से बात करते है ना ये ? अक्षर भैरव जी : जी #ईशपुत्र : तो इस तरह की फेक मीडिया के खिलाफ एक आवाज उठनी चाहिए और मीडिया स्वतन्त्र है लेकिन मीडिया सिर्फ इन्हीँ का क्योँ ? इसलिए मेरा तो साफ शब्दोँ मेँ ये कहना है कि, मीडिया के इस भ्रम मेँ आप ना पडेँ । अपना जो आपका मस्तिष्क है उसकी सुनेँ । और ये कहते है कि दुनिया मेँ माँसाहार ये रोका नहीँ जाना चाहिए ! माँसाहार के खिलाफ पूरा आन्दोलन खडा हुआ है ! वो तो गाय के घी और दूध के भी खिलाफ खडा हो गया है ! अभी इस पर शोध की जरुरत है, और जब तक ये शोध नहीँ होता इस तरह के टेलिविजन कार्यक्रमोँ पर विश्वास करने की जरुरत नहीँ है । और दुसरी बात ये है कि टेलिविजन कार्यक्रम ये केवल मैँ दर्शकोँ को भी ये बताना चाहुँगा कि हमलोग भी टेलिविजन पर इस समय है । आपलोग भी हमेँ TV के माध्यम से देख रहे है । न्यूज चैनल के माध्यम से देख रहे है, तो इनका कार्य क्या है ? न्यूज चैनल का कार्य ? आप तक "खबर" पहुँचाना । लेकिन आजकल ये खबर पहुँचाने की जगह "अपने विचार" पहुँचाने लग गये है । मैँ खुद #आयुर्वेद का छात्र रहा हुँ । मैने गुरु-शिष्य परंपरा से आयुर्वेद सीखा है इसलिए मैँ दावे से आयुर्वेद के एक-एक तत्त्व के बारे मेँ बता सकता हुँ । मैने खुद गुर-शिष्य परंपरा से #योग सीखा है इसलिए मैँ खुद योग के एक-एक सूत्र को जानता हुँ, उसमेँ कौनसे नियम दिये गये है ये बताता हुँ । और तीसरी बात कि, हमने कभी भी शाकाहार और माँसाहार मेँ ये नहीँ कहा कि माँसाहार श्रेष्ठ है या शाकाहार श्रेष्ठ । मैने ये जरुर कहा है कि शाकाहार ही श्रेष्ठ है लेकिन ऋषियोँ की परंपरा मेँ शाकाहार श्रेष्ठ है या माँसाहार, इसके विषय मेँ कोई गाईडलाईन है ही नहीँ । इसलिए अगर आप कौलान्तक पीठ के बारे मेँ जानते होँ, अगर आपने मुझे इससे पहले शाकाहार या माँसाहार के बारे मेँ सुना हो तो मेरी बातेँ आपको याद होगी, मैने कहा है कि, "ऋषि ये कहते है कि, माँसाहार निषिद्ध है लेकिन बिलकुल से बन्द नहीँ है, पूर्ण निषिद्ध नहीँ है । कारण क्या है कि कभी-कभी देश, काल और परिस्थिति के मुताबिक उस पर छूट दी जाती है लेकिन वहाँ पर भी आचारसंहिता है लेकिन उन्होँने कहा कि सर्वोत्तम आहार, श्रेष्ठ आहार वो वनस्पतियोँ के द्वारा प्रदत्त है इसलिए हमेँ सबसे पहले शाकाहार करना चाहिए और उसके बाद "मध्य आहार" वो होता है जिसको हम घी, दूध, दहीँ कहते है वो शाकाहार नहीँ है, उसे "मध्य आहार" कहा जाता है, "यक्षिणी भोजनम्" के अन्तर्गत ये भोजन आते है, अचार, चटनी, मुरब्बा इत्यादि । तो आचार भोजन की जो संहिता है वो केवल उतनी ही नहीँ है जितनी आपने किताबोँ मेँ पढ ली; चरक संहिता, शुश्रुत संहिता, काश्यप संहिता मेँ है । उससे पार भी आपको वहाँ जाना पडेगा लेकिन इनको इन तत्त्वोँ का ज्ञान नहीँ है इसलिए मैँ आपको ये कहता हुँ कि ये विवाद तो अभी बढेंगे, अभी तो #International_Yoga_Day आया नहीँ है । तो अभी इनको तकलीफ होगी ही । तो भारत मेँ इतने सारे लोग है जिनको हमारा धर्म, हम पसंद नहीँ है, तो वो अपने आप को ऐसा प्रटेन्ड करने की कोशिश करते है कि देखिये हम तो न्यूट्रल है, हम तो मीडिया है पर भेड की खाल मेँ छिपे हुए ऐसे लोग जो ऐसे भेडिये जो है ये ज्यादा दिनोँ तक छिपे नहीँ रहनेवाले । मीडिया की खाल मेँ छिपे हुए ये लोग जो हमेँ परेशान करना चाहते है या "आयुष मंत्रालय" को टार्गेट कर रहे है ये मूर्खतापूर्ण कृत्य है । मैँ इसकी घोर निन्दा करता हुँ और मैँ मजबूती से खडा हुँ..मजबूती से ! मैँ इस संस्कृति के एक-एक पर्व और परंपरा को जानता हुँ ! ये आपको और हमको भ्रमित नहीँ कर सकते और इस तरह से भारत के नौजवान जो हमारे वो "विचारवान" है आज..उनके पास इन TV चेनल्स के अतिरिक्त Youtube, facebook इस तरह का जो मॉडर्न मीडिया आ गया है अब जिसको हम Social Media के नाम से जानते है उनसे भी ये लोग जुडे है; इनको पता है कि टेलिविजन चेनल्स प्रोपगेन्डा करने मेँ आजकल माहिर हो गये है लेकिन फिर भी आपने एक अच्छा मुद्दा उठाया, एक अच्छा प्रश्न । मुझे लगता है कि सावधानी की बेहद जरुरत है यहाँ । अक्षर भैरव जी : तो ईशपुत्र ! जिस प्रकार आपने जो क्लिएरीटी दी ये तो पूरी तरह से एक बात ही बदल देती है । और अब हमारे जो युवा है जो #Yoga के प्रति, आयुर्वेद के प्रति आकर्षित है उनके लिए आपका सन्देश क्या है ? कैसे कन्क्डुड करे क्योँकि बिन्दु तो चार ही थे उसमेँ से उन्होँने एक बिन्दु उठाके उसी पे ही ये बवाल बना दिया है । तो कन्क्लुजन क्या हो ? आगे कैसे बढा जाये जी ? #ईशपुत्र: देखिये, सीधी सी बात ये है कि आपको गुरु की जरुरत पड जाती है । देखिये अगर आप कौलान्तक पीठ मेँ, या सिद्धोँ की पीठ मेँ या हिमालय की परंपरा मेँ या हमारे ऋषि-मुनियोँ की वेदिक परंपराओँ मेँ भी देखते है तो कामवासना के प्रति भी गुरु आपको निर्देश देते है ! और आज लोगोँ को लगता है कि ये क्या बात हुई ! आज भी पूरी दुनिया मेँ कौनसा ग्रंथ #Sex को लेकर विश्वप्रसिद्ध है ? कामशास्त्र । और कामसूत्र वो कहाँ से उत्पन्न हुआ ? भारत से । ऋषियोँ का ज्ञान उससे भी विशद् है । हम पुराने ग्रंथोँ को भूल गये है, पुरानी परंपराओँ को भूल गये है लेकिन अभी भी भारत मेँ "वाम मार्ग" नाम की एक परंपरा है जो कि कामशास्त्र को बहुत अच्छी तरह से जानती है, बहुत डिटेल से जानती है लेकिन उसके बारे मेँ लोगोँ को जानकारी नहीँ है ! वहाँ कामशास्त्र मेँ कैसे जीवन को ले जाना है आगे इसके बारे मेँ बताया है ! अगर हम, भारत और भारत मेँ # हिन्दूधर्म Sex का विरोधी होता तो # कामशास्त्रकी रचना करता ? # कोकशास्त्रकी रचना करता ? वात्स्यायन कौन है ? तो एक बार जरा अपने आँख, कान, नाक, मुँह खोलकर सुना कीजिए । इन मीडिया के इस नेगेटिव प्रोपगेन्डा मेँ मत पडीये । ये मीडिया मेँ कुछ इस तरह का धनाढ्य वर्ग आ गया है जिन्होँने पहले से ही... जबसे भारत स्वतन्त्र हुआ है तब से हिन्दूओँ का और योग मेँ रुचि रखनेवाले योगियोँ का विश्वभर मेँ सिर्फ हिन्दू धर्म के लोग ही नहीँ है जो आयुर्वेद मेँ रुचि रखते है, सिर्फ हिन्दू धर्म के लोग ही नहीँ है जो योग मेँ रुचि रखते है; अन्य लोग भी है क्योँकि हिन्दू धर्म किसी एक का नहीँ है ! विश्वबन्धुत्व की भावना है उसके अन्दर, "सर्वभूत हिते रताः ॥" तो मेरी ये सीधी सी राय है कि कोई भी व्यक्ति जो योग सीख रहा है, आयुर्वेद को जानना चाहता है और यदि आयुर्वेद मेँ, योग मेँ कोई ऐसा भ्रमपूर्ण सिद्धान्त आपको लगता है कि अरे ये कुछ ठीक नहीँ है ! तो गुरु से पूछिए, आचार्योँ से पूछिए; वो आपको बताएँगे कि इसका क्या मतलब है । मीडिया से मत पूछिए, जो एंकर चिल्लाकर बात करता है क्या उसको पता है कि चरक संहिता मेँ क्या लिखा है ? क्या वो जानता है कि कश्यप संहिता क्या है ? उसे पता है कि शुश्रुत किस प्रकार से अपना कार्य करते थे आगे ? ऋषि परंपराओँ मेँ क्या लिखा है ? अह...उन्होनेँ देख लिया... अगर आप उनसे पूछेंगे कि आपने ऐसा क्योँ कहा ? कहेंगे, "सरकार को ऐसी गाईडलाईन्स जारी करने से बचना चाहिए । ये ऐसा लगता है कि बीजेपी का प्रोपगेन्डा है या RSS का प्रोपगेन्डा है ।" ये नाम इस तरह से लेते है लेकिन बीजेपी और RSS के नाम पे ये दरअसल "हिन्दू धर्म" को टार्गेट करना चाहते है । क्योँ ? क्योँकि हिन्दू धर्म एक ऐसा धर्म है जो सभी को सहज स्वीकार कर लेता है; मान लीजिए मेरे पास कोई आदमी आता है कहता है, "मैँ क्रिश्च्यन हुँ, मुझे योगा सीखना है ।" तो मैँ ये नहीँ कहता कि, "पहले आप हिन्दू कन्वर्ट हो जाओ उसके बाद ही आप योग सीख सकते हो ।", क्या मैँ कहता हुँ ? सवाल ही पैदा नहीँ होता ! कोई मुस्लिम भाई मेरे पास आ जाए और कहे, "जी मुझे योगा करवा दीजिए ।" क्या मैँ कहुँगा तू पहले गंगा मेँ डूबकी लगा ? तू अपनी सफेद टोपी उतार दे ? सवाल ही पैदा नहीँ होता क्योँकि हमारा धर्म ऐसा सीखाता ही नहीँ है ? तो हमारे अंदर ये कुत्सित भावनाएँ है ही नहीँ इस कारण पूरी दुनिया ये जान गयी है कि, 'हिन्दू धर्म सर्वश्रेष्ठ है और सबके लिए है और वो किसी प्रकार का भेदभाव करता नहीँ है इसी वजह से ये कुछ ऐसे मूरखतापूर्ण मुद्दे उठाने की कोशिश मेँ लगे रहते है, ये इनका एक प्रयास है । तो अक्षर भैरव जी ! आप स्वयं एक योगी है, कितने देशोँ मेँ आप योग सीखा रहे है, कितने लोगोँ को आप योग सीखा रहे है और आयुर्वेद के बारे मेँ बता रहे है, आपको चिन्ता करने की जरुरत नहीँ है, आप इस तरह के प्रोपगेन्डा से खुद को बचाकर रखेँ और अवेयरनेस फैलाएँ पूरी दुनिया मेँ, कि आपको घबराने की जरुरत नहीँ है, किसी का कोई धर्म खतरे मेँ नहीँ है । आयुर्वेद सिद्धांत की बात करता है । तो यदि आपको कुछ भी लगता है कि उन्होँने गलत कहा है या उस किताब मेँ गलत लिखा है, मुझसे पूछिए मै जवाब देनेँ को तैयार हुँ, और वो कहते है कि, 'सरकार को ऐसा नहीँ करना चाहिए ।' क्योँ नहीँ करेगी सरकार ? पहली बात, या तो सरकार आयुर्वेद और योग को हटा ही देँ यदि वो उसका संरक्षण नहीँ कर सकते यदि उसके पास तर्क नहीँ है और दुसरी बात कि, मेरे पास तर्क है तो जो मेरे पास सीखने आयेगा मैँ उसको समझाने के लिए तैयार हुँ कि इसके पीछे क्या कारण है । और फर्जी मीडिया को जवाब देने का मेरा कोई औचित्य नहीँ है । मुझे कहते रहते है, कयी चेनल्सवालोँ के फोन्स लगातार आते रहते है । मैँ क्युँ आजकल इनको मुँह नहीँ लगाता ? पहले आपने देखा होगा मैँ लगातार कयी चेनल्स पे रहा लेकिन मैँ इनके साथ रहते रहते इनमेँ से बहोत सारे मीडिया ग्रुप्स को समझ चूका हुँ कि उनके क्या हिडन प्रोपगेण्डा है और आप जब उनको
ईशपुत्र : हाँ बिलकुल, अचानक ये मामला मेरी भी नजरोँ के सामने आया है और बडा ही एक ऐसा मुद्दा है जिसको अचानक से इस तरह से प्रस्तुत किया जा रहा है कि मान लीजिए इस देश मेँ कुछ सरकार नेँ या कुछ आयुष मंत्रालय नेँ कुछ ऐसा अनैतिक कार्य कर दिया है कि मान लीजिए इस विभाग को उसके लिए माफी मांगी जानी चाहिए । इस तरह का रुख ये कुछ एक मीडिया का एक बडा हिस्सा है जो इस तरह से इसको दिखा रहा है । अक्षर भैरव जी : तो ईशपुत्र ! इन बिंदुओँ मेँ कई ऐसे बिंदु है जिसमेँ समझ नहीँ आता कि अच्छाई क्या है, बुराई क्या है ? जैसे एक बिंदु मेँ कहा गया है कि, "नशा न करेँ" और "सेक्स न करेँ" और एक "बडा ही सरल जीवन बिताएँ" इस पे आपका क्या विचार है ?
ईशपुत्र : देखिए, हमेँ पहले तो ये ठीक-ठीक देखना होगा की मुद्दा क्या है । देखिए यहाँ पर भारत के बहुत बुरे हालात है आजकल, कारण ये है कि भारत मेँ दो पक्ष बन गये है, एक ऐसा पक्ष भारत मेँ बडी प्रबलता से उभर रहा है जो किसी भी धर्म को नहीँ मानता, उनको धार्मिक तथ्य या चीजेँ या बातेँ चाहिए ही नहीँ लेकिन इसे सौभाग्यवश या दुर्भाग्यवश ये मुझे भी नहीँ पता कि आयुर्वेद जो कि धर्म का ही एक हिस्सा है ! आप उसको अलग नहीँ कर सकते, वो सौभाग्यवश या दुर्भाग्यवश #हिन्दू धर्म का एक हिस्सा है और उसे भारत सरकार के "आयुष विभाग" नेँ ले लिया और आपको तो मालूम है उसमेँ योग भी है, आयुर्वेद भी है और सिद्धा ये जो पैथी है हम सिद्धोँ की, वो भी उसके अंदर सम्मिलित है; उसमेँ नेचरोपैथी इत्यादि ये सभी इन चिकित्साओँ को एक उपचिकित्सा के रुप मेँ उसको स्थान दिया गया है । लेकिन ऐलोपैथी वाले वो आयुर्वेद और इन चीजोँ कोँ मानने को तैयार ही नहीँ है क्योँकि वो बार-बार सायन्स का हवाला देते है, तर्क करते है और बेचारे जो आयुर्वेद से जुडे लोग है वो इस तत्त्व को समझ नहीँ पाते । तो जो लोग धर्म का विरोध करनेवाले है और यहाँ पर भी मैँ आपको बता दुँ मीडिया से ये खबरेँ आयी होंगी आप तक मुझे लगता है, आपने मीडिया से ही सुना होगा ना ?
अक्षर भैरव जी : जी
ईशपुत्र : जी, तो देखिये मीडिया के बारे मेँ मैँ बता दुँ यहाँ पर दो हिस्सोँ मेँ मीडिया बँटी हुई है । पहली वो मीडिया है जो धर्म को और इस राष्ट्र की संस्कृति को साथ लेकर चलना चाहती है और एक बडा ऐसा एक वर्ग है मीडिया का जो किसी भी कीमत पर हिन्दू धर्म को, धर्मप्रमुखोँ को, आयुर्वेद को, योग को, ज्योतीष को इन चीजोँ को पाखण्ड साबित करना चाहते है और तरह से इसकी वैज्ञानिक आधारभूमि है ही नहीँ ये साबित करना चाहते है । अक्षर भैरव जी आप स्वयं एक योगी है, "महायोगी" की पदवी तक आपको प्रदान की गयी है, क्या आपको ये नहीँ लगता, इसकी टाईमिंग को लेकर आपको संदेह नहीँ पैदा होता कि अभी "योग दिवस" आनेवाला है और अचानक ये कोन्ट्रोवर्सी निकली जबकि ये पुस्तक तो पुरानी है !
अक्षर भैरव जी : बिलकुल जी, ये लगभग तीन साल पहले पुस्तक आयी थी और अभी हप्ता ही रह गया है "आन्तरराष्ट्रीय योग दिवस" के लिए । तो इसमेँ ईशपुत्र जो विचार रखेँ गये है पुस्तक मेँ वो देखने मेँ और अभ्यास करने मेँ बडे ही पॉजिटिव है, तो फिर क्या कारण है कि इतनी नकारात्मकता मीडिया मेँ और फ्रंट पेज पे ये न्यूज चल रही है ?
ईशपुत्र : देखिये आप इसमेँ भी एक चीज ध्यान रखियेगा । हिन्दी मीडिया इसको बहुत ज्यादा कवर नहीँ करेगा । हिन्दी मीडिया का कुछ ऐसा हिस्सा है जो उसको कवर करेगा लेकिन ईंग्लिश मीडिया और खास कर कि जो नये किस्म के ब्लोग, ब्लोगर्स निकले है; नयी किस्म की वेबसाईट्स निकली है वो इन मुद्दोँ को ज्यादा उठायेंगी, उसका कारण क्या है ? क्योँकि वो सब के सब कहीँ न कहीँ उनकी उत्पत्ति हिन्दू धर्म विरोधी है और जैसे ही आप ये बात कहेंगे तो वो कहेंगे, "देखिये जी, ये तो मीडिया पर अटेक कर रहे है । मीडिया पर हमला कर रहे है ।" भई आप मीडिया हो भगवान तो नहीँ और मीडिया गलत आदमी भी तो संचालित कर सकता है और दुसरी बात कि क्या मीडिया केवल हिन्दू धर्म को हानि पहुँचाने के लिए या मान्यताओँ को हानि पहुँचाने के लिए ही है ? खैर मैँ इन तर्कोँ पर नहीँ जाता हुँ, सीधे-सीधे आपके प्रश्नोँ का जवाब दुंगा । देखिये उन्होँनेँ कहा, जो आयुष विभाग की गाईडलाईन्स है वो क्या है ?
अक्षर भैरव जी : गाईडलाईन्स है जी ।
ईशपुत्र : हम्म वो कोई लॉ नहीँ है और वो एक नियमावलि है और वो कहाँ से उत्पन्न हुई ?आयुर्वेद से उत्पन्न हुई है । पहले आपके प्रश्न का जवाब कि, क्या आयुर्वेद शाकाहारी या माँसाहारी भोजन की महिमा गाता है ? तो मैँ आपको खुद बता दुँ कि आयुर्वेद शाकाहार की महिमा अवश्य गाता है लेकिन सारी की सारी आयुर्वेदिक औषधियाँ शाकाहारी नहीँ होती । उसमेँ सारी ऐसी औषधियाँ है जिसको आप शुद्ध शाकाहार कह ही नहीँ सकते लेकिन बावजूद इसके माँसाहार को निषिद्ध कहा गया है, कारण ये है कि वो केवल जिन ऋषि-मुनियोँ ने उन ग्रंथोँ को लिखा है वो केवल इस बात तक सीमित नहीँ है कि आप क्या औषधि खा रहे हो ! आप क्या भोजन खा रहे हो ! वो इस बात पर भी अपने आप को ऋषि-मुनि बताते है कि, "आपके ह्रदय मेँ दया होनी चाहिए ।" किसके प्रति ? "जीव-जंतुओँ के प्रति दया होनी चाहिए ।" तो "दया" का भाव प्रमुख होने के कारण आयुर्वेद की संहिता दया पर आधारित है इसलिए अगर आप कहते है कि, "मुझे अंडा खाना चाहिए या माँसाहार करना चाहिए" तो आयुर्वेद उसे बुरा ही मानेगा और मोडर्न मेडिकल सायन्स कहेगी, "अरे ये लोग तो बेवकूफी भरी बातेँ करते है" क्योँकि आप डॉक्टर्स को देखियेगा, मोडर्न डॉक्टर्स को । मेरा एलोपैथी से कोई झगडा नहीँ है लेकिन मैँ उनके एट्टीट्युड की बात कर रहा हुँ कि कितने मनहूस किस्म के कुछ डॉक्टर्स है, सभी नहीँ । हमारे पास बहुत सारे ऐसे आयुर्वेदिक डॉक्टर है और बहुत सारे एलोपैथी के डॉक्टर है जो बेचारे सही परंपरा को जानते है, वो झगडा नहीँ करते । लेकिन ये इस तरह से दिखावा करेंगे, नोटंकी करेंगे कि जैसे मान लीजिए कि, अगर अंडा नहीँ खाया या माँस नहीँ खाया तो आपके अंदर प्रोटीन की इतनी भयंकर कमी हो जायेगी कि पूछिए मत ! वो मालन्यूट्रीशन की बात करेंगे, कहेंगे, "भारत मेँ पचास प्रतिशत बच्चे और लोग जो है वो एनेमिक है । एनिमिया से जूझ रहे है लेकिन किसने कहा कि माँसाहार ही केवल प्रोटीन का एकमात्र साधन है ? अगर आप मुझे ये सिद्ध कर के दिखा देँ कि केवल माँसाहार ही प्रोटीन का साधन है, अन्य चीजोँ मेँ प्रोटीन नहीँ है तब मैँ भी आपके पक्ष मेँ आ जाऊँगा; मैँ कल से कहुँगा माँसाहार कीजिए । क्या आपके पास कोई ऐसा तरीका है ? जब प्रश्न किया जायेगा तो इनके पास तरीका नहीँ है । तो आप देख लीजिए आयुर्वेद नेँ माँसाहार और शाकाहार मेँ से शाकाहार को सिर्फ माता के लिए या गर्भस्थ औरत के लिए ही नहीँ; पुरुष हो या स्त्री हो, बडे हो या बुढे हो, छोटे हो या जवान हो कोई भी हो शाकाहार को प्राथमिकता देने को कहा है और वो भी अयुर्वेद भी वहाँ आपको "गाईडलाईन्स" ही दे रहा है, यानि के ऋषि-मुनि आपको "सुझाव" ही दे रहे है । ऋषि-मुनि ऐसा नहीँ कर सकते कि आपकी गरदन पर बंदूक ला कर रख देँ और कहेँ कनपटी पे बंदूक रख के कि, "ये अखंड नियम है, इसे मानना ही पडेगा ।" तो ये तो मुरखता है और जो मीडिया का एक वर्ग इसको उठा रहा है इनको मरोड उठता है पेट मेँ । इनसे बर्दाश्त नहीँ होता कि भारत के और विशेष तौर पर हिन्दू धर्म की कोई ऐसी बात...योग हिन्दू धर्म से निकला है, कब से झगडा चल रहा है कि, "ॐ" को अलग कर दिया जाये; क्योँ ? ताकि ये दिखाया जाये कि हिन्दू धर्म से योग का कोई लेना-देना नहीँ झूठ है ये सब । किसी भी इतिहासकार को पूछ लीजिए कहीँ से भी आप इसकी तलाश कीजिए, #हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग है #योग और उससे सबको लाभ मिलता है इसमेँ कोई दोराय नहीँ और ये "धर्म" का ही अंग रहेगा और वैसे ही #आयुर्वेद और आपने देखा होगा कि इस मुद्दे को लेकर बडी थू-थू हो रही है अभी विभाग की । वो तो होगी ही क्योँकि इनके पास तर्क ही नहीँ है, ये जानते ही नहीँ है कि क्या कहा जाना चाहिए और ये वैज्ञानिकता के तर्कोँ के सामने चूपचाप ओँधे मुँह पडे रहते है इसलिए इनको लोग चारोँ तरफ से घेर रहे है लेकिन याद रखिये केवल ये एक प्रोपगेन्डा है और इसलिए है क्योँकि "योग दिवस" आनेवाला है । किसी भी तरह योग के नाम पर, भोजन के नाम पर, पुस्तकोँ के नाम पर ये एक ऐसी छवि बनाने की कोशिश कर रहे है ताकि धर्म-अध्यात्म और योग की बढती क्रान्ति को रोका जा सके ।
अक्षर भैरव जी : एक और बडा विचित्र बिन्दु है ईशपुत्र ! कि इतने सारे जो इन्होनेँ पॉईन्ट्स दिये है उसमेँ सिर्फ माँस और यौन सम्बन्धोँ को ले के बडी बात हुई है । बाकी जो इतनी सुंदर बातेँ की गयी है जैसे घरोँ मेँ सुंदर तसवीरेँ लगाई जायेँ, जो आदर्श है उनके बारे मेँ पढा जायेँ....
ईशपुत्र : (बात को बीच मेँ से अटकाते हुए) आप उसको भी जरा सुन लीजिए । इनसे तो वो भी बर्दाश्त नहीँ हो रहा । ये कह रहे है कि ये तो धार्मिक और नैतिकता थोपने की होड मेँ है क्योँकि उनको लगता है कि अभी बीजेपी की सरकार देश मेँ है तो इस वजह से ऐसा किया जा रहा है । देखिये यहाँ पर सरकारोँ से कोई लेनादेना नही है । हमारे पीछे चलनेवाले या धर्म को माननेवाले सिर्फ बीजेपी के ठेकेदार नहीँ है । यहाँ पर बीजेपी हो या कोंग्रेस हो या कोई भी पार्टी हो यहाँ धर्म सभी का है और सभी को धर्म को मानने की स्वतन्त्रता है और धर्मप्रमुखोँ का कार्य है कि राजनीति से दूर रहेँ । राजनीति से उनको अलग रहकर अध्यात्म को आगे लेकर जाना चाहिए, सीधी सी बात है लेकिन यहाँ पर ऐसी राजनीतिक पार्टीयाँ इस देश मेँ पनपी है जिनके अपने मीडिया हाउस है और वो इस तरह का प्रोपगेन्डा करते है और अगर आप उनको कहेँ कि आप अपना प्रोपगेन्डा क्योँ थोप रहे है ? तो वो बिगड जायेंगे ! आपने देखा होगा कि वो फिर आपको बोलने ही नहीँ देंगे, चिल्लाकर बात करते है और एँकर्स का उनका जो अनुशासन या उनका जो अपना धर्म था उनके अपने लॉस थे उनको तो वो पहले से ब्रेक कर चूके है । अपनी इज्जत तो उनकी है नहीँ वो दुसरे लोगोँ को भी नहीँ बोलने देते । अब मैँ आपके कुछ बिन्दुओँ पर बात करता हुँ । देखिये सबसे पहले उन्होँने कहा कि, "महिलाओँ को सेक्स नहीँ करना चाहिए ।" "आयुष मंत्रालय" को ऐसा नहीँ है कि वो अपनी मर्जी से कह रहे है ! जो प्राचीन ग्रंथोँ मेँ लिखा गया वो उन्होँने कहा लेकिन ग्रंथ से जो "सूक्ति" निकाली गयी वो कभी भी पूर्ण नहीँ होती है । आप देखिये भारत मेँ योग है; एक ही आसन को कईँ तरीके से करने की राय अलग-अलग ऋषि देते है । वैसे ही किसी ऋषि को अगर आप आयुर्वेद मेँ पढ लीजिए वो कहेगा कि भोजन से पहले जल पीना चाहिए, कोई कहेगा कि भोजन के साथ जल पीना चाहिए, कोई कहेगा कि भोजन के बाद ही जल पीना चाहिए अन्यथा ये रोग उत्पन्न होंगे । तो वो ऋषि अपनी-अपनी सम्मति देते है लेकिन आप जब भी योग को सीखेँ, आयुर्वेद को जानेँ तो आपको ये जो "सलाह" है (इसको "सलाह" कहा जाता है ।) लेकिन उस सलाह के बावजूद आपको चिकित्सक के पास ही जाना पडता है, योगाचार्य के पास ही जाना पडता है क्योँकि योगाचार्य आपको देखकर, आपके शरीर मेँ वात, पित्त, कफ इत्यादि आपके शरीर मेँ आपका सिस्टम कैसा है इसको जाँचकर ही वो राय देगा कि आप इस योग को करेँ अथवा ना करेँ । वैसे ही कामाचार के उपर भी वात्स्यायन जैसे ऋषि है, अनेकोँ ओर भी ऋषि है, काश्मीर मेँ कोक जैसे ऋषि हुए "कोकाशास्त्र" जिन्होनेँ लिखा है, ये ज्ञात ऋषि है लेकिन इनके अतिरिक्त हमारी कौलान्तक पीठ जैसी परंपराओँ मेँ अनेकोँ ऐसे ऋषि और अनेकोँ ऐसी योगिनियाँ है और अनेकोँ ऐसी कुछ योनियाँ है जिन्होँने कामाचार के विषय मेँ मनुष्योँ को ज्ञान दिया है, देवताओँ के ऐसे कुछ "कुल" है । उसमेँ भी कभी भी आपको एकसमानता नहीँ मिलेगी, एक व्यक्ति कोई दुसरी बात कहेगा, दुसरी व्यक्ति दुसरी बात लेकिन आपको ये जो चीजेँ बताई जाती है शास्त्र मेँ ये गाईडलाईन होती है, उसके बाद कहा जाता है कि, गुरु के पास, वैद्य के पास, योगाचार्य के पास आपको जाकर सही राय लेनी होती है । तो वो आपको इसके बारे मेँ सही राय देंगे । देखिये यदि आपको सही रीति से कामाचार कैसे किया जाना चाहिए इसकी जानकारी नहीँ है तो आपको हानि पहुँचेगी या नही ? अक्षर भैरव जी : बिलकुल
ईशपुत्र : तो आप कहते है कि इसके लिए वैज्ञानिकोँ के पास जाओ । तो वैज्ञानिक क्या करते है ? स्टडी करते है, हजार लोगोँ पर स्टडी करते है कि ऐसा करने के बाद क्या होगा ? फिर एक "औसत रुल" निकालकर देते है । याद रखिये सायन्टिस्ट कोई भी व्यक्ति "एक" ऐसा रुल नहीँ बता सकता कि ये जो मैने नियम बता दिया है कि, "सेक्स करना ठीक है ।" कोई भी वैज्ञानिक, कोई भी डॉक्टर मेरे सामने आकर ये कह दे कि, "हाँ, ये युनिवर्सल Truth है ।" सवाल ही पैदा नहीँ होता । बेवकूफीभरी बात ऐसी कोई करेगा नहीँ क्योँकि हजारोँ-लाखोँ मेँ से कोई एक व्यक्ति ऐसा निकल ही आयेगा जिसको इस प्रकार यौनाचार की क्रियाओँ मेँ, वासना के समय या कुछ करते हुए उसके साथ कुछ बुरा घटित हो जाये । तो ये पर्सन टु पर्सन वॅरि करता है; सबसे पहली बात तो ये है और फिर आयुर्वेद और इस प्रकार के सिद्धांतोँ को समझने के लिए भी आपके पास मस्तिष्क और खोपडी तो आपको दी है ना ? अक्षर भैरव जी : बिलकुल #ईशपुत्र : तो ये वास्तव मेँ सिर्फ योग को बदनाम करने के लिए ये बात कही गयी है । देखिये यौनाचार के विषय मेँ मैँ कह दुँ, यौनाचार करने की जो पद्धति है, ऋषि परंपरा है उसके पीछे । अक्षर भैरव जी : जी #ईशपुत्र : वहाँ ये बताया जाता है गुर-शिष्य परंपरा मेँ कि किस-किस.... आप बताईए की कि कामशास्त्र मेँ इतने आसन क्योँ बताये गये है ? वासना मेँ जाने के ? क्योँकि किस रोग के समय, किस परिस्थिति मेँ किसी गृहस्थ व्यक्ति को किस प्रकार से अपनी पत्नी के साथ सम्बन्ध बनाना चाहिए ? कौनसा पोश्चर किसके लिए ठीक रहेगा इसलिए आसन बनाये गये है; मोटे व्यक्ति के लिए अलग, पतले व्यक्ति के लिए अलग, अलग-अलग व्यक्ति के अनुसार आसन है । तो गर्भावस्था मेँ.. यहाँ तक कि सम्बन्ध स्थापित करने की भी पद्धतियाँ है ! आप यदि उस पर बहस करना चाहते है तो आइए ना, मुझे बहस पे बुलाइए मैँ बताता हुँ ठीक ! और ये भी छोड दीजिए आप, #कामशास्त्र की बात यहाँ हो गयी, समझ मेँ आ गया होगा आपको भी और हमारे श्रोताओँ को भी कि ये कोई Universal नियम नहीँ है । आप गर्भावस्था मेँ भी सम्बन्ध स्थापित कर सकते है लेकिन कैसे ? क्या उसकी परंपरा है ? ये भी शास्त्रोँ मेँ वर्णित है लेकिन आपको उसकी तलाश करनी पडेगी ठीक और यहाँ सबसे प्रमुख बात ये भी है कि ये लोग जो अपनी बातेँ थोपना चाहते है वो किसी भी तरह थोपेंगे । अब जिस व्यक्ति नेँ बहस ही करनी है, बकवास करनी है वो तो कुछ भी करके करेगा तो वही बहस, वही बकवास आजकल "न्यूज एँकर्स" करने लग गये है, अपनी परंपराओँ को थोपने के लिए; क्लिअर ।
अक्षर भैरव जी : बिलकुल ईशपुत्र : तो आपको वासना के बारे मेँ कंप्लिट हो गया ?
अक्षर भैरव जी : जी बिलकुल #ईशपुत्र : अब दुसरी बात, इन्होँनेँ तो कुछ चेनल्स नेँ आपनेँ कहा कि, उन्होँने कुछ अच्छी बातेँ कही है कि घर मेँ महापुरुषोँ की जीवनी पढे, तसवीरेँ लगाएँ और कुछ मीडिया हाउस तो इसके भी विरुद्ध रहेंगे ! आप चिन्ता ना करे, आप उनको देखते रहिए अभी :-) उसका कारण ये है कि, उनसे बर्दाश्त नहीँ होगा कि, "अरे ! महापुरुषोँ की जीवनी पढे ! और आध्यात्मिक विचार रखेँ !" उनको तो #धर्म और #अध्यात्म के नाम से ही तो प्रोब्लेम है । वहाँ लिखा है, "अच्छे लोगोँ की जीवनी पढे ।" अक्षर भैरव जी : जी । #ईशपुत्र : और वो खुद "अच्छे" है नहीँ । अक्षर भैरव जी : जी । #ईशपुत्र : और आपने कहा कि "अच्छे लोगोँ" की पढेँ; तो उनके अंदर की बुराई ये सुन कैसे लेगी ? उनसे बर्दाश्त नहीँ होगा क्योँकि वो पैदाईशी बुरे है । वो अच्छा पक्ष आपने रखा, उसके खिलाफ बोलने के लिए हमेशा खडे ही है, तैयार रहेंगे । वो आपकी बात नहीँ सुननेवाले इसलिए उन्होँने "मीडिया हाउस" खडे कर रखेँ है और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का रोना रोयेंगे । उन्हीँ की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता नहीँ है यहाँ । अक्षर भैरव जी : जी । #ईशपुत्र : तर्क करने के लिए हम तैयार है । कौन घबराता है यहाँ ? समझ मेँ आया ? अक्षर भैरव जी : जी । #ईशपुत्र : तो वो इसका भी खण्डन करेंगे जबकि मैँ आपको बता दुँ, मॉडर्न सायन्स को भी अगर आप पढेंगे, मॉडर्न सायन्स मेँ भी जो "ह्युमन सायकोलॉजी" है वो ये कहता है कि यदि किसी चित्र से, किसी घटना से, किसी वस्तु, किसी परिवेश से आपको अच्छा महेसूस नहीँ हो रहा उन तमाम चित्रोँ को हटा दीजिए । तो आपको ऐसे चित्र रखने चाहिए जो कि आपको विश्राम देते होँ । उसका मतलब ये नहीँ है कि वो केवल मेरी तसवीर होँ या किसी गुरु की तसवीर होँ; वो किसी पक्षी की तसवीर भी हो सकती है, वो किसी वृक्ष की तसवीर भी हो सकती है, वो किसी पर्वत की तसवीर भी हो सकती है, आपको अच्छे वातावरण मेँ रहना चाहिए । और आयुर्वेद के कुछ सिद्धान्त जिसका इनको पता नहीँ है, आपको बुरे लोगोँ से दुर रहना है, तो ये तो सही ही बात है । अगर नकारात्मक विचार दिमाग मेँ आयेंगे उससे आपके स्वास्थ्य को हानि पहुँचेगी और हम चाहते है कि जो स्त्री माँ बननेवाली है, कदापि वो किसी किस्म के तनाव मेँ ना रहे; तो उसमेँ बुरा कहाँ है ? ये ह्युमन सायकोलॉजी है । स्टडी कीजिए ह्युमन सायकोलॉजी । अगर किसी मॉडर्न डॉक्टर को जो चिल्लाकर बात करना चाहता है, मैँ चिल्लाने को तैयार हुँ; आये मेरे सामने ! बात कर लेते है । चलिए मॉडर्न सायकोलॉजी पे ही बात कर लेते है, #धर्म को छोड दीजिये । और रही फूड चयन की बात, कि अभी तक वो कहते है कि ऐसा कुछ भी नहीँ है कि सिर्फ आप शाकाहार की तरफ प्रेरित होँ । मैँ उसके लिए भी बहस करने के लिए तैयार हुँ । दया नाम की कोई चीज है या नहीँ ? अक्षर भैरव जी : बिलकुल #ईशपुत्र : तो ऐसी चीजेँ है, ये केवल एक प्रोपगेन्डा है, आयुर्वेद मेँ इस तरह से जो बातेँ बता रहे है, चित्र इत्यादि ये सब । आप इन सब चीजोँ से व्यथित न होँ । और #योग को #Yoga के नये रुप मेँ विश्वभर मेँ ख्याति मिली है; ये इनसे सहन होगी ही नहीँ । अभी आप देखते रहिए #YogaDay के नजदीक-नजदीक ये कितनी बहस इस मुद्दे पर करेंगे और पूरी दुनिया मेँ ऐसा माहौल बनाने की कोशिश करेंगे कि लोग #योग न करेँ लेकिन याद रखिये योग की क्रान्ति शुरु हो चूकी है, तुम्हारे जैसे लाखोँ लोग भी आ जायेंगे ये क्रान्ति रुकनेवाली नहीँ है । आयुर्वेद को भले ही आप ये कह देँ कि ये सायन्टिफिक नहीँ है, ये ऐसा नहीँ है, ये वैसा नहीँ है लेकिन पूरी की पूरी पश्चिमी की दुनिया भी इसे मान रही है और पुरा संसार इस समय #आयुर्वेद को अपना रहा है और ये मैँ एक बात बता दुँ; ये कहते है कि इसलिए शाकाहार मत कीजिए क्योँकि उसके अंदर आज तरह-तरह के पेस्टेसाईड्स है, केमिकल्स है ! तो भाई ! मुझे एक प्रश्न का जवाब दीजिए, क्या किसी ऋषि-मुनि नेँ कहा था DDT का छिडकाव करो ? किसी नेँ कहा था क्या ? आपकी मॉडर्न साइन्स नेँ ही कहा कि नहीँ कहा ? उन्होँनेँ ही ये छिडकाव करने की आपको ये सारी जो स्प्रे है, जो केमिकल्स है, कौन ले के आया ? मुझसे बहस कीजिए ना इस मामले मेँ । तो वही इनकी बताई हुई इसी विज्ञान नेँ, कभी आपकी सरकारोँ नेँ, आपके ही लोगोँ नेँ, आपके ही वैज्ञानिकोँ नेँ इन चीजोँ को खोजा और हमेँ दिया । आज जब वो जहर बन गया, अब कहते है जैविक कृषि कीजिए, वैदिक कृषि कीजिए ! शर्म आनी चाहिए ! और आज जब हम ये कह रहे है कि आपको सेक्स के लिए भी एक संहिता होती है, उसके बारे मेँ जानकारी होनी चाहिए, आज हमसे भीडने को तैयार है ! कहते है, "धर्म के नाम पर ये कर रहे है ।" मैँ आपको लिखकर देता हुँ, आनेवाले समय मेँ सायन्स इस पर रीसर्च कर रही है और आनेवाले समय मेँ वही सायन्स गाईडलाईन जारी करेगी जैसी की अभी #आयुर्वेद और ऋषियोँ नेँ गाईडलाईन जारी की । जल्दी क्योँ है इनको ? इतना उबल क्योँ रहे है ये लोग ? ज्युँ ही गाईडलाईन जारी की, क्योँ मन मेँ उबाल आ रहा है ? क्योँ आयुष विभाग के उपर टूट पडे है ये ? और शर्म आनी चाहिए आयुष विभाग को भी कि अगर वो इस तरह की पुस्तक निकालते है तो क्या उनके पास अपने आप को डिफेन्ड करने के लिए लॉजिक भी नहीँ है ? क्या उनके पास लोग भी नहीँ है ? तो सरकार को मैँ कहना चाहता हुँ, या तो आयुर्वेद को संभाल लीजिए, आपसे नहीँ संभलता है तो वापस वैद्योँ के हवाले कर दीजिए, हम लोग उसको खुद संभाल लेंगे, समझ मेँ आ गया ? और यदि आयुष विभाग योग को नहीँ संभाल सकता तो बन्द करेँ ना ये अपनी दुकान, अपना ये मन्त्रालय । सरकार को कोई अधिकार नहीँ है कि यदि वो अपने तर्कोँ को, अपने विचारोँ को प्रखरता से सामने नहीँ ले जा सकता । और वैसे ही सरकार के प्रवक्ता, और ये मीडिया वाले देखना, आप याद रखियेगा, ये बहुत दुर्जन लोग होते है, दुष्ट है, बिल्कुल कलुषित मन के; ये उन्हीँ लोगोँ को उठाकर लेकर आयेंगे आयुर्वेद के बारे मेँ बोलने के लिए उन डॉक्टर्स को जो बेचारे तर्क भी न दे सकेँ, बोल भी न सके । और इनका स्टुडियो होता है, अगर हम वहाँ बोलने की कोशिश करेंगे तो चिल्ला के कहेंगे, "आप चूप रहिए, आप बोल नहीँ सकते ।" इस तरह से बात करते है ना ये ? अक्षर भैरव जी : जी #ईशपुत्र : तो इस तरह की फेक मीडिया के खिलाफ एक आवाज उठनी चाहिए और मीडिया स्वतन्त्र है लेकिन मीडिया सिर्फ इन्हीँ का क्योँ ? इसलिए मेरा तो साफ शब्दोँ मेँ ये कहना है कि, मीडिया के इस भ्रम मेँ आप ना पडेँ । अपना जो आपका मस्तिष्क है उसकी सुनेँ । और ये कहते है कि दुनिया मेँ माँसाहार ये रोका नहीँ जाना चाहिए ! माँसाहार के खिलाफ पूरा आन्दोलन खडा हुआ है ! वो तो गाय के घी और दूध के भी खिलाफ खडा हो गया है ! अभी इस पर शोध की जरुरत है, और जब तक ये शोध नहीँ होता इस तरह के टेलिविजन कार्यक्रमोँ पर विश्वास करने की जरुरत नहीँ है । और दुसरी बात ये है कि टेलिविजन कार्यक्रम ये केवल मैँ दर्शकोँ को भी ये बताना चाहुँगा कि हमलोग भी टेलिविजन पर इस समय है । आपलोग भी हमेँ TV के माध्यम से देख रहे है । न्यूज चैनल के माध्यम से देख रहे है, तो इनका कार्य क्या है ? न्यूज चैनल का कार्य ? आप तक "खबर" पहुँचाना । लेकिन आजकल ये खबर पहुँचाने की जगह "अपने विचार" पहुँचाने लग गये है । मैँ खुद #आयुर्वेद का छात्र रहा हुँ । मैने गुरु-शिष्य परंपरा से आयुर्वेद सीखा है इसलिए मैँ दावे से आयुर्वेद के एक-एक तत्त्व के बारे मेँ बता सकता हुँ । मैने खुद गुर-शिष्य परंपरा से #योग सीखा है इसलिए मैँ खुद योग के एक-एक सूत्र को जानता हुँ, उसमेँ कौनसे नियम दिये गये है ये बताता हुँ । और तीसरी बात कि, हमने कभी भी शाकाहार और माँसाहार मेँ ये नहीँ कहा कि माँसाहार श्रेष्ठ है या शाकाहार श्रेष्ठ । मैने ये जरुर कहा है कि शाकाहार ही श्रेष्ठ है लेकिन ऋषियोँ की परंपरा मेँ शाकाहार श्रेष्ठ है या माँसाहार, इसके विषय मेँ कोई गाईडलाईन है ही नहीँ । इसलिए अगर आप कौलान्तक पीठ के बारे मेँ जानते होँ, अगर आपने मुझे इससे पहले शाकाहार या माँसाहार के बारे मेँ सुना हो तो मेरी बातेँ आपको याद होगी, मैने कहा है कि, "ऋषि ये कहते है कि, माँसाहार निषिद्ध है लेकिन बिलकुल से बन्द नहीँ है, पूर्ण निषिद्ध नहीँ है । कारण क्या है कि कभी-कभी देश, काल और परिस्थिति के मुताबिक उस पर छूट दी जाती है लेकिन वहाँ पर भी आचारसंहिता है लेकिन उन्होँने कहा कि सर्वोत्तम आहार, श्रेष्ठ आहार वो वनस्पतियोँ के द्वारा प्रदत्त है इसलिए हमेँ सबसे पहले शाकाहार करना चाहिए और उसके बाद "मध्य आहार" वो होता है जिसको हम घी, दूध, दहीँ कहते है वो शाकाहार नहीँ है, उसे "मध्य आहार" कहा जाता है, "यक्षिणी भोजनम्" के अन्तर्गत ये भोजन आते है, अचार, चटनी, मुरब्बा इत्यादि । तो आचार भोजन की जो संहिता है वो केवल उतनी ही नहीँ है जितनी आपने किताबोँ मेँ पढ ली; चरक संहिता, शुश्रुत संहिता, काश्यप संहिता मेँ है । उससे पार भी आपको वहाँ जाना पडेगा लेकिन इनको इन तत्त्वोँ का ज्ञान नहीँ है इसलिए मैँ आपको ये कहता हुँ कि ये विवाद तो अभी बढेंगे, अभी तो #International_Yoga_Day आया नहीँ है । तो अभी इनको तकलीफ होगी ही । तो भारत मेँ इतने सारे लोग है जिनको हमारा धर्म, हम पसंद नहीँ है, तो वो अपने आप को ऐसा प्रटेन्ड करने की कोशिश करते है कि देखिये हम तो न्यूट्रल है, हम तो मीडिया है पर भेड की खाल मेँ छिपे हुए ऐसे लोग जो ऐसे भेडिये जो है ये ज्यादा दिनोँ तक छिपे नहीँ रहनेवाले । मीडिया की खाल मेँ छिपे हुए ये लोग जो हमेँ परेशान करना चाहते है या "आयुष मंत्रालय" को टार्गेट कर रहे है ये मूर्खतापूर्ण कृत्य है । मैँ इसकी घोर निन्दा करता हुँ और मैँ मजबूती से खडा हुँ..मजबूती से ! मैँ इस संस्कृति के एक-एक पर्व और परंपरा को जानता हुँ ! ये आपको और हमको भ्रमित नहीँ कर सकते और इस तरह से भारत के नौजवान जो हमारे वो "विचारवान" है आज..उनके पास इन TV चेनल्स के अतिरिक्त Youtube, facebook इस तरह का जो मॉडर्न मीडिया आ गया है अब जिसको हम Social Media के नाम से जानते है उनसे भी ये लोग जुडे है; इनको पता है कि टेलिविजन चेनल्स प्रोपगेन्डा करने मेँ आजकल माहिर हो गये है लेकिन फिर भी आपने एक अच्छा मुद्दा उठाया, एक अच्छा प्रश्न । मुझे लगता है कि सावधानी की बेहद जरुरत है यहाँ । अक्षर भैरव जी : तो ईशपुत्र ! जिस प्रकार आपने जो क्लिएरीटी दी ये तो पूरी तरह से एक बात ही बदल देती है । और अब हमारे जो युवा है जो #Yoga के प्रति, आयुर्वेद के प्रति आकर्षित है उनके लिए आपका सन्देश क्या है ? कैसे कन्क्डुड करे क्योँकि बिन्दु तो चार ही थे उसमेँ से उन्होँने एक बिन्दु उठाके उसी पे ही ये बवाल बना दिया है । तो कन्क्लुजन क्या हो ? आगे कैसे बढा जाये जी ? #ईशपुत्र: देखिये, सीधी सी बात ये है कि आपको गुरु की जरुरत पड जाती है । देखिये अगर आप कौलान्तक पीठ मेँ, या सिद्धोँ की पीठ मेँ या हिमालय की परंपरा मेँ या हमारे ऋषि-मुनियोँ की वेदिक परंपराओँ मेँ भी देखते है तो कामवासना के प्रति भी गुरु आपको निर्देश देते है ! और आज लोगोँ को लगता है कि ये क्या बात हुई ! आज भी पूरी दुनिया मेँ कौनसा ग्रंथ #Sex को लेकर विश्वप्रसिद्ध है ? कामशास्त्र । और कामसूत्र वो कहाँ से उत्पन्न हुआ ? भारत से । ऋषियोँ का ज्ञान उससे भी विशद् है । हम पुराने ग्रंथोँ को भूल गये है, पुरानी परंपराओँ को भूल गये है लेकिन अभी भी भारत मेँ "वाम मार्ग" नाम की एक परंपरा है जो कि कामशास्त्र को बहुत अच्छी तरह से जानती है, बहुत डिटेल से जानती है लेकिन उसके बारे मेँ लोगोँ को जानकारी नहीँ है ! वहाँ कामशास्त्र मेँ कैसे जीवन को ले जाना है आगे इसके बारे मेँ बताया है ! अगर हम, भारत और भारत मेँ # हिन्दूधर्म Sex का विरोधी होता तो # कामशास्त्रकी रचना करता ? # कोकशास्त्रकी रचना करता ? वात्स्यायन कौन है ? तो एक बार जरा अपने आँख, कान, नाक, मुँह खोलकर सुना कीजिए । इन मीडिया के इस नेगेटिव प्रोपगेन्डा मेँ मत पडीये । ये मीडिया मेँ कुछ इस तरह का धनाढ्य वर्ग आ गया है जिन्होँने पहले से ही... जबसे भारत स्वतन्त्र हुआ है तब से हिन्दूओँ का और योग मेँ रुचि रखनेवाले योगियोँ का विश्वभर मेँ सिर्फ हिन्दू धर्म के लोग ही नहीँ है जो आयुर्वेद मेँ रुचि रखते है, सिर्फ हिन्दू धर्म के लोग ही नहीँ है जो योग मेँ रुचि रखते है; अन्य लोग भी है क्योँकि हिन्दू धर्म किसी एक का नहीँ है ! विश्वबन्धुत्व की भावना है उसके अन्दर, "सर्वभूत हिते रताः ॥" तो मेरी ये सीधी सी राय है कि कोई भी व्यक्ति जो योग सीख रहा है, आयुर्वेद को जानना चाहता है और यदि आयुर्वेद मेँ, योग मेँ कोई ऐसा भ्रमपूर्ण सिद्धान्त आपको लगता है कि अरे ये कुछ ठीक नहीँ है ! तो गुरु से पूछिए, आचार्योँ से पूछिए; वो आपको बताएँगे कि इसका क्या मतलब है । मीडिया से मत पूछिए, जो एंकर चिल्लाकर बात करता है क्या उसको पता है कि चरक संहिता मेँ क्या लिखा है ? क्या वो जानता है कि कश्यप संहिता क्या है ? उसे पता है कि शुश्रुत किस प्रकार से अपना कार्य करते थे आगे ? ऋषि परंपराओँ मेँ क्या लिखा है ? अह...उन्होनेँ देख लिया... अगर आप उनसे पूछेंगे कि आपने ऐसा क्योँ कहा ? कहेंगे, "सरकार को ऐसी गाईडलाईन्स जारी करने से बचना चाहिए । ये ऐसा लगता है कि बीजेपी का प्रोपगेन्डा है या RSS का प्रोपगेन्डा है ।" ये नाम इस तरह से लेते है लेकिन बीजेपी और RSS के नाम पे ये दरअसल "हिन्दू धर्म" को टार्गेट करना चाहते है । क्योँ ? क्योँकि हिन्दू धर्म एक ऐसा धर्म है जो सभी को सहज स्वीकार कर लेता है; मान लीजिए मेरे पास कोई आदमी आता है कहता है, "मैँ क्रिश्च्यन हुँ, मुझे योगा सीखना है ।" तो मैँ ये नहीँ कहता कि, "पहले आप हिन्दू कन्वर्ट हो जाओ उसके बाद ही आप योग सीख सकते हो ।", क्या मैँ कहता हुँ ? सवाल ही पैदा नहीँ होता ! कोई मुस्लिम भाई मेरे पास आ जाए और कहे, "जी मुझे योगा करवा दीजिए ।" क्या मैँ कहुँगा तू पहले गंगा मेँ डूबकी लगा ? तू अपनी सफेद टोपी उतार दे ? सवाल ही पैदा नहीँ होता क्योँकि हमारा धर्म ऐसा सीखाता ही नहीँ है ? तो हमारे अंदर ये कुत्सित भावनाएँ है ही नहीँ इस कारण पूरी दुनिया ये जान गयी है कि, 'हिन्दू धर्म सर्वश्रेष्ठ है और सबके लिए है और वो किसी प्रकार का भेदभाव करता नहीँ है इसी वजह से ये कुछ ऐसे मूरखतापूर्ण मुद्दे उठाने की कोशिश मेँ लगे रहते है, ये इनका एक प्रयास है । तो अक्षर भैरव जी ! आप स्वयं एक योगी है, कितने देशोँ मेँ आप योग सीखा रहे है, कितने लोगोँ को आप योग सीखा रहे है और आयुर्वेद के बारे मेँ बता रहे है, आपको चिन्ता करने की जरुरत नहीँ है, आप इस तरह के प्रोपगेन्डा से खुद को बचाकर रखेँ और अवेयरनेस फैलाएँ पूरी दुनिया मेँ, कि आपको घबराने की जरुरत नहीँ है, किसी का कोई धर्म खतरे मेँ नहीँ है । आयुर्वेद सिद्धांत की बात करता है । तो यदि आपको कुछ भी लगता है कि उन्होँने गलत कहा है या उस किताब मेँ गलत लिखा है, मुझसे पूछिए मै जवाब देनेँ को तैयार हुँ, और वो कहते है कि, 'सरकार को ऐसा नहीँ करना चाहिए ।' क्योँ नहीँ करेगी सरकार ? पहली बात, या तो सरकार आयुर्वेद और योग को हटा ही देँ यदि वो उसका संरक्षण नहीँ कर सकते यदि उसके पास तर्क नहीँ है और दुसरी बात कि, मेरे पास तर्क है तो जो मेरे पास सीखने आयेगा मैँ उसको समझाने के लिए तैयार हुँ कि इसके पीछे क्या कारण है । और फर्जी मीडिया को जवाब देने का मेरा कोई औचित्य नहीँ है । मुझे कहते रहते है, कयी चेनल्सवालोँ के फोन्स लगातार आते रहते है । मैँ क्युँ आजकल इनको मुँह नहीँ लगाता ? पहले आपने देखा होगा मैँ लगातार कयी चेनल्स पे रहा लेकिन मैँ इनके साथ रहते रहते इनमेँ से बहोत सारे मीडिया ग्रुप्स को समझ चूका हुँ कि उनके क्या हिडन प्रोपगेण्डा है और आप जब उनको