कुछ बकवास पण्डितोँ नेँ, पोँगा पण्डितोँ नेँ जातिप्रथा के नाम पर, छुआछुत के नाम पर, उँच-नीच के नाम पर हमको बाँट डाला... ये कहा कि स्त्रियोँ को दीक्षा प्राप्त करनेँ का अधिकार नहीँ है, स्त्रियाँ धर्म नहीँ अपना सकती, उनको माता-पिता की आज्ञा से धर्म मेँ जाना चाहिए, उनको पति की आज्ञा से दीक्षा लेनी चाहिए, माता-पिता कहेँगे तो ही दीक्षा लेगी लडकी, पति कहेगा तो ही दीक्षा लेगी औरत, वो स्वतन्त्र नहीँ है लेकिन जो वास्तविक हमारी "सिद्ध-परम्परा"है इस तरह की बकवास बातोँ को नहीँ मानती । अगर पुरुष स्वतन्त्र होकर दीक्षा प्राचीन काल से लेता था तो हमारे यहाँ भैरवियाँ तो प्राचीन काल से माँ-बाप का विरोध करके, परिवार का भी विरोध करके, पति का भी विरोध करके दीक्षित हुई है अपने पथ पर आगे बढी है... स्वतन्त्रता है आपकी.. हमनेँ बाँधा नहीँ लेकिन पोङ्गा पण्डितोँ नेँ इसमेँ अहम भूमिका निभाई है इसीलिए भारत मेँ हम जो कौल ब्राह्मण हुए इनके पूर्वजोँ को श्रीनगर, जम्मु-कश्मीर का क्षेत्र छोडकर काश्मीर से पलायन करना पडा और जो बचे थे वो मुस्लिम बन गये । हिन्दूओँ की विशेषता रही कि उन्होनेँ जीवन के महत्त्व को समजा है । जब आततायी हाथ धो कर पीछे पड गये तो अधिकांश नेँ तो आत्मदाह कर लिया, मरने के लिए तैयार हो गये, वीरगति को प्राप्त हो गये । जो थोडे डरपोक हिन्दू थे वो मुसलमानोँ मेँ परिवर्तित हो गये । आज भी आप जाकर देख लिजिए सारे अधिकाँश मुसलमानोँ का अगर आप अतीत देखेँगेसब हिन्दूकुश के रहनेवाले ही है 😊 । अब दुबारा मत मुझसे पूछना और दुबारा मुझे मत कहना कि हिन्दूकुश वो क्षेत्र है जहाँ पर हिन्दूओँ का वध किया जाता था । हिन्दूकुश वो क्षेत्र है जहाँ बैठकर मैँ खुमानी खाता हुँ, समझ मेँ आ गया ? इसलिए हिन्दू डर जायेँगेये सोचना बेवकूफी है । मैँ वो धर्मगुरु भी नहीँ हुँ जो ये कहता है कि क्रिश्चियनिटी को समाप्त कर दो या फिर मुस्लिम धर्म को नष्ट कर दो या कोई भी और धर्म पृथ्वी पर चल रह है बौद्ध धर्म उनको नष्ट कर दो, अरे क्योँ नष्ट करो ! ठीक है, आप अपने सौन्दर्य से अपने जीवन को यापित किजिए, अपने जीवन को जीना आपका अधिकार है, लेकिन तभी तक ! जब तक आप मेरी नाक पर उँगली नहीँ उठायेँगे ! उठायेँगे तो मैँ भी मारुँगा ! पलटवार करुँगा ! क्योँकि मैँ बहोत सालोँ तक चुप रहा पता है आपको ? आज से तकरीबन आठ-नौँ हजार सालोँ से मैँ चुप ही तो हुँ और इन बीते तीन हजार दो हजार सालोँ से तो मैँ बहोत चुप हुँ और आखरी के एक हजार सालोँ से तो मैँ ऐसा मौन हो गया कि लोगोँ ने सोचा कि ये तो नपुंसक हो गये ! हम अंग्रेजोँ के गुलाम हो गये, हम मुगलोँ के गुलाम हो गये क्योँ ? क्योँकि कहा, "बाबाओँ का काम तो है उपदेश देना ! भूखे रहना और संसार को छोडकर के गुफाओँ-कन्दराओँमेँ रहना !" तो हमारे बाबाओँ ने कहा, "ठिक है ! आप सॉसायटी जब ऐसा कह रही है, जब समाज ये कह रहा है तो हम समाज की बात मानकर देख लेते है ।" तो हिमालय की गुफाओँ मेँ चले गये और क्या हुआ पीछे से देखा ? कितने हजार सालोँ तक देश गुलाम रहा ! अब बहोत हो गया गुफाएँ और कन्दराएँ ! अब यहाँ डँटने का समय है ! देखते है, क्या होता है । फिल्हाल तो खुमानी खाने का सिजन है, मौसम अच्छा है, खुमानियाँ भी अच्छी है । हम खुमानी खा रहे है, तुम्हारे पास तो होगी नहीँ । तुम मेरे पास तो आ सकते नहीँ लो खुमानी खा सकते हो यहाँ से तो खा लो और अगर यहाँ से नहीँ खा सकते तो बाजार से खरीद कर खा लो, पर खुमानी खाओ और खुश रहो...। खुश रहोकुश मत रहोठीक है ! ॐ नमः शिवाय ! प्रणाम! - महासिद्ध ईशपुत्र