मार्कंडेय पुराण के अनुसार नवम नवरात्र की देवी का नाम सिद्धिदात्री है, एक बार कैलाशाधिपति भगवान शिव से देवी पार्वती नें पूछा की भगवन आप इतने विराट और अंतहीन कैसे हैं और सभी सिद्धियाँ आप में कैसे निहित हैं, तो शिव देवी स बोले देवी आप ही वो शक्ति हैं जो मेरी समस्त शक्तियों का मूल हैं किन्तु पर्वतराज के घर उत्पन्न होने से आप पूर्व भूल गयी हैं, अत: आप ज्ञान प्राप्त करें, तब देवी नें शिव से पहले ज्ञान प्राप्त किया जो आगम निगम बने, फिर आगमों निगमों से परिपूर्ण हो देवी को अपने वास्तविक स्वरूप का बोध हुआ, तब देवी सभी सिद्धियों को धारण किये परात्पर मंडल में विराजमान हुई,माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं, इनका वाहन सिंह है, ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं, इनके नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है, माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाता है, देवी की आराधना से भक्त को अणिमा , लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता , दूर श्रवण , परकाया प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है, यदि कोई अत्यंत कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर भी माँ की कृपा का पात्र बन सकता है, ऐसी देवी की महिमा तो शास्त्र भी नहीं बता सकते, बड़े-बड़े ऋषि मुनि भी देवी की अपार क्षमताओं के आगे नतमस्तक हैं, देवी को पूर्णावतार भी माना गया है, इनकी साधना से ही सभी प्रकार की सिद्धियाँ व शक्तियां साधक प्राप्त करता है, देवी महा महिमा के करण इनको सिद्धिदात्री पुकारा गया है
परात्पर मंडल में स्थित सर्व सिद्धियों वाली महादेवी ही सिद्धिदात्री देवी हैं, महाशक्ति सिद्धिदात्री स्वयं योगमाया ही हैं जो सारी शक्तियों व सिद्धियों की मूल है, यह भी कथा आती है की शिव द्वारा देवी को को ज्ञान देने से जब देव पूर्ण हुई तब सिद्धिदात्री स्वरुप में प्रकट हुई, देवी के उपासक देवी से आशीष ले कर सभी सिद्धियाँ प्राप्त कर लेते हैं, देवी सिद्धिदात्री की भक्ति करने वाले भक्त की त्रिलोकी भर में जय-जयकार होती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए नवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के तेहरवें अध्याय का पाठ करना चाहिए
पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
(शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए नौवें दिन का प्रमुख मंत्र है
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
मंत्र-ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्री देव्यै नम:
जैसे मंत्र-ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्री देव्यै स्वाहा:
माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष अथवा मोतियों की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
990 022 500 707 210 880
009 321 690
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को लाल या पीले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, सिद्धिदात्री देवी का श्रृंगार लाल व पीले वस्त्रों व आभूषणों से ही किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा प्रभात व संध्या अथवा रात्री को की जा सकती है, संध्या व रात्री की पूजा का समय देवी सिद्धिदात्री की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी संध्या या रात्री के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मन्त्र - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ॥
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को रुद्राक्ष या सोने चाँदी से बने आभूषण माला आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में पूजा का सामान नारियल वस्त्र चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र के गुरुमंडल में देवी का ध्यान करने से साधक महासमाधी प्राप्त करता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में केसर व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, आठवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा समुद्र का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी,देवी से अणिमादी सिद्धियों की प्राप्ति होती है या कोई गुप्त इच्छा हो तो पूर्ण होती है, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ जां जातिस्वरूपिन्ये निशुम्भबधकारिनयै नम:
(न आधा लगेगा)
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ या श्री: स्वयं सुकृतानाम भवनेश्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:,
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवी विश्वं
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा नौवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी भी निकट के क्षेत्रीय शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज नौवें नवरात्र को नौ कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, नौवें नवरात्र को अपने गुरु से "पूर्णत्व दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन की पूर्णता और तृप्ति को अनुभव कर सकें व आनन्दमय शरीर की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, नौवें नवरात्र पर होने वाले हवन में खीर व पंचमेवा की आहुतियाँ देनी चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले नौवें नवरात्र का ब्रत साय ठीक सात बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों व मिठाइयों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल व पीले रंग के वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
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यन्त्र-
990 022 500
707 210 880
009 321 690
और
60 78 88
77 26 62
47 11 39
दोनो यंत्र क्या 1 ही है या अलग अलग। सभी देवियों का सुभ अंक क्या है। कृपया कर के दीक्षा प्रदान करे। धन्यवाद
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