मार्कंडेय पुराण के अनुसार पंचम नवरात्र की देवी का नाम स्कंदमाता है, प्राचीन कथा के अनुसार एक बाद देवराज इन्द्र ने बालक कार्तिकेय को कहा की देवी गौरी तो अपने प्रिय पुत्र गणेश को ही अधिक चाहती है, तुम्हारी और कभी दयां नहीं देती, क्योंकि तुम केवल शिव के पुत्र हो व तुमको तो देवी कृत्तिकाओं ने ही पाला है, इस पर कार्तिकेय मुस्कुराए और बोले जो माता संसार का लालन पालन करती है, जिसकी कृपा से भाई गणेश को देवताओं में अग्रणी बनाया, वो क्या मेरी माता होते हुये भेद-भाव करेगी, तुम्हारे मन में जो संदेह पैदा हुआ है उसकी आधार भी मेरी माता ही हैं, मैं उनका पुत्र तो हूँ ही लेकिन उनका भक्त भी हूँ, हे इन्द्र जग का कल्याण करने वाली मेरी माता निसंदेह भक्तबत्सल भवानी है, ऐसे बचन सुन कर ममतामयी देवी सकन्दमाता प्रकट हुई और उनहोंने अपनी गोद में कार्तिकेय को बिठा कर दिव्य तेजोमय रूप धार लिया, जिसे देखते ही देवराज इन्द्र क्षमा याचना करने लगे, सभी देवगणों सहित इंद्र ने माता की स्तुति की, माता चतुर्भुजा रूप में अत्यंत ममता से भरी हुई थी, दोनों हाथों में पुष्प एक हाथ से वर देती व कार्तिकेय को संभाले हुये देवी तब सिंह पर आरूढ़ थी, देवी का कमल का आसन था, तब देवताओं के द्वारा स्तुति किये जाने पर देवी बोली मैं ही संसार की जननी हूँ मेरे होते भला कोई कैसे अनाथ हो सकता है? मेरा प्रेम सदा अपने पुत्रों व भक्तों के बरसता रहता है, सृष्टि में मैं ही ममता हूँ, ऐसी ममतामयी माँ की पूजा से भला भक्त को किस चीज की चिंता हो सकती है? बस माँ को पुकारने भर की देर है, वो तो सदा प्रेम लुटती आई है,
भगवान् कार्तिकेय जी के कारण उतपन्न हुई देवी ही स्कंदमाता है , महाशक्ति स्कंदमाता पार्वती जी का तेजोमय स्वरुप हैं जो सृष्टि को माँ के रूप में ममत्व और प्रेम प्रदान करती हैं, भगवान् कार्तिकेय का लालन पालन करने के कारण ही द्वि को स्कंदमाता कहा जाता है, देवी के उपासक जीवन में कभी अकेले नहीं होते ममतामयी स्कंदमाता सदा उनके साथ रह कर उनकी रक्षा करती है, संकट की स्थित में पुकारे पर देवी सहायता व कृपा करने में बिलम्ब नहीं करती, थोड़ी सी प्रार्थना व स्तुति से ही प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए पांचवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए , पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें , फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है , यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
(शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए पांचवें दिन का प्रमुख मंत्र है
मंत्र-ॐ सः ह्रीं ऐं स्कंदमातायै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
जैसे मंत्र-ॐ सः ह्रीं ऐं स्कंदमातायै स्वाहा:
माता के मंत्र का जाप करने के लिए कमलगट्टे की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
929 345 224
677 632 891
654 756 879
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को लाल रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, स्कंदमाता देवी का श्रृंगार लाल रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को कुमकुम,केसर, लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं , माता की मंत्र सहित पूजा सुबह व शाम की जा सकती है, संध्या की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है , मंत्र जाप के लिए भी संध्या व प्रात: मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व कलश को जनेऊ जरूर अर्पित करना चाहिए, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को गिरने से बचाना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें
यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मंत्र-ॐ सः ह्रीं ऐं
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को हलवे का प्रसाद तथा फलाहार या मीठा भोग आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मिठाई व फल चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है , विशुद्ध चक्र में देवी का ध्यान करने से पांचवा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं ,प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पांचवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल लाना या अर्पित करना बहुत बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए
तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे अकेलेपन की समस्या हो या न्याय न मिल पाने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ छां छायास्वरूपिन्ये दूतसंवादिनयै नम:(न आधा लगेगा)
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें
व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते
भयेभ्यस्त्राही नो देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा पांचवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो इच्छानुसार किसी भी शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज पांचवें नवरात्र को पांच कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ बटुआ धन कोष गुल्लक आदि भेंट करना चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें
पांचवें नवरात्र को अपने गुरु से "कालज्ञान दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप विविध काल और सृष्टि चक्र को जान सकें,समत्व की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, पांचवें नवरात्र पर होने वाले हवन में जौ की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व देसी घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले पांचवें नवरात्र का ब्रत ठीक सात पचपन पर सायं खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल अथवा मेरून रंग के वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और रक्त वस्त्र धारण कर सकते हैं , भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
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