ब्रह्माण्ड को पैदा करने के कारण देवी का नाम पड़ा कूष्मांडा, महाशक्ति कूष्मांडा योगमाया का दिव्य तेजोमय स्वरुप हैं जो सृष्टि को पैदा करने के लिए उत्पन्न हुआ, संसार में अण्डों से जीवन की उत्त्पत्ति कराने की शक्ति ब्रह्मा जी को देने के कारण भी देवी को कूष्मांडा कहा जाता है, देवी के उपासक अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं तथा इछामृतु का वर देने वाली यही देवी हैं, देवी भक्ति, आयु, यश, बल, आरोग्य देने में जरा भी बिलम्ब नहीं करती, देवी को प्रसन्न करने के लिए चौथे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के पांचवें व छठे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
(शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी कूष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए तीसरे दिन का प्रमुख मंत्र है
मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं कूष्मांडा देव्यै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
जैसे मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं कूष्मांडा देव्यै स्वाहा:
माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
775 732 786
151 181 102
762 723 785
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को भगवे रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, चंद्रघंटा देवी का श्रृंगार भगवे रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को केसर, लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा कभी भी की जा सकती है, रात्री की पूजा का देवी कूष्मांडा की साधना के लिए ज्यादा महत्त्व माना गया है
मंत्र जाप के लिए भी संध्या व रात्री मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक बड़ा घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व कलश को लाल कपडे से ढक कर रखें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को भगवे वस्त्र, रुद्राक्ष माला तथा गेंदे के फूलों का हार आदि अर्पित करना चाहिए
मंदिर में भगवे रंग की ध्वजा चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, अनाहत चक्र में देवी का ध्यान करने से चौथा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में कपूर व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, चौथे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और दो अन्य नदियों का जल लाना बहुत बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे संतान प्राप्ति की समस्या हो या विदेश यात्रा की, या पद्दोंन्ति की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ क्षूं क्षुधास्वरूपिन्ये देव बन्दितायै नम:
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ शरणागतदीनार्त परित्राणपरायणे
सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणी नमोस्तुते
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा चौथे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी गुफा वाले शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज चौथे नवरात्र को चार कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ आभूषण देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, चौथे नवरात्र को अपने गुरु से "ब्रहमांड दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप देवत्व प्राप्त कर लेते हैं व ब्रह्म विद्या की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, चौथे नवरात्र पर होने वाले हवन में काले तिलों की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले चौथे नवरात्र का ब्रत ठीक सात पंद्रह बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर का प्रसाद बांटना चाहिए
आज सुहागिन स्त्रियों को भगवे अथवा पीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और भगवे या पीले रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
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