"मनुष्य जिस दिन विज्ञान के चरमोत्कर्ष पर पहुंचेगा....उस दिन भी वो मानसिक शांति के लिए मंत्र जाप की शरण में ही लौट कर आएगा.....क्योंकि सहस्त्रों वर्षों पूर्व ही ऋषियों नें मन के अन्दर झांक कर...मन्त्र की रचना को अलौकिकता से पूर्ण पाया था. आज भी साधक केवल मंत्र जाप द्वारा इष्ट और गुरु को प्रसन्न कर सकते हैं....किन्तु मंत्र मन से जुड़ा है....अगर मन में भाव न हों......अगर मन में विश्वास न हो...संदेह हो तो...मंत्र केवल व्यर्थ का एक शब्द मात्र है.......शास्त्र कहते हैं....पाषाण ह्रदय के लिए कविता नहीं होती और मूढ़ बुद्धि के लिए मंत्र.......इसलिए गुरु कोई भी मंत्र केवल पात्र को ही प्रदान करते हैं-कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज"-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय.
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Adesh guru mandal ko
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