"यदि आप अध्यात्म पथ के पथिक है तो ये याद रखना रूपांतरण तो तुम्हारा निश्चित ही है...किन्तु भौतिक जगत भीतर के रूपांतरण को नहीं समझ पाता, वो केवल बाहर-बाहर देखता है.......इसलिए जो रूपांतरण की प्रक्रिया में हो उसे संसार में रहते हुए भी असंसारी जैसा होना पड़ता है......जो इस चुनौती को स्वीकारता है वो उपलब्ध हो जाता है."-'कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज'-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय
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