कौलान्तक पीठाधीश्वर कहते हैं-एक छोटा सा बालक धीरे-धीरे सीखता है और युवा होता है, वही ज्ञान धीरे-धीरे वृद्धावस्था तक पहुंचता है और समाप्त हो जाता है, किन्तु ऋषि परम्परा कहती है कि बौधिक ज्ञान की अपेक्षा साधक को चेतना में वृद्धि करनी चाहिए, तब कोई भी अवस्था क्यों न हो ज्ञान बढ़ता ही जाएगा, मृत्यु उसे समाप्त नहीं कर पाएगी. वो मृत्यु के बाद भी बढ़ता ही जायेगा. रहस्यमय बात है कि वो मृत्यु से अमृत तत्व की ओर ले जाएगा. किन्तु सबके लिए ये संभव नहीं. इसे उच्च धरा पर विराजमान साधक ही समझ पाता है.लेकिन इस उच्च धरा पर साधक को निरंतर अभ्यास और वैराग्य ही ले जा सकता है"-कौलान्तक पीठ टीम.
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