'कौलान्तक पीठ हिमालय' प्रस्तुत करता है 'तारा महाविद्या' के साधकों हेतु कौलान्तक क्रमानुसार 'अक्षोभ्य भैरव' मंत्र। ये मंत्र 'तारा महाविद्या' के सभी स्वरूपों की साधना हेतु अनिवार्य है व निरंतर साधना व दीक्षा काल में प्रयुक्त होना चाहिए। माँ तारा की अनियत्रित शक्ति को आगमानुसार केवल अक्षोभ्य पुरुष ही रोक सकते हैं। इस कारण हमारे संप्रदाय यानि 'उत्तर कौल' संप्रदाय (जिसे अब इस नाम जानते है.…किन्तु इसको पूर्व में योगिनी कौल मत कहा जाता था) के तांत्रिकों के अतिरक्त 'तंत्र योगियों' नें भी अक्षोभ्य पुरुष के ध्यान क्रम को सबसे प्रमुख व महत्वपूर्ण बताया है। हालाँकि 'पूर्व कौल' संप्रदाय की मान्यता इससे थोड़ी भिन्न है। दोनों मतों को 'कौलान्तक पीठ' नें सम्मान पूर्वक ग्रहण कर दोनों को स्थान दिया है जो गुरुमुख से आपको प्राप्त होता है ।
मंत्र-ॐ भ्रौं भ्रौं स: अक्षोभ्य भैरवाय ह्रौय ह्रौय भं हुं फट।
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