dharm‎ > ‎

बज्र देह दानव दनल महाबीर हनुमान



जब बक्तों के प्यारे बजरंगबली पैदा हुए थे, शिव ने भक्तों की रक्षा के लिए व भगवान् राम जी की सेवा व राम काज को पूरा करने के लिए मृत्यु लोक अर्थात पृथ्वी पर पवनदेव के तेज से बानर राज केसरी और रानी अंजनी के घर जन्म लिया, अत्यंत बलशाली होने के कारण नाम पड़ा महाबीर बजरंगबळी, बाल्यकाल से अद्भुत सिद्धियाँ होने व पवन पुत्र होने के कारण हवा में उड़ने व किसी भी लोक तक चले जाने की क्षमता उनमें थी, बाल्यकाल से ही उनहोंने कई राक्षसों का बध करना शुरू कर दिया था, सूर्य को आकाश में देख कर उसे निगल लिया तब सभी देववी देवताओं नें प्रार्थना कर उनसे सूर्य को मुक्त करने को कहा तो बजरंगबळी ने सूर्य को बाहर उगला, सूर्य भगवान् नें प्रसन्न हो कर उनको अपना शिष्य बना लिया, भगवान् सूर्य जैसे गुरु से ज्ञान पा कर महाबीर का सामना करने का साहस तीनों लोकों में किसी के पास नहीं रहा, लेकिन महाबीर बालक होने के कारण अक्सर तपस्यारत र्तिशी मुनियों से भी छेड़ छाड़ करते कुपित हो कर ऋषियों ने उनको शक्तियां भूल जाने का शाप दिया, क्षमा याचना पर ऋषियों नें कहा की समय अनुसार आवशयकता पड़ने पर तुम्हारी शक्तियां वापिस आ जाएँगी, जब राम जी को माता सीता का वियोग हुआ तब हनुमान जी से उनका मिलन हुआ, राम लक्ष्मण को कन्धों पर उठा कर वायु मार्र्ग से सुग्रीव तक ले गए,समय आने पर महाबीर ने लंका कूद कर पार कर ली, मार्ग में आने वाली बाधाओं व परीक्षाओं को धैर्य व नीति पूर्वक पूरण किया, अशोक वाटिका उजाड़ कर राक्षस वीरों को स्वर्ग पहुंचाया, मरणासन लक्ष्मण को बचाने के लिए हिमालय पर्वत से एक पहाड़ ही उठा कर ले आये, जब मेघनाद नें भगवान् राम और लक्षमण को नागपाश में बाँध लिया तब वैकुण्ठ जा कर गरुड़ जी को ले कर आये, युद्ध में कई वीरों को यमलोक पहुंचाया, सीता माता की सबसे पहले सुधि लाने वाले हनुमान जी ही थे, अयोध्या वासियों तक सीता राम के आगमन का उनहोंने ही समाचार पहुँचाया, रावण की कैद से शनि को मुक्त करवाया, जब शनि नें पिता से अभद्रता की तो, सूर्य के कहने पर शनि को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया और भगवान् सूर्य के सामने उपस्थित कर दिया, सीता माता द्वारा दी गयी मोतियों की माला को तोड़ कर दरवारियों के कहने पर हन्मुमान जी नें सीना चीर दिया और अपने प्रब्न्हू राम सीता की युगल मूर्ती के दर्शन संसार को करवाए, लवकुश से युद्ध के दौरान बुद्धि संयम का अद्भुत परिचय दिया, बालकों के पाश में बांध गए, भगवान् राम जी के सरयू नाड़ी में सनान्न के बाद वैकुण्ठ लौटने पर भी महाबीर भक्तों की रक्षा और धर्म की स्थापना के लिए पृथवी पर ही रहे, रामायणकाल के अतिरिक्त महाभारतकाल में जब भीम को अपने बल का घमंड हो गया तो हनुमान जी नें उनको कहा कि भीम तुम मेरी पूंछ उठा कर एक और कर दो, लेकिन पूरा प्रयास करने पर भी भीम पूंछ को हिला तक नहीं पाए, भगवान् श्रीकृष्ण जी और अर्जुन के रथ पर ध्वजा में स्वयं महाबीर उपस्थित रहे, इसीलिए युद्ध के पश्चात श्रीकृष्ण अर्जुन का रथ धमाके के साथ नष्ट हो गया, क्योंकि हनुमान जी नें रथ को छोड़ दिया था, कलियुग में भी हनुमान जी जीवित ही माने जाते है क्योंकि उनको चिरंजीवी होने का आशीर्वाद मिला है, महाभारत के अनुसार महाबीर हनुमान आज भी गंधमादन नाम के पर्वत पर रहते हैं, कहा जाता है की जहाँ जहाँ रामायण का पाठ होता है हनुमान जी सूक्ष्म रूप या प्रत्यक्ष रूप में जरूर वहां आते हैं, कलियुग में गोस्वामी तुलसीदास जी को राम लक्ष्मण जी के दर्शन भी हनुमान जी ने ही करवाए थे, हनुमान जी का इतना बल है की पातळ में अहिरावन को मार कर महाबीर हनुमान जी नें उसकी भुजाएं ही उखाड़ ली थी, ज्ञानियों में प्रथम रहने वाले, भक्तों को ज्ञान देने वाले, भूत प्तेतों का नाश करने वाली महाबीर का सुमिरन ही सब दुखों का नाश करने वाला है, नीच ग्रह यक्ष, किन्नर,किरात आदि सब इनके भय से थर-थर कांपते हैं, तो मान्गियें शीघ्र प्रसन्न होने वाले हनुमान जी से सकल मनोरथ, मानिये हनुमान जी को और शत्रुओंका रोगों का दुखों का नाश कीजिये, पाइए धन वैभव, नीच ग्रहों से मुक्ति पा कर सुखद जीवन का आशीर्वाद पाइए 
                                                              शत्रु नाश के लिए, रोग मुक्ति के लिए, रोजगार व व्यापार में लाभ के लिए,विद्या व बुद्धि के लिए, बलशाली शरीर के लिए,शनि मंगल राहु केतु जैसे नीच ग्रहों से मुक्ति के लिए, अकाल मृत्यु व दुर्घटना आदि से बचाव, हनुमान जी की कृपा पाने व दर्शन करने के लिए महामंत्र 

ॐ हं हनुमते नम:

हनुमान गायत्री

शाबर स्तुति मंत्र

स्तुति मंत्र

-कौलान्तक पीठाधीश्वर 
महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज