तीन वर्ष की आयु में ही महायोगी जी हिमालय की सिद्ध परम्परा में दीक्षित हो गए

जब महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज तीन बर्ष कुछ माह के हुए ही थे कि एक दिन उनके पिता जी के पास एक लम्बे कद का लम्बी दाढ़ी मूछों वाला साधू आया....और कहने लगा कि तुम्हारे घर पर एक बालक पैदा हुआ है.....जिसके बांये  पांव के अंगूठे के नीचे रेखाओं का गोल चक्र है....वो मेरा पिछले जन्म का शिष्य है....मुझे उसे देखना है......तब तक महायोगी जी के माता पिता ने भी बालक के पाँव के नीचे के चक्र को नहीं देखा था.....जब देखा तो बहुत ही हैरान हुए.....और वो साधू कहने लगा कि यह बालक उनको सौंप दिया जाये.....भला कोई माता पिता किसी के केवल इतना कहने से अपना बालक सौंप देंगे क्या?उनहोंने साधू को समझाया......लेकिन साधू नहीं माना....जिस कारण दोनों पक्षों में तनातनी हो गयी.....अंततः इस बात पर निर्णय हुआ कि बालक साधू को नहीं दिया जायेगा.......लेकिन बालक को दीक्षा दे कर साधू का शिष्य बनाया जायेगा.....ये साधू कोई और नहीं स्वयं "महागुरु कौलान्तक पीठ शिरोमणि प्रातः स्मरणीय सिद्ध सिद्धांत नाथ जी महाराज"थे.....इस तरह तीन वर्ष कि आयु में ही महायोगी जी हिमालय कि सिद्ध परम्परा में दीक्षित हो गए....महागुरु का कोई चित्र नहीं है.....केवल एक मात्र रेखाचित्र ही है जिसकी महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज पूजा करते हैं.....यहाँ मैं वो चित्र दे रहा हूँ ताकि दादागुरु जी कि छवि का कुछ अनुमान आपको भी हो सके.....
 कौलान्तक पीठ शिरोमणि प्रातः स्मरणीय श्री सिद्ध सिद्धांत नाथ जी महाराज
  कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी के प्रथम गुरु महाराज

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