- महासिद्ध ईशपुत्र
मंगलवार, 26 नवंबर 2019
योगी जीवन - 1
- महासिद्ध ईशपुत्र
सोमवार, 25 नवंबर 2019
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
भावार्थ :
देवी ! आप प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हैं और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हैं । जो लोग आपकी शरण में हैं, उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं ; आपकी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं ।
माता तू कमला है तू ही नारायणी
आदि सरस्वती काली संतोषी।
माता तू कमला है तू ही नारायणी।
तू ही नित लेती मां कई अवतार है,
दुष्टों का करती मां तू ही संहार है।
तू ही नित लेती मां कई अवतार है,
दुष्टों का करती मां तू ही संहार है।
पापों से मुक्ति तू पल में दिलाए,
मन के तू सारे मां भरम मिटाएं।
माता तू कमला है तू ही नारायणी,
आदि सरस्वती काली संतोषी।
तू ही है जग में मां तू ही संसार है,
तू ही है महिमा वो जो अपरम्पार है।
तू ही है जग में मां तू ही संसार है,
तू ही है महिमा वो जो अपरम्पार है।
जीवों को माया तू बनके भरमाए,
भक्तों को अपने तू दरशन करवाए।
माता तू कमला है तू ही नारायणी,
आदि सरस्वती काली संतोषी।
तू ही है ज्योति मां तू ही अंधकार है,
तू ही है लघुता मां तू ही विस्तार है।
तू ही है ज्योति मां तू ही अंधकार है,
तू ही है लघुता मां तू ही विस्तार है।
तू ही मां जीवन का सत्य बताए,
तू ही मां दुखों से पार लगाए।
माता तू कमला है तू ही नारायणी,
आदि सरस्वती काली संतोषी।
तू ही बल बुद्धि मां जीवन आधार है,
देवी ही शक्ति से चलता संसार है।
तू ही बल बुद्धि मां जीवन आधार है,
देवी ही शक्ति से चलता संसार है।
जीवों को भव से तू पार ले जाएं,
भक्तों को अपने तू चरण लगाए।
माता तू कमला है तू ही नारायणी,
आदि सरस्वती काली संतोषी।
माता तू कमला है तू ही नारायणी,
आदि सरस्वती काली संतोषी।
माता तू कमला है तू ही नारायणी...।
- महासिद्ध ईशपुत्र
रविवार, 24 नवंबर 2019
क्षितिज न आवे हाथ
संत, योगी यति, संन्यासी, गुरु सभी का एकमात्र प्रयास है कि तुम साधना करो क्योँकि साधना से तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप क्षण मेँ नष्ट हो जाते है । शब्द आया है "क्षण मेँ" ! एक व्यक्ति था । उसने जीवन मेँ कभी भी अच्छा कार्य नहीँ किया ! वो बहुत ही अनैतिक व्यक्ति था, परम हिंसावादी था । वो डाकु बन गया और एक गाँव से दुसरे गाँव जानेवाले राहगीरोँ को लूटा करता था । यही उनकी दिनचर्या थी । ऐसे व्यक्ति के भीतर एक दिन परमात्मा को जानने की ललक किसी संत ने जगा दी । दरसल हुआ योँ कि उसी जंगल के मध्य मेँ से किसी योगी को गुजरना था, तो योगी तो अपनी मस्ती मेँ चलते हैँ । गाँववालोँ ने योगी को खुब समजाया कि, "बाबा ! देखो इधर से मत जाना क्योँकि गलती से तुम उस डाकु के हाथ मेँ पड गये तो तुम्हारे पास तो पहले ही कुछ नहीँ है तो क्रोध मेँ आकर वो तुम्हारा वध अवश्य कर देगा ।" लेकिन योगी भी अपनी मौज के मतवाले होते है । वे तो सृष्टि के प्रपंच को जाननेवाले होते हैँ । भला उनके लिए जीवन-मृत्यु का भय कहाँ अपनी स्थिति रखता है ? ये सब वस्तुएँ तो उसके सामने गौण होती है । वैसे ही वे परम दिव्य योगी ये जानने के बाद कि वो उनका वध कर देगा, वे उसी वन के मार्ग से होते हुए गुजर रहे थे । अचानक उस डाकु नेँ उसे आते देखा तो उसे उसने पकड लिया और कहा कि, "तुम्हारे पास जो कुछ है तुम मुझे दे दो ।" तो जोगी के पास एक कमण्डल था, उन्होने उसे वो पकडाया; कहा, " लो मेरे पास मात्र यही है ।" तो डाकु ने उसे ले लिया तो जोगी नेँ कहा, "देखो सावधान ! इस कमण्डल को रखने के बडे नियम है, बडे प्रपंच है, इसे हर कोई धारण नहीँ कर सकता ।" डाकु ने बडी-बडी मूछोँ को ताव देते हुए पूछा, "तू किसे डराने की चेष्टा कर रहा है ? और मैँ तेरी बातो मेँ नहीँ आनेवाला । तू भाग जा । मुझे तुम पर दया आ गयी है ।" वास्तव मेँ उसे कोई दया नहीँ आयी थी, वो योगी का प्रभाव, उसके भीतर की शक्ति का प्रभाव था कि उसके अंदर का हिंसक जानवर भी अहिंसक हो उठा था । उसके भीतर भी कहीँ प्रेम खडा हो गया था । तो योगी की बात पर उसने योगी को आँखे दिखाई तो योगी निर्भय रहते हुए पुनः बोला, "अगर तुम इसके नियम नहीँ अपनाओगे तो हानि तुम्हेँ अवश्य होगी ।" तो हानि के भय से वह पूछने लगा कि, "अच्छा ! चलो तुम कहते हो तो बता ही दो कि इसके क्या नियम है ?" उसने कहा कि, "जो भी व्यक्ति इस कमण्डल को अपने पास रखता है उसे प्रतिदिन एक ऐसा कार्य करना होता है जिस से वह परमात्मा की ओर थोडा सा बढ जाए ।" अब वो तो डाकु था, उसे परमात्मा से क्या लेना-देना ? लेकिन अब कमण्डल उसने ले लिया था और योगी ने कहा कि, "जो चीज मैँ तुम्हेँ एक बार दे चूका हुँ मैँ उसे वापिस नहीँ लेता ।" और ठाकु को इस बात का पता चला तो वो घबराया, उसने कहा, "मैँ परमात्मा को नहीँ मानता और तुम्हारे इन झंझट मेँ मैँ क्योँ पडुँ ? अपना कमण्डल पकडो और यहाँ से चलते बनो ।" लेकिन योगी ने कहा, "नहीँ ये कमण्डल अब मैँ तुम्हे दे चूका हुँ, अब मैँ किसी भी कीमत पर इसे वापिस नहीँ लुँगा और तुम्हेँ इसका जो नियम है वो मानना ही पडेगा, इसकी मर्यादा रखनी ही पडेगी और योगी की बात मेँ वो सम्मोहन, दिव्यता और गंभीरता थी कि उसे जुकना ही पडा । वो योगी तो चलते बने वहाँ से लेकिन फिर वह डाकु इस बात की चेष्टा मेँ प्रतिदिन रहता कि मैँ एक भला काम कर लुँ ताकि परमात्मा की ओर जा सकुँ और फिर वो इस बात की खोज करने लगा कि कौनसा माध्यम है जिसके द्वारा परमात्मा की ओर जाया जा सकता है और ऐसे पता करते करते एक दिन उसे पता चला कि गाँव मेँ कोई श्रेष्ठ भक्त आ रहा है, कोई भागवत का कार्यक्रम है । जिस समय भागवत हो रहा था तो वो डाकु अपने घोडे पर आया और उसने भागवताचार्य को एक हाथ से उठाया और घोडे पर बिठाकर जंगल मेँ ले गया । जंगल मेँ ले जाकर उसने पूछा कि, "देखो, डरने की कोई जरुरत नहीँ है । मैँ तुम्हेँ मारुँगा नहीँ मैँ तुम्हेँ वहीँ जाकर सुरक्षित छोड दुँगा किन्तु ये बताओ कि परमात्मा को पाया कैसे जा सकता है ?" अब भागवत का जिसने अध्ययन किया है भगवान तो उसके रोम-रोम मेँ बसा है और भागवताचार्य वो जिसने भगवान को भीतर उतार दिया है और उसका वह विवरण दे रहा हो । तो ऐसे दिव्य भागवताचार्य ने उसे बताया कि, "तुम तप करो, तुम ध्यान करो और भीतर उतरो ।" और उन्होनेँ उसे एक प्रणाली दी और एक पद्धति प्रदान कर दी और गुरुमन्त्र दे दिया । उसे परमात्मा के पथ पर दीक्षित कर दिया और एक क्रान्ति घटित हुई । भागवताचार्य को वापिस गाँव मेँ छोड दिया गया और वह डाकु एक सुमसान पर्वत पर चला गया, जहाँ पर मानवोँ का आवागमन बहुत दुर्लभ था । ऐसे पर्वत पर जा कर उसने अपनी साधना, अपना तप प्रारंभ कर दिया और वो अपना आत्मनिरीक्षण करता रहा । उसने देखा कि, आज मुझे दस दिन तप करते-करते हो गये है लेकिन मैँ हुँ अभी भी डाकु ही, आज एक माह हो चूका है लेकिन मै हूं अभी भी डाकू ही और जन्मो जन्म के पाप और इस जन्म के पाप मेरे साथ ही है, आज 4 माह हो चुके हैं लेकिन मैं हूं अभी भी डाकू ही, आज 1 वर्ष, 2 वर्ष, 5 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन हूं अभी भी मैं एक डाकू ही लेकिन कितनी महान बात थी कि, 8 वर्ष बीत गए और वह डाकू इसी पर्वत पर उस भागवताचार्य के बताएं तप को लगातार एकजुट भाव से करता रहा और बीच में क्रांति घटित हुई! अचानक उसे समाधि का बोध हुआ! समाधि के कपाट उसके लिए खुल गए! वो उस समाधि के द्वार से भीतर प्रविष्ट हुआ और उस अलौकिक ब्रह्मांड को जानना उसने प्रारंभ कर दिया, वो परम विराट में जाकर खो गया उसके जन्मोजन्म के पाप क्षण मात्र में नष्ट हो गए! अगर किसी कालकोठरी में 25000 वर्षों से लगातार अंधकार है तो क्या जैसे ही उस कालकोठरी का किवाड़ खोला जाएगा तो प्रकाश को भीतर आने के लिए भी 25000 वर्ष लगेंगे? बिल्कुल नहीं। जैसे ही किवाड़ खुलेगा तुरंत अंधकार गायब और प्रकाश हो जाएगा। अमावस्या की रात्रि में जब कहीं कोई प्रकाश नहीं है, सर्वत्र अंधकार है, आकाश भी बादलों से आच्छादित है; ऐसे वातावरण में जब प्रकाश का कहीं नामोनिशान नहीं है; आप एक दिए को जलाते हैं तो क्या दिए को जलाते ही अंधकार नष्ट ना होगा? जैसे ही दिया जलेगा अंधकार तो उसी समय नष्ट हो गया! वैसे ही आपको तथ्य समझना होगा! उसी प्रकार जैसे ही परमात्मा का तुम्हें बोध होगा, तुम्हें ज्ञान मिलेगा तुम्हारे जन्म जन्मांतर के पाप तो स्वतः क्षणमात्र में नष्ट हो जाएंगे, देरी कहां है? तुम क्यों अपने आप को अंधकार में रख रहे हो? तुम क्यों इस तरह की मनघड़ंत बातें घड लेते हो?और ध्यान रहे, ये करना भी तुम्हारा खुद का है, तुम ही घड़ रहे हो; इसका भी कारण है, वो है तुम्हारा आलस्य, तुम्हारा जगत के प्रति खिंचाव । इस जगत ने तुम्हें अपनी और इतना खींच कर रखा है, इतना आकृष्ट कर के रखा है कि तुम इस जगत को त्यागना ही नहीं चाहते। जो चीज तुम्हें पसंद ना हो उसे ना करने के लिए तुम बहुत से बहाने खोज लेते हो। विद्यार्थियों में एक आदत होती है कि वह सुबह जल्दी नहीं उठ पाते। तो ऐसे विद्यार्थियों को यदि आप पूछेंगे कि, "तुम सुबह जल्दी क्यों नहीं उठते? क्योंकि ब्रह्म मुहूर्त में उठने से तो स्मरण शक्ति बढ़ती है, तुम्हें आसानी से याद हो जाएगा।" तो वो कहेंगे, "नहीं, मुझे सुबह याद नहीं होता! मुझे रात को याद होता है इसलिए मैं रात के 11-12 1:00 बजे तक बैठ सकता हूं लेकिन प्रभात में नहीं उठ पाऊंगा।"
वास्तव में ऐसी कोई भी बात नहीं है कि रात्रि में उससे अधिक याद होने वाला है। प्रभात में उससे दुगना होगा और होगा ही यह सत्यता है। लेकिन वह सुबह उठना नहीं चाहता इसलिए उसने बहाना बना लिया है।
बस उसी प्रकार यह सब बहाने तुमने बना रखे हैं परमात्मा की ओर नहीं जाने के। कि मैंने जन्मो जन्म से पाप किए हैं तो जन्मो जन्म अब इन पापों को नष्ट करने में लग जाएंगे तो परमात्मा को प्राप्त करते-करते बहुत देर लग जाएगी। और तुम बहाना निकालते हो कि यह मेरे बस की नहीं है और अब यह मुझसे नहीं होने वाला इसलिए मैं साधना क्यों करूं? मैं तप क्यों करूं? मैं भक्ति क्यों करूं?
तुमने अपने आप को बचाने के बहुत से बहाने ढूंढ रखे हैं। लेकिन गलत गलत ही होता है। असत्य असत्य ही होता है। उसका आधार नहीं होता, वह निराधार होता है। उसी प्रकार आप का प्रश्न निराधार है।
मन की मूढ़ताओं से सावधान रहना, ये मन बहुत चालाक है!साधना से, तप से तुम्हे विमुख करने के लिए कोई ना कोई माध्यम, कोई ना कोई बहाना ढूंढ लेगा।
- महासिद्ध ईशपुत्र
वास्तव में ऐसी कोई भी बात नहीं है कि रात्रि में उससे अधिक याद होने वाला है। प्रभात में उससे दुगना होगा और होगा ही यह सत्यता है। लेकिन वह सुबह उठना नहीं चाहता इसलिए उसने बहाना बना लिया है।
बस उसी प्रकार यह सब बहाने तुमने बना रखे हैं परमात्मा की ओर नहीं जाने के। कि मैंने जन्मो जन्म से पाप किए हैं तो जन्मो जन्म अब इन पापों को नष्ट करने में लग जाएंगे तो परमात्मा को प्राप्त करते-करते बहुत देर लग जाएगी। और तुम बहाना निकालते हो कि यह मेरे बस की नहीं है और अब यह मुझसे नहीं होने वाला इसलिए मैं साधना क्यों करूं? मैं तप क्यों करूं? मैं भक्ति क्यों करूं?
तुमने अपने आप को बचाने के बहुत से बहाने ढूंढ रखे हैं। लेकिन गलत गलत ही होता है। असत्य असत्य ही होता है। उसका आधार नहीं होता, वह निराधार होता है। उसी प्रकार आप का प्रश्न निराधार है।
मन की मूढ़ताओं से सावधान रहना, ये मन बहुत चालाक है!साधना से, तप से तुम्हे विमुख करने के लिए कोई ना कोई माध्यम, कोई ना कोई बहाना ढूंढ लेगा।
- महासिद्ध ईशपुत्र
शनिवार, 23 नवंबर 2019
What is inside Siddha Dharma?
2. सिद्ध योग मार्ग
3. तन्त्र मार्ग
4. सिद्ध मनो लोक मार्ग
5. सिद्ध चिकित्सा
6. सिद्ध संगीत नृत्य कला मार्ग
7. सिद्ध चित्रकला मूर्तिकला मार्ग
8. सिद्ध धातु रत्न विद्या मार्ग
9. सिद्ध रसायन मार्ग
10. सिद्ध कामकला मार्ग
11. सिद्ध तर्कशास्त्र
12. सिद्ध विद्या मार्ग
13. सिद्ध परंपरा अनुराग
14. देवानुराग और स्थलानुराग मार्ग
15.भविष्य बोध मार्ग
16. युद्ध विद्या मार्ग
17. सिद्ध विश्व बोध मार्ग
18. सिद्ध न्याय शास्त्र
19. सिद्ध वैश्य शास्त्र
20. सिद्ध प्रजा नृप शास्त्र
शुक्रवार, 22 नवंबर 2019
उज्जाई प्राणायाम
- महासिद्ध ईशपुत्र
गुरुवार, 21 नवंबर 2019
मूर्छा प्राणायाम
इस प्राणायाम को करने की रीती को भली भांति देख ले ।
इस प्राणायाम को करने के लिए आपको दोनों नासिका उसे धीरे-धीरे श्वास भीतर भरना होता है और भीतर उस श्वास को ले जाकर पेट में एकत्रित करना पड़ता है एकत्रित करने के बाद गर्दन को पीछे कर दिया जाता है और मुख को खोल दिया जाता है और श्वास को पेट में ही रोक कर रखा जाता है और जब तक रक्त मस्तिष्क तक ना पहुंचे तब तक पीछे रहते हैं और धीरे-धीरे आगे होने के बाद स्वास्थ्य छोड़ दिया जाता है । यह है मूर्छा प्राणायाम ।
इस प्राणायाम को करते ही आप पाएंगे कि संपूर्ण रक्त आपके मस्तिष्क तक चढ गया है और पुनः जब आप आगे झुकते हैं तो सारे शरीर में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है । आपको मूर्छा सी आनी प्रतीत होती है । यह मूर्छा प्राणायाम है और मंत्र साधक इसे किया करते हैं ।
- महासिद्ध ईशपुत्र
सोमवार, 18 नवंबर 2019
हिमालय के प्रखरतम महायोगी की महासमाधी
कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज योग क्षेत्र के चमकते सूर्य हैं...उनसा योगी युगों युगों में ही धरती पर जन्म लेता होगा...एक अद्भुत सा जीवन है महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज का....जिनको इसलिए समझना मुश्किल है क्योंकि उनका महामस्तिष्क मानवीय सीमाओं से परे हैं.....एक ओर महायोगी कहते फिरते हैं कि वो बहुत ही साधारण से हिमालय के जोगी हैं......वहीँ दूसरी और उनका महाविराट स्वरुप देख कर साधक की आँखें फटी की फटी रह जाती है......पर यदि साधक हो तो!....क्योंकि भले ही कोई कुछ कहे लेकिन सच ये है कि कोई यदि इस दुनिया का सबसे बड़ा विचारक हो.......चिन्तक हो.......दुनिया उसे मानती हो....तो वो भी सत्य स्वरुप को नहीं समझ सकता.....मेरा ये दावा नहीं है कि महायोगी अवतार हैं....लेकिन साहित्यक भाषा में ऐसा मानव अवतारी ही माना और कहा जाता है.....योग के न जाने कितने रूपों को महायोगी जी जानते है...पर बात वही कि बताएँगे किसको..?...सामान तो है.....दुकानदार भी.....पर बिडम्बना ये है कि ग्राहक ही नहीं हैं.....शायद यही कारण है कि महायोगी हिमालय के सबसे बड़े योगी होने के बाद भी बिलकुल गौण हैं.....जिस हिमालय को महायोगी पर नाज है...जो हिमालय महायोगी को अपना पुत्र कहता है.....शायद उसी हिमालय ने महायोगी को इतना जटिल बना दिया कि उनको कोई समझ ही नहीं पा रहा....लेकिन मुझे विश्वास है कि एक दिन प्रबुद्ध साधकों का एक बड़ा समूह महायोगी जी के रहस्यों से जुड़ कर...महासमाधि के महारहस्य को जान जायेगा....
भारत में ऐसे बहुत ही कम साधक होंगे जिनको बाल्यकाल से समाधि का अनुभव हुआ हो.....लेकिन सिद्ध परम्परा के चंद्रमा....कौलान्तक पीठ को वाममार्गी घृणित तंत्र मंत्र से मुक्ति दिलानेवाले महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी सहज समाधी को उपलब्ध मायाधारी योगी हैं....शायद उनको प्राकृतिक तौर पर ही समाधी लगती है....क्यूंकि वो समाधी के लिए कोई महाभ्यास नहीं करते.....मैंने उनके साथ जितना भी समय बिताया......तब यही जान पाया हूँ कि......एक दुबला पतला सुन्दर सा बालक महायोगी और पीठाधीश्वर वो भी सबसे रहस्यमयी पीठ का..?....उस पीठ के हजारों नहीं लाखों दुश्मन है.....लेकिन जब वास्तविकता से पाला पड़ा तो मुझे सूर्य कहाँ से उदय होता है ये पता चला..!.....महायोगी जी की समाधी का तरीका देख कर तो मैं सोचता हूँ कि मुझ जैसे आदमी के लिए ये संभव ही नहीं हैं.....लेकिन महायोगी जी जब समझाते हैं तो लगता है कि मैं भी एक न एक दिन पहुँच ही जाऊँगा........कभी कभी समाज में महायोगी जी को देख कर बहुत हंसी आती है......कोई भी साधारण सा पुजारी.....पंडा....पुरोहित....बड़े बड़े तर्क महायोगी को दे कर ये जताने का प्रयास करते हैं कि वो ही सबकुछ जानते हैं महायोगी जी तो बच्चे हैं....और
सचमुच बच्चे ही हैं......उनको जबाब ही नहीं देते....बस हाथ जोड़े हाँ में हाँ मिला देते हैं.....ऐसे पुरुष में समाधी के ज्वलंत बीज देख कर भ्रमित हो जाना सहज ही है.....ये तो छोडिये ज्योतिष और समय साधना..!...काल पुरुष की महापूजा के महारहस्यों को जानने वाले महायोगी जी का दुर्भाग्यबश कभी किसी ज्योतिषी से मिलना हो जाये तो समझ लीजिये महायोगी जी के राहु-केतु खराब हो गए....वो आते ही बताना शुरू कर देंगे मंगल से ये होता है...शनि ये कर देगा.... ये वाला रंग ऐसे हो तो ये प्रभाव होगा.....मेरा ये सब देख कर मस्तिष्क चकराने लगता है कि ये माजरा क्या है.....सनातन विद्याओं के रक्षक को ये क्या समझा रहे हैं.....उस पर अपनी की हुई मूर्खता पर इतने प्रसन्न होते हैं कि मानो कोई बहुत बड़ी जंग जीत ली हो.....पहले अपने अहंकार से ही नहीं जीत सकते....तो धर्म को क्या जानेगे....यहाँ तक की कोई-कोई तो पंडा पुरोहित या कथित योगी तो ये समझाना शुरू कर देते हैं कि यदि आप इतने बड़े योगी है तो समाज में क्या कर रहे हैं....?.....जंगलों या हिमालय में ही रहना चाहिए...आपको इन चीजों से..........समाज से क्या लेना देना..?..
जहाँ हिमाच्छादित पर्वत मधुर गीत गुनगुनाते हैं.....जहाँ झरनों की पवित्रता सम्मोहित करती है.....शीतल समीर में जहाँ अनहद नाद गूंजता हो....वो धरा महायोगी जी की ही तो है......शायद पत्थर पत्थर....पेड़ पेड़ भी महायोगी जी को पहचानता है......लेकिन संसार के लिए ये कहानी के सिवा कुछ भी नहीं.....जबकि हाथ कंगन को आरसी क्या...महायोगी जी अभी धरा पर ही हैं उनको देखना चाहिए.....पर नहीं! हम कष्ट नहीं उठा सकते....जब काम करना पड़ जाए तप करना पड़े तो महायोगी जी जैसे साधकों को करना चाहिए और जब केवल भगवान के बारे में मलाईदार बातें करनी हों तो वो लोग खुद उपस्थित.....जीभ हिलाना सरल जो हैं....ऊपर से भक्ति ने बिगाड़ कर रख दिया....वास्तव में भक्ति किसको उपलब्ध है? ये तो जानने में आने वाला है नहीं.....तो बैठे रहो! साधना करो नहीं! बस भक्ति हो गई.....लेकिन भला हो भाग्य का....क्योंकि मैं स्वयं ब्राह्मण हूँ ये सारी बाते जो मैंने कहीं इसीलिए सटीक कहीं......क्योंकि मैंने भी महायोगी जी के साथ शुरू में कुछ ऐसा ही किया था....पर अब वास्तविकता समझ पाया हूँ.....आप कहेंगे की समाधि की बात क्यों नहीं कर रहा हूँ....?....मैं समाधी की ही बात कर रहा हूँ कि जबतक ऐसी कुत्सित वृत्तियाँ रहेंगी....साधक का कल्याण नहीं हो सकता....साधक को सूक्ष्म बुद्धि वाला होना चाहिए......
कालनेमियों की इस दुनिया में सब समझ में नहीं आता.....सच जानना बहुत जटिल है.....लेकिन समाधी की बात कहने से पहले मैं ये जरूर बताना चाहूँगा कि जबतक हम लोगों में अधकचरा ज्ञान होता हैं.....और उस ज्ञान के आधार पर जब हमारी आजीविका और नाम समाज में चल रहा होता है तो ऐसे में महायोगी जी जैसे योगी और वास्तविक पुरुष के आ जाने से भरण पोषण का प्रबंधन और समझ को अँधेरे में रख कर कमाया हुआ नाम डगमगाने लगता है....इसीलिए हम लोग महायोगी जी जैसे आदमी का विरोध करते हैं.....लोगों का तो पता है कि वो कुछ जानते ही नहीं...वहां हम जो कहेंगे वो ही मान्य है.....फिर लगातार झूठ बोलते बोलते आदत हो जाती है....फिर लगता है कि दुनिया ऐसे ही चलती है......फिर सच्चे लोगों के सामने भी कथित ज्ञान उबाले ले ही लेता है....इसमें हमारा भी कसूर नहीं है......पर मैं गुरुदेव महायोगी जी की अनुकम्पा से ही मुक्त हो सका हूँ.....शायद इसे ही जातिपाश.....और पशुपाश से मुक्ति कहते हैं.....महायोगी जी के दर्शन मुझे तब हुए थे जब वो कालेज मैं पढ़ भी रहे थे और शिष्यों को ज्ञान भी दे रहे थे.....तब तक तो महायोगी जी की ख्याति बहुत हो चुकी थी....उनकी चर्चाएँ ही सबके मुह पर होती थी.....कि वो चमत्कारी बालक है....उसके पास अनेकों सिद्धियाँ हैं......और भी न जाने क्या क्या...?
लेकिन वो सदा ही इन बातों को नकारते रहे....वो मनोविज्ञान का अध्ययन कर रहे थे और साथ ही फिलासफी का भी...जब भी मैं कोई बात करता तो कह देते.....तुम्हें ये मानसिक बिमारी है.....बात बदलता तो कहते अब ये वाली मानसिक बिमारी है.....मैं जो भी करता वो कोई न कोई बिमारी ही होती....अब समझ गया हूँ कि मनोविज्ञान भी अपने आप मैं एक बिमारी ही है.....ठीक वैसी ही बात फिलासफी में भी थी......मैं कोई बात कहूँ तो कहेंगे कि ये नास्तिकतावाद का सिद्धांत है.....ये मार्क्सवाद का सिद्धात है....ये प्रलयवाद की सोच है.....लगता था कि जीवन एक फिलासफी ही है.....धर्म भी फिलासफी ही है.....फिर एक दौर आया जब महायोगी जी हमेशा लोगों से नास्तिकता कि बाते ही करते रहते........हर चीज उनको बस अन्धविश्वास ही लगती......हर बात में विज्ञान पदार्थ और प्रकाश अणु सूक्ष्म जीव रासायनिक परिवर्तन की ही बातें.....मुझे तो लगता था कि दुनिया के सबसे बड़े नास्तिक युवा के साथ मैं रह रहा हूँ.....लेकिन बाबजूद इसके साधना में वैसे ही....बहुत गहन तलों तक उतर कर प्रतिदिन ध्यानस्थ होना....मैं समझ नहीं पाता था.....लेकिन मैं तब ये जानता था कि मुझे देखते रहना है.....क्योंकि मायावी गुरुओं की थाह इतनी आसानी से नहीं मिलती.....यही मेरा संयम मेरे काम आया और मैं महायोगी जी को जान पाया.....जल्द्वाजी और मानवीय बुद्धि समाधि की महाशत्रु होती है.....इसीलिए ब्रह्म्प्रग्या होनी चाहिए.....यूँ तो बहुत बार मैंने महायोगी जी को समाधी की हालत में देखा है लेकिन हर बार उनका एक नया ही रूप देखने को मिलता हैं......हिमालय में बिचरण करते हुए मान लो कहीं कोई पेड़ या पत्थर या फिर कोई गुफा नजर आई तो वहां बैठ जाते हैं.....कुछ देर उस जगह की प्रशंसा करेंगे कुछ बातें करेंगे.......और कहेंगे की मैं कुछ देर ध्यान करना चाहता हूँ और बैठ गए....बस यदि चार पांच घंटे तक नहीं उठे तो बस समझ जाइये कि अब पता नहीं कब उठेंगे..?..हम सभी साथ रहने वाले समझ जाते हैं.....लेकिन समस्या तब हो जाती है जब महायोगी जी जंगल में कहीं भयानक जगह बैठ जाएँ......एक बार बर्फ से घिरे स्थान पर बड़े से पत्थर के नीचे बनी छोटी सी गुफा में महायोगी जी तेरह दिनों के लिए समाधिस्थ हो गए.....पहले ही दिन जब महायोगी जी वहां बैठे और लम्बे समय तक उठे ही नहीं तो साँसे गले में ही अटक गयी....रात हो रही थी जंगल में कडकडाती ठण्ड अब क्या करें.....तो भाई गुरुदेव जो महायोगी जी के शिष्य है नाम भी गुरुदेव ही है...है न हैरान करने वाली बात.?....और भाई हरीश जी ने जंगल से लकड़ियाँ बीन कर रात बिताई....मुश्किल से रात बीती क्योंकि साथ ही बहन मञ्जूषा जी भी थीं.......और पहली ही रात को जंगली कुत्ते काफी पास तक आ गए......मुश्किल से ही उनको भगा सके....दरअसल गलती हमारी थी हम ही जंगली कुत्तों के रास्ते में बैठ गए थे ये बाद के दिनों में पता चला.....लेकिन हम काफी नीचे थे और महायोगी जी अकेले समाधिस्थ.......तो बहन मञ्जूषा जी और भाई गुरुदेव लकड़ियाँ ले कर रात को महायोगी जी की गुफा में पहुंचे और सामने आग जला दी....ठण्ड से दांत कटकटा रहे थे.....महायोगी जी को छू कर देखा तो बिलकुल ठन्डे पड़ चुके थे नाख़ून हल्के नीले थे.....लेकिन शांत बैठे थे समाधिस्थ.....किसी तरह रात समाप्त होते ही बैग में पड़ी माता की चुनरियों और लाल कपडे से झंडियाँ बनायीं गयी और भाई गुरुदेव और हरीश ने टेंट और भोजन की व्यवस्था भी की....साथ ही महायोगी जी की गुफा के तीनो ओर झण्डों से मार्ग रोका गया ताकि भालू जैसे जानवर का अंदाजा दूर से ही लगाया जाए....
महायोगी जहाँ बैठे थे वो गलेशियर वाली जगह थी ढलान था लेकिन भाई हरीश जी की मेहनत से बाद का काम बर्फ पर भी पूरा हो गया......हमने तीन टेंट लगा लिए एक टेंट हमने महायोगी जी की गुफा के पास लगा लिया.....जो बहत ही छोटा टेंट था.....जिसमें दो आदमी भी मुश्किल से ही आ सकते थे......उस टेंट को भी जबरदस्ती वहां लगाया गया....उसके लिए भी जगह नहीं थी.......लेकिन एक आदमी को तो महायोगी जी की रक्षा के लिए वहां रहना ही था.....इसलिए ये टेंट जरूरी था.......करीब 200मीटर नीचे बेस केम्प लगाया गया था......दो आदमी वहां रह कर लकड़ी पानी भोजन की व्यवस्था करते.......भले ही महायोगी जी समाधिस्थ थे लेकिन बाकी तो भूखे नहीं रह सकते थे न.......खाली समय में हम भजन गाते जंगल घूमते.....सफाई का ध्यान रखते और कोशिश रहती कि ज्यादा से ज्यादा समय महायोगी जी के निकट ही बैठ कर ध्यान किया जाए......लेकिन थोड़ी देर में ही सबकी छुट्टी हो जाती....हम थक जाते लेकिन महायोगी एक ही आसन में रहते,सूरज निकलता और डूब जाता.....आधी रात के बाद तो ठण्ड के कारण नींद ही नहीं आती थी सुबह होने का ही इन्तजार करते रहते कि कब सूरज निकलेगा.....और इस कडकडाती ठण्ड से राहत मिलेगी......

सोचता हूँ कि महायोगी जी न जाने किस मिटटी के बने हुए हैं....समाधी में बैठ जाएँ तो बैठ जाएँ...पांच दिन.....दस दिन....पंद्रह दिन....और शांत......ऐसा लगता है कि मानो मूर्ती बैठी हो....लेकिन समाधी के दौरान भी चेहरे के हाव भाव बदलते रहते हैं....जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अभी किस तरह की अनुभूति महायोगी जी को हो रही है....आप यदि इन फोटोस को गौर से देखेंगे तो पायेंगे कि उनकी भाव भंगिमाएं बदल रही होती हैं......एक दिन तो हद हो गयी जंगली कुत्ते बेस केम्प के बीच में से गुजर गए....और चंडीगढ़ से एक टीवी चैंनल के रिपोर्टर और केमरा पर्सन भी वहां आ पहुंचे....ये तो किस्मत ही थी कि बेस में ही दो टेंट लगे हुए थे तो रहने की कोई समस्या नहीं थी....अब वो महायोगी जी को लगातार रिकार्ड करने लगे.....तो बिजली कहाँ से आती....फिर हरीश जी को जनरेटर की व्यवस्था के लिए जाना पड़ा......सड़क तक तो जनरेटर आ गया लेकिन वो बहुत ही भारी था.....उसे लाने में भाई गुरुदेव जी ने सहायता की......वो दमदार आदमी हैं.....भगवान की माया देखिये कि ये ठीक ही हुआ कि बेस केम्प इतनी दूर था की जनरेटर की आवाज गुफा तक नहीं पहुंचती थी.....अब बहन मञ्जूषा पर खाना बनाने और बीच-बीच में गुरु जी को देखते रहने का जिम्मा और बढ़ गया..........हैरानी की बात ही थी कि गुफा के आस पास कहीं भी मोबाईल फ़ोन का सिग्नल नहीं था पर बेस केम्प में था.....अब तो जनरेटर होने से और मोबाईल फ़ोन होने के कारण लोगों के फ़ोन भी आने लग गए तो मञ्जूषा जी उसमें भी व्यस्त हो गयी....जंगल में भी काम ही काम हो गया....
हालाँकि अब हम बहुत लोग वहां हो गए थे पर समस्याएं कम नहीं हुई....बर्फबारी शुरू हो गयी....हालाँकि जिस दिन महायोगी जी समाधी में बैठे थे सूर्य उसी दिन तक था.....रात को मौसम खराब हुआ और बरसता ही रहा....जबतक महायोगी जी समाधी से नहीं उठे तबतक मौसम खराब ही रहा.....लेकिन अब सबको लकड़ियों की चिंता हो गयी......तो ऐसे मौसम में भी भाई गुरुदेव जी लकड़ियाँ लाने जाते थे और गीली लकड़ियों को आग के नजदीक सूखने रखा जाता....बर्फ में खाना बनाना बर्तन धोना हमारा नहाना मुश्किल हो गया......बैसे तो कोई डरता नहीं है पर ऐसी जगह डर तो लगता ही है.....इस लिए पत्थर पर हनुमान जी कि मूर्ती बना कर स्थापित कर ली और उनसे प्रार्थना करते कि जंगली जीवों से हमारी रक्षा करें.....काफी दिनों से भोजन पानी के बिना बैठे महायोगी जी का रंग धीरे-धीरे काला पड़ने लगा......होंठ फट गए.......सबको फिर महायोगी जी की ही चिंता होने लगी.......तो महायोगी जी के नजदीक आग बढ़ा दी गयी.......अब माइनस तापमान में ठंडी हवा में मह्योगी जी की सुरक्षा ने सबकी नींद उड़ा दी.....अब गुफा वाला टेंट काम आया एक आदमी वहीँ सोता और बीच-बीच में आग जलाता जाता.....लेकिन ठण्ड में मानो आग को भी ठण्ड लग रही हो वो जलती ही नहीं थी.....बहुत ही मुश्किल से आग बनाये रखी जाती...महायोगी जी की हालत बहुत ख़राब दिख रही थी सब भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि काश ये समाधी जल्दी टूट जाए.....पर कोई लाभ नहीं....
सोचता हूँ कि इस बार तो अपेक्षाकृत महायोगी जी को काफी निचले स्थान पर स्वतः समाधि लग गयी थी लेकिन बहुत ऊँची चोटियों पर क्या होता होगा..?...सोचता हूँ महायोगी जी को किसी दुष्ट की नजर न लगे क्योंकि स्वयं महायोगी जी समाज से दूर दूर रहते हैं जिसका कारण बताते हुए वो कहते हैं कि सत्य का मार्ग असत्य को आकर्षित करता है.....सच्च झूठ को आकर्षित करता है......सज्जन दुर्जन जो सहज ही आकर्षित करते हैं.......योगी अक्सर भोगियों को आकर्षित करते हैं......तो बचना मुश्किल होता है......क्योंकि मकड़ी का सुन्दर दिखने वाला जाल परमात्मा का नहीं मौत का संकेत होता है.....महायोगी जी को समाज में बिलकुल नहीं जाना चाहिए बस इसी तरह अद्भुत जीवन जीना चाहिए.....हिमालय की कंदराओं में उनका वास्तविक रूप देख कर सुखद अनुभूति होती है......जब महायोगी जी समाधी में रहे तो टीवी रिपोर्टरों ने उनकी लगातार विडिओ बनायी जो उनके पास है....हमारे पास विड़ोज नहीं हैं केवल कुछ ही फोटोज हैं.....लेकिन बीच में भाई रमेश जी भी कुल्लू से समाधी वाली गुफा तक आये थे.....उनहोंने महायोगी जी की और समाधी गुफा के आस पास की कुछ तस्वीरें अपने मोबाईल से ली वो मेरे पास भी हैं आपके लिए मैं यहाँ दुर्लभ चित्र प्रस्तुत कर रहा हूँ......
मुझे महायोगी जी की बात 100 % ठीक लगती है कि कोई कहता है ये सब कुछ झूठ है.....तो सचमुच उसके लिए झूठ ही हैं.....जिसने रेगिस्तान नहीं देखा होता....उसे रेगिस्तान की पूरी कहानी ही झूठी लगती हैं.........महायोगी जी कहते है कि कथित ज्यादा पढ़े लिखे लोग इतने अभद्र होते है कि शिक्षा को भी शर्म आ जाए...जिसका कारण होता है अज्ञान......वे साक्षर हो सकते हैं....पर ज्ञानी नहीं.....महायोगी जी बचपन से समाधी में बैठते थे.....एक दिन किसी डाक्टर से मुलाक़ात हुयी......डाक्टर महोदय ने कहा महायोगी जी इतने-इतने दिनों एक ही स्थान पर आपके बैठने का कारण ये है कि आप मनोरोग से गुजर रहे हैं आपको एक योग्य चिकित्सक की जरूरत है......डाक्टर के सझाने से महायोगी मनोचिकित्सक के पास जाने को तैयार हो गए......महायोगी जी हमसे कहने लगे कि डाक्टर बेफिजूल तो कोई बात कहेगा नहीं......चेक करवा लेते हैं......तीन महीने तक मनोचिकित्सक से रोज मिलते उनकी बातें सुनते.....उनकी दी अंग्रेजी दवाइयां भी खाते....लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ....बल्कि दवाओं के सेवन से पाचन तंत्र जरूर गडबडा गया.....फिर मनोचिकित्सक ने उनको और बड़े मनोचिकित्सक से मिलने कि सलाह दी......लेकिन हम दुखी हो चुके थे.....रोज रोज डॉक्टर के चक्कर नहीं लगा सकते थे......और हमें तो महायोगी जी पर गुस्सा आ रहा था कि किस मूर्ख कि बातों में आ गए....फिर महायोगी जी ने केवल इतना कहा कि इस चिकित्सक को चिकित्सा का रोग हो गया है......मैं ऐसे ही पढ़े लिखे रोगी को नजदीक से देखना सुनना चाहता था.......जिस तरह उदाहरण से महायोगी जी ने समझाया वो मैं नहीं बता सकता लेकिन सचमुच समझ आ गया कि जो कभी-कभी दूसरों को सलाह दे रहे होते हैं वो भी स्वयं एक रोग से ही जूझ रहे होते हैं.....और हैरानी की बात कि जिन्होंने समाधी कभी नहीं लगाई वो ही अक्सर समाधी पर टिप्पणियां करने बैठते हैं......जो धर्म को नहीं जांनते वो ही धर्म को समझाने बैठ जाते हैं......हम लोगो ने समाधी की स्थिति में किसी को बहुत निकट से देखा ये हमारा गौरव है.......समाधी में क्या होता है ये तो महायोगी जी ही जानते हैं पर मैं केवल ये बता सकता हूँ कि लगभग तेरह दिनों बाद सुबह 8 : 15 पर महायोगी जी महासमाधि से उठे......और उनहोंने सबको आशीवाद दिया लेकिन वो बहुत कमजोर हो चुके थे.....सबने वो एतिहासिक पल देखा कि कैसे महायोगी समाधी में रहे और उठे......सबकी आँखों में आंसू थे......बेस केम्प तक भाई गुरुदेव महायोगी जी को ले कर आये....साथ थी टीवी चैनल की टीम और मंजुषा जी ने उठते ही महायोगी जी को गुनगुना पानी पिलाया और शहद के तीन चम्मच खाने को दिए.....करीब तीन घंटों के बाद महायोगी जी ने कुछ खाया तब तक सभी भजन गाते रहे...वो भी जोर-जोर से.......आज भी सारा दृश्य आँखों में घूम जाता है......ये क्षण भूले नहीं जा सकते.......बस मुझसे और नहीं बताया जाता.....समाधि के फोटो की गेलरी भी शायद जोड़ी जाएगी.....तो वहां फोटोज देखना न भूलें.....केवल एक या दो विड़ोस ही समाधी की हैं जो यू टयूब में है आप देख सकते हैं......मैं अभी नया साधक हूँ ज्यादा मर्यादाएं नहीं जानता....यदि इस ब्लाग को लिखते समय कोई अभद्रता हो गयी हो.......या फिर कोई गलती हो गयी हो तो कृप्या आप सभी मुझे मूढ़ समझ कर क्षमा कर दें......बहुत बहुत धन्यवाद
-रविन्द्र शर्मा
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