"विरह सौभाग्य है, श्रेष्ठता है, पवित्रता है....विरह तो साक्षात् वरदान ही है...........होठों को थरथराहट आँखों को सजलता देता है.........सिसकारियों के बीच कविता उठने लगती हैं......विछोह के बीच मिलन के गीत उठने लगते हैं.....आंसुओं की झिलमिलाहट प्रिय दर्शन में सहयोगी हैं....ये एक ऐसा सौभाग्य है कि तुम्हें........मीरा.......सूर.......कबीर.......की श्रेणी में खड़ा कर पूर्णता प्रदान करेगा, विरह दुःख नहीं है....विरह शत्रु भी नहीं..."-'कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज"-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय.
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