कुगति माता वास्तव में कृतिकाएँ नाम की देवियाँ हैं

हिमाचल प्रदेश में एक जिला है-लाहोल स्पीती.....इसी जिले के एक गाव जाहलमा इस गाव से कुछ आगे जा कर चंद्रभागा नदी पार कर दो दिनों का पैदल सफर कर बहुत ही ऊँचे पर्वत पर एक छोटा सा मंदिर है.........इस पर्वत का नाम है कुगति जोत.....और माता को कुगति माता कहा जाता है.......इस मंदिर तक पहुंचना एक चुनौती है........सारे रास्तो में पहाड़ों से टूट-टूट कर पत्थर गिरते रहते हैं......ओक्सीजन की कमी के कारण एक एक कदम मुश्किल से ही रखा जाता है......रास्ते बर्फ से भरे हुए थहैं.......बर्फ पर ही चल कर इस मंदिर तक पहुंचना पड़ता है....गलेशियर को पार करना बहुत मुश्किल है.....क्योंकि गलेशियारों में दरारे पड़ी होती हैं......जो 15 -20 फुट गहरी होती है, मुश्किल से उनको पार कर मंदिर तक पहुंच सकते हैं.......खाने पीने का सामान पीठ पर उठा कर ले जाना पड़ता है......वहां का तापमान जमा देने वाला है....इस क्षेत्र में बारिश नहीं होती......चारों और बहुत ऊँचाइयों के पर्वत है.....इस मंदिर में पूजा करना भी बहुत ही मुश्किल है....तेज़ हवाएं खड़ा ही नहीं होने देती....पर मातारानी की कृपा से वहां तक जरूर पहुंचा जा सकता है....कहा जाता है कि कुगति माता वास्तव में कृतिकाएँ नाम की देवियाँ हैं जो आकाश में रहती है....भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय जी को इन्ही माताओं ने पाल पोस कर बड़ा किया था.....इसी पर्वत पर पहली बार माताएं भगवान कार्तिकेय को ले कर शिव भगवान के पास आई थी....इसी स्थान पर उन्होंने कार्तिकेय को शिव को सौंपा ..........अच्छे लालन पालन के कारण माँ पार्वती प्रस्सन हुई.....उनहोंने कृतिकाओं को अष्टभुज दुर्गा के रूप में दर्शन दिए.....और कहा ये स्थान पृथ्वी पर सिद्धियाँ देने वाला होगा .......जो भी भक्त यहाँ लाल बस्त्र अर्पित करेगा....वह दुक्खों से मुक्त हो समस्त मनोवांछित पायेगा....तथा कृतिकाओ की रक्षा के लिए शेष नाग को कुछ दूरी पर स्थापित किया.......यही पर्वत पर शिव रहते है.......साप जैसा एक पहाड़ नजदीक ही है.....रास्ते में पर्वत पर नंदी बैठे हुए है जो पत्थर गिरा कर लोगो का सदा रास्ता रोकते हैं.......ताकि कोई दुष्ट आत्मा सीधे ही प्रवेश न कर जाए.....इसी स्थान पर तबसे माता पार्वती और कृतिकाओ की पूजा होती है.....माता पार्वती हिमाचल की पुत्री है...यह उनकी लीला स्थली की गाथा है......                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             

कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ

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