मंगलवार, 23 अप्रैल 2019
जागो धर्म रक्षकों
मंगलवार, 16 अप्रैल 2019
अठारह पुराण
दरसल मैँ ये समजाने की कोशिश कर रहा हुँ कि जो हर युग मेँ, हर कल्प मेँ अलग-अलग मन्वंतर मेँ अलग-अलग वेदव्यास पैदा होते है वो उस युग के अनुरुप उन चीजोँ का संकलन करके हमारे सम्मुख हमेँ प्रस्तुत कर देते है या परोस देते है जो हमारे युग के और हमारे कालखण्ड के अनुरुप होती है और जो हमारे समय मेँ पहले घटनाएँ घट चूकी है उनको और धर्मदर्शन को, नैतिकता को और मन्त्रोँ को, कर्मकाण्ड को, ज्योतीष को, रसायन को, पारद को, साहित्य को, ललितकलाओँ को इन सबको संजोकर के वो एक पुस्तक का, एक लयात्मकता का, एक ग्रंथ का, एक रचना का निर्माण करते है जो एक पुराणविशेष के नाम से प्रकट होते है; फिर उस पुराण की कथा किसी नायक से भी शुरु हो सकती है
सोमवार, 15 अप्रैल 2019
भजो रे मनवा कालिका चरण
कलिका चरण सुखधाम रे
भजो रे मनवा कलिका चरण सुखधाम रे
कलिका चरण सुखधाम रे
जिनके चरणों में जग है सारा
जिनका मोती है सूरज तारा
जिनके चरणों में जग है सारा
जिनका मोती है सूरज तारा
ऐसी मैय्या को भज ले तू
ऐसी मैय्या को भज ले तू
भजो रे मनवा कलिका चरण सुखधाम रे
कलिका चरण सुख धाम रे
जिसनें सबके दुखड़े मिटाए
जिसने सूरज चाँद बनाये
जिसनें सबके दुखड़े मिटाए
जिसने सूरज चाँद बनाये
ऐसी मैय्या को भज ले तू
ऐसी मैय्या को भज ले तू
भजो रे मनवा कलिका चरण सुखधाम रे
कलिका चरण सुख धाम रे
आशा सबकी पूरी करती
मन के सब संताप वो हरती
आशा सबकी पूरी करती
मन के सब संताप वो हरती
ऐसी मैय्या को भज ले तू
ऐसी मैय्या को भज ले तू
भजो रे मनवा कलिका चरण सुखधाम रे
कलिका चरण सुख धाम रे
जन्म मरण का नाता जिससे
करले प्रीत तू उस मैय्या से
जन्म मरण का नाता जिससे
करले प्रीत तू उस मैय्या से
ऐसी मैय्या को भज ले तू
ऐसी मैय्या को भज ले तू
भजो रे मनवा कलिका चरण सुखधाम रे
कलिका चरण सुख धाम रे
भजो रे मनवा कलिका चरण सुखधाम रे
कलिका चरण सुख धाम रे
भजो रे मनवा कलिका चरण सुखधाम रे
कलिका चरण सुख धाम रे
भजो रे मनवा कलिका चरण सुखधाम रे
कलिका चरण सुख धाम रे
- महासिद्ध ईशपुत्र
रविवार, 14 अप्रैल 2019
हिन्दूकुश का वास्तविक सत्य
नवम नवरात्र वर देंगी महाशक्ति सिद्धिदात्री
मार्कंडेय पुराण के अनुसार नवम नवरात्र की देवी का नाम सिद्धिदात्री है, एक बार कैलाशाधिपति भगवान शिव से देवी पार्वती नें पूछा की भगवन आप इतने विराट और अंतहीन कैसे हैं और सभी सिद्धियाँ आप में कैसे निहित हैं, तो शिव देवी स बोले देवी आप ही वो शक्ति हैं जो मेरी समस्त शक्तियों का मूल हैं किन्तु पर्वतराज के घर उत्पन्न होने से आप पूर्व भूल गयी हैं, अत: आप ज्ञान प्राप्त करें, तब देवी नें शिव से पहले ज्ञान प्राप्त किया जो आगम निगम बने, फिर आगमों निगमों से परिपूर्ण हो देवी को अपने वास्तविक स्वरूप का बोध हुआ, तब देवी सभी सिद्धियों को धारण किये परात्पर मंडल में विराजमान हुई,माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं, इनका वाहन सिंह है, ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं, इनके नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है, माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाता है, देवी की आराधना से भक्त को अणिमा , लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता , दूर श्रवण , परकाया प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है, यदि कोई अत्यंत कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर भी माँ की कृपा का पात्र बन सकता है, ऐसी देवी की महिमा तो शास्त्र भी नहीं बता सकते, बड़े-बड़े ऋषि मुनि भी देवी की अपार क्षमताओं के आगे नतमस्तक हैं, देवी को पूर्णावतार भी माना गया है, इनकी साधना से ही सभी प्रकार की सिद्धियाँ व शक्तियां साधक प्राप्त करता है, देवी महा महिमा के करण इनको सिद्धिदात्री पुकारा गया है
परात्पर मंडल में स्थित सर्व सिद्धियों वाली महादेवी ही सिद्धिदात्री देवी हैं, महाशक्ति सिद्धिदात्री स्वयं योगमाया ही हैं जो सारी शक्तियों व सिद्धियों की मूल है, यह भी कथा आती है की शिव द्वारा देवी को को ज्ञान देने से जब देव पूर्ण हुई तब सिद्धिदात्री स्वरुप में प्रकट हुई, देवी के उपासक देवी से आशीष ले कर सभी सिद्धियाँ प्राप्त कर लेते हैं, देवी सिद्धिदात्री की भक्ति करने वाले भक्त की त्रिलोकी भर में जय-जयकार होती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए नवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के तेहरवें अध्याय का पाठ करना चाहिए
पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
(शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए नौवें दिन का प्रमुख मंत्र है
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
मंत्र-ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्री देव्यै नम:
जैसे मंत्र-ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्री देव्यै स्वाहा:
माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष अथवा मोतियों की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
990 022 500 707 210 880
009 321 690
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को लाल या पीले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, सिद्धिदात्री देवी का श्रृंगार लाल व पीले वस्त्रों व आभूषणों से ही किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा प्रभात व संध्या अथवा रात्री को की जा सकती है, संध्या व रात्री की पूजा का समय देवी सिद्धिदात्री की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी संध्या या रात्री के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मन्त्र - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ॥
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को रुद्राक्ष या सोने चाँदी से बने आभूषण माला आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में पूजा का सामान नारियल वस्त्र चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र के गुरुमंडल में देवी का ध्यान करने से साधक महासमाधी प्राप्त करता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में केसर व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, आठवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा समुद्र का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी,देवी से अणिमादी सिद्धियों की प्राप्ति होती है या कोई गुप्त इच्छा हो तो पूर्ण होती है, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ जां जातिस्वरूपिन्ये निशुम्भबधकारिनयै नम:
(न आधा लगेगा)
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ या श्री: स्वयं सुकृतानाम भवनेश्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:,
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवी विश्वं
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा नौवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी भी निकट के क्षेत्रीय शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज नौवें नवरात्र को नौ कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, नौवें नवरात्र को अपने गुरु से "पूर्णत्व दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन की पूर्णता और तृप्ति को अनुभव कर सकें व आनन्दमय शरीर की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, नौवें नवरात्र पर होने वाले हवन में खीर व पंचमेवा की आहुतियाँ देनी चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले नौवें नवरात्र का ब्रत साय ठीक सात बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों व मिठाइयों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल व पीले रंग के वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
शनिवार, 13 अप्रैल 2019
महागौरी मंत्र
शिव ने महातपस्विनी पार्वती को गंगाजल से जो दिव्य रूप प्रदान किया वही देवी महागौरी हैं, महाशक्ति महागौरी स्वयं योगमाया ही हैं जो सृष्टि की मूल शक्ति व जननी है, यह भी कथा आती है की शिव द्वारा देवी को काली पुकारे जाने पर देवी ने गौर वर्ण धारण कर शिव को प्रसन्न किया था अत: देवी को महागौरी कहा गया है, देवी के उपासक भी देवी सामान ही अत्यंत सुदर देह प्राप्त करते हैं व कभी बूढ़े नहीं होते, देवी महागौरी की भक्ति करने वाले भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देवी अद्भुत कृपा व प्रेम बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए आठवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के ग्यारवें व बारहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
(शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है
मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं प्रज्वल-प्रज्वल महागौरी देव्यै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
जैसे मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं प्रज्वल-प्रज्वल महागौरी देव्यै स्वाहा:
माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
587 923 398
597 335 132
577 834 989
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को सफेद रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, गौरी देवी का श्रृंगार सफेद वस्त्रों व आभूषणों से ही किया जाता है, सफेद रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा प्रभात को ही की जा सकती है, सुबह की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी सुबह के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व इत्र सुगंधी अर्पित कर गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए व अष्टम नवरात्र को ध्वजा पर फूल माला अर्पित करनी चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं प्रज्वल-प्रज्वल
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को सफेद चन्दन से बने आभूषण माला तिलक आदि अर्पित करना चाहिए
मंदिर में फल व सफेद वस्त्र चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र के ब्रह्मरंध्र में देवी का ध्यान करने से साधक पूर्णप्रग्य होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में तुलसी का रस व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, आठवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा तीर्थ का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी,देवी से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है सभी तरह की समस्याओं का अंत होता है या कोई गुप्त इच्छा हो तो पूर्ण होती है, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिन्ये रक्बीजबधकारिनयै नम:
(न आधा लगेगा)
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया
सम्मोहितं देवी समस्तमेतत
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु:
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा आठवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी पर्वतीय शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज आठवें नवरात्र को आठ कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ वस्त्र आभूषण आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, आठवें नवरात्र को अपने गुरु से "कालातीत दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन कीउच्चता और नित्यता को अनुभव कर सकें व विज्ञानमय शरीर की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, आठवें नवरात्र पर होने वाले हवन में मुनक्का व सफेद तिल की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले आठवें नवरात्र का ब्रत साय ठीक सात सत्तावन पर खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को हल्के रंग के वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और हल्के रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019
मैय्या रानी ओ काली मैय्या
मैय्या रानी ओ काली मैय्या
द्वार तेरे मैय्या आया है जोगी
द्वार तेरे मैय्या आया है जोगी
इच्छा क्या मैय्या पूरण नहीं होगी
इच्छा क्या मैय्या पूरण नहीं होगी
मैय्या रानी ओ काली मैय्या
हिमालय में भटका मैय्या दर तेरा पाने
हिमालय में भटका मैय्या दर तेरा पाने
लिए कमंडल भटका मैया नीर तेरा लाने
लिए कमंडल भटका मैया नीर तेरा लाने
बिन दरस अब जाऊं नहीं मैं चाहे मुझको रुला दे
मैय्या रानी ओ काली मैय्या
मैय्या रानी ओ काली मैय्या
दर्शन को निकला मैय्या निकला भस्म मल कर
दर्शन को निकला मैय्या निकला भस्म मल कर
हिमालय भी पहुंचा मैय्या टूटा चल चल कर
हिमालय भी पहुंचा मैय्या टूटा चल चल कर
नीर बहे है नैनों से अब मुझको तू बुला ले
मैय्या रानी ओ काली मैय्या
मैय्या रानी ओ काली मैय्या
दुनिया नें मुझको मैय्या कहीं का न छोड़ा
दुनिया नें मुझको मैय्या कहीं का न छोड़ा
थक चूका हूँ जी के अब दिल को ऐसा तोडा
थक चूका हूँ जी के अब दिल को ऐसा तोडा
हर तरफ अँधियारा है अब आगे कैसे जाऊं
मैय्या रानी ओ काली मैय्या
मैय्या रानी ओ काली मैय्या
रिश्तों को देखा है नातों को जाना
रिश्तों को देखा है नातों को जाना
किस किस को अपना मैय्या मैंने माना
किस किस को अपना मैय्या मैंने माना
छूट गए हैं साथी सारे कैसे उनको मनाऊं
मैय्या रानी ओ काली मैय्या
मैय्या रानी ओ काली मैय्या
- महासिद्ध ईशपुत्र
Aghor Vidya - अघोर विद्या
There is one word on this earth, which is called ‘Ghor’. The meaning of ‘ghor’ is ‘bahut jyaada’ [i.e. ‘very much’], ‘bahut adhik’ [i.e. ‘too much’], and ‘bahut badaa’ [i.e. ‘very big’ or ‘huge’] and very intense. Every other person on earth wants for himself [or herself] a lot of things. Somebody wants a big name for himself. Somebody wants too much rest. Somebody wants too much bliss while somebody else wants too much wealth-prosperity, renown [or fame], honor, and prestige. Someone has a desire to obtain great [bodily] strength in his mind. So, all these are ‘ghor’ desires. You must have surely heard in Hindi language someone saying, ‘that person is beset by heavy disappointments’. So, the word ‘ghor’ that is there, its meaning is ‘too much’ itself … ghor niraashon se gira hona—meaning, ‘beset by too many [or ‘heavy’] disappointments’ is itself called ‘ghor niraashon se gira hona’. But lifealso goes beyond this word ‘ghor’. For example, ‘ghor andhkaar’ meaning, ‘too much darkness’—in all words, the repetition of the word ‘ghor; the word ‘ghor’ has been used. And you have seen that the word ‘ghor’ is that height of selfishness. It is that height of desires, whose ending will not be able to be found easily; it is not even found. In such a situation, you have one path, which is the opposite of this; which is called ‘Aghor’. The opposite of ‘ghor’ is ‘aghor’. Just as the meaning of ‘ghor andhkaar’ is ‘too much darkness’; similarly, the meaning of ‘aghor andhkaar’ is such a darkness where there will be no darkness itself. Just as there is heavy disappointment, if we say there is aghor disappointment likewise, then disappointment will end. The meaning of ‘aghor’ is to be devoid of disappointment. For example, someone says that, ‘you have become entangled in this ‘ghor’ world’ and someone says that, ‘you have become entangled in this ‘aghor’ world, then it means that you have become free of this world. Very few people have been able to come to know this or have been able to be successful in understanding ‘what is aghor?’ People have thought ‘aghor’ to be so bad and given its explanation [or interpretation or definition] in bad ways in all these years that on this earth when I returned after receiving education in the company of my Guru, then I saw such a terrifying sickening face among the society of sadhus, especially about the ‘aghor’—‘aghor’ and the ‘vaam marg’, which had totally wandered away from their basic paths. I felt very bad seeing this; I felt very bad knowing this that that great tradition of Bhagwaan Shiv, in which the mention of ‘aghori’ word itself today the people get terrified, and the mention of ‘aghor’ word itself, people begin to taunt dharm. That remained very sorrowful for me because when I learned ‘aghor’ from my Guru Mata and from my Gurudev, then its face [or picture of it] that I received was so pure, so immaculate, so outstanding. But today…today, the conditions are so bad that if we want to see the word ‘aghor’ anywhere, [if] anywhere we may want to discuss about it, then it has not become worthy of discussion any more. And within it, such tatvas [i.e. qualities or essence] have already entered, that today, I too, before using the word ‘aghor’ will have to think a couple of times whether I should tell you something on the topic of ‘aghor’ or not. But still, because I know that you are connected to Kaulantak sampradhaaya, and giving me respect, you will give dhyan [or pay attention] to my words definitely, although you are independent—I never said that what I say is final statement—this is just a thought about which you will have to think, and then you will have to move forward.
The word ‘aghor’ moves around the ‘shamshaan’ [i.e. place where the dead bodies undergo final sacred rites], but this word is not ‘shamshaani’. The word ‘aghor’ moves around death, but this word is not connected to death, but instead it is a word of ‘non-death’. The word ‘aghor’ is connected to hateful and sickening tatvas, but its meaning is not hateful or sickening. How [I] wish that every ‘saadhak’ [i.e. spiritual practitioner] would be able to easily understand this! If there is beauty in life, if there is a waking state in life, then in life there is sickness too; in life there is insomnia too, in life there is sleep too; in life there is lethargy, procrastination too. In life there are such tatvas which we neither want to see nor want to show. From these, there is one bad [or non-appealing] side—the excretion of body waste. The greatest person on this earth, the most wise [or knowledgeable] person, great scholar, most beautiful [person], the wise, patient-brave man—will be able to give you long commentary about one after another food and how to eat food, but it is surprising that, how excretion must occur…there is no one to tell this that how the excretion of body waste must happen. Right like that in this life, what all you have to do in life—there are lot of people to tell you this, but when you become ill, you are sick, then how you should live life—there are very few people to you all this.
When there is happiness in your life, then how you should live life, there are people to tell you all this, but when there is nothing but sorrow [or unhappiness] in your life, then how you should live life—there are very few people to tell you this. And one more interesting [or important or special] thing—you may have at some time paid careful attention to, that, this world does not want to you ever see you alive. Your enemies are continuously in this effort that when you will die, and when such news about you will reach their ears that you are in the prison cell, you are in the jail, you are suffering from serious illness, you are in some sorrow, etc, etc, meaning, … such they will like to hear such message [or inter-communincation or news], such news, that are connected to you and the one that will harm you. And not just this, this world, the entire direction of this world, the very entire course of thinking, the entire world’s mental consciousness [or awareness]…what [that] the mental condition i.e. ‘manas stithi’ [or mental state or level] is not right [or good]. They [i.e. the people] are of the very ‘ghor’ mentality. That is why to be saved from them, to be free from them, to be far away from these wicked [people], you will have to become ‘aghori’. Now, when I am saying ‘aghori’, don’t understand this as the ‘aghori’ eating the dead, or the ‘aghori’ who abuses bhagwaan [i.e. God], or the person who criticizes the Ved, Puran, and Shastras, or the ‘aghori’ killing any person [and] offering ‘bali’ [i.e. sacrificial offering or sacrifice]. ‘Chhee…[i.e. gesture of disgust and rebuke]’ all this is the distorted form of ‘aghor’. They cannot be ‘aghor’. They are ‘ghor’, completely ‘ghor’. You will ask ‘how?’ If one person kills someone one time, two times, then what will you say? Should this person be criticized or, should this person be criticized in a ‘ghor’ [quality] way? You become worthy of recognizing the truth through the words hidden inside your language if you pay attention to them. You will say that this ‘kritya’ [i.e. act] is ‘ghor’ to-be criticized ‘kritya’. If any person abuses the devi-devtas [i.e. the deities], Paramaatma [i.e. God], ethics, non-violence, truth, then there will be no words left in you, except this that, ‘this person is not worthy of living life at all. This is a ‘ghor’… ‘ghor’, and ‘ghor’ insulting person, ‘ghor’ unethical person, ‘ghor’ violent person, ‘ghor’ person, ‘ghor’ immoral person, ‘ghor’ sinful person. And such a person, let alone in the society, should have no right to live on earth. You will put the word ‘ghor’ beside all these words instead of ‘aghor’. And now, what is this word ‘aghor’?
The meaning of ‘aghor’ is that you see the excellence of any situation, but you turn away from it. Death is ‘aghor’. That is why—‘death’ was associated with the ‘aghoris’, but I have said previously too, that, ‘aghor’ is connected with the ‘shamshaan’ [i.e. cemetery] but, to be ‘shamshaani’ is not [or does not mean] to be ‘aghori’. ‘Aghor’ is related to ‘death’ but death is not ‘aghor’. For example, you have ‘ghor’ longing towards life. You do not want to die ever. Where will you go to die? You want that you forever remain immortal on this earth eating-drinking as it is, sleeping, taking pleasure…, that you never fall sick, that you forever remain happy itself, that people only keep singing your praises, nobody ever criticizes you—all these thoughts of yours, these belong to ‘ghor’ [category of] thoughts. …That only you live in this ‘shrishti’ [i.e. creation], but this thought of yours, this ‘ghor’ aspect of yours is snatched away by the ‘aghor’ aspect, which is called ‘mrityu’ [i.e. ‘death’]. That is why the ‘aghor’ cult moves around in the neighborhood [i.e or proximity] of ‘death’. ‘Aghor’ says from the beginning itself that the end of this life is determined, and people say this, that those [people] who oppose spiritual teachings, those who are envious of spirituality, those who are jealous, hateful, and those living a ‘ghor’ lifestyle who want to be called ‘psychologists’, who want to be called medical doctor—they say that, ‘do not go to the refuge of ‘dharm’, because ‘dharm’ frightens [i.e causes you to fear] in the name of death; [it] shows you different kinds of fears, but the reality is this that—what they are calling as ‘fear’, only that itself is the ultimate [or final] truth of life. There is no alternative [or option or solution] except this.
Death has to surely come one day and you too will have to die. When I have to die… when the people who came prior to me died, then, this … your number too will come; and if you say, ‘no, psychologists are saying that we dharm gurus are frightening [the people], [Ishaputra laughs off], then I feel like laughing at this—because they are hiding the truth from you. That is why, the meaning of ‘aghor’ is to search for that ‘bindu’ [i.e. point] as to ‘why a person dies?’ It is a ‘ghor’ disappointment that this ‘Kaal’ or time [that exists] on this earth, it passes away. It flows like the river, but the ‘aghor’ truth is this that, it goes and stops at one ‘bindu’. That is why it is your responsibility that you discover that ‘bindu’; that you search for that ‘bindu’—in which ‘bindu’ this time goes and stops. And is the truth of that ‘bindu’ the final truth? Or even beyond that ‘bindu’ there is some other truth. To know this itself is to be ‘aghor’. Everybody takes meals, eat different kinds of [food] substances, [some are] non-vegetarian, some are vegetarian—the difference is only this that your law does not give you the permission [of] the food of human being meaning eating the flesh of human. Otherwise in my perspective, whether you eat goat flesh or [you] eat the human flesh, you are one [or the same] person itself. There arises no difference from this that, whether you ate a living goat or [you] ate a dead human being, because both have the same condition, and you are eating the dead body of both these itself. But, ‘aghori’ … ‘aghori’ does not eat anybody’s dead flesh. Who knows from where this…in the name of ‘aghor’ cult was spread and is being spread that he eats the flesh of the dead. Arrey…if the ‘aghori’ eats anything first, it will be his own flesh. And how is one’s own flesh eaten? By keeping a fast. He will remain hungry. From within, he will burn his own fat. In the name of Ishwar [i.e. God], he will make an effort to live his life. He will remain without food for long period of time. He will keep long periods of fasting—one month, two months, four months, six months. Whoever attains this capacity that he [or she] becomes capable of remaining without food for four to six months, then it is not possible to become more aghori than this itself. And if you want to be a greater aghori than this, then yes, there is one solution definitely—that is to abandon your tendencies of eating ‘ghor’ [i.e. terrible] meals. You eat roti. You eat vegetables. You eat dal [and] rice. Some of you eat meat. If you are able to leave all these, and able to remain alive by sustaining yourself on air; if you are able to live by sustaining yourself only on water, or outside this sun … outside this room that will rise, over there a little approximately after 4 or 5 hours, then the first rays of the sun’s light, if you touch it with your hands, touch your body, feel it with your eyes, experience it on your tongue, if you are able to sustain yourself on it [i.e. first rays of the sun’s light], then to be that itself is to be ‘aghori’. I will tell concisely otherwise, the topic will go on.
The meaning of the word ‘ghor’ is to live according to the laws made through Mahamaya; meaning, when Brahma made this Creation, then the ‘vidhi ka vidhaan’ that were made by Brahma to run this creation—‘Vidhi ka vidhaan’—Yogmaya is called ‘vidhi’ and through Her the Universal truth meaning the Universal laws that were made to live our lives. For example, if someone gets a sickness, he should take medicines; for example, if some person dies, then his last [death] rites must be done; then you cannot save him from death. You cannot make him alive. In this very manner, there are various rules. Although these rules that I have told you, are not universal, there are some rules that Yogmaya has made universal. Whatever rules exist to live in this life, for example, to take meals, to sleep, to eat, to go to the temple, to sing somebody’s praise, to feel happy, to be sad—all these tatvas [i.e. qualities or essence] come under [the category of] ‘ghor’. Whatever is being seen in this world, everything is ‘ghor’. It is Ishwar’s ‘ghor’ vidya [i.e. knowledge]. It is Yogmaya’s ‘prapanch’ [i.e. fabrication]. And if you are able to understand this, and living inside this itself…see, there is no solution to run away from it. Whether you live in the jungle, or live in some flat, whether you keep good health, or you keep bad health, the breath of life goes on. And there is one law that applies equally throughout life, completely one type of law. And all those laws come under [the category of] ‘ghor’. To get liberated from that ‘ghor’ law, there is only one solution, and that is, to accept [or receive] ‘aghor mrityu’—meaning, while living in this world, to make an effort to be liberated from all these entire rules.
People say ‘aghoris’ are those who do sinful deeds. Going not to one woman, but going to thousand women. I feel like laughing [Ishaputra gestures] at such a word, because the meaning of ‘aghor’ is to search the female within. Although our Kaul community does not accept this, Kaulantak Peeth says this that woman, man, medicines, herbs, animals, birds—on this earth nothing has been made waste. If you have a need for woman, then you search for her; and accept that woman in your life easily. But the ‘aghor’ cult is against this. The ‘aghor’ cult says that in this world, whether it is woman, whether it is man, whether it is wealth, or whether it is property—every thing is apparent from outside only. He is ‘ghor’… belonging to the ‘ghor’—to acquire one woman itself, you will conspire much. You will do all those deeds which cannot be expected. To obtain wealth, you will conspire such, make such efforts which are of a very ‘ghor’ kind. To earn a name, you will do such fabrication which will be of a very ‘ghor’ kind, so, in such a situation, the meaning of being ‘aghor’ is to leave out the search for all these, search for the path to obtain this within. That is why the ‘aghoris’ live nearby the ‘shamshaan’ [i.e. cemetery] but they are not ‘shamshaani’. They pass by near the cemetery to see this truth of how, after all death is the sad ending of life. What a beautiful face that person must have had, who died today… how beautiful pretty, that woman that lady must have been who became old and died today…how healthy that person must have been who has become sick today and is lying on the bed. In this way, the person who knows the final bindu of the real truth of life is called as ‘aghori’ only. But ‘aghoris’ have some specialities.
In the name of ornaments, the ‘aghoris’ collected bones in their life. An ‘aghori’ whether he stays inside his room or in the cemetery, whether he lives in the wilderness of the Himalayas, or in the deserts or in the ocean; whether an aghori is rich or poor, whether an aghori is wise or not, but he accumulates some such tatvas, which give him a feeling each moment that, ‘see, this life is perishable. In this life, there is nothing stable’. That is why bones only are the ornaments of ‘aghori’. Malas [i.e. chain] made of bones, bones of animals, even to the extent of human bones, in all the times, he kept it close to himself. He did not keep it [close to himself] because he killed some man, or he picked those bones from the ‘chitta’ [i.e. pyre] from the cemetery. What was naturally present in the nature, only to remind himself, he kept that bone close to himself; not that the bone is miraculous. For the fools, there is no miracle in that bone. You will always find bones nearby you. This ‘vaishi sansaar’ [i.e. lustful world] eats crores of chickens daily tearing it [or clawing it]. This cursed world butcher so many ‘bakre aur bakariyaan’ [i.e. goats] daily in the name of Ishwar [i.e. God] that [I] am surprised at these religions, whether it is a Hindu or a Muslim, whether it is a Christian or of any other religion. The custom of ‘nochna’ [i.e. to tear apart, to claw] is found in all, bhai. Some are tearing apart human beings who are directly present by taunting them, by converting them into other religious beliefs, some by criticizing them. And, in this life ‘aghori’ is the most silent person, who neither gives ‘bali’ [i.e. sacrificial offering associated with violence although sacrificial offering need not involve violence or harm] nor takes ‘bali’. Instead, if there is any bone found left anywhere after death, then looking at it, he mourns. Looking at it, he contemplates. He goes down to such depths at the thinking level that that person’s ideas turn from these ‘ghor’ ideologies of the ordinary life into ‘aghor’ ideologies. How I wish you would understand or this world would understand this word— ‘aghor’! The meaning of ‘aghor’ is itself to live life freely; to live reaching this life’s ultimate [or final] boundary [or pole]; knowing the final truth of this life, go to that ‘bindu’ and rest there. But today, ‘aghor’ has become something else.
In such a situation, it is necessary that whether you remain healthy or unhealthy, whether you remain alive or death surrounds you, whether you receive respect or you receive ‘ghor’ insults, but you become ‘aghor’. You make an effort to know the real truth. And you become an ‘aghori’. Not that ‘aghori’ who goes to the cemetery and searches for bones, [but] that ‘aghori’ who worries about the bones inside his own body. Not that ‘aghori’ who drinks some others’ blood, but instead you become that ‘aghori’ who can drink that blood flowing in these veins [Ishaputra gestures in reference to ‘aghori’ drinking the blood flowing in his own veins]. And cutting it… [you] don’t have to cut this [Ishaputra gestures] using blade to drink [the blood]; because I know among you, where is there a shortage of fools? And where is there a shortage of those who present by manipulating words? And whenever I say ‘tod marodkar’ [i.e. manipulation, in this context related to words], [I] don’t know why but the media of this era also comes to memory… [Ishaputra smilingly says]. That media whose condition is very despicable, is very lamentable in my time. When I was born in this society, there were Government [TV] channels like ‘Doordarshan’ in this country, but [I] don’t know, as I grew older, perhaps, with me, the diseases also grew. On one side, where I myself kept getting sick, and there along with me some sicknesses would breed in this society, which are called ‘corruption’, which are called ‘untruth’, and in which the media persons that tell most criticism and lies, and news channel, ‘private media channels house’ were born. In this country, they presented such examples [or paradigm] of one-sided journalism; they used such words to throw down dharm; they hurt dharm Gurus by such conspiracies that they belong to the ‘ghor’. Anyway leave those cursed [people]. It is their work. But I am telling you, especially, those who want to go forward in the ‘aghor’ path that they will have to also move outside the ‘ghor’ criticizing society. They will have to become ‘aghor’. This entire society will taunt them, but it will make no difference to them. The meaning of becoming ‘aghori’ is this itself, to become ‘mukt’ [i.e. free]. To drink the blood flowing in these veins [Ishaputra gestures]. How will that happen? By doing ‘chintan’ [i.e. contemplation]. By thinking.
What is the final truth of life? Think this. Where have you come from? What is going to be your end? Think this. Is He only Ishwar, the Ishwar whom you are worshipping? [Ishaputra gestures]. This is being ‘aghori’. In this way, to sleep in these very clothes, is this called ‘to sleep’? Whenever you become sick, to take rest— is this the final truth? Or to take only medications—is this the final truth [Ishaputra gestures]? The sages of Bharat had said this too that, there are various kinds of medications. Study Ayurveda. By eating medications too, one can be free of sickness. By applying medicines topically too, one can be free of sickness. By looking at medicines too, one can be free of sickness. By smelling medications too, one can be free of sickness. By keeping the medications nearby too, one can be free of sickness. The meaning of this is that our Ayurveda is ‘aghor’ completely. Not ‘ghor’. And this word ‘aghor’ is not going to be understood by you easily. And here there are lots of people, who in the name of ‘aghor’, in the name of ‘tantra’ are running their businesses. Who knows how much falsity, how many wrong tatvas [they are] presenting to you, to reach you. And even the cursed people of the media, who come to me with some texts and show [to me], ‘see, in this text, the definition of ‘aghor’ is this’. And leave this, texts are texts only after all. They are written in secret language. Where they are going to understand this…
I saw one news channel. They were discussing ‘aghor’ and ‘tantra’ subjects. Feel like laughing a lot at fools…, but who will hit their head with them? What do you think that these people sitting in television channels or the people sitting in the media, they are the heads of the spiritual world? [Ishaputra gestures no]. They had five idiotic sorts of ‘aghoris’ sitting in their studio. And, they had some of their opponents sitting. Then, there was a discussion on ‘aghor’—that “aghoris do this”, “aghoris do that”; whereas, the reality is this, the truth [is] that whatever things they have said there, ‘aghoris’ don’t do any such thing. But media says, ‘see, aghoris do this. We have this video footage. This aghori is eating human flesh’. And, he was saying this in a strange way. I think that ‘aghori’… like the way the [i.e. false] terrible image has been created of ‘aghori’, that if there is any ‘aghori’ [i.e. using the same description of the media] in Kaliyug, then they are the media persons themselves, who tell lies in such a terrifying style; who give one-sided [i.e. partial or biased] decisions on their own in their horrifying style; who manipulate facts [and] present them [i.e. facts] falsely in a disgusting style. If in reality there are any inferior ‘aghoris’, if there may be any ‘aghori’ outside my definition [of ‘aghori’], then they are the media people only. Even the police people are not so inferior, because the police people do their work staying within the limits of law only. Yes, among them there are some [i.e. police people] who are despicable, because of whom the entire police force has become infamous, has fallen into disrepute. But, all [i.e. police people] are not like this. I myself have seen this. But, in media, in the private media, almost all are like this, because I have also worked with almost all [of them]. What to do…I feel like praising them from the heart, but, they gave no such opportunity itself for which I should praise them. Anyway leave this, we will again digress from the topic.
So, you must have understood the ‘aghor’ tatva [i.e. quality or essence]—that the meaning of ‘aghor’ is to live on such a ‘bindu’ which is the supreme pure ‘bindu’, which is supreme truth ‘bindu’. You will have to search for it. And I am not going to give an explanation [or elaboration or detailed definition or description] of ‘aghor’ more than this, because then, a lot of tatvas will emerge. In your mind question will surely come… ‘aghoris eat human flesh’—I have already said that they eat their own flesh; ‘aghoris go to women outside’—I have already said this, that they search for the woman inside themselves; ‘they say that aghoris live in the cemetery’—I say that the aghori searches for the cemetery within himself, and even if he goes to the cemetery outside then it is only to see what the color of death is. But some people go to the cemetery and sit down. They are not ‘aghori’; in the name of ‘aghori’, they are ‘kalank’ [i.e. a stigma or a bad scar]. And some people go to the cemetery and sit down. They are not ‘shamshaani’ [i.e. of or belonging to the cemetery]. They are idiots. And there are also such people who in the name of ‘tantra’ give human sacrifice, sacrifice of ‘jeev-jantu’ [i.e. sacrifice of living creatures]. You will not find such a big[ger] fool even after searching in this Triloka! And it is surprising that the state where I was born, in Himachal Pradesh, in Uttaranchal, in Jammu Kashmir, this entire region along with Nepal, and there in Kolkata, in Assam, there is still ‘jeev bali’ going on in the name of Bhagwan [i.e. God], whereas, they do not even know the reality of ‘bali’. In Himachal Pradesh, there are such places of the deities, and there are such deities whose names begin with the rishi-munis, but they give them ‘bali’. Such people [i.e. who practise such kind of ‘bali’] serving the deities and the people who are connected to them –should drown and die in shame!...who abuse ‘tantra’, ‘mantra’, who abuse the ‘aghoris’, but who are themselves no less than ‘nar-pisaach’. Anyway to call them ‘nar-pisaach’ will be incorrect, because there the human flesh is consumed by human being only, so, ‘jeev-pisaach’ can definitely be said, because they eat the flesh of sheep-goats. And on top of that, they speak about dharm, and about the Gods and Goddess deities! And they tell themselves, “we live [or belong to] in the ‘dev-bhoomi’ [i.e. the land of the Gods]”. Shame on such ‘pisaach’! But anyway, leave this. You will have to become free of all these. You will have to know this, that the person behind whom or, the Guru behind whom we are going, in reality, will he reach us to the Truth? Do not close your eyes and believe him. Recognize the reality in him. Is he worthy of that? The happening of all these is to be ‘aghori’.
The day you come to know the real [or true] ‘bindu’, you come to know the real [or true] fact, you will make an effort to go close [to the bindu]—that is to be ‘aghori’. The meaning of ‘aghor’ cult is this itself, to make a move in search of truth every moment. That is why the ‘aghori’ did not even leave behind the cemetery. He went close to the cemetery to know death. I have heard that “‘amukh’ [i.e. not specified] ‘aghori’ kidnapped women” at some time. But, he does not kidnap women forever. He had made an effort to know this that—‘is woman only the real truth in this life?’ But ‘aghoris’ did not get all these. Unlike our cult, the ‘aghor’ cult and the philosophy of ‘aghor’ cult is a peculiar philosophy. In the proximity of my Guru Mata, and in the proximity of the revered feet of my Gurudev, when I found the real form of ‘aghor’, then the illusions broke away—because, the ‘aghor’ whom I had heard about, or the ‘aghor’ whom I knew about, the ‘vaastavik’ [or real] ‘aghor’ turned to be far away. Right like that, just like if we try to catch the sun in this sky, then this is not possible. Right like that, if you accept that ‘aghor’ who is known up till today, then maybe you will not be able to know this real ‘aghor’ told through me. I hope you will be able to know Shiv. You will be able to know Guru. And, knowing the ‘aghor’ cult, you will make an effort to become ‘aghori’—real ‘aghori’. But do not become the ‘aghori’ of the media. With this prayer itself, I am taking your leave. And, I will make an effort in the future, that when I become completely healthy, remain fine, then, I am able to take you to those mountains that are high, where I myself had learned from my Gurus about the ‘aghor’ cult and its reality. So, I will also take you there with me [and], I will definitely make an effort to make you aware of the real form [or nature] of ‘aghor’ cult.
Till then, Om Namah Shivaaya! Adesh!
- Ishaputra
सप्तम नवरात्र वर देंगी महाशक्ति कालरात्रि
मार्कंडेय पुराण के अनुसार सप्तम नवरात्र की देवी का नाम कालरात्रि है, शिव ने सृष्टि को बनाया शिव ही इसे नष्ट करेंगे, शिव की इस महालीला में जो सबसे गुप्त पहलू है वो है कालरात्रि, प्राचीन कथा के अनुसार एक बार शिव नें ये जानना चाहा कि वे कितने शक्तिशाली हैं, सबसे पहले उनहोंने सात्विक शक्ति को पुकारा तो योगमाया हाथ जोड़ सम्मुख आ गयी और उनहोंने शिव को सारी शक्तियों के बारे में बताया, फिर शिव ने राजसी शक्ति को पुकारा तो माँ पार्वती देवी दुर्गा व दस महाविद्याओं के साथ उपस्थित हो गयीं, देवी ने शिव को सबकुछ बताया जो जानना चाहते थे, तब शिव ने तामसी और सृष्टि कि आखिरी शक्ति को बुलाया तो कालरात्रि प्रकट हुई, काल रात्रि से जब शिव ने प्रश्न किया तो कालरात्रि ने अपनी शक्ति से दिखाया कि वो ही सृष्टि कि सबसे बड़ी शक्ति हैं गुप्त रूप से वही योगमाया, दुर्गा पार्वती है, एक क्षण में देवी ने कई सृष्टियों को निगल लिया, कई नीच राक्षस पल बर में मिट गए, देवी के क्रोध से नक्षत्र मंडल विचलित हो गया, सूर्य का तेज मलीन हो गया, तीनो लोक भस्म होने लगे, तब शिव नें देवी को शांत होने के लिए कहा लेकिन देवी शांत नहीं हुई, उनके शरीर से 64 कृत्याएं पैदा हुई, स्वर्ग सहित, विष्णु लोक, ब्रम्ह्म लोक, शिवलोक व पृथ्वी मंडल कांपने लगे, 64 कृत्याओं ने महाविनाश शुरू कर दिया, सर्वत्र आकाश से बिजलियाँ गिरने लगी तब समस्त ऋषि मुनि ब्रह्मा-विष्णु देवगण कैलाश जा पहुंचे शिव के नेत्रित्व में सबने देवी की स्तुति करते हुये शांत होने की प्रार्थना, तब देवी ने कृत्याओं को भीतर ही समां लिया, सभी को उपस्थित देख देवी ने अभय प्रदान किया, सबसे शक्तिशालिनी देवी ही कालरात्रि हैं जो महाकाली का ही स्वरुप हैं, जो भी साधक भक्त देवी की पूजा करता है पूरी सृष्टि में उसे अभय होता है, देवी भक्त पर कोई अस्त्र शास्त्र मंत्र तंत्र कृत्या औषधि विष कार्य नहीं करता, देवी की पूजा से सकल मनोरथ पूर्ण होते हैं
शिव ने सबसे बड़ी शक्ति को को जानने के लिए जिस देवी को उत्पन्न किया वही कालरात्रि हैं, महाशक्ति कालरात्रि स्वयं योगमाया ही हैं जो सृष्टि का आदि थी अब अंत है, उतपन्न करने तथा महाविनाश की शक्ति होने से प्रलय काल की भाँती देवी को कालरात्रि कहा गया है, देवी के उपासक के जीवन में कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता, देवी कि स्तुति करने वाले भक्त पर देवी शीघ्र प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए सातवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दसवें अध्याय का पाठ करना चाहिए
पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
(शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है,
मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें,
जैसे मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै स्वाहा:
माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष अथवा हकीक की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
090 010 070
080 030 020
040 050 060
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को काले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, कालरात्रि देवी का श्रृंगार काले वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा रात्री को ही की जा सकती है, संध्या की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी शाम के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक व चौमुखा दिया जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को नारियल व उर्द की ड़ाल काली मिर्च आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मीठी रोटी का भोग चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र में देवी का ध्यान करने से सातवां चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में अदरक का रस , लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए,
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, सातवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा समुद्र का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे शत्रुओं कि समस्या हो या बार बार धन हानि होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं , देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ तृम तृषास्वरूपिन्ये चंडमुण्डबधकारिनयै नम:(न आधा लगेगा)
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें
व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोकस्याखिलेश्वरी
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरीविनाशनम
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा सातवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी कालिका शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज सातवें नवरात्र को सात कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ भोजन पात्र जैसे थाली गिलास आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, सातवें नवरात्र को अपने गुरु से "सह्स्त्रहार भेदन दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन की पूरनता को अनुभव कर सकें व वैखरी वाणी की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, सातवें नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा व काली मिर्च की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले सातवें नवरात्र का ब्रत ठीक आठ बाबन पर खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर व फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल पीले व चमकीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और लाल पीले व चमकीले वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
शिव ने सबसे बड़ी शक्ति को को जानने के लिए जिस देवी को उत्पन्न किया वही कालरात्रि हैं, महाशक्ति कालरात्रि स्वयं योगमाया ही हैं जो सृष्टि का आदि थी अब अंत है, उतपन्न करने तथा महाविनाश की शक्ति होने से प्रलय काल की भाँती देवी को कालरात्रि कहा गया है, देवी के उपासक के जीवन में कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता, देवी कि स्तुति करने वाले भक्त पर देवी शीघ्र प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए सातवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दसवें अध्याय का पाठ करना चाहिए
पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
(शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है,
मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें,
जैसे मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल कालरात्रि देव्यै स्वाहा:
माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष अथवा हकीक की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
090 010 070
080 030 020
040 050 060
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को काले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, कालरात्रि देवी का श्रृंगार काले वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा रात्री को ही की जा सकती है, संध्या की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी शाम के मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक व चौमुखा दिया जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वल-ज्वल
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को नारियल व उर्द की ड़ाल काली मिर्च आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मीठी रोटी का भोग चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, सह्स्त्रहार चक्र में देवी का ध्यान करने से सातवां चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में अदरक का रस , लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए,
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, सातवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा समुद्र का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे शत्रुओं कि समस्या हो या बार बार धन हानि होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं , देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ तृम तृषास्वरूपिन्ये चंडमुण्डबधकारिनयै नम:(न आधा लगेगा)
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें
व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोकस्याखिलेश्वरी
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरीविनाशनम
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा सातवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी कालिका शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज सातवें नवरात्र को सात कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ भोजन पात्र जैसे थाली गिलास आदि देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, सातवें नवरात्र को अपने गुरु से "सह्स्त्रहार भेदन दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जीवन की पूरनता को अनुभव कर सकें व वैखरी वाणी की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, सातवें नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा व काली मिर्च की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले सातवें नवरात्र का ब्रत ठीक आठ बाबन पर खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर व फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल पीले व चमकीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और लाल पीले व चमकीले वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
गुरुवार, 11 अप्रैल 2019
षष्टम नवरात्र वर देंगी महाशक्ति कात्यायनी
मार्कंडेय पुराण के अनुसार षष्टम नवरात्र की देवी का नाम कात्यायनी है, प्राचीन कथा के अनुसार प्राचीन काल में कत नामक एक बड़े ही प्रसिद्ध महर्षि हुये, उनके यहाँ एक तेजस्वी बालक हुआ जो बड़ा हो कर ऋषि कात्य के नाम से महान ज्ञानी के रूप में प्रसिद्द हुआ, इन्हीं कात्य ऋषि के गोत्र में अत्यंत तेजस्वी एवं दिव्य महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे, जिनके नाम पर देवी का नाम पड़ा, इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन और घोर तपस्या की, देवी को प्रसन्न कर उन्होंने देवी से वर माँगा कि माँ भगवती स्वयं उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें, प्रसन्न हो कर देवी माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली तथा कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश एक बालिका को देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया, ये देवी महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न हुई व सर्वप्रथम महर्षि कात्यायन ने इनकी पूजा की, इसी कारण ये देवी कात्यायनी कहलाईं, इसी देवी ने तेज से परिपूर्ण हो कर बवानी का स्वरुप लिया महिषासुर का वध किया था, देवी कात्यायिनी को बहुत ही शक्तिशाली देवी के रूप में माना जाता है, यही देवी अनेक प्रकार कि लीलाएं रचती रहती हैं, देवी कि भक्ति पूजा से रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा नष्ट हो जाते हैं, जन्म-जन्मांतर के पापों को नष्ट करने के लिए माँ की रति भर कृपा दृष्टि ही काफी है
महर्षि कात्यायन जी के आश्रम में कन्या रूप में प्रकट होने के कारण ही देवी को कात्यायनी कहा जाता है, महाशक्ति कात्यायनी योगमाया का ही अंश हैं जो महिषासुर के बध के लिए उत्पन्न हुई थीं, महारिषि कात्यायन को वर देने के कारण भी देवी को कात्यायनी कहा जाता है, देवी के उपासक के जीवन में कभी रोग, शोक, संताप, भय आदि नहीं आते, देवी कि स्तुति करने वाले भक्त पर देवी शीघ्र प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए छठे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के आठवें एवं नौवें अध्याय का पाठ करना चाहिए , पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
(शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है
मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वालय-ज्वालय कात्यायनी देव्यै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे
मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वालय-ज्वालय कात्यायनी देव्यै स्वाहा:
माता के मंत्र का जाप करने के लिए मोतियों की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
668 967 290
081 777 886
769 180 998
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को चमीले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, कात्यायनी देवी का श्रृंगार चमकीले वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा सुबह व शाम की जा सकती है, सुबह की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी प्रात: मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें,
पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वालय-जवालय
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को मीठी रोटी व घी से बनी हुई रोटी का भोग आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मीठा भोग चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, आज्ञा चक्र में देवी का ध्यान करने से छठा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में केसर, इलाइची,लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, छठे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा किसी झरने का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे धन की समस्या हो,ग्रह बाधा, या रोग शोक की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ शं शक्तिस्वरूपिन्ये धूम्रलोचन घातिनयै नम:
(न आधा लगेगा)
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ रोगानशेषनपहंसी तुष्टा
रुष्टा तु कामान सकलानभिष्टआन
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा छठे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी मैदानी शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज छठे नवरात्र को छ: कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ आइना तथा कंघी देनी चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, छठे नवरात्र को अपने गुरु से "ब्राह्मी दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्णता प्राप्त कर सकें व सिद्धि की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, छठे नवरात्र पर होने वाले हवन में शहद व गुगुल की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले छठे नवरात्र का ब्रत ठीक आठ बाईस साय खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर मिठाइयों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को चमकीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और चमकीले वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
महर्षि कात्यायन जी के आश्रम में कन्या रूप में प्रकट होने के कारण ही देवी को कात्यायनी कहा जाता है, महाशक्ति कात्यायनी योगमाया का ही अंश हैं जो महिषासुर के बध के लिए उत्पन्न हुई थीं, महारिषि कात्यायन को वर देने के कारण भी देवी को कात्यायनी कहा जाता है, देवी के उपासक के जीवन में कभी रोग, शोक, संताप, भय आदि नहीं आते, देवी कि स्तुति करने वाले भक्त पर देवी शीघ्र प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए छठे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के आठवें एवं नौवें अध्याय का पाठ करना चाहिए , पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
(शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी कात्यायनी को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन का प्रमुख मंत्र है
मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वालय-ज्वालय कात्यायनी देव्यै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें जैसे
मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वालय-ज्वालय कात्यायनी देव्यै स्वाहा:
माता के मंत्र का जाप करने के लिए मोतियों की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
668 967 290
081 777 886
769 180 998
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को चमीले रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, कात्यायनी देवी का श्रृंगार चमकीले वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को वस्त्र श्रृंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा सुबह व शाम की जा सकती है, सुबह की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी प्रात: मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व गंगाजल के छींटे देने चाहियें,
पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को हमेशा कुछ ऊँचे स्थान पर रखना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मंत्र-ॐ ह्रीं ऐं ज्वालय-जवालय
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को मीठी रोटी व घी से बनी हुई रोटी का भोग आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मीठा भोग चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, आज्ञा चक्र में देवी का ध्यान करने से छठा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में केसर, इलाइची,लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, छठे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल तथा किसी झरने का जल लाना बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे धन की समस्या हो,ग्रह बाधा, या रोग शोक की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ शं शक्तिस्वरूपिन्ये धूम्रलोचन घातिनयै नम:
(न आधा लगेगा)
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ रोगानशेषनपहंसी तुष्टा
रुष्टा तु कामान सकलानभिष्टआन
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा छठे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी मैदानी शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज छठे नवरात्र को छ: कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ आइना तथा कंघी देनी चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, छठे नवरात्र को अपने गुरु से "ब्राह्मी दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्णता प्राप्त कर सकें व सिद्धि की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, छठे नवरात्र पर होने वाले हवन में शहद व गुगुल की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले छठे नवरात्र का ब्रत ठीक आठ बाईस साय खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर मिठाइयों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को चमकीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और चमकीले वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
बुधवार, 10 अप्रैल 2019
पंचम नवरात्र वर देंगी महाशक्ति स्कंदमाता
मार्कंडेय पुराण के अनुसार पंचम नवरात्र की देवी का नाम स्कंदमाता है, प्राचीन कथा के अनुसार एक बाद देवराज इन्द्र ने बालक कार्तिकेय को कहा की देवी गौरी तो अपने प्रिय पुत्र गणेश को ही अधिक चाहती है, तुम्हारी और कभी दयां नहीं देती, क्योंकि तुम केवल शिव के पुत्र हो व तुमको तो देवी कृत्तिकाओं ने ही पाला है, इस पर कार्तिकेय मुस्कुराए और बोले जो माता संसार का लालन पालन करती है, जिसकी कृपा से भाई गणेश को देवताओं में अग्रणी बनाया, वो क्या मेरी माता होते हुये भेद-भाव करेगी, तुम्हारे मन में जो संदेह पैदा हुआ है उसकी आधार भी मेरी माता ही हैं, मैं उनका पुत्र तो हूँ ही लेकिन उनका भक्त भी हूँ, हे इन्द्र जग का कल्याण करने वाली मेरी माता निसंदेह भक्तबत्सल भवानी है, ऐसे बचन सुन कर ममतामयी देवी सकन्दमाता प्रकट हुई और उनहोंने अपनी गोद में कार्तिकेय को बिठा कर दिव्य तेजोमय रूप धार लिया, जिसे देखते ही देवराज इन्द्र क्षमा याचना करने लगे, सभी देवगणों सहित इंद्र ने माता की स्तुति की, माता चतुर्भुजा रूप में अत्यंत ममता से भरी हुई थी, दोनों हाथों में पुष्प एक हाथ से वर देती व कार्तिकेय को संभाले हुये देवी तब सिंह पर आरूढ़ थी, देवी का कमल का आसन था, तब देवताओं के द्वारा स्तुति किये जाने पर देवी बोली मैं ही संसार की जननी हूँ मेरे होते भला कोई कैसे अनाथ हो सकता है? मेरा प्रेम सदा अपने पुत्रों व भक्तों के बरसता रहता है, सृष्टि में मैं ही ममता हूँ, ऐसी ममतामयी माँ की पूजा से भला भक्त को किस चीज की चिंता हो सकती है? बस माँ को पुकारने भर की देर है, वो तो सदा प्रेम लुटती आई है,
भगवान् कार्तिकेय जी के कारण उतपन्न हुई देवी ही स्कंदमाता है , महाशक्ति स्कंदमाता पार्वती जी का तेजोमय स्वरुप हैं जो सृष्टि को माँ के रूप में ममत्व और प्रेम प्रदान करती हैं, भगवान् कार्तिकेय का लालन पालन करने के कारण ही द्वि को स्कंदमाता कहा जाता है, देवी के उपासक जीवन में कभी अकेले नहीं होते ममतामयी स्कंदमाता सदा उनके साथ रह कर उनकी रक्षा करती है, संकट की स्थित में पुकारे पर देवी सहायता व कृपा करने में बिलम्ब नहीं करती, थोड़ी सी प्रार्थना व स्तुति से ही प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं, देवी को प्रसन्न करने के लिए पांचवें नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए , पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें , फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है , यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
(शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए पांचवें दिन का प्रमुख मंत्र है
मंत्र-ॐ सः ह्रीं ऐं स्कंदमातायै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
जैसे मंत्र-ॐ सः ह्रीं ऐं स्कंदमातायै स्वाहा:
माता के मंत्र का जाप करने के लिए कमलगट्टे की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
929 345 224
677 632 891
654 756 879
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को लाल रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, स्कंदमाता देवी का श्रृंगार लाल रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को कुमकुम,केसर, लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं , माता की मंत्र सहित पूजा सुबह व शाम की जा सकती है, संध्या की पूजा का समय देवी कूष्मांडा की साधना के लिए विशेष माना गया है , मंत्र जाप के लिए भी संध्या व प्रात: मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व कलश को जनेऊ जरूर अर्पित करना चाहिए, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, ध्वजा को गिरने से बचाना चाहिए, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें
यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पांचवें नवरात्र देवी के निम्न बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मंत्र-ॐ सः ह्रीं ऐं
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को हलवे का प्रसाद तथा फलाहार या मीठा भोग आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में मिठाई व फल चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है , विशुद्ध चक्र में देवी का ध्यान करने से पांचवा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं ,प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में लौंग व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पांचवें दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल लाना या अर्पित करना बहुत बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए
तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे अकेलेपन की समस्या हो या न्याय न मिल पाने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ छां छायास्वरूपिन्ये दूतसंवादिनयै नम:(न आधा लगेगा)
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें
व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते
भयेभ्यस्त्राही नो देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा पांचवें नवरात्र को करना चाहते हैं तो इच्छानुसार किसी भी शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज पांचवें नवरात्र को पांच कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ बटुआ धन कोष गुल्लक आदि भेंट करना चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें
पांचवें नवरात्र को अपने गुरु से "कालज्ञान दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप विविध काल और सृष्टि चक्र को जान सकें,समत्व की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, पांचवें नवरात्र पर होने वाले हवन में जौ की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व देसी घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले पांचवें नवरात्र का ब्रत ठीक सात पचपन पर सायं खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, आज सुहागिन स्त्रियों को लाल अथवा मेरून रंग के वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और रक्त वस्त्र धारण कर सकते हैं , भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
मंगलवार, 9 अप्रैल 2019
ब्रह्मांड रचयिता देवी कूष्मांडा
ब्रह्माण्ड को पैदा करने के कारण देवी का नाम पड़ा कूष्मांडा, महाशक्ति कूष्मांडा योगमाया का दिव्य तेजोमय स्वरुप हैं जो सृष्टि को पैदा करने के लिए उत्पन्न हुआ, संसार में अण्डों से जीवन की उत्त्पत्ति कराने की शक्ति ब्रह्मा जी को देने के कारण भी देवी को कूष्मांडा कहा जाता है, देवी के उपासक अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं तथा इछामृतु का वर देने वाली यही देवी हैं, देवी भक्ति, आयु, यश, बल, आरोग्य देने में जरा भी बिलम्ब नहीं करती, देवी को प्रसन्न करने के लिए चौथे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के पांचवें व छठे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, आप यदि मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
(शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी कूष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए तीसरे दिन का प्रमुख मंत्र है
मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं कूष्मांडा देव्यै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
जैसे मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं कूष्मांडा देव्यै स्वाहा:
माता के मंत्र का जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
775 732 786
151 181 102
762 723 785
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को भगवे रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, चंद्रघंटा देवी का श्रृंगार भगवे रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल व पीले रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को केसर, लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा कभी भी की जा सकती है, रात्री की पूजा का देवी कूष्मांडा की साधना के लिए ज्यादा महत्त्व माना गया है
मंत्र जाप के लिए भी संध्या व रात्री मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक बड़ा घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए व कलश को लाल कपडे से ढक कर रखें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें व अक्षत चढ़ाएं, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मंत्र-ॐ जूं ह्रीं ऐं
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को भगवे वस्त्र, रुद्राक्ष माला तथा गेंदे के फूलों का हार आदि अर्पित करना चाहिए
मंदिर में भगवे रंग की ध्वजा चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी की कृपा भी प्राप्त होती है, अनाहत चक्र में देवी का ध्यान करने से चौथा चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में कपूर व शहद मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, चौथे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और दो अन्य नदियों का जल लाना बहुत बड़ा पुन्यदायक माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे संतान प्राप्ति की समस्या हो या विदेश यात्रा की, या पद्दोंन्ति की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ क्षूं क्षुधास्वरूपिन्ये देव बन्दितायै नम:
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ शरणागतदीनार्त परित्राणपरायणे
सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणी नमोस्तुते
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा चौथे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी गुफा वाले शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज चौथे नवरात्र को चार कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्याओं को दक्षिणा के साथ आभूषण देने चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, चौथे नवरात्र को अपने गुरु से "ब्रहमांड दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप देवत्व प्राप्त कर लेते हैं व ब्रह्म विद्या की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, चौथे नवरात्र पर होने वाले हवन में काले तिलों की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले चौथे नवरात्र का ब्रत ठीक सात पंद्रह बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर खीर का प्रसाद बांटना चाहिए
आज सुहागिन स्त्रियों को भगवे अथवा पीले वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और भगवे या पीले रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
सोमवार, 8 अप्रैल 2019
चांद सी सुंदर चंद्रघंटा
आकाश मंडल में चन्द्रमा को अपने शीश पर धारण करने के कारण देवी का नाम पड़ा चंद्रघंटा, महाशक्ति चंद्रघंटा माँ पार्वती जी का तेजोमय स्वरुप हैं जो सर्व कलाओं को धारण करने से उत्पन्न हुआ
अपनी सभी कलाओं को अध्यात्म धर्म सहित धारण करने के कारण ही देवी को चंद्रघंटा कहा जाता है, देवी के उपासक एक साथ ही संसार में जीते हुये परम मुक्ति के मार्ग पर भी चल सकते है, जिस कारण देवी की बड़ी महिमा गई जाती है, देवी कृपा से ही भक्त को संसार के सभी सुख तथा मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए तीसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का, अर्गला स्तोत्र का, फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का पाठ करना अनिवार्य होता है
यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे
(शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी चंद्रघंटा को प्रसन्न करने के लिए तीसरे दिन का प्रमुख मंत्र है
मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं चंद्रघंटा देव्यै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
जैसे मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं चंद्रघंटा देव्यै स्वाहा:
माता के मंत्र का जाप करने के लिए रक्त चन्दन की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
539 907 234
227 876 191
654 812 902
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को लाल रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, चंद्रघंटा देवी का श्रृंगार लाल रंग के वस्त्रों से किया जाता है, लाल रंग के ही फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को लाल चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं, माता की मंत्र सहित पूजा केवल सायकाल को ही की जाती है, शाम की पूजा का चंद्रघंटा की साधना के लिए ज्यादा महत्त्व माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी संध्या मुहूर्त के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक घी का अखंड दीपक जला लेना चाहिए, पूजा में स्थापित नारियल कलश का अक्षत से पूजन करना चाहिए, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर पुन: मौली सूत्र बांधें, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मंत्र-ॐ क्लीं ह्रीं ऐं
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को कमल पुष्प, रक्त चन्दन की माला तथा सफेद फूलों का हार आदि अर्पित करना चाहिए,मंदिर में लाल रंग की चुनरी चढाने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, मणिपुर चक्र में देवी का ध्यान करने से तृतीय चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में केसर मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए,
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, तीसरे दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और बर्फ (हिमजल) का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए
तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे घरेलु कलह से मुक्ति हो, विवाह नहीं हो पा रहा हो, प्रेम प्राप्ति की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं, देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ रं रक्त स्वरूपिन्ये महिषासुर मर्दिन्ये नम:
(न आधा लगेगा व न की जगह ण होगा )
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें, व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें,
ॐ सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके
शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणि नमोस्तुते
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा तीसरे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी नाड़ी के निकट स्थित शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज तीसरे नवरात्र को तीन कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ चूड़ियाँ व श्रृंगार प्रसाद देना चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, तीसरे नवरात्र को अपने गुरु से "उज्जवल दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, तीसरे नवरात्र पर होने वाले हवन में खीर से हवन करना चाहिए
ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले तीसरे नवरात्र का ब्रत आठ बीस साय खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर हलवा पूरी का प्रसाद बांटना चाहिए,आज सुहागिन स्त्रियों को लाल वस्त्र आदि पहन कर व श्रृंगार कर देवी का पूजन करना चाहिए, पुरुष साधक भी साधारण और हल्के लाल रंग के वस्त्र धारण कर सकते हैं, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्यापराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
रविवार, 7 अप्रैल 2019
महातपस्विनी देवी ब्रह्मचारिणी
हिमालय पर कठोर तपस्या करने के कारण व तपस्या नियमों को पालने के कारने देवी का नाम पड़ा ब्रह्मचारिणी, महाशक्ति ब्रह्मचारिणी माँ पार्वती जी का तपस्वी स्वरुप का ही नाम है, कठोर सात्विक तपस्या से तीनों लोकों को प्रभावित करने के कारण भी देवी को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है, देवी के उपासक सभी पापों से मुक्त हो कर सुखी एवं पवित्र सात्विक जीवन जीते हैं, देवी कृपा से ही मुक्ति प्राप्त होती है, देवी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे नवरात्र के दिन दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय व तीसरे अध्याय का पाठ करना चाहिए, पाठ करने से पहले कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें, फिर क्रमश: कवच का अर्गला स्तोत्र फिर कीलक स्तोत्र का पाठ करें, मनोकामना की पूर्ती के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ कर रहे हैं तो कीलक स्तोत्र के बाद रात्रिसूक्त का भी पाठ करें, यदि आप ब्रत कर रहे हैं तो लगातार देवी के नवारण महामंत्र का जाप करते रहें,
महामंत्र-ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै बिच्चे (शब्द पर दो मात्राएँ लगेंगी काफी प्रयासों के बाबजूद भी नहीं आ रहीं)
देवी ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए दूसरे दिन का प्रमुख मंत्र है
मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै नम:
दैनिक रूप से यज्ञ करने वाले इसी मंत्र के पीछे स्वाहा: शब्द का प्रयोग करें
जैसे मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं ब्रह्मचारिणी देव्यै स्वाहा:
माता के मात्र का जाप करने के लिए तुलसी की माला स्रेष्ठ होती है, माला न मिलने पर रुद्राक्ष माला या मानसिक मंत्र का जाप भी किया जा सकता है, यदि आप देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनका एक दिव्य यन्त्र कागज़ अथवा धातु या भोजपत्र पर बना लेँ
यन्त्र-
777 298 307
621 543 991
931 053 777
यन्त्र के पूजन के लिए यन्त्र को saphed रंग के वस्त्र पर ही स्थापित करें, पुष्प,धूप,दीप,ऋतू फल व दक्षिणा अर्पित करें, शैलपुत्री देवी का श्रृंगार लाल किनारे वाले सफेद रंग के वस्त्रों से किया जाता है, सफेद या लाल रंग के फूल चढ़ाना सरेष्ट माना गया है, माता को सफेद चन्दन, सिंगार व नारियल जरूर चढ़ाएं , माता की मंत्र सहित पूजा केवल सुबह ही की जाती है, शाम की पूजा की अपेक्षा देवी ब्रह्मचारिणी की साधना के लिए ब्रह्म मुहूर्त का ज्यादा महत्त्व माना गया है, मंत्र जाप के लिए भी ब्रह्म मुहूर्त या सुबह के समय का ही प्रयोग करें, नवरात्रों की पूजा में देवी के लिए एक अखंड दीपक जला लेना चाहिए, देवी की पूजा में नारियल सहित कलश स्थापन किया होना चाहिए साथ ही मंत्र जाप को फलीभूत होने के लिए रेत में कलश के निकट गेहूं के जवारे उगायें, कलश में गंगाजल और पंचामृत भर कर अक्षत (चाबलों) की ढेर पर इसे स्थापित करना चाहिए यदि पहले दिन कलश स्थापित किया है तो केवल कलश पूजा करें, पूजा स्थान पर स्थापित भगवे रंग की ध्वजा पर मौली सूत्र बांधें, देवी के एक सौ आठ नामों का पाठ करें, यदि आप किसी ऐसी जगह हों जहाँ पूजा संभव न हो या आप बालक हो रोगी हों तो आपको पहले नवरात्र देवी के बीज मन्त्रों का जाप करना चाहिए
मंत्र-ॐ हुं ह्रीं ऐं
मंत्र को चलते फिरते काम करते हुये भी बिना माला मन ही मन जपा जा सकता है, देवी को प्रसन्न करने का गुप्त उपाय ये है कि देवी को श्वेत वस्त्र तुलसी माला तथा कुशा का आसन आदि अर्पित करना चाहिए, मंदिर में कमंडल दान देने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती है व देवी कि कृपा भी प्राप्त होती है, स्वाधिष्ठान चक्र में देवी का ध्यान करने से द्वितीय चक्र जागृत होता है और ध्यान पूरवक मंत्र जाप से भीतर देवी के स्वरुप के दर्शन होते हैं, प्राश्चित व आत्म शोधन के लिए पानी में दूध मिला कर दो माला चंडिका मंत्र पढ़ें व जल पी लेना चाहिए,
चंडिका मंत्र-ॐ नमशचंडिकायै
ऐसा करने से अनेक रोग एवं चिंताएं नष्ट होती हैं, पहले दिन की पूजा में देवी को मनाने के लिए गंगा जल और कूएं का जल लाना बहुत बड़ा पुन्य माना जाता है, दुर्गा चालीसा का भी पाठ करना चाहिए, तामसिक आहार से बचाना चाहिए, दिन को शयन नहीं करना चाहिए, कम बोलना चाहिए, काम क्रोध जैसे विकारों से बचना चाहिए , आज सुहागिन स्त्रियों को भी अधिक श्रृंगारनहीं करना चाहिए, स्वयम भी साधारण और हल्के रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए, यदि आप सकाम पूजा कर रहे हैं या आप चाहते हैं की देवी आपकी मनोकामना तुरंत पूर्ण करे तो स्तुति मंत्र जपें, स्तुति मंत्र से देवी आपको इच्छित वर देगी, चाहे विद्या रोजगार की समस्या हो या याददाश्त कमजोर होने की समस्या हो या कोई गुप्त इच्छा, इस स्तुति मंत्र का आप जाप भी कर सकते हैं और यज्ञ द्वारा आहूत भी कर सकते हैं
देवी का सहज एवं तेजस्वी स्तुति मंत्र
ॐ श्रीं बुद्धि स्वरूपिन्ये महिषासुर सैन्यनाशिनयै नम:(न आधा लगेगा)
नम: की जगह यज्ञ में स्वाहा: शब्द का उच्चारण करें
व देवी की पूजा करते हुये ये श्लोक उचारित करें
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भितिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि
दारिद्रयदुःखभयहारिणी का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाआर्द्रचित्ता
यदि आप किसी शक्ति पीठ की यात्रा दूसरे नवरात्र को करना चाहते हैं तो किसी सात्विक शक्ति पीठ पर जाना चाहिए, देवी की पूजा में यदि आप प्रथम दिवस से ही कन्या पूजन कर रहे हैं तो आज दूसरे नवरात्र को दो कन्याओं का पूजन करें, कन्या पूजन के लिए आई कन्या को दक्षिणा के साथ मोतियों या रक्तचंदन की माला देनी चाहिए जिससे अपार कृपा प्राप्त होगी, सभी मंत्र साधनाएँ पवित्रता से करनी चाहियें, दूसरे नवरात्र को अपने गुरु से "सत्व दीक्षा" लेनी चाहिए, जिससे आप पूर्ण आत्मिक, दैहिक, मानसिक पवित्रता की शक्ति प्राप्त कर देवी को प्रसन्न कर सकते हैं, दूसरे नवरात्र पर होने वाले हवन में पंचमेवा की मात्रा अधिक रखनी चाहिए व घी मिलाना चाहिए, ब्रत रखने वाले फलाहार व दुग्धपान कर सकते हैं, एक समय ब्रत रखने वाले दूसरे नवरात्र का ब्रत ठीक सात बजे खोलेंगे, ब्रत तोड़ने से पहले देवी की पूजा कर फलों का प्रसाद बांटना चाहिए, भजन व संस्कृत के सरल स्त्रोत्र का पाठ और गायन करें या आरती का गायन करना चाहिए, प्रतिदिन देव्या पराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज
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