(जब तुम ये सोचने लग जाते हो कि तुम अमर हो, तुम्हें मृत्यु नहीं आने वाली, तब तुम जीवन का अपमान करने लगते हो. किन्तु नश्वरता की अनुभूति होते ही तुम प्रेम,करुणा और स्नेह से भर उठते हो, तुम्हारी आलोचनाएँ बह जाती हैं, तुम्हारा अहंकार विसर्जित हो जाता है, तुम्हारा तथाकथित ज्ञान शून्य में परिणित हो जाता है.......ये नश्वरता और अस्तित्व के मिट जाने का भय तुम्हें वर्तमान के हर पल को जीने और महसूस करने की प्रज्ञा देता है......तुम्हें प्रेरणा देता है........तुम्हारी तलाश गहरी हो जाती है......जबकि तुम कभी मिटने वाले नहीं हो।)
गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019
मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019
सिद्ध तांत्रिक वज्रयोगिनी परंपरा पर 7 दिन का सर्टिफिकेट कोर्स
आन्तरराष्ट्रीय कौलान्तक सिद्ध विद्यापीठ वज्र योगिनी तंत्र पर आगामी पाठ्यक्रम की घोषणा करते हुए प्रसन्नता अनुभव कर रही है।
इस धरा पर वज्र योगिनी तंत्र की विशालता को समाहित करने वाला यह अभूतपूर्व कोर्स है। वज्र योगिनी तंत्र की शिक्षाओं और ज्ञान के विस्तार को किसी भी परंपरा में इससे पहले कभी गहराई से नहीं बताया गया है।
वज्र योगिनी तंत्र जो हिंदू धर्म, बुद्धाचार और कई अन्य परंपराओं में संदर्भित है, वज्र योगिनी तंत्र की विशालता का केवल कुछ पहलू मात्र है।
आइए और सिद्ध धर्मानुसार सीखिए वज्र योगिनी के विशाल तंत्र, उनके विभिन्न रूप, वज्र योगिनी तांत्रिक नृत्य, डाकिनी गीत, उनकी गुप्त मुद्रा माला, शामानिक शाबर मंत्र परंपरा और जानिए उनके बारह भैरवों और उनके मुखौटों के बारे में ।
आप यह भी सीखेंगे कि वज्र योगिनी भाव समाधि को कैसे प्राप्त किया जाए और वज्र वैरोचिनी, उग्रा तारा और वज्र वाराही के साथ उसका क्या संबंध है।
इस सर्टिफिकेशन कोर्स में संपूर्ण वज्र योग और इसकी उत्पत्ति, नास्तिकों की तांत्रिक और यौगिक परंपरा भी सिखाई जाएगी।
आप कुल कुंडलिनी के साथ वज्र योगिनी का संबंध और कैसे वज्र योगिनी अपने साधकों के भीतर सुप्त अनंत शक्ति को जागृत करती है यह भी जानेंगे।
तांत्रिक वज्र योग और वज्र योगिनी का यन्त्र और वज्रयोगिनी का दर्शन भी इस पाठ्यक्रम में समाहित होगा।
आप यह भी सीखेंगे की वज्रयोगिनी का अपने दैनिक जीवन में कैसे उपयोग करें । यह पाठ्यक्रम आपको अपने जीवन में नकारात्मकता और भय को दूर करने और नेतृत्व के गुणों को विकसित करने के लिए सहायक सिद्ध होगा।
महासिद्ध ईशपुत्र इस भ्रम को स्पष्ट करेंगे कि वज्र योगिनी योगिनी है या डाकिनी या देवी या यक्षिणी।
पंजीकरण के लिए कृपया देखें,
Upcoming Events
आन्तरराष्ट्रीय कौलान्तक सिद्ध विद्यापीठ के इस कोर्स को प्रायोजित और सहप्रयोजित महासिद्ध ईशपुत्र के मार्गदर्शन में कौलान्तक पीठ, हिमालय द्वारा किया गया है।
इस धरा पर वज्र योगिनी तंत्र की विशालता को समाहित करने वाला यह अभूतपूर्व कोर्स है। वज्र योगिनी तंत्र की शिक्षाओं और ज्ञान के विस्तार को किसी भी परंपरा में इससे पहले कभी गहराई से नहीं बताया गया है।
वज्र योगिनी तंत्र जो हिंदू धर्म, बुद्धाचार और कई अन्य परंपराओं में संदर्भित है, वज्र योगिनी तंत्र की विशालता का केवल कुछ पहलू मात्र है।
आइए और सिद्ध धर्मानुसार सीखिए वज्र योगिनी के विशाल तंत्र, उनके विभिन्न रूप, वज्र योगिनी तांत्रिक नृत्य, डाकिनी गीत, उनकी गुप्त मुद्रा माला, शामानिक शाबर मंत्र परंपरा और जानिए उनके बारह भैरवों और उनके मुखौटों के बारे में ।
आप यह भी सीखेंगे कि वज्र योगिनी भाव समाधि को कैसे प्राप्त किया जाए और वज्र वैरोचिनी, उग्रा तारा और वज्र वाराही के साथ उसका क्या संबंध है।
इस सर्टिफिकेशन कोर्स में संपूर्ण वज्र योग और इसकी उत्पत्ति, नास्तिकों की तांत्रिक और यौगिक परंपरा भी सिखाई जाएगी।
आप कुल कुंडलिनी के साथ वज्र योगिनी का संबंध और कैसे वज्र योगिनी अपने साधकों के भीतर सुप्त अनंत शक्ति को जागृत करती है यह भी जानेंगे।
तांत्रिक वज्र योग और वज्र योगिनी का यन्त्र और वज्रयोगिनी का दर्शन भी इस पाठ्यक्रम में समाहित होगा।
आप यह भी सीखेंगे की वज्रयोगिनी का अपने दैनिक जीवन में कैसे उपयोग करें । यह पाठ्यक्रम आपको अपने जीवन में नकारात्मकता और भय को दूर करने और नेतृत्व के गुणों को विकसित करने के लिए सहायक सिद्ध होगा।
महासिद्ध ईशपुत्र इस भ्रम को स्पष्ट करेंगे कि वज्र योगिनी योगिनी है या डाकिनी या देवी या यक्षिणी।
पंजीकरण के लिए कृपया देखें,
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आन्तरराष्ट्रीय कौलान्तक सिद्ध विद्यापीठ के इस कोर्स को प्रायोजित और सहप्रयोजित महासिद्ध ईशपुत्र के मार्गदर्शन में कौलान्तक पीठ, हिमालय द्वारा किया गया है।
ईशपुत्र के शुभ विचार-1
"जीवन में 'सत्य का प्रकाश' मिलते ही आनंद के 'सुगन्धित पुष्प' ह्रदय वाटिका में 'महकने और खिलने' लगते हैं. ह्रदय के इस सौन्दर्य को दूसरा कोई भले ही न देख पाए किन्तु तुम अपने अंतस पर इसकी 'सुगंध और दिव्यता' अनुभव कर सकते हो-कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज"-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय.
सोमवार, 25 फ़रवरी 2019
सिद्ध योग साधना शिविर - 40 प्राणायाम
ईशपुत्र कौलान्तक नाथ नेँ जिन 40 प्राणायामोँ को सर्वप्रथम जगतहिताय सार्वजनिक किया है वो निम्नानुसार है ।
=== 1 ब्रह्म प्राणायाम 2 उद्गीथ प्राणायाम 3 अनुलोम-विलोम प्राणायाम 4 कपालभाति प्राणायाम 5 खण्ड प्राणायाम 6 मूर्च्छा प्राणायाम 7 भ्रामरी प्राणायाम 8 कुम्भक-रेचक-पूरक प्राणायाम 9 संक्षोभण प्राणायाम 10 बाह्य प्राणायाम 11 शीतली प्राणायाम 12 सूर्यभेदी प्राणायाम 13 शीतकारी प्राणायाम 14 चन्द्रभेदी प्राणायाम 15 नाडीशोधन प्राणायाम 16 उज्जायी प्राणायाम 17 कर्णरोगान्तक (कर्णभेदी) प्राणायाम 18 सप्तखण्ड प्राणायाम 19 कण्ठादिशोधन प्राणायाम 20 विश्राम प्राणायाम 21 पीडक प्राणायाम 22 केवली प्राणायाम 23 प्लावनी प्राणायाम 24 स्तंभकारी प्राणायाम 25 भस्त्रिका प्राणायाम 26 स्पन्दनकारी प्राणायाम 27 सुषुम्न प्राणायाम 28 जलधि प्राणायाम 29 चक्राति प्राणायाम 30 पद्मभेदन प्राणायाम 31 बाह्यवृत्ति प्राणायाम 32 अभ्यान्तरवृत्ति प्राणायाम 33 बाह्याभ्यान्तर-विषयापेक्षी प्राणायाम 34 त्रिकुटीभेदी प्राणायाम 35 लघु प्राणायाम 36 मूल प्राणायाम 37 मध्य प्राणायाम 38 उर्ध्व प्राणायाम 39 ब्रह्माण्डभेदी प्राणायाम 40 कपि प्राणायाम
आप इनको youtube पर भी देख सकते हैं ।
=== 1 ब्रह्म प्राणायाम 2 उद्गीथ प्राणायाम 3 अनुलोम-विलोम प्राणायाम 4 कपालभाति प्राणायाम 5 खण्ड प्राणायाम 6 मूर्च्छा प्राणायाम 7 भ्रामरी प्राणायाम 8 कुम्भक-रेचक-पूरक प्राणायाम 9 संक्षोभण प्राणायाम 10 बाह्य प्राणायाम 11 शीतली प्राणायाम 12 सूर्यभेदी प्राणायाम 13 शीतकारी प्राणायाम 14 चन्द्रभेदी प्राणायाम 15 नाडीशोधन प्राणायाम 16 उज्जायी प्राणायाम 17 कर्णरोगान्तक (कर्णभेदी) प्राणायाम 18 सप्तखण्ड प्राणायाम 19 कण्ठादिशोधन प्राणायाम 20 विश्राम प्राणायाम 21 पीडक प्राणायाम 22 केवली प्राणायाम 23 प्लावनी प्राणायाम 24 स्तंभकारी प्राणायाम 25 भस्त्रिका प्राणायाम 26 स्पन्दनकारी प्राणायाम 27 सुषुम्न प्राणायाम 28 जलधि प्राणायाम 29 चक्राति प्राणायाम 30 पद्मभेदन प्राणायाम 31 बाह्यवृत्ति प्राणायाम 32 अभ्यान्तरवृत्ति प्राणायाम 33 बाह्याभ्यान्तर-विषयापेक्षी प्राणायाम 34 त्रिकुटीभेदी प्राणायाम 35 लघु प्राणायाम 36 मूल प्राणायाम 37 मध्य प्राणायाम 38 उर्ध्व प्राणायाम 39 ब्रह्माण्डभेदी प्राणायाम 40 कपि प्राणायाम
आप इनको youtube पर भी देख सकते हैं ।
गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019
उग्र कौल छिन्नमस्ता मंत्र
ये मंत्र छिन्नमस्ता साधना हेतु अति महत्त्वपूर्ण है। ये मंत्र 'कौलान्तक संप्रदाय' का बड़ा ही प्रसिद्घ 'छिन्नमस्ता' मन्त्र है।
।। उग्र कौल छिन्नमस्ता मंत्र।।
।। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं हुँ वज्रे वज्रिके हा हा हुं हुं श्रीं ह्रीं हुं श्रीं ऐं क्लीं क्लीं क्लीं डं डाकिनी सं संयुक्ते वामे वज्र नायिके छिन्ने छिन्नमस्तके हुं छिन्नमस्ते जाग्रय हा हा हुं हुं श्रीं ह्रीं हुं श्रीं ऐं
क्लीं क्लीं क्लीं उग्रे वज्रे स्वाहा।।
(ये मंत्र सम्प्रदायानुगत व गुरुगम्य है कृपया इस तांत्रिक मंत्र का उच्चारण व विधान परम्परा से ही लें-बताना हमारा कर्तव्य है)

।। उग्र कौल छिन्नमस्ता मंत्र।।
।। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं हुँ वज्रे वज्रिके हा हा हुं हुं श्रीं ह्रीं हुं श्रीं ऐं क्लीं क्लीं क्लीं डं डाकिनी सं संयुक्ते वामे वज्र नायिके छिन्ने छिन्नमस्तके हुं छिन्नमस्ते जाग्रय हा हा हुं हुं श्रीं ह्रीं हुं श्रीं ऐं
क्लीं क्लीं क्लीं उग्रे वज्रे स्वाहा।।
(ये मंत्र सम्प्रदायानुगत व गुरुगम्य है कृपया इस तांत्रिक मंत्र का उच्चारण व विधान परम्परा से ही लें-बताना हमारा कर्तव्य है)

आइये बिन्दुओं में जाने कैसे हों शिव प्रसन्न
शिव का ॐ कार स्वरुप में ध्यान करने से शिव सकल फल देते हैं
शिवलिंग के रूप में उपासना करने से भोग एवं मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं
शिवलिंग पर पंचामृत चढ़ाना सर्वोत्तम माना जाता है
शहद दूध और जल में चन्दन का लेप मिला कर अभिषेक से शिव प्रसन्न होते हैं
रुद्राक्ष धारण करने से व उनकी प्राण प्रतिष्ठा से शिव के तेज का स्थापन जागरण होता है
शिव संगीत व नृत्य प्रिय हैं गा कर व नृत्य से शिव प्रसन्न होते हैं
शिवलिंग पर भस्म को त्रन्त्रोक्त बीजों सहित लेपन से सारे पाप मिट जाते हैं
भस्मलेपन का तंत्रोक्त बीज मंत्र-ॐ ह्रौं ज़ूम सः
रक्त चन्दन अथवा विशेष निर्मित त्रिपुंड स्वयं और शिवलिंग पर लगाने से बाधाओं का नाश होता है
त्रिपुंड का मंत्र-ॐ त्रिलोकिनाथाय नम:
शिव को प्रसन्न करने के लिए डमरू जरूर बजाएं और बम बम भोले बम बम भोले कहने से कृपा मिलेगी
बिल्व पत्र व बिल्व फल चढाने से धन की प्राप्ति के साथ साथ शिव को सरलता से रिझाया जा सकता है
शिवरात्रि पर धतुरा,भांग,और आक चढ़ना शिव की पूरी साधना करने के बराबर फलदायी होता हैं
शिलिंग को प्रतिष्ठित कर करें शिवलिंग का पूजन तो जीवन सफल हो जाता है
ज्ञान एवं विद्वत्ता की इच्छा वाले साधकों को स्फटिक के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए
गृहस्थ सुख चाहने वालों को पत्थर के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए
मुकद्दमों एवं युद्ध में प्रतियोगिताओं में सफलता पाने वालों को अष्ट धातु शिवलिंग का पूजन करना चाहिए
सब सुख चाहने वाले को सोने चांदी अथवा रत्नों से बना शिवलिंग पूजना चाहिए
सबसे स्रेष्ठ तो केवल पारे का शिवलिंग होता है जिसकी पूजा से जन्म मरण से मुक्ति प्राप्त होती है शिव की अमोघ कृपा बरसती है
शिवरात्री के दिन शिव मंदिर के दर्शन,कैलाश मानसरोवर के दर्शन,शिवभक्तों के दर्शन अथवा सुमिरम से शिव भोले बरदान देते हैं
शिवरात्रि को शिवपुराण की पूजा और पाठ से शिव प्रसन्न हो कर अपने भक्त के साथ साथ रहने लगते हैं
इस पुराण में 24,000 श्लोक है तथा इसके क्रमश: 6 खण्ड है
पहला खंड -विद्येश्वर संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से समस्त भयों और अपशकुनो का नाश होता है
दूसरा खंड-रुद्र संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से अकाल मृत्यु टलती है और ज्ञान प्राप्त होता है
तीसरा खंड-कोटिरुद्र संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से भौतिक सुखों के साथ साथ अद्यात्म का ज्ञान भी मिलता है
चौथा खंड-उमा संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से शक्ति सिद्धियाँ तो मिलती ही हैं मायाजाल से बक्त मुक्त हो जाता है
पांचवा खंड-कैलास संहिता-जिसके पाठ से साधक मानव योनी से उपार हो कर शिव का गण हो जाता है तीनो लोकों में उसे निर्भयता प्राप्त होती है
छठा खंड-वायु संहिता-जिसके पाठ से धार अर्थ काम सहित मोक्षः मिलता है साधक शिव में समाहित हो पूरण हो जाता है
शिव को स्तुति प्रिय है अतः स्तुतियों से करें शिव आराधना
शिव सहस्त्रनामावली का पाठ करें
शिव की सबसे प्रचलित स्तुति है
ॐ कर्पूर गौरं करुणावतारं
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं
सदा वसन्तं हृदयारवृन्दे
भवं भवानी सहितं नमामि !!
देव, दनुज, ऋषि, महर्षि, योगीन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्ध, गन्धर्व सब शिव को गा कर प्रसन्न करते है
रुद्राष्टक,पंचाक्षर,मानस,द्वादश ज्योतिर्लिंग जैसे स्तोत्रों का पाठ करने से अद्भुत कृपा प्राप्त होगी
सस्कृत स्तोत्र शीग्र फलदायी होते हैं
रुद्राष्टक स्तोत्र कुछ ऐसे है-
नमामिशमीशान निर्वाण रूपं।
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।।
निजं निर्गुणं निर्किल्पं निरीहं।
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं।
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं।।
करालं महाकाल कालं कृपालं।
गुणागार संसारपारं नतोहं।।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गंभीरं।
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।।
कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
शिवलिंग के रूप में उपासना करने से भोग एवं मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं
शिवलिंग पर पंचामृत चढ़ाना सर्वोत्तम माना जाता है
शहद दूध और जल में चन्दन का लेप मिला कर अभिषेक से शिव प्रसन्न होते हैं
रुद्राक्ष धारण करने से व उनकी प्राण प्रतिष्ठा से शिव के तेज का स्थापन जागरण होता है
शिव संगीत व नृत्य प्रिय हैं गा कर व नृत्य से शिव प्रसन्न होते हैं
शिवलिंग पर भस्म को त्रन्त्रोक्त बीजों सहित लेपन से सारे पाप मिट जाते हैं
भस्मलेपन का तंत्रोक्त बीज मंत्र-ॐ ह्रौं ज़ूम सः
रक्त चन्दन अथवा विशेष निर्मित त्रिपुंड स्वयं और शिवलिंग पर लगाने से बाधाओं का नाश होता है
त्रिपुंड का मंत्र-ॐ त्रिलोकिनाथाय नम:
शिव को प्रसन्न करने के लिए डमरू जरूर बजाएं और बम बम भोले बम बम भोले कहने से कृपा मिलेगी
बिल्व पत्र व बिल्व फल चढाने से धन की प्राप्ति के साथ साथ शिव को सरलता से रिझाया जा सकता है
शिवरात्रि पर धतुरा,भांग,और आक चढ़ना शिव की पूरी साधना करने के बराबर फलदायी होता हैं
शिलिंग को प्रतिष्ठित कर करें शिवलिंग का पूजन तो जीवन सफल हो जाता है
ज्ञान एवं विद्वत्ता की इच्छा वाले साधकों को स्फटिक के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए
गृहस्थ सुख चाहने वालों को पत्थर के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए
मुकद्दमों एवं युद्ध में प्रतियोगिताओं में सफलता पाने वालों को अष्ट धातु शिवलिंग का पूजन करना चाहिए
सब सुख चाहने वाले को सोने चांदी अथवा रत्नों से बना शिवलिंग पूजना चाहिए
सबसे स्रेष्ठ तो केवल पारे का शिवलिंग होता है जिसकी पूजा से जन्म मरण से मुक्ति प्राप्त होती है शिव की अमोघ कृपा बरसती है
शिवरात्री के दिन शिव मंदिर के दर्शन,कैलाश मानसरोवर के दर्शन,शिवभक्तों के दर्शन अथवा सुमिरम से शिव भोले बरदान देते हैं
शिवरात्रि को शिवपुराण की पूजा और पाठ से शिव प्रसन्न हो कर अपने भक्त के साथ साथ रहने लगते हैं
इस पुराण में 24,000 श्लोक है तथा इसके क्रमश: 6 खण्ड है
पहला खंड -विद्येश्वर संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से समस्त भयों और अपशकुनो का नाश होता है
दूसरा खंड-रुद्र संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से अकाल मृत्यु टलती है और ज्ञान प्राप्त होता है
तीसरा खंड-कोटिरुद्र संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से भौतिक सुखों के साथ साथ अद्यात्म का ज्ञान भी मिलता है
चौथा खंड-उमा संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से शक्ति सिद्धियाँ तो मिलती ही हैं मायाजाल से बक्त मुक्त हो जाता है
पांचवा खंड-कैलास संहिता-जिसके पाठ से साधक मानव योनी से उपार हो कर शिव का गण हो जाता है तीनो लोकों में उसे निर्भयता प्राप्त होती है
छठा खंड-वायु संहिता-जिसके पाठ से धार अर्थ काम सहित मोक्षः मिलता है साधक शिव में समाहित हो पूरण हो जाता है
शिव को स्तुति प्रिय है अतः स्तुतियों से करें शिव आराधना
शिव सहस्त्रनामावली का पाठ करें
शिव की सबसे प्रचलित स्तुति है
ॐ कर्पूर गौरं करुणावतारं
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं
सदा वसन्तं हृदयारवृन्दे
भवं भवानी सहितं नमामि !!
देव, दनुज, ऋषि, महर्षि, योगीन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्ध, गन्धर्व सब शिव को गा कर प्रसन्न करते है
रुद्राष्टक,पंचाक्षर,मानस,द्वादश ज्योतिर्लिंग जैसे स्तोत्रों का पाठ करने से अद्भुत कृपा प्राप्त होगी
सस्कृत स्तोत्र शीग्र फलदायी होते हैं
रुद्राष्टक स्तोत्र कुछ ऐसे है-
नमामिशमीशान निर्वाण रूपं।
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।।
निजं निर्गुणं निर्किल्पं निरीहं।
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं।
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं।।
करालं महाकाल कालं कृपालं।
गुणागार संसारपारं नतोहं।।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गंभीरं।
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।।
कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
नवग्रह वास्तु मंत्र और मोर पंख
कथा एवं महात्म्य
बाल्यकाल में जब बलराम और श्री कृष्ण को मुकुट पहनाया जा रहा था तो भगवान् कृष्ण मुकुट पहन ही नहीं रहे थे....अंतत: जब नन्द बाबा नें मोर पंख वाला मुकुट पहनाया तो उसे ही भगवान कृष्ण नें सर पर सुशोभित किया.....इससे मोर पंख का महत्त्व सामने आता है....प्राचीन काल से ही नजर उतारने व भगवान् कि प्रतिमा के आगे वातावरण को पवित्र करने के लिए भी मोर पंख का ही प्रयोग होता आया है.....निगम ग्रंथों में भगवान् शिव माँ पार्वती को कहते हैं कि देवी योगिनी मंडल के रहस्य वो नहीं जानता जिसने पक्षी शास्त्र में मोर का महत्त्व न जाना हो....तो पार्वती माता पूछती हैं कि भगवान मोर पंख का रहस्य क्या हैं तो शिव उत्तर देते हुए कहते हैं कि असुर कुल में संध्या नाम का प्रतापी दैत्य उत्त्पन्न हुआ.....लेकिन वो गुरु शुकाचार्य के कारण देवताओं का शत्रु बन बैठा....देवी वो परम शिव भक्त था.....उसने विन्द्यांचल पर्वत पर कठोर तप कर मुझे प्रसन्न किया....और अति बीर होने का वर प्राप्त किया.....ब्रह्मा जी भी उसके घोर तप से प्रसन्न हुए.....बर प्राप्त करने के बाद वो हर एक घर में अपना एक रूप बना कर विष्णु भक्तों को प्रताड़ित करने लगा....देवताओं पर आक्रमण कर उसने अलकापुरी जीत ली....देवताओं को बंदी बना वो शिव आराधना में फिर लीन हो गया....उसकी भक्ति के कारण भगवान् विष्णु भी उसका बध करने में समर्थ नहीं थे.......तो सभी देव देवताओं ने मिल कर एक रन नीति तैयार कि जब में महासमाधि में लीन था....उस समय संद्य दैत्य सागर के तट पर अपनी रानी के साथ विहार कर रहा था...तो देवताओं ने योगमाया को सहायता के लिए पुकारा....सभी मात्री शक्तियों के तेज से व नव ग्रहों सहित देवताओं के तेज से एक पक्षी पैदा हुया जो मोर कहलाया उस दिव्य मूर के पंखों में सभी देवी देवता चुप गए और शक्ति बढ़ाने लगे....अति विशाल मोर को आक्रमण करने आया देख संध्या दैत्य उससे युद्ध करने लगा लेकिन योगमाया भगवान् विष्णु सहित नव ग्रहों एवं देवताओं कि शक्ति से लड़ रही थी तो इसी कारण संध्या नाम का दैत्य युद्द में वीरगति को प्राप्त हुया......हे पार्वती तभी से मोर के पंखों में नव ग्रहों देवी देवताओं सहित अन्य शक्तियों के अंश समाहित हो गए.......इस लिए पक्षी शास्त्र में मोर...गरुड़ और उल्लूक के पंखों का महत्त्व हो गया.....किन्तु केवल वहीँ पंख इन गुणों को संजोता हैं जो स्वभावतय: पक्षी त्याग देता है.....
पक्षी शास्त्र में महत्त्व
जैसे उल्लूक तन्त्रं के ग्रन्थ में उल्लुओं का.....काक तन्त्रं नाम के ग्रन्थ में कौवे का महत्त्व दिया गया है उसी प्रकार देववाहिनी तन्त्रं में मोर....मोनाल और जुजुराना जैसे पक्षियों के पंखों का विवरण दिया गया है.....
बिभिन्न लाभ
वशीकरण...कार्यसिद्धि....भूत बाधा....रोग मुक्ति.....ग्रह वाधा....वास्तुदोष निग्रह आदि में बहुत ही महत्पूरण माना गया हैं...
सर पर धारण करने से विद्या लाभ मिलता है या सरस्वती माता के उपासक और विद्यार्थी पुस्तकों के मध्य अभिमंत्रित मोर पंख रख कर लाभ उठा सकते हैं.....मंत्र सिद्धि के लिए जपने वाली माला को मोर पंखों के बीच रखा जाता हैं....घर में अलग अलग स्थान पर मोर पंख रखने से घर का वास्तु बदला जा सकता है...नव ग्रहों की दशा से बचने के लिए भी होता है मोर पंख का प्रयोग......कक्ष में मोर पंख वातावरण को सकारात्मक बनाने में लाभदायक होता है......भूत प्रेत कि बाधा दूर होती है.....
ग्रह बाधा से मुक्ति
यदि आप पर कोई ग्रह अनिष्ट प्रभाव ले कर आया हो....आपको मंगल शनि या राहु केतु बार बार परेशान करते हों तो मोर पंख को 21 बार मंत्र सहित पानी के छीटे दीजिये और घर में वाहन में गद्दी पर स्थापित कीजिये...कुछ प्रयोग निम्न हैं
सूर्य की दशा से मुक्ति
रविवार के दिन नौ मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे रक्तबर्ण मेरून रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ नौ सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ सूर्याय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
दो नारियल सूर्य भगवान् को अर्पित करें
लड्डुओं का प्रसाद चढ़ाएं
चंद्रमा की दशा से मुक्ति
सोमवार के दिन आठ मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे सफेद रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ आठ सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ सोमाय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
पांच पान के पत्ते चंद्रमा को अर्पित करें
बर्फी का प्रसाद चढ़ाएं
मंगल की दशा से मुक्ति
मंगलवार के दिन सात मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे लाल रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ सात सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ भू पुत्राय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
दो पीपल के पत्तों पर अक्षत रख कर मंगल ग्रह को अर्पित करें
बूंदी का प्रसाद चढ़ाएं
बुद्ध की दशा से मुक्ति
बुद्धबार के दिन छ: मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे हरे रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ छ: सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ बुधाय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
जामुन अथवा बेरिया बुद्ध ग्रह को अर्पित करें
केले के पत्ते पर मीठी रोटी का प्रसाद चढ़ाएं
बृहस्पति की दशा से मुक्ति
बीरवार के दिन पांच मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे पीले रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ पांच सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ ब्रहस्पते नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
ग्यारह केले बृहस्पति देवता को अर्पित करें
बेसन का प्रसाद बना कर चढ़ाएं
शुक्र की दशा से मुक्ति
शुक्रवार के दिन चार मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे गुलाबी रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ चार सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ शुक्राय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
तीन मीठे पान शुक्र देवता को अर्पित करें
गुड चने का प्रसाद बना कर चढ़ाएं
शनि की दशा से मुक्ति
शनिवार के दिन तीन मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे काले रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ तीन सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ शनैश्वराय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
तीन मिटटी के दिये तेल सहित शनि देवता को अर्पित करें
गुलाबजामुन या प्रसाद बना कर चढ़ाएं
राहु की दशा से मुक्ति
शनिवार के दिन सूर्य उदय से पूर्व दो मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे भूरे रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ दो सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ राहवे नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
चौमुखा दिया जला कर राहु को अर्पित करें
कोई भी मीठा प्रसाद बना कर चढ़ाएं
केतु की दशा से मुक्ति
शनिवार के दिन सूर्य अस्त होने के बाद एक मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे स्लेटी रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंख के साथ एक सुपारी रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ केतवे नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
पानी के दो कलश भर कर राहु को अर्पित करें
फलों का प्रसाद चढ़ाएं
वास्तु में सुधार
घर का द्वार यदि वास्तु के विरुद्ध हो तो द्वार पर तीन मोर पंख स्थापित करें , मंत्र से अभिमंत्रित कर पंख के नीचे गणपति भगवान का चित्र या छोटी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए
मंत्र है-ॐ द्वारपालाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:
यदि पूजा का स्थान वास्तु के विपरीत है तो पूजा स्थान को इच्छानुसार मोर पंखों से सजाएँ, सभी मोर पंखो को कुमकुम का तिलक करें व शिवलिं की स्थापना करें पूजा घर का दोष मिट जाएगा, प्रस्तुत मंत्र से मोर पंखों को अभी मंत्रित करें
मंत्र है-ॐ कूर्म पुरुषाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:
यदि रसोईघर वास्तु के अनुसार न बना हो तो दो मोर पंख रसोईघर में स्थापित करें, ध्यान रखें की भोजन बनाने वाले स्थान से दूर हो, दोनों पंखों के नीचे मौली बाँध लेँ, और गंगाजल से अभिमंत्रित करें
मंत्र-ॐ अन्नपूर्णाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:
और यदि शयन कक्ष वास्तु अनुसार न हो तो शैय्या के सात मोर पंखों के गुच्छे स्थापित करें, मौली के साथ कौड़ियाँ बाँध कर पंखों के मध्य भाग में सजाएं, सिराहने की और ही स्थापित करें, स्थापना का मंत्र है
मंत्र-ॐ स्वप्नेश्वरी देव्यै नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:
कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
बाल्यकाल में जब बलराम और श्री कृष्ण को मुकुट पहनाया जा रहा था तो भगवान् कृष्ण मुकुट पहन ही नहीं रहे थे....अंतत: जब नन्द बाबा नें मोर पंख वाला मुकुट पहनाया तो उसे ही भगवान कृष्ण नें सर पर सुशोभित किया.....इससे मोर पंख का महत्त्व सामने आता है....प्राचीन काल से ही नजर उतारने व भगवान् कि प्रतिमा के आगे वातावरण को पवित्र करने के लिए भी मोर पंख का ही प्रयोग होता आया है.....निगम ग्रंथों में भगवान् शिव माँ पार्वती को कहते हैं कि देवी योगिनी मंडल के रहस्य वो नहीं जानता जिसने पक्षी शास्त्र में मोर का महत्त्व न जाना हो....तो पार्वती माता पूछती हैं कि भगवान मोर पंख का रहस्य क्या हैं तो शिव उत्तर देते हुए कहते हैं कि असुर कुल में संध्या नाम का प्रतापी दैत्य उत्त्पन्न हुआ.....लेकिन वो गुरु शुकाचार्य के कारण देवताओं का शत्रु बन बैठा....देवी वो परम शिव भक्त था.....उसने विन्द्यांचल पर्वत पर कठोर तप कर मुझे प्रसन्न किया....और अति बीर होने का वर प्राप्त किया.....ब्रह्मा जी भी उसके घोर तप से प्रसन्न हुए.....बर प्राप्त करने के बाद वो हर एक घर में अपना एक रूप बना कर विष्णु भक्तों को प्रताड़ित करने लगा....देवताओं पर आक्रमण कर उसने अलकापुरी जीत ली....देवताओं को बंदी बना वो शिव आराधना में फिर लीन हो गया....उसकी भक्ति के कारण भगवान् विष्णु भी उसका बध करने में समर्थ नहीं थे.......तो सभी देव देवताओं ने मिल कर एक रन नीति तैयार कि जब में महासमाधि में लीन था....उस समय संद्य दैत्य सागर के तट पर अपनी रानी के साथ विहार कर रहा था...तो देवताओं ने योगमाया को सहायता के लिए पुकारा....सभी मात्री शक्तियों के तेज से व नव ग्रहों सहित देवताओं के तेज से एक पक्षी पैदा हुया जो मोर कहलाया उस दिव्य मूर के पंखों में सभी देवी देवता चुप गए और शक्ति बढ़ाने लगे....अति विशाल मोर को आक्रमण करने आया देख संध्या दैत्य उससे युद्ध करने लगा लेकिन योगमाया भगवान् विष्णु सहित नव ग्रहों एवं देवताओं कि शक्ति से लड़ रही थी तो इसी कारण संध्या नाम का दैत्य युद्द में वीरगति को प्राप्त हुया......हे पार्वती तभी से मोर के पंखों में नव ग्रहों देवी देवताओं सहित अन्य शक्तियों के अंश समाहित हो गए.......इस लिए पक्षी शास्त्र में मोर...गरुड़ और उल्लूक के पंखों का महत्त्व हो गया.....किन्तु केवल वहीँ पंख इन गुणों को संजोता हैं जो स्वभावतय: पक्षी त्याग देता है.....
पक्षी शास्त्र में महत्त्व
जैसे उल्लूक तन्त्रं के ग्रन्थ में उल्लुओं का.....काक तन्त्रं नाम के ग्रन्थ में कौवे का महत्त्व दिया गया है उसी प्रकार देववाहिनी तन्त्रं में मोर....मोनाल और जुजुराना जैसे पक्षियों के पंखों का विवरण दिया गया है.....
बिभिन्न लाभ
वशीकरण...कार्यसिद्धि....भूत बाधा....रोग मुक्ति.....ग्रह वाधा....वास्तुदोष निग्रह आदि में बहुत ही महत्पूरण माना गया हैं...
सर पर धारण करने से विद्या लाभ मिलता है या सरस्वती माता के उपासक और विद्यार्थी पुस्तकों के मध्य अभिमंत्रित मोर पंख रख कर लाभ उठा सकते हैं.....मंत्र सिद्धि के लिए जपने वाली माला को मोर पंखों के बीच रखा जाता हैं....घर में अलग अलग स्थान पर मोर पंख रखने से घर का वास्तु बदला जा सकता है...नव ग्रहों की दशा से बचने के लिए भी होता है मोर पंख का प्रयोग......कक्ष में मोर पंख वातावरण को सकारात्मक बनाने में लाभदायक होता है......भूत प्रेत कि बाधा दूर होती है.....
ग्रह बाधा से मुक्ति
यदि आप पर कोई ग्रह अनिष्ट प्रभाव ले कर आया हो....आपको मंगल शनि या राहु केतु बार बार परेशान करते हों तो मोर पंख को 21 बार मंत्र सहित पानी के छीटे दीजिये और घर में वाहन में गद्दी पर स्थापित कीजिये...कुछ प्रयोग निम्न हैं
सूर्य की दशा से मुक्ति
रविवार के दिन नौ मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे रक्तबर्ण मेरून रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ नौ सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ सूर्याय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
दो नारियल सूर्य भगवान् को अर्पित करें
लड्डुओं का प्रसाद चढ़ाएं
चंद्रमा की दशा से मुक्ति
सोमवार के दिन आठ मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे सफेद रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ आठ सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ सोमाय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
पांच पान के पत्ते चंद्रमा को अर्पित करें
बर्फी का प्रसाद चढ़ाएं
मंगल की दशा से मुक्ति
मंगलवार के दिन सात मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे लाल रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ सात सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ भू पुत्राय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
दो पीपल के पत्तों पर अक्षत रख कर मंगल ग्रह को अर्पित करें
बूंदी का प्रसाद चढ़ाएं
बुद्ध की दशा से मुक्ति
बुद्धबार के दिन छ: मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे हरे रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ छ: सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ बुधाय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
जामुन अथवा बेरिया बुद्ध ग्रह को अर्पित करें
केले के पत्ते पर मीठी रोटी का प्रसाद चढ़ाएं
बृहस्पति की दशा से मुक्ति
बीरवार के दिन पांच मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे पीले रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ पांच सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ ब्रहस्पते नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
ग्यारह केले बृहस्पति देवता को अर्पित करें
बेसन का प्रसाद बना कर चढ़ाएं
शुक्र की दशा से मुक्ति
शुक्रवार के दिन चार मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे गुलाबी रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ चार सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ शुक्राय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
तीन मीठे पान शुक्र देवता को अर्पित करें
गुड चने का प्रसाद बना कर चढ़ाएं
शनि की दशा से मुक्ति
शनिवार के दिन तीन मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे काले रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ तीन सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ शनैश्वराय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
तीन मिटटी के दिये तेल सहित शनि देवता को अर्पित करें
गुलाबजामुन या प्रसाद बना कर चढ़ाएं
राहु की दशा से मुक्ति
शनिवार के दिन सूर्य उदय से पूर्व दो मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे भूरे रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंखों के साथ दो सुपारियाँ रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ राहवे नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
चौमुखा दिया जला कर राहु को अर्पित करें
कोई भी मीठा प्रसाद बना कर चढ़ाएं
केतु की दशा से मुक्ति
शनिवार के दिन सूर्य अस्त होने के बाद एक मोर पंख ले कर आयें
पंख के नीचे स्लेटी रंग का धागा बाँध लेँ
एक थाली में पंख के साथ एक सुपारी रखें
गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार ये मंत्र पढ़ें
ॐ केतवे नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:
पानी के दो कलश भर कर राहु को अर्पित करें
फलों का प्रसाद चढ़ाएं
वास्तु में सुधार
घर का द्वार यदि वास्तु के विरुद्ध हो तो द्वार पर तीन मोर पंख स्थापित करें , मंत्र से अभिमंत्रित कर पंख के नीचे गणपति भगवान का चित्र या छोटी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए
मंत्र है-ॐ द्वारपालाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:
यदि पूजा का स्थान वास्तु के विपरीत है तो पूजा स्थान को इच्छानुसार मोर पंखों से सजाएँ, सभी मोर पंखो को कुमकुम का तिलक करें व शिवलिं की स्थापना करें पूजा घर का दोष मिट जाएगा, प्रस्तुत मंत्र से मोर पंखों को अभी मंत्रित करें
मंत्र है-ॐ कूर्म पुरुषाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:
यदि रसोईघर वास्तु के अनुसार न बना हो तो दो मोर पंख रसोईघर में स्थापित करें, ध्यान रखें की भोजन बनाने वाले स्थान से दूर हो, दोनों पंखों के नीचे मौली बाँध लेँ, और गंगाजल से अभिमंत्रित करें
मंत्र-ॐ अन्नपूर्णाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:
और यदि शयन कक्ष वास्तु अनुसार न हो तो शैय्या के सात मोर पंखों के गुच्छे स्थापित करें, मौली के साथ कौड़ियाँ बाँध कर पंखों के मध्य भाग में सजाएं, सिराहने की और ही स्थापित करें, स्थापना का मंत्र है
मंत्र-ॐ स्वप्नेश्वरी देव्यै नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा:
कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
श्री सर्वेश्वर आदिनाथ मंत्र
प्रस्तुत है 'कौलान्तक पीठ हिमालय' का सबसे चर्चित मंत्र जो 'कौल मत' के 'वैष्णव पक्ष' का मंत्र है। 'कौलान्तक पीठ' के 'सर्वकुल' नाम के कुल का प्रसिद्द मंत्र है। ये मंत्र 'सर्वेश्वर नाथ' यानि 'वैष्णव आदिनाथ' का प्रतीक भी है। वैसे तो 'आदिनाथ' स्वयं 'सदाशिव' को कहा जाता है जो 'शैव कौलकुल' के प्रथम बिंदु हैं। लेकिन शिव के कुल को आगे बढ़ाने का कार्य 'विष्णु पुरुष' का है। 'कौलान्तक पीठ' की एक प्रचलित कथा के अनुसार 'सर्वेश्वर नाथ' 'विष्णु पुरुष' ही हैं जो 'शिव पंथ' को बढ़ाने के लिए 'शिव स्वरुप' धारण करते हैं। हिमालय का 'गरुड़ासन पर्वत' उनका स्थल है। ये एक लम्बी कहानी है जिसे 'संप्रदाय' के भैरव-भैरवियाँ जानते हैं। हम विस्तार में ना जा कर 'वैष्णव आदिनाथ' का कौल मंत्र प्रस्तुत कर रहे हैं। ये बताना जरूरी है कि 'शिव भेष' के कारण व प्रथम शिष्य व ज्ञान प्रदाता होने के कारण ही 'विष्णु पुरुष' को 'आदिनाथ' कह कर सम्बोधित किया गया है। बाकी कोई रहस्य भला आप सबसे छुप कहाँ सकता है ? आप जानते ही है कि इस संप्रदाय के लोग अभी भी अपनी मान्यताओं को आगे बढ़ा रहे हैं। ख़ैर छोड़िये प्रस्तुत है मंत्र-कौलान्तक पीठ
।।श्री सर्वेश्वर आदि नाथ मंत्र।।
धुं गरुड़ गरुड़ गरुड़ गरुड़ गरुड़ गरुड़ गरुड़ासन पर्वताय
गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु कौल सिद्धाय
नं नं नं नं नं नं नं नं नं आदि नाथाय हुं
।।श्री सर्वेश्वर आदि नाथ मंत्र।।
धुं गरुड़ गरुड़ गरुड़ गरुड़ गरुड़ गरुड़ गरुड़ासन पर्वताय
गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु गुरु कौल सिद्धाय
नं नं नं नं नं नं नं नं नं आदि नाथाय हुं
कुण्डलिनी शक्ति का पूरा सच
मैं कुंडलिनी साधना क्यों नहीं करवा रहा एकदम से इसका कारण है कि कोई तैयार ही कहां है ? यदि मैं करवाऊंगा तो मेरी तो रीति बिलकुल वैसी ही होगी जो ऋषि परंपरा की है, उन्होंने कहा कि, "मस्तिष्क में इतने विचार, इतनी चीजें भरी पड़ी है, मस्तिष्क इतने सारे क्रियाओं को एक साथ संपादित करता है कि उसके पास जगह नहीं है कि उसके पास समय नहीं है इस उर्जा को संभालने के लिए और उसमें इतने विचार इस संसार के भरे है कि वासना का जो केंद्र है जो व्यक्ति को भड़काता है., जैसे मान लीजिए एक सुंदर सी लड़की ने किसी सुंदर से लड़के को देखा तो उसके मन में वासना पैदा हुई; अब वह लड़की उस लड़के को जब देखती है तो उसे लगता है कि 'दुनिया का सबसे खूबसूरत पुरुष, सबसे सुंदर! मुझे तो किसी भी तरह इसकी बाहों में समा जाना है, मुझे तो बस इस से लिपट जाना है, इसके अंदर समाहित होकर एक हो जाना है ।' उसे और कुछ नहीं दिखाई देगा, कुछ नहीं सुनाई देगा । यहां तक की उस लड़के में बहुत सी बुराइयां हैं, तब भी वह बुराइयां बिल्कुल नजर नहीं आएगी । बस उसे प्रेम नजर आएगा प्रेम, आकर्षण, प्यार । वह बस उसके प्यार के लिए मर जाना चाहेगी, लेकिन जैसे ही उनके बीच दैहिक संबंध बनेंगे और शीर्ष पर जाने के बाद जो कुछ देर के लिए ढलान आएगा तब उस लड़की को एहसास होगा कि, हां मेरा प्यार बहुत अच्छा तो है लेकिन तब ढलान की प्यार का वह आकर्षण नहीं होगा, तब एकदम से परिस्थिति बदलेगी, फिर उसे तैयार होना पड़ेगा धीरे-धीरे उस ऊर्जा को संचित करना पड़ेगा ताकि पुनः वह युवक उसे उतना ही खूबसूरत लगे लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता । शादियां लंबे समय क्यों नहीं चलती ? चार-पांच सालों में वह ऊर्जा का जो ढलान है, ऊर्जा का ऊपर चढ़ना, नीचे आना वह असंतुलित हो जाता है, फिर पति पत्नी का संबंध सामाजिक संबंध रह जाता है, कि 'चलो ठीक है मेरी पत्नी है, मुझे जेलना होगा, मेरे पति है, जैसा भी है अब रहना तो साथ है, समाज जानता है इस बात को, कहीं और जाऊंगा तो गाली पड़ेगी इत्यादि इत्यादि लेकिन मन में वह आकर्षण नहीं रहा, वह संबंध नहीं रहा, क्यों? क्योंकि मूलाधार की ऊर्जा को व्यवस्थित करके चलाना उसे नहीं आया । सोचिए कि वह मूलाधार की ऊर्जा हमें इतना भड़काती है, तो जब वह मूलाधार की ऊर्जा पूरी तरह आपके मस्तिष्क पर छा जाएगी तो आपको कैसा बना देगी ? आपको ऐसी-ऐसी कल्पनाओं के उड़ानों में ले जाएगी कि आपको अनेकों चांद, सितारे, ब्रह्म लोक, देवलोक, ईश्वर के लोक, अप्सराओं का नाचना, गंधर्वों का गायन सुनाई देने लगेगा । मुझे हर रोज पता नहीं कैसे-कैसे लोग पत्र लिखते हैं या ईमेल करते हैं या बहुत सारे लोग मेरे पास आते हैं कि, "जी मैं ध्यान कर रहा था, मेरी पीठ में से कुछ उठा ऊपर, रीड की हड्डी में फस गया, अब तब से वह फंसा हुआ ही है, मुझे ना नींद आती है, ना मैं जागता हूं, न सो पाता हूं, मेरे लिए प्लीज कुछ कर दीजिए ।" तो मैं कहता हूं ठीक है, अब उसी व्यक्ति के पास जाओ जिसने तुम्हें यह ध्यान करने की विधि सिखाई थी कि कुंडलिनी ऊपर चढेगी, उसे कहो ना कि अब नीचे उतार क्योंकि जब तक वह उतरेगा नहीं तुम्हारी तो यही दुर्दशा रहेगी । कुछ कहते हैं कि मुझे 24 घंटे सिर में दर्द है, कुछ कहते हैं मुझे ढोल-नगाड़े, चिमटे, शंख, नाद, भूतों की आवाज, चिल्लाने की आवाज सुनाई देती है दिन रात, मैं पागल हो रहा हूं । पागल तो होंगे ही तुम क्योंकि कुंडलिनी उर्जा का मतलब ही है कि जो तुम हो मनुष्यत्व उससे अलग हो जाना, मनुष्य तत्व से अलग हो जाना । मनुष्य समय पर सोता है, समय पर जागता है, समय पर खाता है, समय पर सब कार्य करता है । अब जब कुंडलिनी जागरण हो जाएगा तो तुम मनुष्य नहीं रहोगे ना फिर ! तब तुम सो नहीं सकते? तो फिर अब मेरे पास आ कर क्यों कहते हो कि हम सोना चाहते हैं लेकिन नींद नहीं आती । अब जब कुंडलिनी जागृत हो गई है प्रभु जी ! तो फिर निद्रा कहां से आएगी ? नींद आने के लिए मनुष्य होना जरूरी है और उर्जा का सही केंद्रों में शीत होना जरूरी है । अब तुम्हारी कुंडलिनी तो मस्तिष्क पर आ गई, मस्तिष्क के तंतु अब भिनभिना रहे हैं, झानझना आ रहे हैं तो निद्रा कहां से आएगी ? तो शरीर का संतुलन तो खराब होगा ही ना ? और तुम कहते हो कि कुंडलिनी जागरण से मुझे यह
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