हिमालय सिद्ध साधकों से विहीन न हो जाए। ये धरा दया, धर्म और प्रेम विहीन न हो जाए। इसलिए गुरु प्रदत्त मार्ग पर बढ़ते जाना। उनके शब्दों को साकार करते जाना।
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गुरुवार, 10 जुलाई 2025
सोमवार, 9 जून 2025
वंशीरा
"हिमालय" के एक अत्यंत रहस्यमय देवता हैं "वनशीरा" जिनको "परम योद्धा" कहा गया है। इनकी साधना के इतने अधिक लाभ कहे गए हैं की साधक गिनते-गिनते थक जाए। वनों में और हिमालयों में इनका जन्म हुआ और विश्व भर को अपनी शक्तियों से इन्होंने समृद्ध किया। ये "वीर" यानि की "यक्ष श्रेणी" के देवता है। "परम क्षेत्रपालों" में से एक हैं। हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में इनको "रातोपहरी" अथवा "रात्रिप्रहरी" भी कहा जाता है। जिसका अर्थ है "रात को रक्षा करने वाला। ये दिन हो या रात, देश हो या विदेश, आकाश हो या जल, रेगिस्तान हो या जमीन हर ओर भक्त की रक्षा करते हैं। जबकि "कौलान्तक सम्प्रदाय" ये मानता है की तंत्रक्रम की सभी साधनाओं को संपन्न करने के लिए एक ऐसे रक्षक देवता की आवश्यकता होती है जो अभेद्य कवच प्रदान करे। जो "वंशीरा" देते है। भारत की प्राचीनतम युद्ध विद्या के जनक है वंशीरा। जिन्होंने स्वयम "देवाधिदेव भगवन शिव" से "युद्ध विद्या" सहित कुछ "गोपनीय तंत्रों" को प्राप्त किया है। इनकी साधना बेहद अचूक मानी गई है। "वनशिरा देवता" को कलियुग में "लोहे" के भीतर स्थान दिया गया है। "भगवान् शिव" नें इनके "शौर्य और अपरिमित बल" के कारण इनको लोहे के बने मजबूत "अस्त्र-शस्त्र"दिए। "बनशीरा देवता" सदा "कुल्हाड़े और तलवारों" सहित अन्य "आयुधों" से सुसज्जित रहते हैं। इनकी साधना करने वाले भक्त को भी नियम पूर्वक शस्त्र धारण करने पड़ते हैं। "तलवार कुल्हाड़ा, अंकुश, गज, शंगल" आदि इनके आयुध है। इनका महत्त्व इतना अधिक है की "भगवान् शिव" से अस्त्र पाने के बाद भी अस्त्रों में "पुन: प्राणप्रतिष्ठा"के लिए स्वयं "भगवान् परशुराम जी" नें भी इनकी स्तुति कर। इनको अपने अस्त्र में स्थापित किया था। कहा जाता है की इनके नेत्रों में रक्त रहता है। केवल शत्रु मर्दन ही "वंशीरा" का लक्ष्य रहा है। लेकिन भक्तों के लिए इनका स्वरुप "परम कल्याणकारी" है। जो लोग अकेले, विदेश में या अपराधिक पृष्ठभूमि के शहरों आदि स्थानों पर रह रहे हैं। उनके लिए "देव वनशीरा" परम अभय हैं। वनशीरा देवता हिमालयाई क्षेत्रों में बेहद पूजे गए। क्योंकि वहां पग-पग पर ख़तरा था। कभी जानवरों का, कभी इंसानों का, कभी प्रकृति का, कभी रोगों का, तो कभी शत्रुओं और आक्रमणकारियों का, ऐसे में वंशीरा ही उनके रक्षक बने। "भगवान परशुराम" शब्द ही अपने आप में "उच्चतम और श्रेष्ठ" है। ये वो नाम है जिसका स्मरण ही "योग की पराकाष्ठा" के लिए पर्याप्त है। "वीरता और पौरुष" का अद्भुत मेल है "महाअवतारी भगवान् परशुराम". "कौलान्तक संप्रदाय" इनको अभी भी अपना नित्य वर्तमान गुरु मानता है। ये मान्यता है की वे अभी भी "महाचिरंजीवी" हैं और भक्तों को बल देते हैं। एक कथा के अनुसार शिव से प्राप्त अपने अस्त्रों की पुन: प्राणप्रतिष्ठा के लिए भगवान् परशुराम जी नें एक वीर देवता का मंत्र से आवाहन किया और उनको अस्त्रों में स्थापित किया। तो उपस्थित ऋषि मुनि व ब्राह्मण विद्वानों नें "भगवान् परशुराम जी" से निवेदन किया की प्रभु "ये किस शक्ति का आवाहन आपने किया और इसका प्रयोजन क्या है?" तब स्वयं "भगवान् परशुराम" जी नें उनको बताया की मैंने "महादेव शिव जी" के अस्त्रों में उनके ही एक गण का आवाहन किया है, जिनको "वनशिरा" कहा गया है। जो की शिव के "शस्त्रागार के प्रहरी" हैं। इनको "महादेव" का वरदान प्राप्त है की ये जब युद्ध करेंगे तो शत्रु पक्ष के अंतिम व्यक्ति के अंत से पहले नहीं थमेंगे। इसी कारण इनका अस्त्र में स्थापन और आवाहन किया जाता है। "भगवान् परशुराम जी" के कारण ही हिमालय और उसकी प्रमुख पीठ "कौलान्तक पीठ" आज भी इस मान्यता पर अडिग है। इस कथा से स्वयं भगवान परशुराम जी नें एक शिव गण "वंशीरा" को महिमा मंडित कर दिया। ऐसा परशुराम जी का बड़प्पन है। हिमालय पर एक बार साधना क्षेत्र को ले कर "देवता वणशिरा और देवता नारसिंह" जो की एक राजसी यक्ष हैं, के मध्य विवाद हो गया। नदी के पार "कौलान्तक पीठ" के एक क्षेत्र में दोनों साधना करना चाहते थे। किन्तु निजता के कारण दोनों चाहते थे की कोई एक ही उस स्थल पर साधना करे। अब वो कौन होगा? इस पर दोनों का परस्पर विवाद गहरा गया। तो अंतत: जब वाद-विवाद से कोई हल ना निकला तो, बल प्रयोग पर बात आई। किन्तु दोनों एक दूसरे पर बल प्रयोग नहीं करना चाहते थे। इसलिए ये निर्णय हुआ की दोनों एक दूसरे के राज्य में जाएँ और वहां कपटियों, व्यभिचारियों, नास्तिकों, दुर्मुखों, अत्याचारियों को ढूंढे और मार कर ले आये। तब नारसिंह से तीन गुना से भी अधिक दुष्टों का बध कर वनशीरा नें ये सिद्ध कर दिखाया की वही सच्चे वीर, न्यायकरता है। हालांकि इस कहानी के सभी पहलू हम यहाँ नहीं बता रहे। किन्तु इस से वंशीरा की क्षमताओं का पता चलता है।
प्राचीन समय में विदेशों से व देश के भीतर से भी हिमालय और पर्वत के क्षेत्रों को लूटने के लिए कई बार युद्ध हुए। सैनिक महिलाओं की इज्जत पर हाथ डालते, माताओं और बुजुर्गों पर अत्याचार करते, पुस्तकों ग्रंथों व मंदिरों को नष्ट करते, सब कुछ लूट कर ले जाते। छोटे बच्चों को मार डालते। युवाओं को ज़िंदा जलाते और हँसते थे। तब ऐसे समय में "हिमालय और कौलान्तक पीठ" क्षेत्र के निवासियों नें सभी "देवी-देवताओं" से गुहार लगाई। लेकिन कोई तुरंत उत्तर ना मिला। तब एक बार एक पर्वतीय गाँव पर कुछ मुग़ल सैनिकों नें धावा बोला और सभी पुरुषों और माताओं को बंदी बना लिया। उन्हें कतार में खडा कर उनको डराने के लिए बीस चुनिन्दा युवकों के पेट में तलवार घुसा दी जिस कारण घायल हो कर युवा जमीन पर तड़पने लगे। तब मुगलों नें गाँव की सुन्दर युवतियों को खीच कर निर्वस्त्र करने का प्रयास किया। उस समय एक युवती जो वंशीरा को और कौल मत के तत्कालीन प्रमुख को बहुत मानती थी रोते हुए पुकारने लगी। उसने "कौल पंथ की अवतार परम्परा" को ताना मारते हुए कहा की यदि आज मेरी और बहनों की इज्जत की रक्षा ना हुई, तो वो वंशीरा के नाम पर अपने केश मुडवा लेगी (कौलान्तक पीठ में महिलाओं का केश मुंडवाना अशुभ माना जाता है) और ततकालीन कौलान्तक नाथ के समक्ष आत्मदाह कर लेगी। ऐसा विलाप सुन कर मुगलों नें कहा की वंशीरा तो शैतान है वो तुम्हारी क्या खाक मदद करेगा? और उसे जमीन पर पटक दिया। उसी क्षण एक बूढी महिला चिल्लाती हुई बोली "मैं वनशिरा हूँ मुझे युद्ध के लिए शरीर चाहिए।" तो वो युवती बोली "घायल युवा तुमको दिए।" इतना कहते ही अपने-अपने पेट में घुसी तलवारें युवाओं नें खींच ली और खड़े हो कर उनहोंने ऐसा प्रलयंकारी युद्ध किया की इतनी बड़ी सेना के सैनिको के शवों के बहुत से टुकडे करने के बाद भी उनको काटते ही रहे, काटते ही रहे, महिलाएं, बूढ़े उनको रोकते रहे, लेकिन जब तक सभी हड्डियों से मांस निकल नहीं गया वो उनको काटते रहे। कुछ कायर मुग़ल इस दृश्य को देख कर भाग खड़े हुए और कुछ भय के कारण ही मल-मूत्र का त्याग कर प्राण गवा बैठे। किन्तु इसके बाद वो बीस युवा भी मर गए। तब वन्शिरा नें कहा की जब भी तुम पर मुसीबत हो मुझे प्रयोग के लिए अपना शरीर दे दो। मैं धरा में पापियों की लाशें बिछा दुगा। तभी से सभी गांवों नें वन्शिरा को प्रमुख देवता की तरह स्थान देना शुरू किया। वनशिरा देवता की सबसे बड़ी खूबी ये थी। की वो किसी भी दूसरे देवता के विरोधी नहीं हैं। इस कारण उनको किसी भी देवी-देवता के साथ रख दो वो स्थापित हो जाते हैं। ना ही इनकी पूजा पाठ का कोई लंबा चौड़ा विधान है। (नोट-यहाँ कौलान्तक पीठ का उद्देश्य किसी दूसरे धर्म को या वर्ग को नीचा दिखाना नहीं है। ये एक बुजुर्गों द्वारा बताई गयी पुरानी कथा पर आधारित है। कृपया इसे किसी दूसरे अर्थों में ना देखें। "ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ" का कहना है की प्राचीन ज्ञान को इस शैली से दो की वो द्वेष का कारण ना हो जाए। क्योंकि कभी-कभी शैली गलत अर्थ दिखा देती है हम कोई विवाद नहीं चाहते इस कारण स्थान का नाम नहीं दिया जा रहा) "देवता वनशीरा" की हस्तमुद्रा में गहरा अर्थ छिपा है। एक हाथ संहार का प्रतीक है और दूसरा कल्याण का। यानि की "वंशीरा नीति" कहती है की कभी-कभी "कल्याण" के लिए "संहार" की आवश्यकता पड़ती है। उस अति दुखदाई स्थिति में "युद्ध या वीरगति" ही श्रेष्ठ होती है। किन्तु याद रहे "वंशीरा" अकारण शस्त्र उठाने वाले को कायर व पापी कहता है। मूलत: "देव वन्शिरा" भी शांति, साधना और अहिंसा की प्रेरणा देते है। किन्तु कहते हैं की कभी-कभी इतिहास इतने बुरे दिन दिखाता है की न्याय व्यवस्था, धर्म व्यवस्था, राज व्यवस्था आपको और आपके पंथ, वंश को मिटा डालने का षडयंत्र करता है। तब शांत प्रेमी पुरुषों को और सज्जनों को, माताओं की रक्षा, वंश व देश की रक्षा सहित धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना चाहिए। युद्ध के खुदे हुए मैदान से ही लम्बी शांति और प्रेम उपजता है
- कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।
शुक्रवार, 10 जनवरी 2025
शाकम्भरी नवरात्रि
शाकम्भरी नवरात्रि पौष माह की अष्टमी तिथि से आरम्भ होते हैं तथा पूर्णिमा पर समाप्त होते हैं। अतः शाकम्भरी नवरात्रि उत्सव कुल आठ दिनों तक चलता है। हालाँकि, कुछ वर्षों में तिथि के घटने-बढ़ने के कारण, शाकम्भरी नवरात्रि की समयावधि सात एवं नौ दिनों तक की हो सकती है।
शाकम्भरी माता देवी भगवती का ही अवतार हैं। भक्तों का मानना है कि, देवी भगवती ने पृथ्वी को अकाल तथा खाद्य संकट से मुक्त करने हेतु शाकम्भरी के रूप में अवतार लिया था। शाकम्भरी माता को, सब्जियों, फलों तथा हरी पत्तियों की देवी के रूप में भी जाना जाता है तथा उन्हें फलों व सब्जियों के हरे-भरे परिवेश में विराजमान दर्शाया जाता है।
शनिवार, 26 अक्टूबर 2024
महादेव हमारे लिए अनुकरणीय है !
संसार इधर से उधर हो जाए लेकिन मेरी आंखों में वो चिंगारी है, साधना के लिए मैं तत्पर हूं। ऐसा शैवमतीय गुण हमारे भीतर होना चाहिए! शिव की तरह! बैठ गए हैं आसान पे तो बैठ गए हैं आसान पे, पार्वती प्रतीक्षा कर रही है , जगत की जननी उनके चरणों पे विराजमान हैं , देख रही है कि वो जागेंगे और युगों है कि वो जागते नहीं! ऐसे महादेव ही हमारे लक्ष्य हो सकते है ! हमारे लिए अनुकरणीय हो सकते है , क्योंकि उनका अनुसरण करना, उनका अनुकरण करना ही हमारे लिए श्रेष्ठ मार्ग है !
वो जड़वत् है, पत्थर की भांति, उनका जब भी शास्त्रकारों ने जब भी ऋषियों ने विवरण दिया तो कहा कि, "वो तो कैलाश धाम पे , कैलाश शिखर पर विद्यमान हैं!" कहा, "क्या कर रहे हैं?" कहा, "समाधिस्थ है!" तो कहा, "किसकी उपासना कर रहे हैं?" कहा, "नहीं मालूम।" तो कहा, " तो कभी जाके पूछ लो!" तो कहा, "हम तो नहीं पूछ सकते!" कहा, "किसकी योग्यता है?" कहते है, "एक ही है जो पूछ सकती हैं और वो पराडाकिनी हैं , मां पराम्बा हैं !वही पूछ सकती हैं! " उन्होंने पूछा, कि, "हे प्रभु! आप नेत्र मूंद के किसका ध्यान करते हैं? तो उन्होंने कहा, "मैं नेत्र बंद रखकर के केवल ' ॐ' जो नाद है, उसी का ध्यान करता हूं !" पार्वती ने फिर पूछा, " ये नाद कौन हैं ? इस सृष्टि में मैने दो ही तत्त्वों को पाया है , या तो मैं , या तो आप! ये तीसरा कौन पैदा हो गया?" तो शिव ने कहा, "जहां तुम और हम मिलते हैं वही नाद है ! इसलिए मैं तुम्हारे और अपने अतिरिक्त किसी का चिंतन नहीं करता! मेरी समाधि वैसी समाधि नहीं है जैसे जोगी समाधि लगाते हैं, मेरी समाधि कुछ और समाधि है!" इसलिए महादेव हमारे लिए अनुकरणीय है !
ईशपुत्र - कौलान्तक नाथ (लोक लोकांतरगमन साधना शिविर)
सत्य की आनंदमयी दिवाली
वर्ष में अनेक सिद्ध मुहूर्त होते है , और उन मुहूर्तों में भी ग्रहण , दीपावली और होली का सबसे ज्यादा महत्त्व होता है. लेकिन दीपावली के बहुत अनेकों अनेक अर्थ है. जैसे जब दीपों की माला जलाई जाए उसे दीपमाला कहा जाता है और उसी को दीपावली अर्थात दियों की पंक्ति कहा जाता है.एक योगी के लिए एक साधक के लिए असली दीपमाला अथवा असली दीपावली तब होती है जब वो भीतर के प्रकाश को जागृत कर सहस्त्र कमलदल पर जाए , हमारा जो मस्तिष्क है इसमें एक हजार छोटे छोटे पर्ण अर्थात दिए जैसे पत्ते बने हुए है जिन्हे बिंदु कहा जाता है; जब वो सभी के सभी जागृत हो जाए तो वो साधक की असली दीपावली है. मस्तिष्क के एक हजार दिव्य पर्णों को यदि जागृत किया जाए, उन्हें यदि जला लिया जाए एक एक दिये की भांति तो वहां सबसे सुन्दर्व बनती है; और योगियों का ऐसा अनुभव भी है... जब वो गहन ध्यान की अवस्था में जाते है तो मस्तिष्क में सुषुम्न मार्ग से होते हुए क्रमशः जब वो ब्रह्मरंध तक पहोंचते है वहां वो अलौकिक छबि देखते हैं। सर्वत्र ब्रह्मांड का दृश्य उन्हें दृष्टिगोचर होता है उसे ही वो दीपमाला कहते है।दीपावाल जैसे हमारे जीवन में आती है ठीक वैसी ही दीपावली इस ब्रह्मांड में भी चल रही है; यदि हम ब्रह्मांड को दूर से देखे तो अनेकों नक्षत्र , ग्रह, तारामंडल बन रहे है, बिगड़ रहे है, अनेकों दियें इस ब्रह्मांड में भी जल रहे है, अनेकों सितारे इस ब्रह्मांड में जगमगा रहे है मानों सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कोई दीपावली मना रहा हो, उसी दीपावली को योगियों ने अपने निज ब्रह्मांड अर्थात सहस्त्रार कमलदाल में अनुभव किया और आम मनुष्य को भी इसी का संदेश देने के लिए ऋषि मुनियों ने दीपावली का आयोजन किया था . दीपावली वो शुभ मुहूर्त है जिस दिन लक्ष्मी ....लक्ष्मी शब्द छोटा हो जाएगा; महालक्ष्मी .... महालक्ष्मी शब्द भी छोटा हो जाएगा ; "श्री विद्या" अपने समस्त तेज के साथ ब्रह्मांड को संचालित करती हुई नवीन ऊर्जा देती है. ये काल श्री विद्या का काल है, ये काल अत्यंत सिद्ध काल ही, जब ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी तब दीपावली का दिन ही था, जब ये सितारे रोशन हुए वो दिन पीपावली का ही दिन था.....और कालांतर में इसके साथ भगवान राम और सीतामाता भी जुड़े, जब मैया सीता वापिस लौटी तो सर्वत्र दिए जलाए गए. देवी लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक ये दिवाली होती है. लेकिन याद रहे तुम्हारी दिवाली और वास्तविक दिवाली में जमीन आसमान का अंतर है. दिवाली एक उत्सव है, एक मौका है जब तुम प्रसन्नता व्यक्त कर सकते हो, लेकिन यहां प्रसन्नता कौन व्यक्त करेगा? क्या यदि तुम्हारे पास पैसे , धन, वाहन, भूमि या वैभव अथवा राज्यसत्ता है तो तुम दिवाली मानने के हकदार हो? या तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है न धन, न मान, न सम्मान तुम बस स्वयं हो बस इतना ही तो क्या तुम दिवाली मानने के हकदार हो? दिवाली तो केवल वही माना सकता है जो जीवन और मरण से मुक्त हो चुका हो, जिसके सर पर काल न मंडरा रहा हो, जिसके सर पर मृत्यु नाश की ओर अंत की ओर ले जाने के लिए आतुर न हो; दीपावली तो वो मना सकता है जिसके जीवन में गुरु हो, जिसके जीवन में ब्रह्मप्रज्ञा हो. दीपावली तो उन योगियों के लिए है जिन्होंने अपने आप को जीवन और मरण से मुक्त कर लिया है. जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को देखने की क्षमता रखते है. दसों महाविद्याओं की विशेष अनुकंपा जिन पर है, उनके लिए दीपावली सही मायने में दीपावली है, केवल लालच दीपावली नहीं कि तुम इसलिए दीपावली के दिन साधना और पूजा करो कि तुम्हारे घर धन बरसेगा . अधिकांश लोग विशेषतया ज्योतिषी हर मध्यम से केवल यही बात तुम तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे की तुम लक्ष्मी प्राप्ति के लिए ये सब करते चले जाओ, लेकिन वास्तविक साधक को जरा ठहर जाना चाहिए; क्योंकि धन , संपत्ति ये न तो तुम्हारे पहले भी थे, न आज है, न भविष्य में होंगे. केवल तुम्हारी जरूरतें है जिन्हे तुम्हे पूरा करना चाहिए और उसके लिए ईश्वर से इतनी अधिक पुकार लगाने की , इतनी अधिक मांग करने की कोई आवश्यकता नहीं है. लक्ष्मी की लघु साधना अवश्य करनी चाहिए ; गृहस्थ जीवन में और सांसारिक जीवन में धन और संपदा, वैभव, ऐश्वर्य रहे इसके लिए. लेकिन श्री विद्या के आगे ये सब वैसी ही तुच्छ बातें है जैसे किसी बहुत बड़े गणितज्ञ से आप ये पूछ लो कि एक जमा एक कितने होते है? दीपावली एक ऐसा अद्भुत काल है जिस काल को यदि तुमने समझ लिया तो वो तुम्हारे जीवन में उजाला ला सकती है...और वो ये भौतिक जीवन ही नहीं है, मृत्यु से पर्यंत एक अन्य जीवन भी है जिसकी खोज बुद्धिमान लोग ही करते है, मूढ़ व्यक्ति शुतुरमुर्ग की भांति रेत में अपना सर छुपाकर समझता है कि वो बच जाएगा, मूर्ख व्यक्ति की भांति हम कभी ये न सोचे कि अगर हम अपनी जिंदगी जी रहे है तो हमारा अंत नहीं होनेवाला. इस मृत्यु को महात्मा बुद्ध ने समझा, ईसा मसीह ने समझा, जीवन की नश्वरता को सभी पीर पैगंबरों ने समझा, ऋषि मुनियों ने समझा और इसी लिए एक अध्यात्म के पथ की खोज करने को कहा...और दीपावली अपने भीतर के एक एक कमलदल को जगाने का मुहूर्त है. दीपावली गुरु साधना का मुहूर्त है. दीपावली श्री विद्या को साध लेने का मुहूर्त है. जब तक तुम्हारे जीवन में श्री न हो अर्थात ऐसा बुद्धि और विवेक न हो जिसके द्वारा तुम अध्यात्म को और सूक्ष्म सत्ता को समझ सको तब तक सब कुछ व्यर्थ है और श्री ही वो शक्ति है जो अपनी अनुकंपा के द्वारा तुम्हे दिव्य तेज देती है...तब तुम्हारी बुद्धि सूक्ष्म सत्ताओं को जान सकती है, सूक्ष्म तत्त्वों पर विचार कर सकती है और तब अध्यात्म समझ में आने लगता है. जब तक श्री विद्या की अनुकंपा न हो तुम धर्म अध्यात्म को नहीं समझ सकोगे. अकसर स्तोत्र, स्तवन, मंत्र पुस्तक में लिखे गए होते है और हम समझते है कि ये मंत्र अगर पुस्तक में एक हजार बार जाप करने को कहा गया है, मैने जाप कर लिया तो लक्ष्मी की अनुकंपा हो जाएगी किंतु ऐसा नहीं है; वो तो केवल एक साधारण सा विधान है उसके पीछे अनेकों अनेक रहस्य है लेकिन उन रहस्यों को भी तो जानना होगा, जब तक हम वो रहस्य नहीं जानते तब तक हम वास्तविक साधना के धरातल पर खरे नहीं उतर पाते... इसलिए दीपावली न तो उन लोगों के लिए है जो पहले से सुविधा संपन्न है और न ही उन लोगों के लिए जो बहुत ही गरीब है. वास्तविक दीपावली तो योग्य साधक के लिए होती है.
श्री विद्या आध्यात्मिक और भौतिक दोनों जगत को एक साथ संचालित करनेवाली परांबा परानायिका है. उनके बारे में बताना आम ज्योतिषी, आम पंडित, आम साधु सन्यासी के बस की बात नहीं है . बड़े बड़े सिद्ध , बड़े बड़े आचार्य, यहां तक कि गंधर्वो के द्वारा भी देवी की स्तुति बहुत ही जटिल है. वो परम वैभवशालिनी, परम तेजस्विनी , इच्छा मात्र से इस सम्पूर्ण सृष्टि और ब्रह्मांड का संचालन करनेवाली शक्ति है. वो हमारे जीवन में इन कष्टों को तुरंत हर सकती है. यदि तुम साधना करते हो तो कर्म भी करो तब तुम्हारा जीवन निखरकर सुख देने लगेगा. यदि तुम केवल साधना करते हो भौतिक जीवन से तुम दूर होने लगोगे...और यदि तुम केवल भौतिक जीवन में रहते हो तो याद रखना इतने कष्टों और पीड़ाओं में से होकर तुम्हे गुजरना होगा और अंत भी बहुत बुरा होगा और शेष कुछ नहीं बचेगा , मिट्टी का ढेर हो जाएगा. ऐसी अवस्था में दीपावली को शुभ करने के लिए चार चीजों को समझ लीजिए: पहला मन में श्री विद्या के भाव का आविर्भाव होना चाहिए, तुम देवी मां को समझने की चेष्टा करो ; उनको समझना बड़े बड़े ऋषि मुनियों के लिए दुर्लभ है लेकिन जितना भी तुम प्रयास कर सको देवी मां को समझने का प्रयास करो, उसके लिए अपने हृदय में भाव रखो. दूसरा गुरु से संग करो उनसे दीक्षा लो और मंत्र लो, गुरु ये जानते है की तुम्हे कौनसी दीक्षा देनी है और तुम्हारे लायक कौनसा मंत्र है , उस मंत्र का जाप करो. तीसरा यथा संभव कर्मकांड...अपनी भक्ति प्रदर्शित करने के लिए थोड़े से चावल, हल्दी, कुमकुम, पानी के लोटा, गंगाजल और कुछ पुष्प बड़ी सहजता से तुम एकत्रित कर सकते हो... और एक छोटा सा लक्ष्मी का चित्र अथवा श्री विद्या का चित्र उनकी श्रद्धापूर्वक जब आप स्तुति और पूजन करते है तो जीवन में अनुकंपा अवश्य प्राप्त होती है. चौथा स्तुति स्तवन गायन, कीर्तन. यदि तुम्हारे जीवन में सिद्ध आचार्य है, सिद्ध गुरु है तो बस उनके चरणों में बैठकर आशीर्वाद लेने की आवश्यकता है. दीपावली की रात्रि अत्यंत सिद्ध रात्रि होती है , इस दिन रातभर हिमालय के बड़े बड़े परमहंस, योगी, यति, सिद्ध, गंधर्व सभी परम साधनाओं और परम तेजस्वी मंत्र की सिद्धि में लीन रहते है. बड़े बड़े योगी ध्यानस्थ होकर अपने मूलाधार की शक्ति को धीरे धीरे जागृत कर सहस्त्रार कमलदल में ले जाते है. दीपावली बहुत से गुप्त अर्थों को लेकर चलती है. इस दिन यौगिक शक्ति, तंत्र शक्ति, ज्योतिषीय शक्ति यहां तक कि ब्रह्मांड की छोटे से छोटी और बड़े से बड़ी क्षुद्र शक्तियां भी जागृत रहती है...अब ये केवल तुम्हारे गुरु और तुम पर निर्भर करता है की तुम इस सिद्ध काल में किस विशेष शक्ति का चयन कर उसे अपने जीवन में जगह देते हो.याद रहे दीपावली प्रसन्नता का अवसर तो है लेकिन ये जागने का अवसर भी है; ये दीपावली इस बात का सूचक है की मृत्युके समय जब हम आंख मूंदे तो केवल अंधकार न छा जाए, वहां भी प्रकाश हमारी राह देख रहा हो...और इसी के लिए हिमालय में ऋषि मुनि सदैव अपनी साधना करते हुए अपने आप में लीन रहते थे.
जरा सी आंख मूंद कर जब श्वास तुम भीतर खींचते हो और मंत्र बुदबुदाते हो ॐ श्रीं श्रीयै स्वाहा. तो वो अंतः यज्ञ हो जाता है...जैसे बहिर्याग होता है. हम यज्ञ कुंड बनाकर उसमें आहुतियां देते है ठीक उसी प्रकार जब तुम इसी प्रकार स्वाहा शब्द का जाप करते हुए श्वास भीतर ले जाते हो तो मूलाधार में वो मंत्र आहुति बनकर श्री विद्या तक पहुंचता है, तुम्हारे भीतर श्री विद्या नाम का तत्त्व जागृत होता है. अभी जब साधारण जीवन जीते हुए भी तुम श्री विद्या को सुन रहे हो, जब तुम श्री विद्या को जानने का प्रयास कर रहे हो तो ये वो पहला कदम है जो इस बात की सूचना देता है कि तुम्हारी चेतना श्री विद्या की ओर अग्रसर हो रही है, श्री विद्या तुम्हे अपनी ओर बुला रही है. ये केवल भौतिक धन धान्य, स्वर्ण, सोना, चांदी, हीरे, रत्न केवल ये श्री नहीं है; तुम्हारे भीतर एक अनुपम श्री है, वो देवी साक्षात तुम्हारे भीतर विद्यमान है. जिस दिन तुम भीतर से अलौकिक हो जाते हो, जिस दिन तुम भीतर से परिपूर्ण हो जाते हो उस दिन ये जगा तुम्हारा ही है. जब तुम श्री विद्या के साधक ही जाओ तो हर क्षण श्रृष्टि का हर कण बस तुम्हारे लिए ही कार्य करता है, तुम्हे आनंद देने लगता है, तुम्हे सौंदर्य देने लगता है. श्री विद्या का साधक लुंज पुंज नहीं होता, वो गरीब अथवा सदी गली अवस्था में नहीं रहता, वो तो दिव्य होता है, एकदम देवताओं जैसा, चेहरे पर सौंदर्य और तेज, सुंदर वस्त्र और रत्न, धन धान्य, उससे भी उत्तम उसके हृदय में अथाह शांति, करुणा और प्रेम...श्री विद्या के साधक को जो एक बार देख ले बस वो उसी से प्यार कर बैठता है. श्री विद्या चंचला है इसलिए ऐसा व्यक्ति एकायमी नहीं होता, वो बहुआयामी होता है. श्री विद्या संगीतप्रिया है, नृत्यप्रिया है, श्रृंगारप्रिया है तो उनका साधक भी वैसा ही होता है. अपने जीवन में प्रसन्नता को अनुभव हम कैसे करे ये श्री विद्या सिखाती है. तुम यदि अपने जीवन के दुखों को भुलाकर सुखों को याद कर सको तो तुम्हारा जीवन दीपावली जैसा होने लगता है. केवल अपने भीतर झांकने भर की देर है. जिन लोगों के पास अथाह धन, संपत्ति सब कुछ है उन लोगों की दीपावली कैसी होगी? केवल दिये जला देने से नहीं अपितु साधना उनके लिए भी उतनी ही अनुपम और आवश्यक है. मंत्र का जाप कर, गुरु की सेवा कर, साधना कर लक्ष्मी को मनाया जा सकता है. गुरु श्री विद्या के सूत्र जानते है और गुरु चाटुकारिता नहीं करते है और न ही वो तुम्हे उलझाए रखते है; वो कभी तुम्हे ये नहीं कहेंगे कि सात दिये जलाइए, आठ दिये जलाओ, उसे पूर्व दिशा में जला दो, पश्चिम दिशा में जला दो...वो तो केवल ये कहेंगे...अपने हृदय में असली ज्योत जला दो फिर बाहर की ज्योत तुम जहां मर्जी जलाओ, उससे कोई अंतर नहीं पड़नेवाला. दीपावली वो मुहूर्त है जब हमारे मस्तिष्क में श्री विद्या स्वयं बिराजमान हो जाती है. यदि हमारा मस्तिष्क ही श्री विद्या के सौंदर्य से परिपूर्ण हो जाए तो जीवन में आनंद ही आनंद है, हम सुंदर सोचेंगे, सुंदर बोलेंगे, हमारा हृदय सुंदर होगा, हमारा परिवेश सुंदर होगा और श्री विद्या जहां जहां हमें रखेगी वो सारा का सारा स्थान सुंदर होता चला जाएगा. इसीलिए कहते है कि लक्ष्मी देवी के चरण जहां जहां पड़े वहां वहां सब बदलता चला जाता है, सुंदर होता चला जाता है. तो लक्ष्मी तुम्हारे भीतर है, जब तक तुम उसके लिए भीतर का द्वार नहीं खोलोगे तब तक अपने द्वार को खुला रखने से कुछ नहीं होनेवाला...इसलिए वास्तविक साधना स्वयं करना...इसलिए वास्तविक पूजा पाठ स्वयं करना ...इसलिए दीपावली को परिवर्तित करने का काल समझना और अपना रूपांतरण करना...अपने हृदय के कपाट खोल देना ताकि तुम्हारे हृदय में श्री विद्या स्वयं आकर निवास करे . देवी बहुत अलौकिक है ...काश में उन्हें शब्दों में समझा पता...उनकी स्तुति देवताओं के लिए भी दुर्लभ है...उनका अद्भुत रूप, उनकी अद्भुत अनुकंपा तुम्हारे जीवन में यदि हो जाए तो सच मानो एक क्षण का भी विलंब नहीं होनेवाला और तुम्हारे जीवन में अखंड रूप, यौवन, तेजस्विता आ जाएगी, पूर्णता आ जाएगी, ये सम्पूर्ण जगमगाता ब्राह्मण तुम्हारे चारों तरफ घूम रहा है ये तुम्हारे लिए दीपावली ही तो है...जरा आकाश में सितारों को निहारो; दीपावली की रात वहां चंद्रमा नहीं होता क्योंकि चंद्रमा कहीं उन सितारों की जगमगाहट छुपा न ले इसलिए तुम निर्मल होकर सम्पूर्ण सितारों को आकाश में जगमगाता देख सको. वही सितारें तुम्हारे भीतर भ जगमगा रहे है...और वही सितारें जब भीतर टिमटिमाने लग जाए तो तुम्हारी दीपमाला - दीपावली सार्थक होने लग जाती है...जीवन में समय निकालना गुरु की सेवा करने के लिए, उनके दर्शन करने के लिए; वो सहज और सरल नहीं है , बहुत मेहनत करनी पड़ती है, बहुत मुसीबतें आती है लेकिन यदि तुम सभी विघ्न बाधाओं को पार कर श्री विद्या के तत्त्व को गुरु से ग्रहण कर लेते हो तो तुम्हारे जीवन में फिर अवश्य क्रांति आएगी. तुम अपने आप में देवता हो, तुम्हारे भीतर देवत्व है; उसे जागृत करो क्योंकि दीपावली का शुभ काल फिर तुम्हारे द्वार पर है. दीपावली का ये काल तुम्हें वो अवसर देगा जब तुम अपने भीतर की शक्ति को जागृत कर सकते हो तो इस मौके को अबकी बार मत चूकना. तुम्हारे जीवन में वास्तविक दीपावली आए. तुम्हारे जीवन में बाहर की जगमगाहट की भांति ही भीतर भी जगमगाहट हो. तुम्हारे जीवन में जैसे अभी दिये जल रहे है, मृत्यु पर्यंत जीवन में भी वैसे ही दिये जले, तुम अंधकार से प्रकाश की ओर चले जाओ इसी मधुर मनोकामना के साथ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं . ॐ नमः शिवाय |
- ईशपुत्र
गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024
तारा महाविद्या महात्म्य
"अक्षोभ्य पुरुष" की शक्ति है "माँ तारा" ! जिसे माँ तारिणी कहा गया है ! मध्यरात्रि के पश्चात का जो समय है वो माँ तारा का ही है ! ये वही महाविद्या है जिन्हेँ तारिणी का नाम इसलिए प्रदान किया गया क्योँकि यही शक्ति हमेँ इस भवरुपी बन्धन से तारती है ! मानवदेह मेँ जब ये जीवात्मा बन्धनयुक्त पडी रहती है तो उस समय जीवात्मा निरन्तर छटपटाती रहती है ! कभी उसका ह्रदय "भोग" चाहता है तो कभी "योग" ! लेकिन वह दोनोँ को पाने का प्रयत्न तो करता है लेकिन किसी एक को भी ठीक तरह से प्राप्त नहीँ कर पाता ! तो माँ तारा की साधना एवं आराधना ऐसी विलक्षण है कि यदि साधक सब कुछ न्योछावर कर यदि तन्त्रमार्ग से इनकी साधना एवं आराधना करे तो वह "भोग" एवं "मोक्ष" दोनोँ को प्राप्त करता है ! "तारा तन्त्र" यद्यपि वामाचारी क्रिया से सम्पन्न होता है क्योँकि यह चीनाचारा पद्धति के द्वारा चलनेवाला है लेकिन यदि साधक इस सम्पूर्ण रहस्य को अपने श्रीगुरु के चरणोँ मेँ बैठकर समझे तो इस महाविद्या की कृपा वह अवश्य प्राप्त करता है ! तारा भगवती "ब्रह्म" का ज्ञान प्रदान करनेवाली महाशक्ति है ! यह वह शक्ति है जो हमेँ सम्पूर्ण मानसिक पीडाओँ से मुक्ति प्रदान करती है ! भगवती के सम्बन्ध मेँ कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने के सदृश होगा ! अतः साधक को चाहिए की वह दस महाविद्याओँ की साधना एवं आराधना लगातार करता रहे ! माँ भगवती के स्तोत्र एवं मन्त्रोँ को वीरभाव से पढा अथवा उनका उच्चारण किया जाता है ! ये मन्त्र जितने भयानक और जितने गम्भीर कण्ठ स्वर से पढे जाते है उतने ही अधिक फलदायी होते है ! इन मन्त्रोँ की "सामर्थ्य" को एक "योग्य साधक" ही जान सकता है ! लेकिन यदि साधारण मनुष्य भी यदि पद्मासन अथवा सुखासन मेँ बैठकर इन मन्त्रोँ को सुनेँ, इनका श्रवण करे तो वह अपने जीवन की सभी बाधाओँ से मुक्ति प्राप्त कर सकता है ! उसके अनेकोँ रोग नष्ट होते है ! सम्पूर्ण भय नष्ट होता है ! व्यक्ति का मानसिक विकास होता है अथवा आध्यात्मिक विकास प्राप्त करते हुए वह "भोग-मोक्ष" दोनोँ को प्राप्त करता है !
बुधवार, 9 अक्टूबर 2024
'तारा महाविद्या के २१ प्रमुख भैरवों का वाहण मंत्र'
श्री तारा महाविद्या प्रयोग
तारा महाविद्या साधना हेतु कुछ संदर्भ पुस्तकें -
१) नील सरस्वती तंत्र
२) डामर तंत्र
३) नाट्य परम्परा और अभिनय
४) परमानन्दतंत्रम
५) सिद्धविद्या रहस्य
६) उपमहाविद्या रहस्य
७) तारा रहस्यम
८) तारा महाविद्या
९) सांख्यायन तंत्र
१०) प्रत्यंगिरा पुनश्चर्या
११) नव दुर्गा दशमहाविद्या रहस्य
१२) श्री विद्या साधना
१३) वात्स्यायन कामसूत्र
१४) मुण्डमाला तंत्र
१५) गन्धर्व तंत्र
१६) सिद्धसिद्धांत पद्धति:
१७) ज्ञानार्णव तंत्र
१८) श्री दक्षिणामूर्ति संहिता
१९) योगिनी तंत्र
२०) श्री विद्या खडग माला
बड़े से बड़े दुखों का होगा नाश
सृष्टि के सर्वोच्च ज्ञान की होगी प्राप्ति
भोग और मोक्ष होंगे मुट्ठी में
जीवन के हर क्षत्र में मिलेगी अपार सफलता
दैहिक दैविक भौतिक तापों से तारेगी
"सिद्धविद्या महातारा"
सृष्टि की उत्तपत्ति से पहले घोर अन्धकार था, तब न तो कोई तत्व था न ही कोई शक्ति थी, केवल एक अन्धकार का साम्राज्य था, इस परलायकाल के अन्धकार की देवी थी काली, उसी महाअधकार से एक प्रकाश का बिन्दु प्रकट हुआ जिसे तारा कहा गया, यही तारा अक्षोभ्य नाम के ऋषि पुरुष की शक्ति है, ब्रहमांड में जितने धधकते पिंड हैं सभी की स्वामिनी उत्तपत्तिकर्त्री तारा ही हैं, जो सूर्य में प्रखर प्रकाश है उसे नीलग्रीव कहा जाता है, यही नील ग्रीवा माँ तारा हैं, सृष्टि उत्तपत्ति के समय प्रकाश के रूप में प्राकट्य हुआ इस लिए तारा नाम से विख्यात हुई किन्तु देवी तारा को महानीला या नील तारा कहा जाता है क्योंकि उनका रंग नीला है, जिसके सम्बन्ध में कथा आती है कि जब सागर मंथन हुआ तो सागर से हलाहल विष निकला, जो तीनों लोकों को नष्ट करने लगा, तब समस्त राक्षसों देवताओं ऋषि मुनिओं नें भगवान शिव से रक्षा की गुहार लगाई, भूत बावन शिव भोले नें सागर म,अन्थान से निकले कालकूट नामक विष को पी लिया, विष पीते ही विष के प्रभाव से महादेव मूर्छित होने लगे, उनहोंने विष को कंठ में रोक लिया किन्तु विष के प्रभाव से उनका कंठ भी नीला हो गया, जब देवी नें भगवान् को मूर्छित होते देख तो देवी नासिका से भगवान शिव के भीतर चली गयी और विष को अपने दूध से प्रभावहीन कर दिया, किन्तु हलाहल विष से देवी का शरीर नीला पड़ गया, तब भगवान शिव नें देवी को महानीला कह कर संबोधित किया, इस प्रकार सृष्टि उत्तपत्ति के बाद पहली बार देवी साकार रूप में प्रकट हुई, दस्माहविद्याओं में देवी तारा की साधना पूजा ही सबसे जटिल है, देवी के तीन प्रमुख रूप हैं १)उग्रतारा २)एकाजटा और ३)नील सरस्वती..........देवी सकल ब्रह्म अर्थात परमेश्वर की शक्ति है, देवी की प्रमुख सात कलाएं हैं जिनसे देवी ब्रहमांड सहित जीवों तथा देवताओं की रक्षा भी करती है ये सात शक्तियां हैं १)परा २)परात्परा ३)अतीता ४)चित्परा ५)तत्परा ६)तदतीता ७)सर्वातीता, इन कलाओं सहित देवी का धन करने या स्मरण करने से उपासक को अनेकों विद्याओं का ज्ञान सहज ही प्राप्त होने लगता है, देवी तारा के भक्त के बुद्धिबल का मुकाबला तीनों लोकों मन कोई नहीं कर सकता, भोग और मोक्ष एक साथ देने में समर्थ होने के कारण इनको सिद्धविद्या कहा गया है
देवी तारा ही अनेकों सरस्वतियों की जननी है इस लिए उनको नील सरस्वती कहा जाता है
देवी का भक्त प्रखरतम बुद्धिमान हो जाता है जिस कारण वो संसार और सृष्टि को समझ जाता है
अक्षर के भीतर का ज्ञान ही तारा विद्या है
भवसागर से तारने वाली होने के कारण भी देवी को तारा कहा जाता है
देवी बाघम्बर के वस्त्र धारण करती है और नागों का हार एवं कंकन धरे हुये है
देवी का स्वयं का रंग नीला है और नीले रंग को प्रधान रख कर ही देवी की पूजा होती है
देवी तारा के तीन रूपों में से किसी भी रूप की साधना बना सकती है समृद्ध, महाबलशाली और ज्ञानवान
सृष्टि की उतपाती एवं प्रकाशित शक्ति के रूप में देवी को त्रिलोकी पूजती है
ये सारी सृष्टि देवी की कृपा से ही अनेक सूर्यों का प्रकाश प्राप्त कर रही है
शास्त्रों में देवी को ही सवित्राग्नी कहा गया है
देवी की स्तुति से देवी की कृपा प्राप्त होती है
स्तुति
प्रत्यालीढपदार्पिताङ्घ्रिशवहृद्घोराट्टहासा परा ।
खड्गेन्दीवरकर्त्रिखर्परभुजा हुङ्कारबीजोद्भवा ॥
खर्वा नीलविशालपिङ्गलजटाजूटैकनागैर्युता ।
जाड्यं न्यस्य कपालके त्रिजगतां हन्त्युग्रतारा स्वयम् ॥
देवी की कृपा से साधक प्राण ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त करता है
गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए
देवी अज्ञान रुपी शव पर विराजती हैं और ज्ञान की खडग से अज्ञान रुपी शत्रुओं का नाश करती हैं
लाल व नीले फूल और नारियल चौमुखा दीपक चढाने से देवी होतीं हैं प्रसन्न
देवी के भक्त को ज्ञान व बुद्धि विवेक में तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पता
देवी की मूर्ती पर रुद्राक्ष चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है
महाविद्या तारा के मन्त्रों से होता है बड़े से बड़े दुखों का नाश
देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र है-
श्री सिद्ध तारा महाविद्या महामंत्र
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट
इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं जैसे
1. बिल्व पत्र, भोज पत्र और घी से हवन करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है
2.मधु. शर्करा और खीर से होम करने पर वशीकरण होता है
3.घृत तथा शर्करा युक्त हवन सामग्री से होम करने पर आकर्षण होता है।
4. काले तिल व खीर से हवन करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है।
देवी के तीन प्रमुख रूपों के तीन महा मंत्र
महाअंक-देवी द्वारा उतपन्न गणित का अंक जिसे स्वयं तारा ही कहा जाता है वो देवी का महाअंक है -"1"
विशेष पूजा सामग्रियां-पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है
सफेद या नीला कमल का फूल चढ़ाना
रुद्राक्ष से बने कानों के कुंडल चढ़ाना
अनार के दाने प्रसाद रूप में चढ़ाना
सूर्य शंख को देवी पूजा में रखना
भोजपत्र पर ह्रीं लिख करा चढ़ाना
दूर्वा,अक्षत,रक्तचंदन,पंचगव्य,पञ्चमेवा व पंचामृत चढ़ाएं
पूजा में उर्द की ड़ाल व लौंग काली मिर्च का चढ़ावे के रूप प्रयोग करें
सभी चढ़ावे चढाते हुये देवी का ये मंत्र पढ़ें-ॐ क्रोद्धरात्री स्वरूपिन्ये नम:
१)देवी तारा मंत्र-ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट
२)देवी एक्जता मंत्र-ह्रीं त्री हुं फट
३)नील सरस्वती मंत्र-ह्रीं त्री हुं
सभी मन्त्रों के जाप से पहले अक्षोभ्य ऋषि का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिए
सबसे महत्पूरण होता है देवी का महायंत्र जिसके बिना साधना कभी पूरण नहीं होती इसलिए देवी के यन्त्र को जरूर स्थापित करे व पूजन करें
यन्त्र के पूजन की रीति है-
पंचोपचार पूजन करें-धूप,दीप,फल,पुष्प,जल आदि चढ़ाएं
ॐ अक्षोभ्य ऋषये नम: मम यंत्रोद्दारय-द्दारय
कहते हुये पानी के 21 बार छीटे दें व पुष्प धूप अर्पित करें
देवी को प्रसन्न करने के लिए सह्त्रनाम त्रिलोक्य कवच आदि का पाठ शुभ माना गया है
यदि आप बिधिवत पूजा पात नहीं कर सकते तो मूल मंत्र के साथ साथ नामावली का गायन करें
तारा शतनाम का गायन करने से भी देवी की कृपा आप प्राप्त कर सकते हैं
तारा शतनाम को इस रीति से गाना चाहिए-
तारणी तरला तन्वी तारातरुण बल्लरी,
तीररूपातरी श्यामा तनुक्षीन पयोधरा,
तुरीया तरला तीब्रगमना नीलवाहिनी,
उग्रतारा जया चंडी श्रीमदेकजटाशिरा,
देवी को अति शीघ्र प्रसन्न करने के लिए अंग न्यास व आवरण हवन तर्पण व मार्जन सहित पूजा करें
अब देवी के कुछ इच्छा पूरक मंत्र
1) देवी तारा का भय नाशक मंत्र
ॐ त्रीम ह्रीं हुं
नीले रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करें
पुष्पमाला,अक्षत,धूप दीप से पूजन करें
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें
मंदिर में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
नीले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
पूर्व दिशा की ओर मुख रखें
आम का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
2) शत्रु नाशक मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: हुं उग्रतारे फट
नारियल वस्त्र में लपेट कर देवी को अर्पित करें
गुड से हवन करें
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
एकांत कक्ष में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
पपीता का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
3) जादू टोना नाशक मंत्र
ॐ हुं ह्रीं क्लीं सौ: हुं फट
देसी घी ड़ाल कर चौमुखा दीया जलाएं
कपूर से देवी की आरती करें
रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें
4) लम्बी आयु का मंत्र
ॐ हुं ह्रीं क्लीं हसौ: हुं फट
रोज सुबह पौधों को पानी दें
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
शिवलिंग के निकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
भूरे रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
पूर्व दिशा की ओर मुख रखें
सेब का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
5) सुरक्षा कवच का मंत्र
ॐ हुं ह्रीं हुं ह्रीं फट
देवी को पान व पञ्च मेवा अर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से 3 माला का मंत्र जप करें
मंत्र जाप के समय उत्तर की ओर मुख रखें
किसी खुले स्थान में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
केले व अमरुद का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-
बिना "अक्षोभ ऋषि" की पूजा के तारा महाविद्या की साधना न करें
किसी स्त्री की निंदा किसी सूरत में न करें
साधना के दौरान अपने भोजन आदि में लौंग व इलाइची का प्रयोग नकारें
देवी भक्त किसी भी कीमत पर भांग के पौधे को स्वयं न उखाड़ें
टूटा हुआ आइना पूजा के दौरान आसपास न रखें
विशेष गुरु दीक्षा-
तारा महाविद्या की अनुकम्पा पाने के लिए अपने गुरु से आप दीक्षा जरूर लें आप कोई एक दीक्षा ले सकते हैं
महातारा दीक्षा
नीलतारा दीक्षा
उग्र तारा दीक्षा
एकजटा दीक्षा
ब्रह्माण्ड दीक्षा
सिद्धाश्रम प्राप्ति दीक्षा
हिमालय गमन दीक्षा
महानीला दीक्षा
कोष दीक्षा
अपरा दीक्षा.................आदि में से कोई एक
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
शनिवार, 6 जुलाई 2024
गुप्त नवरात्रि महिमा
The world wide famous "Kaulantak Peeth" known for hidden knowledge and secrets has its own prime festival and its "Gupt Navaratri" and by its name one can known that this navaratri is a secret one. The sadhana procedure of this navaratri is not like the procedure of the main ones. This particular time is taken as very important. The Goddess of miracles "Kurukulla" or "Rakta Tara/Red Tara" with her full power indulges in the recreating this universe. In this time there is a huge karma kanda rituals and through "Kaul tradition", the worship of Goddess is carried out. In this time the worship of 64 yoginis, Ten Mahavidyas , Kritya, Matrika along with various other forms of Goddess is done with sadhana carried out too. The "Gupt Navaratri" is also called as Tantra time too. The "Gupt Navaratri" comes twice in a year and in the midst of playing of drums, tantric musical instrument the chakra puja , mandal pujan and awaran puja is carried out. A chakra puja in this time equals the fruit of worship of all gods and goddess. A mandal puja equals the woship of all universe. An awaran puja in this time takes the sadhak in the world of sadhana to its peak but a thing to be noted is that with whatever intention you do the sadhana it should be kept discrete. In this phase any inauspicious act etc the offence of the planets, intelligible time offence etc does not effect a sadhak. "Ishaputra-Kaulantak Nath" has told so many wish fulfilling mantras in his previous videos. For the sadhanas you can check his videos-Kaulantak Peeth Team-Himalaya.
गुप्त विद्या और रहस्यों के लिए विश्व भर में प्रसिद्द "कौलान्तक पीठ" का पर्मुख पर्व होता है "गुप्त नवरात्र" जैसा की नाम से ही विदित है की ये नवरात्र गोपनीय होते हैं। इसकी साधना आम तरीकों से नहीं होती। जैसा की प्रमुख नवरात्रों में होता है। ये समय अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। चमत्कारों की देवी "कुरुकुल्ला" यानि "रक्त तारा" इस काल में अपनी सम्पूर्ण शक्तियों के साथ ब्रह्माण्ड को नवनिर्मित करती है। इस काल में व्यापक कर्मकाण्ड करते हुए "कौल परम्परा" अनुसार देवी की साधनाएँ होती है। इस काल में चौंसठ योगिनी, दस महाविद्या, कृत्या, मातृका सहित देवी के कई स्वरूपों की स्तुति की जाती है व साधना संपन्न की जाती है। इन गुप्त नवरात्रों को तंत्र काल भी कहा जाता है। ये गुप्त नवरात्र भी वर्ष में दो बार आते हैं। ढोल नगाड़ों व तांत्रिक वाद्य यंत्रों के बीच चक्र पूजन, मंडल पूजन व आवरण पूजन सम्पन्न किया जाता है। एक चक्र पूजा इस काल में, सभी देवी-देवताओं की पूजा के बराबर फलदाई होती है। एक मंडल पूजा समस्त ब्रह्माण्ड की पूजा के बराबर होती है। एक आवरण पूजा, साधक को साधना जगत में बहुत ऊँचा उठा देती है . लेकिन एक समस्या है की इस दौर में आप किस उद्देश्य से साधना कर रहे हैं ये गोपनीय ही रहना चाहिए। इस काल में कोई सूतक-पातक आदि ग्रह दोष, मुहूर्त दोष आदि नहीं लगते। "ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ" नें बहुत से इच्छापूरक मंत्रो के बारे में पहले ही विडिओ में बताया है। आप साधना के लिए विडिओ देख सकते हैं-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।
गुप्त नवरात्रि महिमा
गुप्त विद्या और रहस्यों के लिए विश्व भर में प्रसिद्द "कौलान्तक पीठ" का पर्मुख पर्व होता है "गुप्त नवरात्र" जैसा की नाम से ही विदित है की ये नवरात्र गोपनीय होते हैं। इसकी साधना आम तरीकों से नहीं होती। जैसा की प्रमुख नवरात्रों में होता है। ये समय अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। चमत्कारों की देवी "कुरुकुल्ला" यानि "रक्त तारा" इस काल में अपनी सम्पूर्ण शक्तियों के साथ ब्रह्माण्ड को नवनिर्मित करती है। इस काल में व्यापक कर्मकाण्ड करते हुए "कौल परम्परा" अनुसार देवी की साधनाएँ होती है। इस काल में चौंसठ योगिनी, दस महाविद्या, कृत्या, मातृका सहित देवी के कई स्वरूपों की स्तुति की जाती है व साधना संपन्न की जाती है। इन गुप्त नवरात्रों को तंत्र काल भी कहा जाता है। ये गुप्त नवरात्र भी वर्ष में दो बार आते हैं। ढोल नगाड़ों व तांत्रिक वाद्य यंत्रों के बीच चक्र पूजन, मंडल पूजन व आवरण पूजन सम्पन्न किया जाता है। एक चक्र पूजा इस काल में, सभी देवी-देवताओं की पूजा के बराबर फलदाई होती है। एक मंडल पूजा समस्त ब्रह्माण्ड की पूजा के बराबर होती है। एक आवरण पूजा, साधक को साधना जगत में बहुत ऊँचा उठा देती है . लेकिन एक समस्या है की इस दौर में आप किस उद्देश्य से साधना कर रहे हैं ये गोपनीय ही रहना चाहिए। इस काल में कोई सूतक-पातक आदि ग्रह दोष, मुहूर्त दोष आदि नहीं लगते। "ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ" नें बहुत से इच्छापूरक मंत्रो के बारे में पहले ही विडिओ में बताया है। आप साधना के लिए विडिओ देख सकते हैं-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।