वर्ष में अनेक सिद्ध मुहूर्त होते है , और उन मुहूर्तों में भी ग्रहण , दीपावली और होली का सबसे ज्यादा महत्त्व होता है. लेकिन दीपावली के बहुत अनेकों अनेक अर्थ है. जैसे जब दीपों की माला जलाई जाए उसे दीपमाला कहा जाता है और उसी को दीपावली अर्थात दियों की पंक्ति कहा जाता है.एक योगी के लिए एक साधक के लिए असली दीपमाला अथवा असली दीपावली तब होती है जब वो भीतर के प्रकाश को जागृत कर सहस्त्र कमलदल पर जाए , हमारा जो मस्तिष्क है इसमें एक हजार छोटे छोटे पर्ण अर्थात दिए जैसे पत्ते बने हुए है जिन्हे बिंदु कहा जाता है; जब वो सभी के सभी जागृत हो जाए तो वो साधक की असली दीपावली है. मस्तिष्क के एक हजार दिव्य पर्णों को यदि जागृत किया जाए, उन्हें यदि जला लिया जाए एक एक दिये की भांति तो वहां सबसे सुन्दर्व बनती है; और योगियों का ऐसा अनुभव भी है... जब वो गहन ध्यान की अवस्था में जाते है तो मस्तिष्क में सुषुम्न मार्ग से होते हुए क्रमशः जब वो ब्रह्मरंध तक पहोंचते है वहां वो अलौकिक छबि देखते हैं। सर्वत्र ब्रह्मांड का दृश्य उन्हें दृष्टिगोचर होता है उसे ही वो दीपमाला कहते है।दीपावाल जैसे हमारे जीवन में आती है ठीक वैसी ही दीपावली इस ब्रह्मांड में भी चल रही है; यदि हम ब्रह्मांड को दूर से देखे तो अनेकों नक्षत्र , ग्रह, तारामंडल बन रहे है, बिगड़ रहे है, अनेकों दियें इस ब्रह्मांड में भी जल रहे है, अनेकों सितारे इस ब्रह्मांड में जगमगा रहे है मानों सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कोई दीपावली मना रहा हो, उसी दीपावली को योगियों ने अपने निज ब्रह्मांड अर्थात सहस्त्रार कमलदाल में अनुभव किया और आम मनुष्य को भी इसी का संदेश देने के लिए ऋषि मुनियों ने दीपावली का आयोजन किया था . दीपावली वो शुभ मुहूर्त है जिस दिन लक्ष्मी ....लक्ष्मी शब्द छोटा हो जाएगा; महालक्ष्मी .... महालक्ष्मी शब्द भी छोटा हो जाएगा ; "श्री विद्या" अपने समस्त तेज के साथ ब्रह्मांड को संचालित करती हुई नवीन ऊर्जा देती है. ये काल श्री विद्या का काल है, ये काल अत्यंत सिद्ध काल ही, जब ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी तब दीपावली का दिन ही था, जब ये सितारे रोशन हुए वो दिन पीपावली का ही दिन था.....और कालांतर में इसके साथ भगवान राम और सीतामाता भी जुड़े, जब मैया सीता वापिस लौटी तो सर्वत्र दिए जलाए गए. देवी लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक ये दिवाली होती है. लेकिन याद रहे तुम्हारी दिवाली और वास्तविक दिवाली में जमीन आसमान का अंतर है. दिवाली एक उत्सव है, एक मौका है जब तुम प्रसन्नता व्यक्त कर सकते हो, लेकिन यहां प्रसन्नता कौन व्यक्त करेगा? क्या यदि तुम्हारे पास पैसे , धन, वाहन, भूमि या वैभव अथवा राज्यसत्ता है तो तुम दिवाली मानने के हकदार हो? या तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है न धन, न मान, न सम्मान तुम बस स्वयं हो बस इतना ही तो क्या तुम दिवाली मानने के हकदार हो? दिवाली तो केवल वही माना सकता है जो जीवन और मरण से मुक्त हो चुका हो, जिसके सर पर काल न मंडरा रहा हो, जिसके सर पर मृत्यु नाश की ओर अंत की ओर ले जाने के लिए आतुर न हो; दीपावली तो वो मना सकता है जिसके जीवन में गुरु हो, जिसके जीवन में ब्रह्मप्रज्ञा हो. दीपावली तो उन योगियों के लिए है जिन्होंने अपने आप को जीवन और मरण से मुक्त कर लिया है. जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को देखने की क्षमता रखते है. दसों महाविद्याओं की विशेष अनुकंपा जिन पर है, उनके लिए दीपावली सही मायने में दीपावली है, केवल लालच दीपावली नहीं कि तुम इसलिए दीपावली के दिन साधना और पूजा करो कि तुम्हारे घर धन बरसेगा . अधिकांश लोग विशेषतया ज्योतिषी हर मध्यम से केवल यही बात तुम तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे की तुम लक्ष्मी प्राप्ति के लिए ये सब करते चले जाओ, लेकिन वास्तविक साधक को जरा ठहर जाना चाहिए; क्योंकि धन , संपत्ति ये न तो तुम्हारे पहले भी थे, न आज है, न भविष्य में होंगे. केवल तुम्हारी जरूरतें है जिन्हे तुम्हे पूरा करना चाहिए और उसके लिए ईश्वर से इतनी अधिक पुकार लगाने की , इतनी अधिक मांग करने की कोई आवश्यकता नहीं है. लक्ष्मी की लघु साधना अवश्य करनी चाहिए ; गृहस्थ जीवन में और सांसारिक जीवन में धन और संपदा, वैभव, ऐश्वर्य रहे इसके लिए. लेकिन श्री विद्या के आगे ये सब वैसी ही तुच्छ बातें है जैसे किसी बहुत बड़े गणितज्ञ से आप ये पूछ लो कि एक जमा एक कितने होते है? दीपावली एक ऐसा अद्भुत काल है जिस काल को यदि तुमने समझ लिया तो वो तुम्हारे जीवन में उजाला ला सकती है...और वो ये भौतिक जीवन ही नहीं है, मृत्यु से पर्यंत एक अन्य जीवन भी है जिसकी खोज बुद्धिमान लोग ही करते है, मूढ़ व्यक्ति शुतुरमुर्ग की भांति रेत में अपना सर छुपाकर समझता है कि वो बच जाएगा, मूर्ख व्यक्ति की भांति हम कभी ये न सोचे कि अगर हम अपनी जिंदगी जी रहे है तो हमारा अंत नहीं होनेवाला. इस मृत्यु को महात्मा बुद्ध ने समझा, ईसा मसीह ने समझा, जीवन की नश्वरता को सभी पीर पैगंबरों ने समझा, ऋषि मुनियों ने समझा और इसी लिए एक अध्यात्म के पथ की खोज करने को कहा...और दीपावली अपने भीतर के एक एक कमलदल को जगाने का मुहूर्त है. दीपावली गुरु साधना का मुहूर्त है. दीपावली श्री विद्या को साध लेने का मुहूर्त है. जब तक तुम्हारे जीवन में श्री न हो अर्थात ऐसा बुद्धि और विवेक न हो जिसके द्वारा तुम अध्यात्म को और सूक्ष्म सत्ता को समझ सको तब तक सब कुछ व्यर्थ है और श्री ही वो शक्ति है जो अपनी अनुकंपा के द्वारा तुम्हे दिव्य तेज देती है...तब तुम्हारी बुद्धि सूक्ष्म सत्ताओं को जान सकती है, सूक्ष्म तत्त्वों पर विचार कर सकती है और तब अध्यात्म समझ में आने लगता है. जब तक श्री विद्या की अनुकंपा न हो तुम धर्म अध्यात्म को नहीं समझ सकोगे. अकसर स्तोत्र, स्तवन, मंत्र पुस्तक में लिखे गए होते है और हम समझते है कि ये मंत्र अगर पुस्तक में एक हजार बार जाप करने को कहा गया है, मैने जाप कर लिया तो लक्ष्मी की अनुकंपा हो जाएगी किंतु ऐसा नहीं है; वो तो केवल एक साधारण सा विधान है उसके पीछे अनेकों अनेक रहस्य है लेकिन उन रहस्यों को भी तो जानना होगा, जब तक हम वो रहस्य नहीं जानते तब तक हम वास्तविक साधना के धरातल पर खरे नहीं उतर पाते... इसलिए दीपावली न तो उन लोगों के लिए है जो पहले से सुविधा संपन्न है और न ही उन लोगों के लिए जो बहुत ही गरीब है. वास्तविक दीपावली तो योग्य साधक के लिए होती है.
श्री विद्या आध्यात्मिक और भौतिक दोनों जगत को एक साथ संचालित करनेवाली परांबा परानायिका है. उनके बारे में बताना आम ज्योतिषी, आम पंडित, आम साधु सन्यासी के बस की बात नहीं है . बड़े बड़े सिद्ध , बड़े बड़े आचार्य, यहां तक कि गंधर्वो के द्वारा भी देवी की स्तुति बहुत ही जटिल है. वो परम वैभवशालिनी, परम तेजस्विनी , इच्छा मात्र से इस सम्पूर्ण सृष्टि और ब्रह्मांड का संचालन करनेवाली शक्ति है. वो हमारे जीवन में इन कष्टों को तुरंत हर सकती है. यदि तुम साधना करते हो तो कर्म भी करो तब तुम्हारा जीवन निखरकर सुख देने लगेगा. यदि तुम केवल साधना करते हो भौतिक जीवन से तुम दूर होने लगोगे...और यदि तुम केवल भौतिक जीवन में रहते हो तो याद रखना इतने कष्टों और पीड़ाओं में से होकर तुम्हे गुजरना होगा और अंत भी बहुत बुरा होगा और शेष कुछ नहीं बचेगा , मिट्टी का ढेर हो जाएगा. ऐसी अवस्था में दीपावली को शुभ करने के लिए चार चीजों को समझ लीजिए: पहला मन में श्री विद्या के भाव का आविर्भाव होना चाहिए, तुम देवी मां को समझने की चेष्टा करो ; उनको समझना बड़े बड़े ऋषि मुनियों के लिए दुर्लभ है लेकिन जितना भी तुम प्रयास कर सको देवी मां को समझने का प्रयास करो, उसके लिए अपने हृदय में भाव रखो. दूसरा गुरु से संग करो उनसे दीक्षा लो और मंत्र लो, गुरु ये जानते है की तुम्हे कौनसी दीक्षा देनी है और तुम्हारे लायक कौनसा मंत्र है , उस मंत्र का जाप करो. तीसरा यथा संभव कर्मकांड...अपनी भक्ति प्रदर्शित करने के लिए थोड़े से चावल, हल्दी, कुमकुम, पानी के लोटा, गंगाजल और कुछ पुष्प बड़ी सहजता से तुम एकत्रित कर सकते हो... और एक छोटा सा लक्ष्मी का चित्र अथवा श्री विद्या का चित्र उनकी श्रद्धापूर्वक जब आप स्तुति और पूजन करते है तो जीवन में अनुकंपा अवश्य प्राप्त होती है. चौथा स्तुति स्तवन गायन, कीर्तन. यदि तुम्हारे जीवन में सिद्ध आचार्य है, सिद्ध गुरु है तो बस उनके चरणों में बैठकर आशीर्वाद लेने की आवश्यकता है. दीपावली की रात्रि अत्यंत सिद्ध रात्रि होती है , इस दिन रातभर हिमालय के बड़े बड़े परमहंस, योगी, यति, सिद्ध, गंधर्व सभी परम साधनाओं और परम तेजस्वी मंत्र की सिद्धि में लीन रहते है. बड़े बड़े योगी ध्यानस्थ होकर अपने मूलाधार की शक्ति को धीरे धीरे जागृत कर सहस्त्रार कमलदल में ले जाते है. दीपावली बहुत से गुप्त अर्थों को लेकर चलती है. इस दिन यौगिक शक्ति, तंत्र शक्ति, ज्योतिषीय शक्ति यहां तक कि ब्रह्मांड की छोटे से छोटी और बड़े से बड़ी क्षुद्र शक्तियां भी जागृत रहती है...अब ये केवल तुम्हारे गुरु और तुम पर निर्भर करता है की तुम इस सिद्ध काल में किस विशेष शक्ति का चयन कर उसे अपने जीवन में जगह देते हो.याद रहे दीपावली प्रसन्नता का अवसर तो है लेकिन ये जागने का अवसर भी है; ये दीपावली इस बात का सूचक है की मृत्युके समय जब हम आंख मूंदे तो केवल अंधकार न छा जाए, वहां भी प्रकाश हमारी राह देख रहा हो...और इसी के लिए हिमालय में ऋषि मुनि सदैव अपनी साधना करते हुए अपने आप में लीन रहते थे.
जरा सी आंख मूंद कर जब श्वास तुम भीतर खींचते हो और मंत्र बुदबुदाते हो ॐ श्रीं श्रीयै स्वाहा. तो वो अंतः यज्ञ हो जाता है...जैसे बहिर्याग होता है. हम यज्ञ कुंड बनाकर उसमें आहुतियां देते है ठीक उसी प्रकार जब तुम इसी प्रकार स्वाहा शब्द का जाप करते हुए श्वास भीतर ले जाते हो तो मूलाधार में वो मंत्र आहुति बनकर श्री विद्या तक पहुंचता है, तुम्हारे भीतर श्री विद्या नाम का तत्त्व जागृत होता है. अभी जब साधारण जीवन जीते हुए भी तुम श्री विद्या को सुन रहे हो, जब तुम श्री विद्या को जानने का प्रयास कर रहे हो तो ये वो पहला कदम है जो इस बात की सूचना देता है कि तुम्हारी चेतना श्री विद्या की ओर अग्रसर हो रही है, श्री विद्या तुम्हे अपनी ओर बुला रही है. ये केवल भौतिक धन धान्य, स्वर्ण, सोना, चांदी, हीरे, रत्न केवल ये श्री नहीं है; तुम्हारे भीतर एक अनुपम श्री है, वो देवी साक्षात तुम्हारे भीतर विद्यमान है. जिस दिन तुम भीतर से अलौकिक हो जाते हो, जिस दिन तुम भीतर से परिपूर्ण हो जाते हो उस दिन ये जगा तुम्हारा ही है. जब तुम श्री विद्या के साधक ही जाओ तो हर क्षण श्रृष्टि का हर कण बस तुम्हारे लिए ही कार्य करता है, तुम्हे आनंद देने लगता है, तुम्हे सौंदर्य देने लगता है. श्री विद्या का साधक लुंज पुंज नहीं होता, वो गरीब अथवा सदी गली अवस्था में नहीं रहता, वो तो दिव्य होता है, एकदम देवताओं जैसा, चेहरे पर सौंदर्य और तेज, सुंदर वस्त्र और रत्न, धन धान्य, उससे भी उत्तम उसके हृदय में अथाह शांति, करुणा और प्रेम...श्री विद्या के साधक को जो एक बार देख ले बस वो उसी से प्यार कर बैठता है. श्री विद्या चंचला है इसलिए ऐसा व्यक्ति एकायमी नहीं होता, वो बहुआयामी होता है. श्री विद्या संगीतप्रिया है, नृत्यप्रिया है, श्रृंगारप्रिया है तो उनका साधक भी वैसा ही होता है. अपने जीवन में प्रसन्नता को अनुभव हम कैसे करे ये श्री विद्या सिखाती है. तुम यदि अपने जीवन के दुखों को भुलाकर सुखों को याद कर सको तो तुम्हारा जीवन दीपावली जैसा होने लगता है. केवल अपने भीतर झांकने भर की देर है. जिन लोगों के पास अथाह धन, संपत्ति सब कुछ है उन लोगों की दीपावली कैसी होगी? केवल दिये जला देने से नहीं अपितु साधना उनके लिए भी उतनी ही अनुपम और आवश्यक है. मंत्र का जाप कर, गुरु की सेवा कर, साधना कर लक्ष्मी को मनाया जा सकता है. गुरु श्री विद्या के सूत्र जानते है और गुरु चाटुकारिता नहीं करते है और न ही वो तुम्हे उलझाए रखते है; वो कभी तुम्हे ये नहीं कहेंगे कि सात दिये जलाइए, आठ दिये जलाओ, उसे पूर्व दिशा में जला दो, पश्चिम दिशा में जला दो...वो तो केवल ये कहेंगे...अपने हृदय में असली ज्योत जला दो फिर बाहर की ज्योत तुम जहां मर्जी जलाओ, उससे कोई अंतर नहीं पड़नेवाला. दीपावली वो मुहूर्त है जब हमारे मस्तिष्क में श्री विद्या स्वयं बिराजमान हो जाती है. यदि हमारा मस्तिष्क ही श्री विद्या के सौंदर्य से परिपूर्ण हो जाए तो जीवन में आनंद ही आनंद है, हम सुंदर सोचेंगे, सुंदर बोलेंगे, हमारा हृदय सुंदर होगा, हमारा परिवेश सुंदर होगा और श्री विद्या जहां जहां हमें रखेगी वो सारा का सारा स्थान सुंदर होता चला जाएगा. इसीलिए कहते है कि लक्ष्मी देवी के चरण जहां जहां पड़े वहां वहां सब बदलता चला जाता है, सुंदर होता चला जाता है. तो लक्ष्मी तुम्हारे भीतर है, जब तक तुम उसके लिए भीतर का द्वार नहीं खोलोगे तब तक अपने द्वार को खुला रखने से कुछ नहीं होनेवाला...इसलिए वास्तविक साधना स्वयं करना...इसलिए वास्तविक पूजा पाठ स्वयं करना ...इसलिए दीपावली को परिवर्तित करने का काल समझना और अपना रूपांतरण करना...अपने हृदय के कपाट खोल देना ताकि तुम्हारे हृदय में श्री विद्या स्वयं आकर निवास करे . देवी बहुत अलौकिक है ...काश में उन्हें शब्दों में समझा पता...उनकी स्तुति देवताओं के लिए भी दुर्लभ है...उनका अद्भुत रूप, उनकी अद्भुत अनुकंपा तुम्हारे जीवन में यदि हो जाए तो सच मानो एक क्षण का भी विलंब नहीं होनेवाला और तुम्हारे जीवन में अखंड रूप, यौवन, तेजस्विता आ जाएगी, पूर्णता आ जाएगी, ये सम्पूर्ण जगमगाता ब्राह्मण तुम्हारे चारों तरफ घूम रहा है ये तुम्हारे लिए दीपावली ही तो है...जरा आकाश में सितारों को निहारो; दीपावली की रात वहां चंद्रमा नहीं होता क्योंकि चंद्रमा कहीं उन सितारों की जगमगाहट छुपा न ले इसलिए तुम निर्मल होकर सम्पूर्ण सितारों को आकाश में जगमगाता देख सको. वही सितारें तुम्हारे भीतर भ जगमगा रहे है...और वही सितारें जब भीतर टिमटिमाने लग जाए तो तुम्हारी दीपमाला - दीपावली सार्थक होने लग जाती है...जीवन में समय निकालना गुरु की सेवा करने के लिए, उनके दर्शन करने के लिए; वो सहज और सरल नहीं है , बहुत मेहनत करनी पड़ती है, बहुत मुसीबतें आती है लेकिन यदि तुम सभी विघ्न बाधाओं को पार कर श्री विद्या के तत्त्व को गुरु से ग्रहण कर लेते हो तो तुम्हारे जीवन में फिर अवश्य क्रांति आएगी. तुम अपने आप में देवता हो, तुम्हारे भीतर देवत्व है; उसे जागृत करो क्योंकि दीपावली का शुभ काल फिर तुम्हारे द्वार पर है. दीपावली का ये काल तुम्हें वो अवसर देगा जब तुम अपने भीतर की शक्ति को जागृत कर सकते हो तो इस मौके को अबकी बार मत चूकना. तुम्हारे जीवन में वास्तविक दीपावली आए. तुम्हारे जीवन में बाहर की जगमगाहट की भांति ही भीतर भी जगमगाहट हो. तुम्हारे जीवन में जैसे अभी दिये जल रहे है, मृत्यु पर्यंत जीवन में भी वैसे ही दिये जले, तुम अंधकार से प्रकाश की ओर चले जाओ इसी मधुर मनोकामना के साथ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं . ॐ नमः शिवाय |
- ईशपुत्र
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