आज हम वास्तविक मार्ग से च्यूत हो गए हैं। आज हमें वास्तविक मार्ग बताने वाला ही कोई ना रहा! आज स्वयं तपस्या करने वाला ही ना रहा! आज नैसर्गिक ज्ञान और अलौकिक ज्ञान को जानने वाला शायद कोई ना रहा! आज शीतलता और ग्रीष्मा को सहने वाले योगी ही न रहे! आज वैभव छोड़कर हिमालय विचरण करने वाले न रहे! शायद इसीलिए आज वास्तविक धर्म खो गया है और रह गया है मात्र नकली और बनावटी धर्म! योगियों की साधना पद्धति अपने आप में ही बड़ी विचित्र होती है! जितना भी हम जानने का प्रयास करें उतना ही कम पड़ता है! इस प्रक्रिया को शब्दों में बांध लेना एक मूढ़ प्रयास ही होगा ! हिमालय की गहरी तराइयों एवं घाटियों में रहने वाले यही योगी हमारी संस्कृति के प्रतीक है! हिमालय के आकाश के सूर्य है! तथा यही है वो विलक्षण मानव को मानवता का सन्देश देते है! और उस परमात्मा की ओर सोचने पर विवश कर देते हैं, जिसके अस्तित्व से हम आज शायद कट से गए हैं! अभी तक कोई समझ नहीं पाया इनके प्रकृति प्रेम को! अभी तक कोई जान नहीं पाया इनकी खोजों को! अभी तक कोई समझ नहीं पाया इन मायाधारियों की माया को! कभी यह महीनों एक स्थान पर रहकर समाधि लगाते हैं, तो कभी विचित्र क्रियाएं करते हैं! और प्रत्येक क्रिया का अपना एक गूढ़ विज्ञान होता है! सभ्यता से दूर रहकर सर्वदा अपने चित्र को परमात्मा की ओर लगाने वाले यह योगी अद्भुत अनुभवों से भरे होते हैं! यही कारण है कि इतिहास में योगियों को सर्वश्रेष्ठ माना गया है! प्रकृति के खूबसूरत प्रांगण में बसने वाले, शुद्ध वायु और जल का सेवन करने वाले, कठिन परिवेश में अपने जीवन को ढालने वाले योगी ही शाश्वत सत्य को जान पाते हैं! बाल्यावस्था से युवावस्था तक लगातार ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है! साथ ही योग, ध्यान, ज्योतिष, वास्तु, नक्षत्र विज्ञान, पारद विज्ञान, पशु शास्त्र, पक्षी तंत्र, तंत्र ग्रंथ, आगम-निगम, शावर इत्यादि वैदिक कर्मकांड जैसी अनेकों विधाओं का स्वयं अध्ययन करना पड़ता है!
- महासिद्ध ईशपुत्र
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