योगी स्वयं पर्यावरण की बारिक परख रखते हैं इसलिए वह स्वयं ही अपनी साधनाओं में ऋतु अनुकूल परिवर्तन करते हैं। इसके साथ ही साधना काल में भोजन का बड़ा महत्व रहता है। अपनी दैनिक तपश्चार्य के पश्चात कुछ समय भोजन के निर्माण के लिए भी दिया जाता है; यह भोजन भी अत्यंत सादा होता है। साधना काल में नमक, मिर्च आदि से युक्त भोजन नहीं किया जाता! और ना जिव्हा की लोलुपता के लिए किसी प्रकार का स्वाद ही लिया जाता है! योगी अपने भोजन में कंदमूलों का अधिक सेवन करते हैं और भिन्न भिन्न प्रकार के सूखे पत्तों को अथवा फलों को एकत्रित कर अपने साधना काल में प्रयुक्त करते हैं। आलू लेकर उसे आग में भूना जाता है और उसका भोजन किया जाता है। साथ ही कभी-कभी आटे से विशेष प्रकार की मोटी मोटी रोटियां बनाई जाती है, जिन्हें तिककड़ कहा जाता है; ये तिक्कड मां अन्नपूर्णा का प्रसाद कहे जाते हैं। साधना काल में प्रत्येक योगी को स्वपाकी बनना पड़ता है तथा बड़े धीर स्वभाव से संयम पूर्ण प्रत्येक आचरण करना होता है क्योंकि प्रत्येक क्रिया उसके विकास को प्रभावित करती है।
- महसिद्ध ईशपुत्र
My name is Joanne Doe, a lifestyle photographer and blogger currently living in Osaka, Japan. I write my thoughts and travel stories inside this blog..
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें