जहां घने जंगल होते हैं अथवा वन्य प्राणियों का भय रहता है वहां योगी अपनी साधना हेतु ऐसे स्थानों का चुनाव करते हैं जहां किसी प्रकार का पशु पक्षी तंग न कर सके और वो घंटों समाधि में लीन रह सके। आज इस जगत में धर्म अध्यात्म का यह सनातन मार्ग लगभग लुप्त हो चुका है! बड़ी बेदना है कि सभी लोग किताबी ज्ञान अथवा बौद्धिक चातुर्य को ही धर्म और अध्यात्म समझ बैठे हैं । हमें याद रखना चाहिए कि यदि हमें शाश्वत सत्य को जानना है तो हमें भी कुछ कुछ इसी तरह की प्रणाली में से होकर गुजरना होगा । प्रकृति को समझकर आत्मसात करना होगा। अपने भीतर की दुभितियों से मुक्त होना होगा। प्रकृति में इस कदर खो जाना होगा कि हम अपनी सत्ता को ही भूल जाए! और साथ ही अनेकों प्रयासों से अपनी चेतना को विकसित करना होगा। प्रकृति के एक एक हिस्से से हमें शिक्षा ग्रहण करनी होगी। जिस प्रकार योगी हिमालय के शिखरों पर साधना करते हैं उसी प्रकार वह भीतर की चेतना के उच्चतम सोपान पर होते हैं। आखिर वह क्या करते हैं? यह सब तो गुप्त है! लेकिन निश्चित ही उद्देश्य चेतना का विकास ही है। मार्ग अनेक हो सकते हैं लेकिन उद्देश्य एक ही होता है। कभी सूरज की तपती गर्मी, कभी हिमालय का निम्न तापमान, कभी तेज बरसात, कभी प्रकृति का कोप... सब सहते हुए योगियों को अपने मार्ग पर बढ़ना होता है! मार्ग में अनेकों परीक्षाएं होती है उन्हे लांघते हुए ही साधना में सफलता पाई जा सकती है। आज ऋषि परंपरा का सूर्य डूब रहा है! आज वास्तविक खोज के मार्ग अवरुद्ध हो चुके हैं! आज हमें खोजना होगा भारतीय ऋषि परंपरा को! हमें स्वयं तप करना होगा।
- महासिद्ध ईशपुत्र
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