तारा महाविद्या-बौद्धाचार-कौलाचार-चीनाचार-गोम्पा

''तारा महाविद्या-नील सरस्वती साधना'' एक अत्यंत जटिल और उच्च कोटि की साधना मानी गयी है। लेकिन इस ''दिव्य महाविद्या'' को समझ पाना सरल नहीं है। ''महर्षि विश्वामित्र और वशिष्ठ'' जैसे सर्वोच्च ऋषियों नें भी ''तारा महाविद्या'' को जानना चाहा। लेकिन उनका साहस भी आखिर टूट गया। तब महाचीन जा कर उनहोंने एक ''बुद्ध से चीनाचार'' द्वार तारा को सिद्ध किया। आज चीनाचार बदल गया है। आज काल और काल की गति बदल गयी है। तंत्र का दक्षिण मारग और वाम मारग मानों आखिरी साँसे गिन रहा हो। साहित्यकार और शोधार्थी तो ये तक नहीं ढूंढ पा रहे की भारत का तंत्र प्राचीन है या चीन का? बौद्ध धर्म के बज्रयान नें तारा को प्रमुख आराध्या माना और आज तक वो अपने 'गोम्पा में तारा को स्थान दिए हैं। ''कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज'' नें बाल्यावस्था में हिमाचल प्रदेश के ''लौहुल-स्पीती'' क्षेत्रों में भोटी भाषा और बौद्ध धर्म के तन्त्रयान को लामाओं से निकटता से समझा है। लगभग पांच वर्ष का अभ्यास और कौलमत नें ''कौलान्तक नाथ'' को बहुत कुछ प्रदान किया है। आज भी ''कौलान्तक नाथ'' का ''बौद्ध धर्म'' के प्रति 'मैत्री पूर्ण' प्रेम कम नहीं हुआ है।
जैसे ही गुजरात के अहमदाबाद में 19-20 जनबरी 2013 को ''तारा महाविद्या-नील सरस्वती साधना शिविर'' की घोषणा हुयी। ''कौलान्तक नाथ'' हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के निकट स्थित बोद्ध गोम्पा गए। वहां उनहोंने ''चीनाचार और बोद्धाचार'' को याद किया। माँ तारा से पूर्णता व ''हिन्दू और बोद्धों'' के मध्य मैत्री, प्रेम व शांति बनाये रखने की प्रार्थना की। आपकी सेवा में प्रस्तुत है। बोद्ध गोम्पा में ''कौलान्तक नाथ'' की एक छोटी सी दुर्लभ विडिओ-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय