'कौलान्तक पीठ हिमालय' प्रस्तुत करता है 'तारा महाविद्या' के साधकों हेतु कौलान्तक क्रमानुसार 'अक्षोभ्य भैरव' मंत्र। ये मंत्र 'तारा महाविद्या' के सभी स्वरूपों की साधना हेतु अनिवार्य है व निरंतर साधना व दीक्षा काल में प्रयुक्त होना चाहिए। माँ तारा की अनियत्रित शक्ति को आगमानुसार केवल अक्षोभ्य पुरुष ही रोक सकते हैं। इस कारण हमारे संप्रदाय यानि 'उत्तर कौल' संप्रदाय (जिसे अब इस नाम जानते है.…किन्तु इसको पूर्व में योगिनी कौल मत कहा जाता था) के तांत्रिकों के अतिरक्त 'तंत्र योगियों' नें भी अक्षोभ्य पुरुष के ध्यान क्रम को सबसे प्रमुख व महत्वपूर्ण बताया है। हालाँकि 'पूर्व कौल' संप्रदाय की मान्यता इससे थोड़ी भिन्न है। दोनों मतों को 'कौलान्तक पीठ' नें सम्मान पूर्वक ग्रहण कर दोनों को स्थान दिया है जो गुरुमुख से आपको प्राप्त होगा।
मंत्र-ॐ भ्रौं भ्रौं स: अक्षोभ्य भैरवाय ह्रौय ह्रौय भं हुं फट।
'तारा महाविद्या के २१ प्रमुख भैरवों का वाहण मंत्र' नीचे मंत्र क्रम दिया गया है 'कौलान्तक सिद्धों' का ये मंत्र एक महाकवच व सुरक्षा भी है जो सभी साधनाओं से पहले स्थापित होता है जिसकी विधि 'गुरुगम्य' ही है-
1) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं अक्षोभ्य भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हुं, जं तं थं नं यं हं फं रं वं ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं अक्षोभ्य भैरवाय फट्।
2) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं काल भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हुं, जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं काल भैरवाय फट्।
3) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं नील भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं नील भैरवाय फट्।
4) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं विकराल भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं विकराल भैरवाय फट्।
5) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं कंकाल भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं काल भैरवाय फट्।
6) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं पाताल भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं पाताल भैरवाय फट्।
7) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं काम भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हुं, जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं काम भैरवाय फट्।
8) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं जड. भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं जड. भैरवाय फट्।
9) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं स्थूल भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं स्थूल भैरवाय फट्।
10) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं नाद भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं नाद भैरवाय फट्।
11) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं वीर भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं वीर भैरवाय फट्।
12) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं प्रलय भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं प्रलय भैरवाय फट्।
13) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं उच्चाट भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं उच्चाट भैरवाय फट्।
14) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं दुर्मुख भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं दुर्मुख भैरवाय फट्।
15) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं पावक भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं पावक भैरवाय फट्।
16) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं प्रेत भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं प्रेत भैरवाय फट्।
17) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं स्तम्भ भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं स्तम्भ भैरवाय फट्।
18) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं प्रमाद भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं प्रमाद भैरवाय फट्।
19) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं सूचि भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं सूचि भैरवाय फट्।
20) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं मैथुन भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं मैथुन भैरवाय फट्।
21) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं चाण्ड़ाल भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हु चाण्ड़ाल भैरवाय फट्।
।"अक्षोभ्य पुरुष" की शक्ति है "माँ तारा" ! जिसे माँ तारिणी कहा गया है ! मध्यरात्रि के पश्चात का जो समय है वो माँ तारा का ही है ! ये वही महाविद्या है जिन्हेँ तारिणी का नाम इसलिए प्रदान किया गया क्योँकि यही शक्ति हमेँ इस भवरुपी बन्धन से तारती है ! मानवदेह मेँ जब ये जीवात्मा बन्धनयुक्त पडी रहती है तो उस समय जीवात्मा निरन्तर छटपटाती रहती है ! कभी उसका ह्रदय "भोग" चाहता है तो कभी "योग" ! लेकिन वह दोनोँ को पाने का प्रयत्न तो करता है लेकिन किसी एक को भी ठीक तरह से प्राप्त नहीँ कर पाता ! तो माँ तारा की साधना एवं आराधना ऐसी विलक्षण है कि यदि साधक सब कुछ न्योछावर कर यदि तन्त्रमार्ग से इनकी साधना एवं आराधना करे तो वह "भोग" एवं "मोक्ष" दोनोँ को प्राप्त करता है ! "तारा तन्त्र" यद्यपि वामाचारी क्रिया से सम्पन्न होता है क्योँकि यह चीनाचारा पद्धति के द्वारा चलनेवाला है लेकिन यदि साधक इस सम्पूर्ण रहस्य को अपने श्रीगुरु के चरणोँ मेँ बैठकर समझे तो इस महाविद्या की कृपा वह अवश्य प्राप्त करता है ! तारा भगवती "ब्रह्म" का ज्ञान प्रदान करनेवाली महाशक्ति है ! यह वह शक्ति है जो हमेँ सम्पूर्ण मानसिक पीडाओँ से मुक्ति प्रदान करती है ! भगवती के सम्बन्ध मेँ कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने के सदृश होगा ! अतः साधक को चाहिए की वह दस महाविद्याओँ की साधना एवं आराधना लगातार करता रहे ! माँ भगवती के स्तोत्र एवं मन्त्रोँ को वीरभाव से पढा अथवा उनका उच्चारण किया जाता है ! ये मन्त्र जितने भयानक और जितने गम्भीर कण्ठ स्वर से पढे जाते है उतने ही अधिक फलदायी होते है ! इन मन्त्रोँ की "सामर्थ्य" को एक "योग्य साधक" ही जान सकता है ! लेकिन यदि साधारण मनुष्य भी यदि पद्मासन अथवा सुखासन मेँ बैठकर इन मन्त्रोँ को सुनेँ, इनका श्रवण करे तो वह अपने जीवन की सभी बाधाओँ से मुक्ति प्राप्त कर सकता है ! उसके अनेकोँ रोग नष्ट होते है ! सम्पूर्ण भय नष्ट होता है ! व्यक्ति का मानसिक विकास होता है अथवा आध्यात्मिक विकास प्राप्त करते हुए वह "भोग-मोक्ष" दोनोँ को प्राप्त करता है !
भगवती तारा की एक खासियत है, तारा वैराग्य तो देती है लेकिन वो बहुत थोडा वैराग्य देती है ! वो है अधर मेँ लटक जानेवाली बात कि क्या मैँ पूर्ण वैरागी हो जाऊँ या मैँ पूर्ण संसारी रहुँ? ये बीच के द्वन्द्व मेँ जो फसाये रखती है वो तारा है लेकिन ये एकमात्र उनका नकारात्मक प्रभाव है । जो उनका सो प्रतिशत सकारात्मक प्रभाव है वो ये है कि तारा के भीतर तारने की क्षमता है ! एकमात्र महाविद्या...जो साधक उस साधना को सम्पन्न कर लेता है वो व्यक्ति अपने भीतर तो क्षमता प्राप्त करता है वो देने की भी क्षमता प्राप्त करता है इसलिए तारा के पीछे "तारिणी" नाम का शब्द जुडा है । तारा का साधक स्वयं तर जाता है और जो तारा के साधक को समजने की कोशिश करता है वो भी तर जाता है इसलिए तारा साधना के दो फायदे है जिस गृहस्थी मेँ तारा साधना को सम्पन्न किया जाता है सिद्ध परंपरा ये मानती है कि उनके पंथ मेँ या उनके वंश मेँ जितने पाप उनके पूर्वजोँ द्वारा कृत थे वो भी इस साधना से मिटते है ! शास्त्र तो कहते है कि इक्कीस पीढियाँ...शास्त्र का ये प्रमाण है कि इक्कीस पीढियाँ जिस मेँ नाना की पीढी भी आती है और दादा की पीढी भी आती है ये दोनो पीढियाँ उनके पाप जो है कटते है, उऋण होते है और पाप कटने का तात्पर्य क्या है ? पाप कटने का तात्पर्य ये भी है कि आपके जीवन के समस्त संकट उससे नष्ट हो जायेंगे । अगर आपकी संतानेँ विकृत होती है, अगर आपके संतानोँ को रोग होते है, कुछ लोगोँ की संतानेँ अच्छी नहीँ हो पाती तो उसके संबंध मेँ ये देवी तारा है जो उसके लिए आपकी सहायता करती है लेकिन तारा का सबसे अच्छा गुण कि अगर आप तारा की उपासना करते है और खासकर तब जब आपके गर्भ मेँ बालक होँ तो उस स्थिति मेँ ललित कलाओँ की स्वामिनी है तारा...वो गीत, संगीत,नृत्य सीखाती है वो बोलने मेँ व्यक्ति को तीव्र करती है, कुशाग्र बुद्धि व्यक्ति को बनाती है ये तारा का सबसे बडा गुण है इसलिए अपने घर मेँ नित्य तारा की उपासना करनी चाहिए और उनसे प्रार्थना करनी चाहिए (अपने लिए, अपने परिवार के लिए भी) तो आपका परिवार कभी बिखरेगा नहीँ ! परिवार बिखरता किसका है ? जो तारा महाविद्या के रहस्योँ को नहीँ जानता । यदि आप तारा के साधक है तो आपका परिवार टूट ही नहीँ सकता, वो बिखर ही नहीँ सकता, बिखर भी गया होगा तो वो फिर से जुड जायेगा उसकी एक ही साधना है...वो है तारा महाविद्या की साधना । तारा को ज्ञान की भी देवी माना गया है तो एक हजार सरस्वती के बराबर की जो क्षमता देने की जो सामर्थ्य है वो नील तारा मेँ होती है इसलिए नील तारा की साधना हिमालय के योगी, हिमालय के ऋषि अधिकांश समय किया करते है, वो अपने आप मेँ बहुत उच्च कोटि की साधना है । सभी मन्त्रों की रक्षा करने वाली व भोग-मोक्ष दोनों के शिखरों का बोध करवा कर ज्ञान प्रदान करने वाली इस महाशक्ति के शिविर में, बेहद कड़े नियम होते हैं। हर किसी को इनकी साधना शिविर में जाने का स्वप्न नहीं लेना चाहिए।
तारा महाविद्या साधना हेतु कुछ संदर्भ पुस्तकें -
१) नील सरस्वती तंत्र
२) डामर तंत्र
३) नाट्य परम्परा और अभिनय
४) परमानन्दतंत्रम
५) सिद्धविद्या रहस्य
६) उपमहाविद्या रहस्य
७) तारा रहस्यम
८) तारा महाविद्या
९) सांख्यायन तंत्र
१०) प्रत्यंगिरा पुनश्चर्या
११) नव दुर्गा दशमहाविद्या रहस्य
१२) श्री विद्या साधना
१३) वात्स्यायन कामसूत्र
१४) मुण्डमाला तंत्र
१५) गन्धर्व तंत्र
१६) सिद्धसिद्धांत पद्धति:
१७) ज्ञानार्णव तंत्र
१८) श्री दक्षिणामूर्ति संहिता
१९) योगिनी तंत्र
२०) श्री विद्या खडग माला
बड़े से बड़े दुखों का होगा नाश
सृष्टि के सर्वोच्च ज्ञान की होगी प्राप्ति
भोग और मोक्ष होंगे मुट्ठी में
जीवन के हर क्षत्र में मिलेगी अपार सफलता
दैहिक दैविक भौतिक तापों से तारेगी
"सिद्धविद्या महातारा"
सृष्टि की उत्तपत्ति से पहले घोर अन्धकार था, तब न तो कोई तत्व था न ही कोई शक्ति थी, केवल एक अन्धकार का साम्राज्य था, इस परलायकाल के अन्धकार की देवी थी काली, उसी महाअधकार से एक प्रकाश का बिन्दु प्रकट हुआ जिसे तारा कहा गया, यही तारा अक्षोभ्य नाम के ऋषि पुरुष की शक्ति है, ब्रहमांड में जितने धधकते पिंड हैं सभी की स्वामिनी उत्तपत्तिकर्त्री तारा ही हैं, जो सूर्य में प्रखर प्रकाश है उसे नीलग्रीव कहा जाता है, यही नील ग्रीवा माँ तारा हैं, सृष्टि उत्तपत्ति के समय प्रकाश के रूप में प्राकट्य हुआ इस लिए तारा नाम से विख्यात हुई किन्तु देवी तारा को महानीला या नील तारा कहा जाता है क्योंकि उनका रंग नीला है, जिसके सम्बन्ध में कथा आती है कि जब सागर मंथन हुआ तो सागर से हलाहल विष निकला, जो तीनों लोकों को नष्ट करने लगा, तब समस्त राक्षसों देवताओं ऋषि मुनिओं नें भगवान शिव से रक्षा की गुहार लगाई, भूत बावन शिव भोले नें सागर म,अन्थान से निकले कालकूट नामक विष को पी लिया, विष पीते ही विष के प्रभाव से महादेव मूर्छित होने लगे, उनहोंने विष को कंठ में रोक लिया किन्तु विष के प्रभाव से उनका कंठ भी नीला हो गया, जब देवी नें भगवान् को मूर्छित होते देख तो देवी नासिका से भगवान शिव के भीतर चली गयी और विष को अपने दूध से प्रभावहीन कर दिया, किन्तु हलाहल विष से देवी का शरीर नीला पड़ गया, तब भगवान शिव नें देवी को महानीला कह कर संबोधित किया, इस प्रकार सृष्टि उत्तपत्ति के बाद पहली बार देवी साकार रूप में प्रकट हुई, दस्माहविद्याओं में देवी तारा की साधना पूजा ही सबसे जटिल है, देवी के तीन प्रमुख रूप हैं १)उग्रतारा २)एकाजटा और ३)नील सरस्वती..........देवी सकल ब्रह्म अर्थात परमेश्वर की शक्ति है, देवी की प्रमुख सात कलाएं हैं जिनसे देवी ब्रहमांड सहित जीवों तथा देवताओं की रक्षा भी करती है ये सात शक्तियां हैं १)परा २)परात्परा ३)अतीता ४)चित्परा ५)तत्परा ६)तदतीता ७)सर्वातीता, इन कलाओं सहित देवी का धन करने या स्मरण करने से उपासक को अनेकों विद्याओं का ज्ञान सहज ही प्राप्त होने लगता है, देवी तारा के भक्त के बुद्धिबल का मुकाबला तीनों लोकों मन कोई नहीं कर सकता, भोग और मोक्ष एक साथ देने में समर्थ होने के कारण इनको सिद्धविद्या कहा गया है
देवी तारा ही अनेकों सरस्वतियों की जननी है इस लिए उनको नील सरस्वती कहा जाता है
देवी का भक्त प्रखरतम बुद्धिमान हो जाता है जिस कारण वो संसार और सृष्टि को समझ जाता है
अक्षर के भीतर का ज्ञान ही तारा विद्या है
भवसागर से तारने वाली होने के कारण भी देवी को तारा कहा जाता है
देवी बाघम्बर के वस्त्र धारण करती है और नागों का हार एवं कंकन धरे हुये है
देवी का स्वयं का रंग नीला है और नीले रंग को प्रधान रख कर ही देवी की पूजा होती है
देवी तारा के तीन रूपों में से किसी भी रूप की साधना बना सकती है समृद्ध, महाबलशाली और ज्ञानवान
सृष्टि की उतपाती एवं प्रकाशित शक्ति के रूप में देवी को त्रिलोकी पूजती है
ये सारी सृष्टि देवी की कृपा से ही अनेक सूर्यों का प्रकाश प्राप्त कर रही है
शास्त्रों में देवी को ही सवित्राग्नी कहा गया है
देवी की स्तुति से देवी की कृपा प्राप्त होती है
स्तुति
प्रत्यालीढपदार्पिताङ्घ्रिशवहृद्घोराट्टहासा परा ।
खड्गेन्दीवरकर्त्रिखर्परभुजा हुङ्कारबीजोद्भवा ॥
खर्वा नीलविशालपिङ्गलजटाजूटैकनागैर्युता ।
जाड्यं न्यस्य कपालके त्रिजगतां हन्त्युग्रतारा स्वयम् ॥
देवी की कृपा से साधक प्राण ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त करता है
गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए
देवी अज्ञान रुपी शव पर विराजती हैं और ज्ञान की खडग से अज्ञान रुपी शत्रुओं का नाश करती हैं
लाल व नीले फूल और नारियल चौमुखा दीपक चढाने से देवी होतीं हैं प्रसन्न
देवी के भक्त को ज्ञान व बुद्धि विवेक में तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पता
देवी की मूर्ती पर रुद्राक्ष चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है
महाविद्या तारा के मन्त्रों से होता है बड़े से बड़े दुखों का नाश
देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र है-
श्री सिद्ध तारा महाविद्या महामंत्र
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट
इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं जैसे
1. बिल्व पत्र, भोज पत्र और घी से हवन करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है
2.मधु. शर्करा और खीर से होम करने पर वशीकरण होता है
3.घृत तथा शर्करा युक्त हवन सामग्री से होम करने पर आकर्षण होता है।
4. काले तिल व खीर से हवन करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है।
देवी के तीन प्रमुख रूपों के तीन महा मंत्र
महाअंक-देवी द्वारा उतपन्न गणित का अंक जिसे स्वयं तारा ही कहा जाता है वो देवी का महाअंक है -"1"
विशेष पूजा सामग्रियां-पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है
सफेद या नीला कमल का फूल चढ़ाना
रुद्राक्ष से बने कानों के कुंडल चढ़ाना
अनार के दाने प्रसाद रूप में चढ़ाना
सूर्य शंख को देवी पूजा में रखना
भोजपत्र पर ह्रीं लिख करा चढ़ाना
दूर्वा,अक्षत,रक्तचंदन,पंचगव्य,पञ्चमेवा व पंचामृत चढ़ाएं
पूजा में उर्द की ड़ाल व लौंग काली मिर्च का चढ़ावे के रूप प्रयोग करें
सभी चढ़ावे चढाते हुये देवी का ये मंत्र पढ़ें-ॐ क्रोद्धरात्री स्वरूपिन्ये नम:
१)देवी तारा मंत्र-ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट
२)देवी एक्जता मंत्र-ह्रीं त्री हुं फट
३)नील सरस्वती मंत्र-ह्रीं त्री हुं
सभी मन्त्रों के जाप से पहले अक्षोभ्य ऋषि का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिए
सबसे महत्पूरण होता है देवी का महायंत्र जिसके बिना साधना कभी पूरण नहीं होती इसलिए देवी के यन्त्र को जरूर स्थापित करे व पूजन करें
यन्त्र के पूजन की रीति है-
पंचोपचार पूजन करें-धूप,दीप,फल,पुष्प,जल आदि चढ़ाएं
ॐ अक्षोभ्य ऋषये नम: मम यंत्रोद्दारय-द्दारय
कहते हुये पानी के 21 बार छीटे दें व पुष्प धूप अर्पित करें
देवी को प्रसन्न करने के लिए सह्त्रनाम त्रिलोक्य कवच आदि का पाठ शुभ माना गया है
यदि आप बिधिवत पूजा पात नहीं कर सकते तो मूल मंत्र के साथ साथ नामावली का गायन करें
तारा शतनाम का गायन करने से भी देवी की कृपा आप प्राप्त कर सकते हैं
तारा शतनाम को इस रीति से गाना चाहिए-
तारणी तरला तन्वी तारातरुण बल्लरी,
तीररूपातरी श्यामा तनुक्षीन पयोधरा,
तुरीया तरला तीब्रगमना नीलवाहिनी,
उग्रतारा जया चंडी श्रीमदेकजटाशिरा,
देवी को अति शीघ्र प्रसन्न करने के लिए अंग न्यास व आवरण हवन तर्पण व मार्जन सहित पूजा करें
अब देवी के कुछ इच्छा पूरक मंत्र
1) देवी तारा का भय नाशक मंत्र
ॐ त्रीम ह्रीं हुं
नीले रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करें
पुष्पमाला,अक्षत,धूप दीप से पूजन करें
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें
मंदिर में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
नीले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
पूर्व दिशा की ओर मुख रखें
आम का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
2) शत्रु नाशक मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: हुं उग्रतारे फट
नारियल वस्त्र में लपेट कर देवी को अर्पित करें
गुड से हवन करें
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
एकांत कक्ष में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
पपीता का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
3) जादू टोना नाशक मंत्र
ॐ हुं ह्रीं क्लीं सौ: हुं फट
देसी घी ड़ाल कर चौमुखा दीया जलाएं
कपूर से देवी की आरती करें
रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें
4) लम्बी आयु का मंत्र
ॐ हुं ह्रीं क्लीं हसौ: हुं फट
रोज सुबह पौधों को पानी दें
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
शिवलिंग के निकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
भूरे रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
पूर्व दिशा की ओर मुख रखें
सेब का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
5) सुरक्षा कवच का मंत्र
ॐ हुं ह्रीं हुं ह्रीं फट
देवी को पान व पञ्च मेवा अर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से 3 माला का मंत्र जप करें
मंत्र जाप के समय उत्तर की ओर मुख रखें
किसी खुले स्थान में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
केले व अमरुद का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-
बिना "अक्षोभ ऋषि" की पूजा के तारा महाविद्या की साधना न करें
किसी स्त्री की निंदा किसी सूरत में न करें
साधना के दौरान अपने भोजन आदि में लौंग व इलाइची का प्रयोग नकारें
देवी भक्त किसी भी कीमत पर भांग के पौधे को स्वयं न उखाड़ें
टूटा हुआ आइना पूजा के दौरान आसपास न रखें
विशेष गुरु दीक्षा-
तारा महाविद्या की अनुकम्पा पाने के लिए अपने गुरु से आप दीक्षा जरूर लें आप कोई एक दीक्षा ले सकते हैं
महातारा दीक्षा
नीलतारा दीक्षा
उग्र तारा दीक्षा
एकजटा दीक्षा
ब्रह्माण्ड दीक्षा
सिद्धाश्रम प्राप्ति दीक्षा
हिमालय गमन दीक्षा
महानीला दीक्षा
कोष दीक्षा
अपरा दीक्षा.................आदि में से कोई एक
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ
मंत्र-ॐ भ्रौं भ्रौं स: अक्षोभ्य भैरवाय ह्रौय ह्रौय भं हुं फट।
'तारा महाविद्या के २१ प्रमुख भैरवों का वाहण मंत्र' नीचे मंत्र क्रम दिया गया है 'कौलान्तक सिद्धों' का ये मंत्र एक महाकवच व सुरक्षा भी है जो सभी साधनाओं से पहले स्थापित होता है जिसकी विधि 'गुरुगम्य' ही है-
1) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं अक्षोभ्य भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हुं, जं तं थं नं यं हं फं रं वं ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं अक्षोभ्य भैरवाय फट्।
2) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं काल भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हुं, जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं काल भैरवाय फट्।
3) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं नील भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं नील भैरवाय फट्।
4) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं विकराल भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं विकराल भैरवाय फट्।
5) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं कंकाल भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं काल भैरवाय फट्।
6) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं पाताल भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं पाताल भैरवाय फट्।
7) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं काम भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हुं, जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं काम भैरवाय फट्।
8) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं जड. भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं जड. भैरवाय फट्।
9) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं स्थूल भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं स्थूल भैरवाय फट्।
10) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं नाद भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं नाद भैरवाय फट्।
11) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं वीर भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं वीर भैरवाय फट्।
12) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं प्रलय भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं प्रलय भैरवाय फट्।
13) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं उच्चाट भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं उच्चाट भैरवाय फट्।
14) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं दुर्मुख भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं दुर्मुख भैरवाय फट्।
15) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं पावक भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं पावक भैरवाय फट्।
16) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं प्रेत भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं प्रेत भैरवाय फट्।
17) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं स्तम्भ भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं स्तम्भ भैरवाय फट्।
18) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं प्रमाद भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं प्रमाद भैरवाय फट्।
19) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं सूचि भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं सूचि भैरवाय फट्।
20) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं मैथुन भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हुं मैथुन भैरवाय फट्।
21) ॐ हृौय,हृौय,हृौय हुं चाण्ड़ाल भं भैरवाय हुं
क्रौं हृौं हु,जं तं थं नं यं हं फं रं वं
ज्रें थ्रें न्रें हुं हु चाण्ड़ाल भैरवाय फट्।
।"अक्षोभ्य पुरुष" की शक्ति है "माँ तारा" ! जिसे माँ तारिणी कहा गया है ! मध्यरात्रि के पश्चात का जो समय है वो माँ तारा का ही है ! ये वही महाविद्या है जिन्हेँ तारिणी का नाम इसलिए प्रदान किया गया क्योँकि यही शक्ति हमेँ इस भवरुपी बन्धन से तारती है ! मानवदेह मेँ जब ये जीवात्मा बन्धनयुक्त पडी रहती है तो उस समय जीवात्मा निरन्तर छटपटाती रहती है ! कभी उसका ह्रदय "भोग" चाहता है तो कभी "योग" ! लेकिन वह दोनोँ को पाने का प्रयत्न तो करता है लेकिन किसी एक को भी ठीक तरह से प्राप्त नहीँ कर पाता ! तो माँ तारा की साधना एवं आराधना ऐसी विलक्षण है कि यदि साधक सब कुछ न्योछावर कर यदि तन्त्रमार्ग से इनकी साधना एवं आराधना करे तो वह "भोग" एवं "मोक्ष" दोनोँ को प्राप्त करता है ! "तारा तन्त्र" यद्यपि वामाचारी क्रिया से सम्पन्न होता है क्योँकि यह चीनाचारा पद्धति के द्वारा चलनेवाला है लेकिन यदि साधक इस सम्पूर्ण रहस्य को अपने श्रीगुरु के चरणोँ मेँ बैठकर समझे तो इस महाविद्या की कृपा वह अवश्य प्राप्त करता है ! तारा भगवती "ब्रह्म" का ज्ञान प्रदान करनेवाली महाशक्ति है ! यह वह शक्ति है जो हमेँ सम्पूर्ण मानसिक पीडाओँ से मुक्ति प्रदान करती है ! भगवती के सम्बन्ध मेँ कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने के सदृश होगा ! अतः साधक को चाहिए की वह दस महाविद्याओँ की साधना एवं आराधना लगातार करता रहे ! माँ भगवती के स्तोत्र एवं मन्त्रोँ को वीरभाव से पढा अथवा उनका उच्चारण किया जाता है ! ये मन्त्र जितने भयानक और जितने गम्भीर कण्ठ स्वर से पढे जाते है उतने ही अधिक फलदायी होते है ! इन मन्त्रोँ की "सामर्थ्य" को एक "योग्य साधक" ही जान सकता है ! लेकिन यदि साधारण मनुष्य भी यदि पद्मासन अथवा सुखासन मेँ बैठकर इन मन्त्रोँ को सुनेँ, इनका श्रवण करे तो वह अपने जीवन की सभी बाधाओँ से मुक्ति प्राप्त कर सकता है ! उसके अनेकोँ रोग नष्ट होते है ! सम्पूर्ण भय नष्ट होता है ! व्यक्ति का मानसिक विकास होता है अथवा आध्यात्मिक विकास प्राप्त करते हुए वह "भोग-मोक्ष" दोनोँ को प्राप्त करता है !
तारा महाविद्या साधना हेतु कुछ संदर्भ पुस्तकें -
१) नील सरस्वती तंत्र
२) डामर तंत्र
३) नाट्य परम्परा और अभिनय
४) परमानन्दतंत्रम
५) सिद्धविद्या रहस्य
६) उपमहाविद्या रहस्य
७) तारा रहस्यम
८) तारा महाविद्या
९) सांख्यायन तंत्र
१०) प्रत्यंगिरा पुनश्चर्या
११) नव दुर्गा दशमहाविद्या रहस्य
१२) श्री विद्या साधना
१३) वात्स्यायन कामसूत्र
१४) मुण्डमाला तंत्र
१५) गन्धर्व तंत्र
१६) सिद्धसिद्धांत पद्धति:
१७) ज्ञानार्णव तंत्र
१८) श्री दक्षिणामूर्ति संहिता
१९) योगिनी तंत्र
२०) श्री विद्या खडग माला
बड़े से बड़े दुखों का होगा नाश
सृष्टि के सर्वोच्च ज्ञान की होगी प्राप्ति
भोग और मोक्ष होंगे मुट्ठी में
जीवन के हर क्षत्र में मिलेगी अपार सफलता
दैहिक दैविक भौतिक तापों से तारेगी
"सिद्धविद्या महातारा"
सृष्टि की उत्तपत्ति से पहले घोर अन्धकार था, तब न तो कोई तत्व था न ही कोई शक्ति थी, केवल एक अन्धकार का साम्राज्य था, इस परलायकाल के अन्धकार की देवी थी काली, उसी महाअधकार से एक प्रकाश का बिन्दु प्रकट हुआ जिसे तारा कहा गया, यही तारा अक्षोभ्य नाम के ऋषि पुरुष की शक्ति है, ब्रहमांड में जितने धधकते पिंड हैं सभी की स्वामिनी उत्तपत्तिकर्त्री तारा ही हैं, जो सूर्य में प्रखर प्रकाश है उसे नीलग्रीव कहा जाता है, यही नील ग्रीवा माँ तारा हैं, सृष्टि उत्तपत्ति के समय प्रकाश के रूप में प्राकट्य हुआ इस लिए तारा नाम से विख्यात हुई किन्तु देवी तारा को महानीला या नील तारा कहा जाता है क्योंकि उनका रंग नीला है, जिसके सम्बन्ध में कथा आती है कि जब सागर मंथन हुआ तो सागर से हलाहल विष निकला, जो तीनों लोकों को नष्ट करने लगा, तब समस्त राक्षसों देवताओं ऋषि मुनिओं नें भगवान शिव से रक्षा की गुहार लगाई, भूत बावन शिव भोले नें सागर म,अन्थान से निकले कालकूट नामक विष को पी लिया, विष पीते ही विष के प्रभाव से महादेव मूर्छित होने लगे, उनहोंने विष को कंठ में रोक लिया किन्तु विष के प्रभाव से उनका कंठ भी नीला हो गया, जब देवी नें भगवान् को मूर्छित होते देख तो देवी नासिका से भगवान शिव के भीतर चली गयी और विष को अपने दूध से प्रभावहीन कर दिया, किन्तु हलाहल विष से देवी का शरीर नीला पड़ गया, तब भगवान शिव नें देवी को महानीला कह कर संबोधित किया, इस प्रकार सृष्टि उत्तपत्ति के बाद पहली बार देवी साकार रूप में प्रकट हुई, दस्माहविद्याओं में देवी तारा की साधना पूजा ही सबसे जटिल है, देवी के तीन प्रमुख रूप हैं १)उग्रतारा २)एकाजटा और ३)नील सरस्वती..........देवी सकल ब्रह्म अर्थात परमेश्वर की शक्ति है, देवी की प्रमुख सात कलाएं हैं जिनसे देवी ब्रहमांड सहित जीवों तथा देवताओं की रक्षा भी करती है ये सात शक्तियां हैं १)परा २)परात्परा ३)अतीता ४)चित्परा ५)तत्परा ६)तदतीता ७)सर्वातीता, इन कलाओं सहित देवी का धन करने या स्मरण करने से उपासक को अनेकों विद्याओं का ज्ञान सहज ही प्राप्त होने लगता है, देवी तारा के भक्त के बुद्धिबल का मुकाबला तीनों लोकों मन कोई नहीं कर सकता, भोग और मोक्ष एक साथ देने में समर्थ होने के कारण इनको सिद्धविद्या कहा गया है
देवी तारा ही अनेकों सरस्वतियों की जननी है इस लिए उनको नील सरस्वती कहा जाता है
देवी का भक्त प्रखरतम बुद्धिमान हो जाता है जिस कारण वो संसार और सृष्टि को समझ जाता है
अक्षर के भीतर का ज्ञान ही तारा विद्या है
भवसागर से तारने वाली होने के कारण भी देवी को तारा कहा जाता है
देवी बाघम्बर के वस्त्र धारण करती है और नागों का हार एवं कंकन धरे हुये है
देवी का स्वयं का रंग नीला है और नीले रंग को प्रधान रख कर ही देवी की पूजा होती है
देवी तारा के तीन रूपों में से किसी भी रूप की साधना बना सकती है समृद्ध, महाबलशाली और ज्ञानवान
सृष्टि की उतपाती एवं प्रकाशित शक्ति के रूप में देवी को त्रिलोकी पूजती है
ये सारी सृष्टि देवी की कृपा से ही अनेक सूर्यों का प्रकाश प्राप्त कर रही है
शास्त्रों में देवी को ही सवित्राग्नी कहा गया है
देवी की स्तुति से देवी की कृपा प्राप्त होती है
स्तुति
प्रत्यालीढपदार्पिताङ्घ्रिशवहृद्घोराट्टहासा परा ।
खड्गेन्दीवरकर्त्रिखर्परभुजा हुङ्कारबीजोद्भवा ॥
खर्वा नीलविशालपिङ्गलजटाजूटैकनागैर्युता ।
जाड्यं न्यस्य कपालके त्रिजगतां हन्त्युग्रतारा स्वयम् ॥
देवी की कृपा से साधक प्राण ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त करता है
गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए
देवी अज्ञान रुपी शव पर विराजती हैं और ज्ञान की खडग से अज्ञान रुपी शत्रुओं का नाश करती हैं
लाल व नीले फूल और नारियल चौमुखा दीपक चढाने से देवी होतीं हैं प्रसन्न
देवी के भक्त को ज्ञान व बुद्धि विवेक में तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पता
देवी की मूर्ती पर रुद्राक्ष चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है
महाविद्या तारा के मन्त्रों से होता है बड़े से बड़े दुखों का नाश
देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र है-
श्री सिद्ध तारा महाविद्या महामंत्र
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट
इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं जैसे
1. बिल्व पत्र, भोज पत्र और घी से हवन करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है
2.मधु. शर्करा और खीर से होम करने पर वशीकरण होता है
3.घृत तथा शर्करा युक्त हवन सामग्री से होम करने पर आकर्षण होता है।
4. काले तिल व खीर से हवन करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है।
देवी के तीन प्रमुख रूपों के तीन महा मंत्र
महाअंक-देवी द्वारा उतपन्न गणित का अंक जिसे स्वयं तारा ही कहा जाता है वो देवी का महाअंक है -"1"
विशेष पूजा सामग्रियां-पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है
सफेद या नीला कमल का फूल चढ़ाना
रुद्राक्ष से बने कानों के कुंडल चढ़ाना
अनार के दाने प्रसाद रूप में चढ़ाना
सूर्य शंख को देवी पूजा में रखना
भोजपत्र पर ह्रीं लिख करा चढ़ाना
दूर्वा,अक्षत,रक्तचंदन,पंचगव्य,पञ्चमेवा व पंचामृत चढ़ाएं
पूजा में उर्द की ड़ाल व लौंग काली मिर्च का चढ़ावे के रूप प्रयोग करें
सभी चढ़ावे चढाते हुये देवी का ये मंत्र पढ़ें-ॐ क्रोद्धरात्री स्वरूपिन्ये नम:
१)देवी तारा मंत्र-ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट
२)देवी एक्जता मंत्र-ह्रीं त्री हुं फट
३)नील सरस्वती मंत्र-ह्रीं त्री हुं
सभी मन्त्रों के जाप से पहले अक्षोभ्य ऋषि का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिए
सबसे महत्पूरण होता है देवी का महायंत्र जिसके बिना साधना कभी पूरण नहीं होती इसलिए देवी के यन्त्र को जरूर स्थापित करे व पूजन करें
यन्त्र के पूजन की रीति है-
पंचोपचार पूजन करें-धूप,दीप,फल,पुष्प,जल आदि चढ़ाएं
ॐ अक्षोभ्य ऋषये नम: मम यंत्रोद्दारय-द्दारय
कहते हुये पानी के 21 बार छीटे दें व पुष्प धूप अर्पित करें
देवी को प्रसन्न करने के लिए सह्त्रनाम त्रिलोक्य कवच आदि का पाठ शुभ माना गया है
यदि आप बिधिवत पूजा पात नहीं कर सकते तो मूल मंत्र के साथ साथ नामावली का गायन करें
तारा शतनाम का गायन करने से भी देवी की कृपा आप प्राप्त कर सकते हैं
तारा शतनाम को इस रीति से गाना चाहिए-
तारणी तरला तन्वी तारातरुण बल्लरी,
तीररूपातरी श्यामा तनुक्षीन पयोधरा,
तुरीया तरला तीब्रगमना नीलवाहिनी,
उग्रतारा जया चंडी श्रीमदेकजटाशिरा,
देवी को अति शीघ्र प्रसन्न करने के लिए अंग न्यास व आवरण हवन तर्पण व मार्जन सहित पूजा करें
अब देवी के कुछ इच्छा पूरक मंत्र
1) देवी तारा का भय नाशक मंत्र
ॐ त्रीम ह्रीं हुं
नीले रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करें
पुष्पमाला,अक्षत,धूप दीप से पूजन करें
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें
मंदिर में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
नीले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
पूर्व दिशा की ओर मुख रखें
आम का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
2) शत्रु नाशक मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: हुं उग्रतारे फट
नारियल वस्त्र में लपेट कर देवी को अर्पित करें
गुड से हवन करें
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
एकांत कक्ष में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
पपीता का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
3) जादू टोना नाशक मंत्र
ॐ हुं ह्रीं क्लीं सौ: हुं फट
देसी घी ड़ाल कर चौमुखा दीया जलाएं
कपूर से देवी की आरती करें
रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें
4) लम्बी आयु का मंत्र
ॐ हुं ह्रीं क्लीं हसौ: हुं फट
रोज सुबह पौधों को पानी दें
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें
शिवलिंग के निकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
भूरे रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
पूर्व दिशा की ओर मुख रखें
सेब का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
5) सुरक्षा कवच का मंत्र
ॐ हुं ह्रीं हुं ह्रीं फट
देवी को पान व पञ्च मेवा अर्पित करें
रुद्राक्ष की माला से 3 माला का मंत्र जप करें
मंत्र जाप के समय उत्तर की ओर मुख रखें
किसी खुले स्थान में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है
काले रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें
उत्तर दिशा की ओर मुख रखें
केले व अमरुद का फल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-
बिना "अक्षोभ ऋषि" की पूजा के तारा महाविद्या की साधना न करें
किसी स्त्री की निंदा किसी सूरत में न करें
साधना के दौरान अपने भोजन आदि में लौंग व इलाइची का प्रयोग नकारें
देवी भक्त किसी भी कीमत पर भांग के पौधे को स्वयं न उखाड़ें
टूटा हुआ आइना पूजा के दौरान आसपास न रखें
विशेष गुरु दीक्षा-
तारा महाविद्या की अनुकम्पा पाने के लिए अपने गुरु से आप दीक्षा जरूर लें आप कोई एक दीक्षा ले सकते हैं
महातारा दीक्षा
नीलतारा दीक्षा
उग्र तारा दीक्षा
एकजटा दीक्षा
ब्रह्माण्ड दीक्षा
सिद्धाश्रम प्राप्ति दीक्षा
हिमालय गमन दीक्षा
महानीला दीक्षा
कोष दीक्षा
अपरा दीक्षा.................आदि में से कोई एक
-कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ