बुधवार, 2 नवंबर 2022

कौल तन्त्र

 

"कौल तंत्र" हिमालय का, उत्तर भारत का प्रसिद्ध रहस्य तंत्र है जिसे सम्पूर्ण पृथ्वी जैसे माया सभ्यता, मिस्र की सभ्यता, बुद्धिस्ट तंत्र, जैन तंत्र, इस्लामिक तंत्र, यहूदी तंत्र सहित, वूडू तंत्र आदि सभी तंत्रों का जनक माना जाता है। "कौल तंत्र" वाम मार्ग के कारण बदनाम हुआ और वासना के, धन के लोभियों नें व ढोंगियों, पाखंडियों नें इसे नष्ट होने के कगार पर पहुंचा दिया। लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। आज भी यदि आप इस तंत्र मत को परम्परा अनुसार जाने, तो हैरान रह जायेंगे की आज का विज्ञान भी जो सोच नहीं रखता। वो "कौल तंत्र" के पास है। हम यहाँ इसका विस्तार नहीं दे रहे। केवल आपको प्रेरित करना ही उद्देश्य है। ताकि आप हमारे कहने पर नहीं, बल्कि अपने आप खोज कर भारत की महान परम्परा को जान सकें। जिसका कायल सारा संसार युगों से रहा है ।





"कौल कुल" को श्रेष्ठ कुल कहा जाता है। इस कुल की विशेषता ये है की ये अपने रहस्यों को प्रकट नहीं करता। यदि साधक धैर्य रखता है। गुरु की अनूठी और अबूझ परीक्षाओं को उत्तीर्ण करता है तो साधक को मिलता है मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा पुरूस्कार यानि ६४ कला संपन्न होना। इसी कारण "कौल मत" को "महाहिन्दू" मत भी कहा जता है। "कौल संप्रदाय" सिद्धों पर आधारित होता है। जो इतने रहस्यमय और मायावी होते है की उनके साथ रहने वाले और जीने वाले भी उनको नहीं जानते। कौल सिद्धों का मंत्र आपकी पात्रता का निर्माण करता है। इस लिए लगातार जप ही सिद्धि देने वाला होता है। ऐसा कहा गया है । - कौलान्तक पीठ हिमालय

रविवार, 30 अक्टूबर 2022

कुण्डलिनी जागरण


योग ग्रंथ हमें बताते हैं कि आपके भीतर अद्भुत क्षमताएं है और शक्तियां समाहित है। किंतु मेरा अनुभव है कि कुंडलिनी जैसी अद्भुत क्षमता के लिए एक योगी को योग तपस्या के कठिन मार्ग में तपना ही होगा। नाद योग से लेकर पाशुपत योग तक, हठयोग से लेकर राजयोग तक, विशाल शिलाओं से लेकर भूमि की गर्भ गुफाओं तक, साधारण प्राणायाम से लेकर, नेति, धोती, नौली, बस्ति आदि क्रियाओं तक हर संभव प्रयास और अभ्यास गुरु निर्देश में करना चाहिए। योग साधना और तपस्या ऋषि मुनियों और हिमालय के सिद्धों की मनुष्यता को एक महान देन है। गुरु के मार्गदर्शन में आपको वो प्राप्त होगा जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी! मैं अनुभव से कह रहा हूं इसलिए अपनी क्षमताओं और शक्ति की प्राप्ति के लिए जटिल मार्ग से डरो नहीं! आगे बढ़ो और अभ्यास करो। स्वयं जान जाओगे की सत्य क्या है।
- महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज

मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

तप ही मार्ग की खोज भाग - 1

जब तक साधक सर्वथा प्रकृतिमय जीवन ना जिए तब तक साधना मार्ग में सफलता कल्पना मात्र होती हैं! कठोर साधनाओं के लिए अति अनिवार्य है कि हम अति वैराग्य भाव से निर्लेप होकर प्रकृति के मध्य विचरण करे; इसीलिए योगी साधक बहुत कम वस्त्र धारण कर ऐसे स्थानों पर चढ़कर साधनाएं करते हैं जहां साधारण जीव जंतु नही जा पाते! ऐसे दुष्कर और क्लिष्ट स्थानों को साधना एवं योग हेतु अति उत्तम कहा गया है! साधनकाल में कम से कम वस्त्र पहने जाते हैं क्योंकि शरीर तादात्म्य स्थापित करता है

तंत्र ज्योतिष


तंत्र ज्योतिष समस्त जीवो पर.. पशु पक्षियों पर भी समान रूप से लागू होता है, इसलिए हमें तंत्र ज्योतिष को समझना होगा। लेकिन गहरी बात... कि हमारा भविष्य पूरी तरह से निश्चित नहीं इसलिए बिल्कुल सटीक भविष्यवाणी कोई कभी ना कर पाएगा! भगवान राम का राज्याभिषेक का मुहूर्त निकाला गया था, उसी मुहूर्त में वनवास हो गया! इसका कारण है सटीक भविष्यवाणी इसलिए भी नहीं की जा सकती क्योंकि भविष्य आधा कोरा पन्ना है ! जिसमें कुछ लकीरें है, हम बस इन लकीरों को गिन कर बता सकते हैं! 

जैसे एक उदाहरण से हम समझे कि, हम यदि दो टांगो पर खड़े हो जाए और कोई कहे कि हम उन दोनो में से एक टांग को मोड़ ले तो हम उसे ऊपर की तरफ मोड़ सकते हैं; थोड़ी कठिनाई होगी, लेकिन फिर कोई कहे कि अब दोनो को मोड़ लो, ये तो संभव नहीं! इसका गहरा कारण है! सहज सी बात है कि हम गिर जाएंगे, क्योंकि 50% तो हम अपने ऊपर निर्भर है कि एक टांग स्वेच्छा से मोड़ सकते हैं लेकिन दूसरी नहीं मोड़ सकते; क्योंकि वो दूसरी प्रकृति पर, परिवेश पर अथवा परमात्मा पर निर्भर करती हैं!

तो जो आपके कर्म है और जो कुछ एक आपका प्रारब्ध है उसके आधार पर कुछ हद तक आपके भविष्य को देखा जा सकता है, यही वास्तविक ज्योतिष है; और ज्योतिष का कार्य कल क्या होगा यह बताना नहीं, आपको कल क्या करना चाहिए यह बताना है ताकि आपका जीवन खुशहाल हो सके ! तो आप अपना कर देखिए इस तंत्र ज्योतिष को, कितना अलौकिक, कितना विचित्र है यह तंत्र ज्योतिष!
- कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

धर्ममय भारत


हमारे राष्ट्र की जो सबसे बड़ी पूंजी है वह न तो हीरे है ना तो मोती है, न ही अस्त्र-शस्त्र है और ना ही कोई युद्ध विद्या या कौशल है। हमारे राष्ट्र की जो सबसे बड़ी पूंजी है वो धर्म है! हमने धर्म से ऊपर कभी किसी चीज को रखा नहीं, हमारे लिए धर्म के अतिरिक्त कोई सत्ता है ही नहीं और धर्म ही है जो धारण करने योग्य हैं।
- ईशपुत्र

साधना मार्ग : हिमालय में तप भाग - 5

 

अपने अनुभव की बात कहूं तो मेरी दृष्टि में साधना पथ पर ये जो पहली प्रणाली है तप की ये एक प्रयोग है, अपने साथ प्रयोग। जब तक हम स्वयं स्वयं पर प्रयोग न करे तब तक उस मार्ग को जानना अत्यंत क्लिष्ट है; शब्दों में धर्म को कहना, अध्यात्म को कहना एक अलग बात है, उसे अनुभव पर धारण करना बिल्कुल सिक्के का दूसरा पहलू।


सूर्य का प्रकाश धीरे धीरे योगी के शरीर के माध्यम से भीतर दिव्य अमृत पैदा करता चला जाता है और जब साधक का अभ्यास बढ़ता चला जाए तो वो जीव जंतुओं, वृक्षों तथा भोजन पर निर्भर नहीं रहता! उसकी दैहिक आवश्यकताएं सूर्य के प्रकाश से पूरी होने लगती है।


अब वो प्रकृति के बीच प्रकृति का मित्र हैं, प्रकृति को जनानेवाला है, अब उसकी साधनाएं फलीभूत हो रही है, अब वो भीतर एक गहरे मौन में खो जाता है, भीतर की शक्तियों के साथ जुड़ जाता है, अब एक नया अवतरण होता है, भीतर एक नए साधक की संरचना होती है। वो प्रकाश, वो मौन, वो दिव्यता साधक को परिवर्तित कर देती है। इसी परिवर्तन को साधना मार्ग कहा गया; लेकिन ध्यान रहे शब्द है 'साधना मार्ग'...'साधना' नहीं! हम इस प्रणाली को साधना अवश्य कह रहे हैं लेकिन ये साधना का अभ्यास मात्र है, क्योंकि परम साधनाएं क्लिष्ट है उन्हें करने के लिए यही पथ हमें तैयार करवाता है; इसीलिए साधना पथ का ज्ञान लेना उसपर स्वयं आगे बढ़ते जाना परम साधना है, भले ही ये छोटे छोटे बिंदु, ये छोटे छोटे प्रयास बहुत गौण लगते हैं लेकिन हर मजबूत घर की तरह ये समस्त बिंदु उस घर के आधार पृष्ठ है। आधार स्वरूप इन बिंदुओं को भली प्रकार साधक को जीवन में उतारना चाहिए इसका निरंतर और सतत अभ्यास साधकों को परम तत्त्ववेत्ता बना देता है! तदनंतर गुरु आश्रम में रहकर लगातार साधना मार्ग के तत्वों को जानना चाहिए, भीतर उठ रहे संदेहों को गुरु चरणों में निवेदित करना है। किसी भी प्रकार का कष्ट अथवा पीड़ा होने पर भी यथाशीघ्र गुरु चरणों में निवेदित करें। तब परम साधना का मार्ग दुर्लभ नहीं रह जाता और हम परम साधक बन उस महान रहस्यमयी शक्ति को जान जाते हैं जो आदिकाल से दुर्लभ मानी गई है।

- ईशपुत्र 

बुधवार, 23 मार्च 2022

साधना मार्ग - हिमालय में तप भाग - 4


 साधना काल में उत्तम आहार, किस प्रकार के हमारे वस्त्र हो, क्या हमारे विचार हो, किस परिवेश में हम रहे यह छोटे-छोटे बिंदु साधक के अस्तित्व का निर्माण करते हैं! बहुत जरूरी है कि हम गुरु दीक्षा के समय दिए जाने वाले प्रवचन को भली प्रकार सुने! गुरु से जो ज्ञान ग्रहण किया है साधना के समय एकमात्र वही सहारा होता है। साधक के मन में यदि किसी प्रकार का भय है तो वो ऐसे स्थान पर जाकर ही उसे अनुभव कर सकता है! और यदि साधना मार्ग में साधक को किसी प्रकार का भय अनुभव हो तो वह उसे यथाशीघ्र श्रीगुरु के चरणों में निवेदित करें क्योंकि गुरु इसी परंपरा से गुजरे हुए हैं। वो इस मार्ग पर चले हुए हैं, वह जानते हैं कि उस भय से मुक्ति का उपाय क्या है। हमारे मस्तिष्क में अनेकों अनेक तंतु है, अधिकतम तंतु शायद निष्क्रिय से प़डे हैं, वह पूर्णतया सक्रिय नहीं इसलिए हम अपने आसपास होने वाले कार्यों, घटनाओं इन सब के प्रति बेहोश से रहते हैं, हमारी जागृति ही नहीं होती। जब धीरे धीरे हमारे भीतर परिवर्तन आता है तो मस्तिष्क के उन तंतुओं में अद्भुत परिवर्तन देखने को मिलता है! आसपास होने वाली छोटे से छोटी घटना भी हमें प्रभावित करती है, तब हम वास्तव में एक पुरुष से विराट होकर महापुरुष बन जाते हैं, अणु से विराट हो उठते हैं। बात छोटी है लेकिन हम इसकी मात्र कल्पना ना करें, किसी भी साधक की अनुभूति उसकी निजी होती है क्योंकि प्रत्येक साधक का स्तर भिन्न है अतः उसके अनुभव भी भिन्न और निजी होते हैं। साधना उतनी ही कठिन है जितना विराट हिमालय पर चढ़ना और साधना इसलिए जटिल लगती है क्योंकि हमारी वृत्तियां बह्यमुखी है, उन्हें अभ्यंतरी बनाना है, हमारा सारा का सारा ध्यान बाह्य जगत में स्थित है, उसे हम किस प्रकार भीतर ले जाए यही तो साधना पथ है! तप इसीलिए श्रेष्ठ है क्योंकि इस प्रणाली के माध्यम से हम अपने पूरे के पूरे अस्तित्व को झोंक देते हैं सिर्फ इसलिए कि हम उस विराट चेतना को जागृत कर सके! धीरे-धीरे साधना का तेज शरीर पर भी दिखने लगता है; शरीर के रोग, दुःख, शोक नष्ट होने लगते हैं और हम अपने आप को स्वस्थ अनुभव करते हैं; शरीर की समस्त व्याधियां उसी प्रकार दूर हो जाती है जिस प्रकार अंधकार में दीपक जलाने पर रोशनी हो जाती है, अंधकार नष्ट हो जाता है। लगातार प्राणायाम का अभ्यास, मंत्रों का अभ्यास समस्त मानसिक कुंठाओ से साधक को मुक्ति प्रदान करता है। लेकिन इतना होने के बाद भी साधक ये नहीं जानता कि भली प्रकार साधना क्या है, अभी जिन प्रक्रियाओं से हम स्वयं को गुजार रहे हैं अथवा स्वयं जिस मार्ग से हम गुजर रहे हैं वो तो एक प्रक्रिया मात्र है। हम कभी सूर्य का प्रकाश ले रहे हैं, हम कभी वातावरण से जुड़ रहे हैं, हम कभी मन को शांत बनाने का प्रयास कर रहे हैं, तो ये सब परंपराएं मिलकर बस हमें तराश ही रही है। धीरे-धीरे हम विचारों पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं, हमारे सहस्त्रों सहस्त्र विचार साधना पथ पर चलते चलते रुकने लगाते हैं और वो अनुभूति गहरी होती चली जाती है, हम एक ऐसे स्थिति को प्राप्त करते हैं जो न तो पूरी तरह जागृत होती है, न ही पूरी तरह से सुषुप्त, अब धीरे-धीरे साधक उस पथ को जानने लगता है, जिस पथ पर वह आगे बढ़ा, अब गुरु का एक-एक शब्द सत्य प्रतीत होता है, हम गुरु के प्रति कृतज्ञता से भर उठते हैं, हम धन्यवाद करते हैं भीतर ही भीतर उस मार्गदर्शक का जिसने हमें इस पथ पर बढ़ने के लिए प्रेरित किया! भीतर का अनंत विकास साधना के प्रथम चरण पर ही हम अनुभव करते हैं। ऐसी अनेकों छोटी-छोटी घटनाएं घटित होती है जिनके बारे में बताना संभव नहीं और साधना में कभी कबार साधक थोड़ी मनमानी भी कर लेता है; वह स्वयं अपने साथ कुछ प्रयोग करता है; वह स्वयं अपनी साधनाओं के साथ भी प्रयोग करता है, इसमें कोई बुराई नहीं, किन्तु ये जानना अनिवार्य है कि हम किस हद तक स्वतः मनमाने प्रयोग कर सकते हैं, क्योंकि सावधानी हमेशा रखनी होगी! कोई भी ऐसी प्रणाली हमारे तप मार्ग में विघ्न पैदा कर सकती है जो तमस प्रधान हो; अतः गुरु से अपने साधना क्षेत्र को भली प्रकार सीख लेना चाहिए। धीरे-धीरे साधक स्थिरधी होता चला जाता है उसके भीतर दिव्य ज्ञान उत्पन्न होता है, वह प्रकृति से सब कुछ प्राप्त कर लेता है, साधक पूर्णतया भीतर से परिवर्तित हो जाता है! एक साधना का ही सूत्र है जो उसे परिवर्तित करने में अपनी अहम भूमिका निभाता है! देह तो साधक की परिवर्तित नहीं हो सकती क्योंकि वो आणविक है, भौतिक है किंतु भीतर के अणु परिवर्तित होते चले जाते हैं, साधक का बाह्य आवरण भी सूक्ष्म तलों पर परिवर्तित होता चला जाता है, ये सूक्ष्म बदलाव गुरु तुरंत भांप सकता है; अथवा कोई सिद्ध योगी, कोई दूसरा साधक इस अनुभव को..इस परिवर्तन को देख सकता है लेकिन जन साधारण के लिए कोई अनुभव..कोई परिवर्तन सुलभ नहीं !

-ईशपुत्र

बुधवार, 16 मार्च 2022

होली - प्रेम का उत्सव

होली की साधना एवं महत्त्व संक्षेप में :
होली जीवन की प्रफुल्लता का पर्व है, प्रकृति के श्रृंगार, जीवों से सुख, मानव की प्रसन्नता का काल होली कहलाता है, होली ज्योतिषीय आधार सहित चिकित्सीय आधार और साधना का विशिष्ट समय लिए आने वाला दुर्लभ पर्व भी माना जाता है, रस और श्रृंगारमय वातावरण होने के कारण इसे प्रेम का उत्सव कहा जाता है, इस दिन प्रेम की ऐसी वयार बहती है की शत्रु भी मित्र हो जाते हैं, धार्मिक आधार ये भी है कि ये काल बुरे पर अच्छे की जीत का समय है, शास्त्रों के अनुसार स्वत: सिद्ध मुहूर्तों में से एक होली भी है, होली को कल्पतरु काल भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन अनेक मन्त्रों कि सिद्धियाँ प्राप्त कि जाती है, होली के दिन किये गए सभी प्रयोग चमत्कारी रूप से त्वरित और दिव्य परिणाम ले कर आते हैं, इस दिन गुरु से परलौकिक दीक्षाएं प्राप्त कि जाती हैं, जीवन के अभावों को दूर करने के लिए इस काल में अवश्य साधना करें,शीघ्र विवाह, प्रेम प्राप्ति,शत्रु वशीकरण, सहित सर्वजन मोहन जैसे प्रयोग इस दिन किये जाते हैं, ईश्वर के सच्चे भक्तों को इस दिन निःस्वार्थ साधनाएँ ही करनी चाहियें, सौंदर्य-सम्मोहन के साथ ही कुण्डलिनी जागरण का मंत्र मार्गीय प्रोग भी इसी दिन से शुरू किया जा सकता है, होली के कुछ गुप्त रहस्य भी होते हैं जिन्हें गुरु केवल योग्य शिष्यों को ही बताता है।
आइये अब होली के कुछ दिव्य प्रयोगों के बारे में जानते हैं

धन लक्ष्मी प्रयोग-
लाल रंग से माथे को रंग कर लक्ष्मी माता के मन्त्रों का जाप करें लक्ष्मी कि कृपा बरसेगी
मंत्र-ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी आगच्छ आगच्छ धनं देहि देहि स्वाहा ॥
कमल गट्टे की माला से मंत्र का जाप करें
लाल गुलाल में कुछ दक्षिणा राशि रख कर दान करें व मंत्र का एक बार उच्चारण करें
मंत्र-श्री महालक्षमयै नम: दक्षिणां समर्पयामि।

रोग एवं ग्रह बाधा नाश हेतु प्रयोग-
हरे रंग से माथे को रंग कर सूर्य देवता के मन्त्रों का जाप करें तो बार-बार आने वाली मुसीबतों का नाश होता है
मंत्र-ॐ ऐं आदित्याय विद्महे सर्वारिष्ट निवृत्तये फट् ॥
हल्दी से स्वस्तिक का चिन्ह बना कर पुजा करें
यथा शक्ति अन्न दान करें

शत्रु वशीकरण प्रयोग-
पीले रंग से माथे को रंग कर हनुमान जी के मन्त्रों का जाप करें तो, जो अकारण शत्रु बन जाते है तो भी वे मित्र हो जायेंगे
मंत्र-ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ॥
मंत्र जाप के बाद गौग्रास अवश्य दें
हनुमान जी को सिन्दूर भेंट करें

मनोवांछित शीघ्र विवाह प्रयोग-
गुलाबी रंग से माथे को रंग कर कामाख्या देवी जी के मंत्र का जाप करें, तो मनोवांछित वर अथवा कन्या से विवाह होता है और शीघ्र विवाह होता है
मंत्र-स्त्रीं स्त्रीं कामाख्ये प्रसीद प्रसीद स्वाहा ॥
माता को पुष्प माला अर्पित करें
रुद्राक्ष माला का जाप करें

होली के दिन देवी कामाख्या जी की सोलह शक्तियों का नाम लेने से देवी प्रसन्न हो कर सब दुखों का नाश करती है, सावधानी पूर्वक नाम लिख कर उनको बार बार कहना चाहिए, देवी के ये सोलह नाम हैं-अन्नदा, धनदा, सुखदा, जयदा, रसदा, मोहदा, ऋद्धिदा, सिद्धिदा, वृद्धिदा, शुद्धिदा, भुक्तिदा, मुक्तिदा, मोक्षदा, शुभदा, ज्ञानदा, कान्तिदा, यदि आप दिव्य तेजस्विता प्राप्त करना चाहते हैं आध्यात्मिक तेज चाहते हैं तो होलिकाग्नि पर मंत्र ध्यान लगाना चाहिए

मंत्र-ॐ ह्रौं तेजस्विनी ज्वल्ल होलिकाग्ने स्वाहा ॥
विशेष बात यह है कि किसी 64 कला संपन्न दिव्य गुरु से दीक्षा अवश्य लेँ और होली जैसे पर्व के दौरान गुरुपूजन करें, शास्त्र कहता है कि संत-दर्शन और उनके चरणवंदन से आयुआरोग्य प्राप्त होता है, तपस्वी गुरु कि चरणपादुका-पूजन से दिव्य प्रज्ञा प्राप्त होती है

कौलान्तक पीठाधीश्वर
महायोगी सत्येन्द्र नाथ


बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

रुद्राक्ष के चमत्कारी महारह्स्य


भगवान शिव के प्रिय रुद्राक्ष में स्वयं शिव का अंश होता है, रुद्राक्ष को शिवाक्ष,शर्वाक्ष,भावाक्ष,फलाक्ष,भूतनाशन,पावन,हराक्ष, नीलकंठ,तृणमेरु,शिवप्रिय, अमर और पुष्पचामर भी कहते हैं, आयुर्वेद के ग्रंथों में भी रुद्राक्ष की महामहिमा का वर्णन है, आयुर्वेदिक ग्रंथों में रुद्राक्ष को महौषधि,दिव्य औषधि आदि कह कर इसके दिव्य गुणों को विस्तार से बताया गया है, रुद्राक्ष की जड़,छाल,फल,बीज और फूल सबमें औषधीय व दैवीय गुण छिपे हुये है. यदि आप तंत्र मंत्र जादू टोना अथवा किसी बुरे साए से परेशान हों! किसी की नजर ने जीना दूभर कर रखा हो! तरह तरह से ग्रहों की दशाओं ने जीवन की नैया को डावा-ड़ोल कर दिया हो! बुद्धि विवेक मस्तिष्क तनाव या किसी समस्या के कारण ठीक से काम न कर पा रहे हो! साथ ही आप यदि हृदय रोगों से परेशान हों, नक्षत्र दोष के कारण बनते काम बिगड़ रहे हों! तो अब समय आ गया है, "दुर्भाग्य के नाश का" और शिव की तरह प्रसन्न और मुक्त होने का. शिव पुराण में कहा गया है कि जिसने रुद्राक्ष धारण कर रखा हो, वो तो स्वयं शिव ही हो जाता है, जी हाँ ठीक सुना आपने जो भी व्यक्ति रुद्राक्ष धारण कर ले वो शिव के सामान ही दिव्य हो जाता है, लेकिन इसके लिए आपको जाननी होगी कुछ अतिगोपनीय विधियाँ,जो हम आज गहन अध्ययन केबाद आपके लिए ले कर आये हैं, अगर आपको लगता है कि आपका भाग्य साथ नहीं दे रहा, आप बहुत ही ज्यादा चंचल है और इस बजह से लगातार अपना नुक्सान कर रहे हैं, तो शिव के मन्त्रों से प्राण प्रतिष्ठा कर रुद्राक्ष धारण कीजिये, आपके जीवन में स्थिरता आने लगेगी. राहु, शनि, केतु, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों के दुष्प्रभाव से होने वाले रोगों व संकटों का नाश होगा, जीवन के संघर्षों से आपको राहत मिलेगी, साथ ही अकाल मृत्यु, दुर्घटनाओं को रोकेगा शिव का एक चमत्कारी रुद्राक्ष, सकन्ध पुराण और लिंग पुराण में कहा गया है कि रुद्राक्ष से आत्मविश्वास और मनोबल बढ़ता है, कार्य, व्यवसाय, व्यापार में अपार सफलता दिलवाता है, रुद्राक्ष सुख समृद्धि प्रदान करता है, साथ ही साथ पाप, शाप, ताप से भी भक्त की रक्षा करता है, हम आपको बता दें कि रुद्राक्ष भारत, नेपाल, जावा, मलाया जैसे देशों में पैदा होता है, भारत के असाम, बंगाल, देहरादून के जंगलों में पर्याप्त मात्र में रुद्राक्ष पैदा होतें है, रुद्राक्ष का फल कुछ नीला और बैंगनी रंग का होता है जिसके अन्दर गुठली के रूप में स्थित होता है शिव का परम चमत्कारी दैविक रुद्राक्ष, लेकिन रुद्राक्ष का एक हमशक्ल भी होता है जिसे भद्राक्ष कहा जाता है, पर उसमें रुद्राक्ष जैसे गुण नहीं होते, शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार रुद्राक्ष की क्षमता उसके मुखों के अनुसार ही होती है, रुद्राक्ष एक मुखी से ले कर इक्कीस मुखी तक प्राय: मिल जाते है, सबकी अलौकिकता एवं क्षमता अलग अलग होती है, हिमालय की तराइयों से प्राप्त रुद्राक्ष की महिमा सबसे बड़ी कही गई है, दस मुखी और चौदह मुखी रुद्राक्ष अतिदुर्लभ कहे गए है, पंद्रह से ले कर इक्कीस मुखी तक के रुद्राक्ष साधारणतय: नहीं मिल पाते, और एक मुखी की तो महिमा ही अपरम्पार है, जिसे मिल जाए उसे जीवन में फिर कुछ और पाना शेष नहीं रहता, वो केवल अत्यंत भाग्य वाले को ही मिल पाता है, रुद्राक्षों में नन्दी रुद्राक्ष, गौरी शंकर रुद्राक्ष, त्रिजूटी रुद्राक्ष, गणेश रुद्राक्ष, लक्ष्मी रुद्राक्ष, त्रिशूल रुद्राक्ष और डमरू रुद्राक्ष भी होते है, जो अंत्यंत दैविक माने गए हैं. रुद्राक्ष का प्रयोग औषधि के रूप में तो होता ही है साथ ही इसे धारण भी किया जाता है या पूजा के लिए,माला के रूप में प्रयुक्त होता है,स्फटिक शिवलिंग, बाण लिंग अथवा पारद शिवलिंग को स्थापित कर यदि रुद्राक्ष धारण कर लिया जाए तो वो व्यक्ति सम्राटों जैसा बैभव प्राप्त कर लेता है, रुद्राक्ष ऐसा तेजस्वी मनका है जिसका उपयोग बड़े बड़े योगी संत ऋषि मुनि महात्मा परमहंस तो करते ही है साथ ही साथ तांत्रिक अघोरी जैसी वाममार्गी विद्याओं के जानकार भी इसके चमत्कारी प्रभावों के कारण इसकी महिमा गाते फिरते है, भारत के सिद्ध रुद्राक्षों का प्रयोग तो आज विश्व के हर कोने में बैठा व्यक्ति कर ही रहा है, तो आप और हम इसके दिव्य गुणों से दूर क्यों रहें? स्कंध पुराण में कार्तिकेय जी भगवान शिव से रुद्राक्ष की महिमा और उत्पत्ति के बारे में प्रश्न पूछते है तो स्वयं शिव कहते है कि "हे षडानन कार्तिकेय ! सुनो, मैं संक्षेप में बताता हूँ, पूर्व काल में युद्ध में मुश्किल से जीता जाने वाला दैत्यों का राजा त्रिपुर था. उस दैत्यराज त्रिपुर नें जब सभी देवताओं को युद्ध में परास्त कर कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया. तो ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, प्रमुख देवगण तथा पन्नग गण मेरे पास आ कर त्रिपुर का बध करने के लिए मेरी प्रार्थना करने लगे. देवताओं की प्रार्थना सुन कर संसार की रक्षा के लिए मैं बेग से अपने धनुष के साथ सर्व देवमय भयहारी कालाग्नि नाम के दिव्य अघोर अस्त्र को ले कर दैत्य राज त्रिपुर का बध करने के लिए चल पड़ा. लेकिन उसे हम त्रिदेवों से अनेक वर प्राप्त थे, इसलिए युद्ध में लम्बा समय लगा, एक हजार दिव्य वर्षों तक लगातार क्रोद्धमय युद्ध करने से व योगाग्नि के तेज के कारण अत्यंत विह्वल हुये मेरे नेत्रों से व्याकुल हो आंसू गिरने लगे, योगमाया की अद्भुत इच्छा से निकले वो आंसू जब धरा पर गिरे और बृक्ष के रूप में उत्त्पन्न हुये, तो रुद्राक्ष के नाम से विख्यात हो गए, ये षडानन रुद्राक्ष को धारण करने से महापुण्य होता है इसमें तनिक भी संदेह नहीं है, रुद्राक्षों के दिव्य तेज से आप कैसे दुखों से मुक्ति पा कर सुखमय जीवन जीते हुये शिव कृपा पा सकते हैं  

विद्या बुद्धि एवं सफलता प्राप्ति हेतु रुद्राक्ष 

विद्या,ज्ञान व बुद्धि की प्राप्ति के लिए तीन मुखी व छ: मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इसे धारण करने से तीब्र बुद्धि होती है व अद्भुत स्मरण शक्ति प्राप्त होती है, जो पढाई में कमजोर हों वे इसे अवश्य धारण करें,बहुत ज्यादा लाभ मिलेगा, तीन मुखी या छ: मुखी रुद्राक्ष धारण, करने से रचनात्मक कार्यों में भी बहुत लाभ मिलता है, जैसे यदि आप फैशन डिजाइनर हो, सौन्दर्य जगत से जुड़े हो, लेखक या सम्पादक हों, चित्रकार या अनुसंधानकर्ता हों तो ये रुद्राक्ष आपको बहुत लाभ प्रदान करेंगे,

रोजगार,व्यक्तित्व विकास एवं इन्टरवियू में सफलता हेतु रुद्राक्ष

यदि आप अपना चौमुखी विकास करना चाहते हों तो या रोजगार पाना चाहते हों तो नौ मुखी, चार मुखी या फिर तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करें, इसे धारण करने से सहनशीलता,बीरता,साहस,कर्मठता में बृद्धि होती है, इसका सबसे बड़ा गुण ये भी है की ये रुद्राक्ष संकल्प शक्ति में बृद्धि करते हैं जिससे आप अपने लक्ष्य तक जरूर पहुंचते ही है, बेरोजगार या नौकरी की तलाश कर रहे व्यक्ति को इससे उत्तम रोजगार प्राप्त होता है, यदि आप बार बार इन्टरवियू में असफल हो रहे हों तो इनमेंसे कोई एक रुद्राक्ष तुरंत धारण करेने से लाभ मिलेगा, यदि आप जीवन में आगे की बजाय पीछे की और जा रहे हों तो इन रुद्राक्षों को धारण करने से उन्नति अवश्य मिलेगी

सामाजिक,पारिवारिक समस्याओं एवं विवाह सम्बन्धी समस्याओं के लिए रुद्राक्ष

यदि आपका विवाह नहीं हो पा रहा है या विवाह के बाद गृहस्थी सुखी नहीं है, आपके सम्बन्ध अपने रिश्ते नाते वालों के साथ ठीक नहीं हैं या समाज में शत्रु ही शरु हो गए हों, तो आपको दो मुखी रुद्राक्ष या गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करना चाहिए,इसे धारण करने से घर में होने वाले परस्पर झगड़ों से मुक्ति पाई जा सकती है, ये रुद्राक्ष पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-बहन,गुरु शिष्य अथवा मित्रों आदि के साथ के मतभेदों को दूर करता है, लड़के लड़कियों के विवाह में अनावश्यक विलम्ब हो रहा हो तो इसे जरूर धारण करवाएं लाभ मिलेगा, आप मंगलबार के दिन इनमे से कोई भी रुद्राक्ष धारण करें

दुर्घटना से बचाव, बुरी नजर, जादू-टोनों, बुरे ग्रहों से बचाव व अपनी सुरक्षा हेतु रुद्राक्ष 

यदि आप अपनी सुरक्षा को ले कर बहुत चिंतित हों, वाहन चलने से घबराते हों, बार-बार दुर्घटनाएं होती हों, कुंडली हमेशा ही कोई नीच ग्रह या बाधा बनी रहती हो, भाग्य आपका साथ न दे रहा हो, जादू-टोनों से या फिर बुरी नजर से परेशान हों, भूत प्रेत अथवा सांप चूहे छिपकली से डर लगता हो, तो आपको ग्यारह मुखी या फिर दस मुखी रुद्राक्ष धारण काना चाहिए, यदि घर में बुरे साए का वास हो जो आपको परेशान करता हो तो सभी पारिवारिक सदस्य इसे धारण करें, यदि आप पवित्रता से रख सकते हैं तो वाहन अथवा तिजोरी की चाबी में छल्ले के रूप में भी आप इसका प्रयोग कर सकते हैं

प्रेम प्राप्ति अथवा आकर्षण हेतु रुद्राक्ष

यदि आप किसी से प्रेम करते है और चाहते है की आपका प्रेम परिणित हो अथवा आप आकर्षण प्राप्त करना चाहते हों, तो छ: मुखी या तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करें, आप थियेटर या मंच से जुड़े हुये हों, धर्माचार्य हों या शिक्षक हों, मार्केटिंग या प्रचार माधयमों जैसे टीवी रेडिओ फिल्म आदि से जुड़े हैं तो आप ये रुद्राक्ष धारण कर लाभ पा सकते हैं, आपका प्रेम सम्बन्ध यदि टूट गया है, या आपके जीवन में कोई है जिसे आप खोना नहीं चाहते तो ये रुद्राक्ष फायदेमंद रहेगाअखंड धन लाभ एवं कार्य व्यवसाय, व्यापार से लाभ प्राप्त करने हेतु रुद्राक्ष

यदि आप व्यापारी हैं कोई व्यवसाय करते हैं, कोई कंपनी चलाते है, या कोई निजी व्यवसाय करते है जिससे आपको धन लाभ की आकांक्षा है, तो आप सातमुखी, ग्यारह मुखी,गणेश रुद्राक्ष अथवा लक्ष्मी रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं, इन रुद्राक्षों को धारण करने से गरीवी का नाश होता है, जिस व्यवसाय में आप हैं उसी से आपको लाभ मिलने लगता है, आपका यश, मान, प्रतिष्ठा ऐसी बढती है की हर ओर से धन ही धन आने लगता है,आपके जीवन के सुखों में ओर अधिक बृद्धि होती है

रोगमुक्ति, स्वास्थ्य व लम्बी आयु हेतु रुद्राक्ष

यदि आप सदा तरह-तरह के रोगों से ही घिरे रहते हों, बीमारियाँ आपका पीछा ही नहीं छोड़ रही हों, यदि आप मानसिक रूप से भी परेशान ही रहते हों, चिंताएं खाए जा रही हों, कुंडली या क्रूर ग्रह अकाल मृत्यु का संकेत दे रहे हों तो आपको चौदह मुखी या आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, अकाल मृत्यु को टालने की इनमें अभूतपूर्व क्षमता है, रोग नाश के साथ-साथ जीवन की विकट परिस्थितियों में उचित निर्णय लेने की क्षमता भी प्रदान करता है

समाजसेवा, शासन-प्रशासन, सत्ता या राजनीती में सफलता हेतु रुद्राक्ष

यदि आप समाज सेवी हैं और अपने कार्यों को तीब्रता से करना चाहते हैं, शासन प्रशासन में अपनी पकड मजबूत करना चाहते हैं, आप युवा नेता या गहरे राजनीतिज्ञ हैं और अपने क्षेत्र के मुकाम को हासिल करना चाहते हैं, तो आपको बारह मुखी या सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, इससे व्यक्ति की कीर्ति, यश, सूर्य के सामान चमकने लगती है, इसे धारण करने से बाणी में चातुर्य आता है संबोधन में आकर्षण पैदा होता है, आप अपनी गहरी छाप सब पर छोड़ सकते हैं

मुसीबत से या कोर्ट कचहरी मुकद्दमों से शीघ्र मुक्ति हेतु रुद्राक्ष

यदि आप पर कोई मुसीबत आन पड़ी हो कोई रास्ता न सूझ रहा हो या आप कोर्ट कचहरी के मामलों में फँस गए हों, आपका धैर्य जबाब देने लगा हो, जीवन केवल संघर्ष ही रह गया हो, अक्सर हर जगह अपमानित ही महसूस करते हों, तो आपको सात मुखी, पंचमुखी अथवा ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने चाहियें, समस्याओं के मध्य से भी तुरंत हल निकाल आएगा


 

 

कौलान्तक पीठाधीश्वर

महायोगी सत्येन्द्र नाथ