महायोगी जी जगत कल्याण के लिए भी हिमालय छोड़ कर नहीं आना चाहते थे

 महायोगी जी को इक्कीसवें वर्ष में "कौलान्तक पीठाधीश्वर"बनाया गया......वो भी साधना और ज्ञान में सबसे श्रेष्ट होने के कारण व अनेकों विद्याओं के जानकार होने के कारण....हालाँकि महायोगी जी जगत कल्याण के लिए भी हिमालय छोड़ कर नहीं आना चाहते थे.....वो अपने महागुरु जी सेवा में ही रहना चाहते थे लेकिन.....एक दीं महागुरु ने उनको अपने पास बुलाया और कहा कि अब तो तुम कौलान्तक पीठ के पीठाधीश्वर हो गए हो सारे हिमालय के मालिक भी.....अब क्या इच्छा है?महायोगी जी ने कहा कि माता पिता के लिए कुछ करना चाहता हूँ.....और परिवार के साथ रहूँगा....विवाह करूँगा....और आपकी सेवा.....में हमेशा गुप्त ही रहना चाहूँगा......में नहीं चाहता कि कोई मुझे जाने.......आज जब लोग मुझे जानते तक नहीं तो भी न जाने क्या-क्या कहते रहते हैं....अगर समाज में गया तो दुष्ट आत्माओं को सहन नहीं हो पायेगा.....महागुरु ने कहा.....तुम्हें कैसे पता कि समाज में दुष्ट आत्माएं हैं......महायोगी जी ने कहा मेरा अनुमान और अभी तक का साथ......गलत महागुरु ने कहा इसी भारतीय समाज में कभी में पैदा हुया था......आज तुम पैदा हुए हो......कल हिमालय किसी और को भेजेगा.....समाज दुष्ट नहीं अबोध है....जिसे हांकते हैं कुच्छ गलत हाथ.....ये हाथ हर क्षेत्र में हैं.....और अगर तुम जा कर सुधरने का प्रयास नहीं करोगे तो तुम्हारा क्या लाभ.....महायोगी जी ने कहा....गुरुदेव मैं ये सब नहीं जानता....बस मैंने जो फिसला किया है वो आपको बता दिया.....महागुरु ने महायोगी जी को समझाने कि हर संभव कोशिश कि कि तुम्हें समाज मैं जाना ही होगा...लेकिन महायोगी जी ने भी कह दिया चाहे जो भी हो जाए.......मैं नहीं जाऊंगा.....ये मेरा काम नहीं......जब बात नहीं बनी तो महागुरु ने कहा ठीक है......तुम्हारी शिक्षा दीक्षा पूर्ण हुई.....तुम आज से मुक्त हो....लेकिन एक नियम हैं....जो तुमको पूरा करना है......महायोगी जी ने पूछा क्या......तो महागुरु ने कहा कि मेरी गुरु दक्षिणा.....महायोगी हाथ जोड़ कर खड़े हो गए कहने लगे गुरुदेव मेरे पास कुछ भी नहीं है......मैंने तो सब कुछ

 महायोगी जी किसी भी कीमत पर समाज में जाने को तैयार नहीं थे  
 अंततः उनको वही करना पड़ा जिसे वो नहीं करना चाहते थे  
आपसे ही पाया है...मैं भला क्या दे पाउँगा.....महागुरु बोले ये तो नियम है देना ही पड़ेगा....अंततः महायोगी को मानना ही पड़ा....महागुरु ने कहा हिमालय का सन्देश ले कर जगत में जाओ.......जिस कौलान्तक पीठ को लोग भूल चुके हैं उसकी गरिमा याद दिलाओ.....जब तुम्हे लगे कि ये काम पूरा हो गया तो लौट आना.....लेकिन कम से कम पंद्रह वर्षों तक मत लौटना.....यही गुरु दक्षिणा है......हट फिर कर वही हुआ जो महागुरु चाहते थे......चरण स्पर्श कर महायोगी अपने घर लौटे.......अपना सामान उठाया.....अपने एक मित्र से 300रुपये उधर ले कर निकल पड़े अपने "कौलान्तक पीठ" के महा अभियान में.......यहाँ महायोगी जी के बारे में केवल इतना बता सकता हूँ....वे अलौकिक है ......कहते हैं कि महायोगी जी को  पूर्व जन्म का कोई  एक अधूरा  काम भी  पूरा करना है.....जिसकी हमे कोई जानकारी नहीं कि वो क्या है....यहाँ ये बताना बहुत ही जरूरी है कि  महायोगी जी.....सामाजिकता नहीं जानते....इसलिए दुनियादारी में उलझ जाते हैं....उनको कोई भी बातों में फाँस सकता है बड़े ही सरल ह्रदय के हैं...और खुद पर खूब हँसते भी हैं...लेकिन ऐसे में ये बात हम सबको परेशां किये है कि दुष्ट लोगों से हम उनकी रक्षा कैसे कर सकते है......यहाँ ये भी बता दूँ कि सन 2008में महायोगी जी को ट्रक के नीचे कुचलने का प्रयास हो चूका है....2008 में ही उनके भोजन में फिर से विषाक्त तत्व मिला कर उनको मारने का प्रयास किया गया....लम्बे समय तक बिस्तर पर रहने के बाद ही महा योगी जी टीक हो पाए.....फिर 2009में उनको जान से मारे जाने कि धमकियाँ मिलने लगी.....2009में ही उनके वहां पर पत्थरों से हमला किया गया जिसमे महायोगी जी बाल बाल बच गए.......हिमाचल के समाचार पत्रों ने ये खबर बड़ी प्रमुखता से छापीं.....पुलिस में भी मामला दर्ज किया गया है......अब आप ही बताइए ऐसे में महायोगी जी कि रक्षा कैसे हो पाएगी.....लेकिन महायोगी निश्चिन्त हैं....उनको इन सब घटनाओं से जरा भी अंतर नहीं पड़ा.....अपने कार्यों में लगातार जुटे हैं.....सचमुच सिद्ध योगी है इसमें लेशमात्र संदेह नहीं.....आपके मन में ये प्रश्न जरूर उठ रहा होगा कि उन पर हमले होने का कारण क्या है.....वो है समाज के कुछ अराजक तत्वों को बुराई फैलाने से रोकना....इन बातों को आप इसी साईट के नए लिंक में पढ़ सकेंगे......लेकिन अभी तो शुरुआत है.....अभी आगे क्या होगा ये देखना है?ये उन लोगो का सौभाग्य  है जो महायोगी जी के पास रहते हैं......कि वे एक महापुरुष के साथ जी रहे हैं.......समाज के भी कुछ और लोग उनके साथ रहते तो हैं पर माया का पर्दा जो माता भ्रामरी ने ड़ाल रख्खा है उन्हें उनसे दूर रखता है....पर शिव और माता
  श्रद्धेय महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी के दिव्य चरण कमलों के दर्शन
 जिन्होंने नदी नालो वृक्षों सहित हिमालय के दिव्य तीर्थों को छूआ है  
के भक्तों से महायोगी नहीं छुप पाते वे उनकी माया तोड़ कर उनको पहचान ही लेते हैं.....कौलान्तक पीठाधीश्वर के रूप में जबसे वे प्रतिष्ठित हुए है.......कौलान्तक पीठ गुप्त  रहस्यों के आवरण से निकल आया है.....आज विश्व इनके कारण ही कौलान्तक पीठ को जान रहा है......वो दिन दूर नहीं जब हिमाचल का कुल्लू क्षेत्र करोडो लोगो के आकर्षण का केंद्र हो जायेगा.....आज ही विश्व के कोने कोने तक ये सन्देश पहुंचना शुरू हो गया है.....हिमाचल के साथ साथ भारत के नाम की धर्म पाताका फिर लहरा रही है......शायद यही महायोगी जी का अति संक्षिप्त परिचय है.....मेरी आप सबसे पुनः प्रार्थना है कि.....यदि कहीं कोई गलती जाने अनजाने हो गयी हो तो आप सब मुझे करबद्ध क्षमा कर देंगे.....हिमालय के ऐसे दिव्य योगी का वृत्तांत लिख पाना या कह पाना सरल नहीं है......पर मैंने चेष्ठ कि है......में कौलान्तक पीठ कि टीम का धन्यवादी भी हूँ कि उन्होंने मुझे इस काबिल समझा कि में श्रद्देय महायोगी जी कि महिमा को चंद शब्द दे सकूँ.........ॐ नम: शिवाय.......
 -योगी लखन नाथ

कोई टिप्पणी नहीं: