"कौलाचार" कोई भद्दा कामुक परिहास नहीं है। "कौलाचार" है श्रेष्ठता। जो कुल शिव का हो, जो शक्ति का हो वही कुल "कौलों" का कुल है। जो कुल रहस्यों के आवरण को निर्मित करता हो, जो कुल रहस्यों की आवरण पूजा करता हो, वही "कौल" है। "कौल धर्म है" "कौल शिव हैं" और हम उन्हीं को अपना मानते हैं जो शिव के हैं। संसार में बहुत से हैं जो "शिव द्रोही" है। तब भी हम मौन है, क्योंकि उनकी गति भी प्रलय काल में शिव ही है। "कौल" होने के लिए "घंटाकर्ण वीर" होना जरूरी है। "कौल" होने के लिए शिव का गण "महाकाल" और "वीरभद्र" होना जरूरी है। शिव का होने के लिए बस उनका हो जाना जरूरी है। लोग पूछते हैं की देश के लिए वर्तमान परिस्थितियों के लिए, हम क्या कर रहे हैं? हमारा उत्तर है की सदियों से तुम्हारे संसार और इस देश के लिए, इसकी संस्कृति के लिए, कौन कार्य कर रहा है? देश की राजनीति हो या धर्म, नई पीढ़ी की दिशा हो या परिवर्तन का अभियान। हम सर्वत्र उपलब्ध हैं। अभी बताने का समय नहीं आया। लेकिन तुम्हारे साथ झंडे थामने वाला एक हाथ "महाहिन्दू" का है, शिव के "कौल गण" का है। जब तुम पिटते हो, तुम्हारे साथ हम भी पिट रहे हैं। जब तुम भूखे सोते हो, हम भी भूखे सो रहे हैं। देश के लिए, संसार को बदलने के लिए, तुम भी सामने हो और हम भी सामने हैं। बस अंतर ये है की तुम संसार के कार्य दिखा-दिखा कर, बता-बता कर करते हो और धर्म को अध्यात्म को अपने ह्रदय में रखते हो, हम उलट हैं, धर्म को अध्यात्म को बता-बता कर करते हैं, दिखा-दिखा कर करते हैं। लेकिन देश हित और विश्व कल्याण के कार्य गुप्त रीति से करते हैं। हमने तुमसे नहीं पूछा की क्या तुम शिव की पूजा करते हो? तो तुम मत पूछो की हम क्या करते हैं। "महाहिन्दू" को कभी भी मूक बैठा हुआ नहीं मानना चाहिए, वो तो मृत्यु आने के बाद भी बोलता है। क्योंकि वो शिव पर विश्वास रखता है और शत्रुओं से अनुरोद्ध करता है की शांति में सहयोग दें। अन्यथा आखिर में सिंह गरज उठाता है। धर्म सत्संग का विषय नहीं है, कथाओं का विषय नहीं है। वो तो निरंतर जीवन है, योग क्षेम है। एक ऐसी उच्चता है जो विनम्रता देती है। कडवे वचनके साथ ही मीठा ह्रदय देती हैं। लेकिन इन सबके बाबजूद "कौलान्तक संप्रदाय" का गोपनीय ज्ञान एक रहस्य था और रहेगा। बस उजागर होगी तो "महाहिन्दुओं" की सनातन गौरव दास्तान।
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