सोमवार, 9 सितंबर 2019

"ईशपुत्र-कौलान्तक नाथ" के दिव्य "वचन" - 4

१६) जिस ईश्वर के सब ओर मुख हैं, जिसके लिए सृजन-पालन और विनाश खेल मात्र हैं उसके लिए साकार होना या निराकार होना कोई महत्त्व नहीं रखता। वो दोनों स्वरूपों में प्रकट होने वाला है उसके प्रकट और अप्रकट स्वरूपों में भेद जानना निश्चित ही धर्म रहित होने जैसा है।
१७) ईश्वर को मानने या न मानने से वो प्रसन्न या अप्रसन्न नहीं होता। वो तो तुम्हारे आचरण और निर्णयों सहित तुम्हारे मन को देखता है। ईश्वर का विधान न तो आस्तिक जानता है और ना ही नास्तिक। आस्तिक होना पुण्य नहीं और नास्तिक होना पाप नहीं।
१८) आस्तिक-नास्तिक, ज्ञानी-अज्ञानी, बुद्धिमान-कुबुद्धिमान अपनी-अपनी शैली और क्षमताओं से ईश्वर के होने न होने पर तर्क देंगे। तुम उनकी ओर देखोगे और नदी जलधारा के समान बहने लगोगे। किन्तु याद रखना उनके जैसे पहले भी हो चुके हैं आगे भी होंगे, पर क्या बदला? कुछ नहीं? इसलिए बदलना तुमको ही होगा।
१९) ईश्वर का रास्ता सुन्दर और सनातन है। तू इस पर चल, तेरे रोग-शोक, दुःख-संताप नष्ट होंगे। तू कभी कहीं अकेला नहीं रहेगा। भीतर की रिक्तता पूर्ण हो जायेगी। भयों का नाश हो, आनंद का उजाला होगा।
२०) ईश्वर के पुत्रों का आगमन और सृष्टि हित के कार्य अविरल होते रहेंगे। संतों का होना, दूतों का होना ही पूरे ब्रहमांड को प्रकाशित करता रहेगा। बस तुमको इस बात की चिंता करनी होगी की तुम कैसे ईश्वर के प्रिय हो सको। वो तुमको अवसर देता है, अब तुम इस अवसर का प्रतिउत्तर देना, तो मैं तुमको गले लगाउंगा।

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