सिद्ध लोक - अध्यात्म का स्वर्ग

सदियों का समय बीत गया है. पृथ्वी पर एक संसार है जिसे देख पाना हर किसी के लिए संभव नहीं है.पर वो अब तक जीवित है, वैसे का वैसा. एक ऐसा संसार जिसने इस पृथ्वी पर मानव को अध्यात्म और चेतना का ज्ञान दिया. एक ऐसा स्थान जो स्वर्ग है. जिसने इस सृष्टि को बनाने वाले की ओर इशारा किया. ईश्वर को समझ कर मानव को उस तक पहुँचाने का रास्ता दिखाया. मानव उस अदृश्य संसार के बताये मार्ग पर जब भी चला उसने पृथ्वी पर ही आनंद का अहसास कर लिया. जब-जब मानव की बुद्धि पाप की ओर बड़ी, तो उस संसार नें अपन सीनें में छुपाये हीरे जैसे चमकते महापुरुषों को संसार में भेजा. सारे धर्म वहीँ से शुरू हुए हैं वहीँ पर जा कर समाप्त हो जाते हैं. उस अदृश्य लोक तक पहुँचाना सभी की चाह रही है. पृथ्वी पर पूर्व नें धर्म को इतना बढ़ा दिया कि प्राचीन विश्व में कोई देश इस लहर से न बच सका. आज भी जहां से इन सबकी शुरुआत हुई है.वहां न तो कोई मंदिर है न कोई स्तूप या ध्वजा. कोई भी ऐसी निशानी नहीं है लेकिन बड़े से बड़ा अवतारी भी वहां जा कर किसी अनंत में विलीन हो जाना चाहता है. ये रहस्यमय संसार बसता है भारत देश के उत्तर में. जिसे कहा जाता है "महाहिमालय" या कौलान्तक पीठ. इसी कौलान्तक पीठ को स्वर्ग का नाम भी दिया गया गया है. प्राचीन विश्व के सभी धर्मों में पहले बहुत से देवी-देवता हुआ करते थे. जो समय के साथ-साथ पैदा हुए महापुरुषों द्वारा गौण कर दिए गए. और ईश्वर को सम्मुख लाये. बड़े-बड़े इतिहासकार हों या धर्म के शोधकर्ता सब ये तो जानते हैं कि भारत के हिमालयों में कुछ तो है. लेकिन कुछ हाथ नहीं आता. काश्मीर से ले कर नेपाल के बीच एक अदृश्य संसार अभी जीवित है. जिसका द्वार उन्नत मानवों की प्रतीक्षा करता रहता है. उन दिव्य पुरुषों की प्रतीक्षा जो माहामाया द्वारा रचित मायाजाल को समझ कर उससे मुक्त हो कर वहां आ सकें और अनंत के द्वार में समाहित हो जाएँ. हिमालयाई राज्यों में एक राज्य है हिमाचल प्रदेश. जहाँ के लोगों के बारे में कुछ वर्षों पहले तक ये विख्यात था कि वहां के लोग बड़े ही भोले और सहायता करने वाले होते हैं(हालांकि अब ऐसा नहीं है). जिसका कारण था सभी दैविक शक्तियों का गढ़ वहां होना. अनेकों देवी-देवता इस क्षेत्र में आ कर ठहर गए. जिसके पीछे अनेक कथाएं हैं लेकिन असल तथ्य लोग भूल गए औए इसे महाभारत की कथा से जोड़ कर बताते हैं. लेकिन ऐसा नहीं हैं. इस हिमालय में जरूर कुछ ऐसा है कि तंत्र-मंत्र, पूजा-पाठ, भक्ति-साधना से भी आगे यहाँ की भूमि का चयन ऋषियों नें तपस्या के लिए किया. काश्मीर की पहाड़ियों से ले कर नेपाल की भारतीय सीमा से कुछ अन्दर तक ऐसा है जिसे तर्क से समझाना ठीक वैसा है जैसे बिना आँखों के दृश्य को देखना. इस भूमि में भूत-प्रेत से ले कर देवी-देवता और ऋषि-मुनि सभी रहते हैं. लेकिन इन सबके बाबजूद भी यहाँ परम शान्ति है. एक ऐसा आनंद है जिसे योगी ही जान सकते हैं.